कोरोना वायरस से प्रभावित मामलों की संख्या भारत और अन्य जगहों पर बढ़ रही है, बीते कुछ हफ्तों में इसके संबंध में भय और आशंकाएं कई गुना बढ़ गई हैं। स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्रों के माध्यम से सूचना का प्रसार मददगार और आश्वस्त करने वाला भी रहा है, लेकिन, पहले से कहीं ज्यादा स्तर पर पूरी दुनिया को एक बार फिर इस सच्चाई का सामना करना पड़ रहा है कि परस्पर रूप से जुड़ी इस दुनिया में बीमारियों का स्पष्ट रूप से सीमाओं से कोई लेना-देना नहीं है। चीन के वुहान में जनवरी के मध्य में पहले सौ मामले आए थे, वर्तमान की वैश्विक जीवन शैली को देखते हुए महज कुछ ही हफ्तों में यह फैल गया और बड़ी संख्या में इसने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 16 मार्च, 2020 तक COVID-19 के 132,000 से अधिक मामले 123 देशों से रिपोर्ट किए गए हैं तथा 5000 लोगों की जान भी गई है। विश्व स्तर पर वुहान से पहला मामला सामने आने के बाद यह इसके त्वरित प्रसार और मृत्यु की घटनाओं के बाद, 11 मार्च, 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे एक महामारी के रूप में घोषित किया।
आज की दुनिया, जो सूचनाओं को बहुतायत में प्रदान करती है, जो मीडिया के नए और पारंपरिक माध्यमों दोनों के जरिए होता है, ऐसे में घबराहट को रोकने के साथ ही यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि सही जानकारी का प्रसार हो। जैसे-जैसे सरकारें पर्याप्त प्रतिक्रिया तंत्र बनाने और उन्हें स्थापित करने के लिए कार्य कर रही हैं, इससे यह स्पष्ट है कि इस मुद्दे को हल करने के लिए सहयोगी रूप से बलपूर्वक कार्य होना चाहिए था। अधिकांश सरकारें शुरुआती झिझक के प्रयासों के बाद निश्चित योजनाओं को तैयार करने में जुट गई हैं तथा संकट से निपटने के लिए सिस्टम लागू किए जा रहे हैं, इससे निपटने के क्षेत्रीय प्रयास संदेहपूर्ण रहे हैं।
सरकारों के पास तत्काल रूप से दो प्राथमिकताएं थीं, एक यह सुनिश्चित करने कि चिकित्सा सेवाएं उन लोगों के उपलब्ध हों, जो प्रभावित हैं और संदेह की दृष्टि में जिनकी जांच की जा रही थी, साथ ही पर्याप्त सुरक्षा प्रोटोकॉल सुनिश्चित करना और उनका पालन हो यह सुनिश्चित करना। न केवल चिकित्सा सेवाओं की तत्काल आवश्यकता की पूर्ति करना तथा जो संक्रमित नहीं है, ऐसे नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए एहतियाती उपाय और इसे फैलने से रोकने के लिए तत्काल और प्रभावशाली उपाय भी प्राथमिकता बन गई।
13 मार्च, 2020 को ही संकट की इस स्थिति को देखते हुए पीएम मोदी ने सार्क को तत्काल इस खतरे के खिलाफ लड़ाई के लिए आगे आने संबंधी ट्वीट किया था। मोदी ने सभी सदस्य देशों से स्वैच्छिक योगदान के आधार पर COVID-19 आपातकालीन कोष बनाने का प्रस्ताव रखा था। अन्य उपयोगी सुझावों में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस महामारी से निपटने के लिए टेली-मेडिसिन के संबंध में सामान्य ढांचे का प्रस्ताव रखा। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे द्वारा इसे सही ढंग से इंगित किया गया कि कोरोना वायरस द्वारा उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए सार्क अर्थव्यवस्थाओं को एक तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है। कोरोनोवायरस से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए सार्क की मंत्री स्तरीय समूह की स्थापना के उनके प्रस्ताव का भी सकारात्मक रुप से स्वागत किया गया।
यदि सार्क जो अभी तक स्थिर रहा है, सहयोग करने का प्रस्ताव कर सकता है तो यह आश्चर्य है कि इस क्षेत्र में बिम्सटेक जैसे अन्य अधिक आशाजनक क्षेत्रीय संगठन चुप और निष्क्रिय क्यों हैं? वास्तव में सार्वजनिक स्वास्थ्य बिम्सटेक की प्रतिबद्धताओं के प्रारंभिक दायरे में आने वाला एक प्रमुख क्षेत्र है और तब जब इसका केंद्रीय राज्य थाईलैंड भी COVID-19 से अछूता नहीं है। थाईलैंड, चीन और सिंगापुर के बाद तीसरा ऐसा देश है, जो सबसे अधिक मामलों से जूझ रहा है और हाल ही में वहां एक ही दिन में सबसे अधिक मामले सामने आए हैं। स्थानीय स्तर पर प्रसार के लिहाज से दूसरे चरण पर रहने वाले थाईलैंड ने कई एहतियाती कदम उठाए हैं, जिसमें एमएस वेस्टरडम क्रूज जहाज को थाइलैंड के बंदरगाह से हटाना शामिल है। स्थिति की गंभीरता के मामले में भी कोई संदेह नहीं था।
अभी जब इससे प्रभावित और घातक परिणाम निरंतर बढ़ रहे हैं, तब COVID-19 से प्रभावित होने वालों की दर में गिरावट बहुत धीमी है और यह संकट खत्म होने से अभी कोसों दूर है। ज्यादातर सरकारों के पास प्रारंभिक प्रतिक्रिया के रूप में चीन और अन्य प्रभावित क्षेत्रों से अपने नागरिकों की वापसी ही थी। वास्तव में जहाज पर सवार लोग इस आकस्मिक संकट से आरंभ से जूझ रहे हैं और उनकी असमर्थता ने न केवल वायरस को और अधिक असुरक्षित बना दिया है, बल्कि बाहरी दुनिया में सीमित पहुंच ने भी आशंकाओं को बढ़ा दिया है और इसने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाला होगा। यह स्थिति गंभीर थी और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है, प्रत्येक राष्ट्र को इसके लिहाज से सही प्रोटोकॉल का पालन करने में कठिनाई हुई है। क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग की गुंजाइश न केवल अद्भुत है, बल्कि महत्वपूर्ण भी है। जाहिर है, बिम्सटेक क्षेत्रीय समूह के भीतर नेपाल के अलावा प्रत्येक सदस्य देश ने COVID-19 रोगियों की घोषणा की है, लेकिन बिम्सटेक के भीतर या अन्य कोई क्षेत्रीय पहल या प्रतिक्रिया इसपर नहीं है। विपत्ति, चिकित्सा या भविष्य के लिहाज से एक मजबूत प्रतिक्रिया तंत्र बिम्सटेक सदस्यों के लिए एक प्राथमिकता का विषय होना चाहिए।
उदाहरण के लिए एक क्षेत्रीय बिम्सटेक प्रतिक्रिया तंत्र प्रभावी रूप से निकासी के उद्देश्य के लिहाज से सुविधाजनक हो सकता है। जैसा कि देखा गया इस संकट ने देश से बाहर के नागरिकों के बारे में अनिश्चितता प्रकट की, वह स्पष्ट था। ऐसी स्थिति में बिम्सटेक एक क्षेत्रीय प्रतिक्रिया के रूप में चार्टर उड़ानों की व्यवस्था कर सकता है जैसे अधिकांश देशों ने अपने फंसे हुए लोगों को वापस लाने के लिए किया था। अभी बहुत कुछ किया जाना है, हर दिन एक नई जानकारी सामने आती है, कई परिवार विदेशों में फंसे अपने परिवारजनों के बारे में चिंतित रहते हैं और उनकी वापसी का इंतजार करते हैं। बिम्सटेक के चार्टर उड़ान समय के लिहाज से सबसे जरूरी होंगे।
एक शुरुआत के रूप में BIMSTEC.org वेबसाइट का उपयोग न केवल वायरस के संबंध में उपयोगी जानकारी का प्रसार करने के लिए किया जा सकता था, बल्कि प्रत्येक देश इस संकट से निपटने के लिए क्या उपाय कर रहे हैं इसकी जानकारी देने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
सदस्य राज्यों के भीतर सामान्य तार्किक सुविधाओं और जानकारी को देखते हुए उपलब्ध सूचनाओं, सुविधाओं और सहायता प्रणालियों को प्रौद्योगिकी के माध्यम से सही इस्तेमाल करना मुश्किल नहीं होगा। एक बार इस तरह के एक प्लेटफॉर्म की स्थापना हो जाए, तो संकटों के दौरान सक्रियता जल्दी और बिना देरी के हो जाएगी। यह तात्कालिक घबराहट को भी कम करेगा जो ऐसी स्थिति पैदा करती है।
निकासी और संयुक्त तंत्र को सुनिश्चित करने के अलावा बिम्सटेक प्लेटफॉर्म न केवल सदस्य देशों के बारे में, बल्कि अन्य गंतव्यों के बारे में भी यात्रा प्रतिबंध और नियमों के बारे में जानकारी प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए। जैसा कि वर्तमान में चल रहे इस संकट में देखा गया था, शुरुआती दिनों में स्पष्टता कम थी और कई लोग आने वाले दिनों के बारे में सही जानकारी और ज्ञान प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। यात्रा की स्थितियों के बारे में जानकारी अधूरी लगती है और इस लिहाज से एक क्षेत्रीय स्थिति उन लोगों के लिए मददगार होती जो विदेशों में फंसे हुए थे, जिन्हें काम या किसी और कारण से यात्रा करने की आवश्यकता थी। एक साझा क्षेत्रीय प्रतिक्रिया विलंब और बिना किसी चिंता के लोगों तक सुविधाएं पहुंचाने में सक्षम होती।
जब कई देशों ने कोरोना वैक्सीन और पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के निर्माण के लिए अपने स्तर पर अनुसंधान और प्रक्रिया को शुरू किया है, भारत और अन्य सदस्य देशों ने इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने और बढ़ाने के लिए एक साथ सहयोग कर सकता था। सदस्य देशों के बीच सूचना, ज्ञान प्रणाली और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना, न केवल संकट से निपटने के लिए पूरे पर्यावरण के वातावरण को, बल्कि इसके परिणाम की तैयारी में भी मदद करेगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कुछ देशों में आपातकाल की घोषणा और अधिकांश देशों में बंद को देखते हुए यह अर्थव्यवस्था को पीछे करने वाला है। यहां तक कि अर्थव्यवस्था के अलावा शिक्षा और लगभग हर क्षेत्र आने वाले दिनों में कई बाधाओं का सामना करने के लिए बाध्य है। सेंसेक्स वाणिज्य में तेज गिरावट का प्रतिबिंब है और ट्रेड दर्शाता है कि इस महामारी के गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव होंगे। बड़े व्यवसाय और संस्थान इससे निपटने के लिए कुछ तरीके खोज लेंगे, लेकिन कृषि आधारित किसान, स्थानीय व्यवसायी और सीमा पार व्यापारियों को संकटपूर्ण समय का सामना करना पड़ेगा। सीमावर्ती लोगों का दैनिक जीवन गहराई से प्रभावित होगा। यदि वे पहले से ही कुछ आवश्यक वस्तुओं और चिकित्सा सुविधाओं, आपूर्ति में कमी का सामना नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें अनौपचारिक व्यवस्था के माध्यम से सीमा पार सुविधाओं की आवश्यकता पड़ सकती है। मौजूदा स्थितियों के तहत ऐसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होंगी। ऐसे संकट के समय सीमा बंद करना आवश्यक होता है, लेकिन ऐसी अनिवार्यता में संगठनों के एक प्रोटोकॉल स्थापित करने से क्षेत्रीय संगठनों के प्रतिक्रिया तंत्र में इसे जगह मिल जानी चाहिए।
यह न केवल बिम्सटेक के स्तर पर है, बल्कि भारत-आसियान एक और मंच है जिसका उपयोग कई उत्कृष्ट मुद्दों को संबोधित करने के लिए किया जा सकता है। COVID-19 न केवल वायरस से प्रभावित होता है, बल्कि तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता भी इसमें होती है और यह उन लोगों को भी प्रभावित करता है जो सीधे तौर पर मेडिकल लक्षणों से पीड़ित नहीं होते हैं। इस महामारी के अनुपात एक और प्रत्येक व्यक्ति पर दूरगामी परिणाम डालेंगे। हम अभी भी इस संकट की गहराई और विशालता को समझने में असमर्थ हैं। देश और व्यक्ति स्वयं इसका सामना नहीं कर सकते हैं, क्षेत्रीय और अन्य सहयोगी प्रयास भी समय की मांग हैं। निस्संदेह, आगे एक लंबी लड़ाई है और बिम्सटेक को इसमें अपने सभी सदस्य देशों के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए। बिम्सटेक क्या यह हो सकता है?
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