पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है मगर पाकिस्तान का इस संकट से निपटने का तरीका देखकर डर लग रहा है कि अगर वह जल्द नहीं संभला तो यह जंग हारने का जोखिम खड़ा हो जाएगा।
20 मई को संक्रमण के मामलों की संख्या 47,000 के करीब थी और 1,000 से अधिक लोग जान गंवा चुके थे। विश्लेषकों को संदेह है कि बताए गए मामलों और असली मामलों की संख्या में बहुत अंतर है क्योंकि अप्रैल के महीने में रोजाना बमुश्किल 3,000 लोगों की जांच हुई थीं। अप्रैल में पाकिस्तान में मौजूद चीन के एक दल ने मीडिया को बताया कि जांच नहीं होने की वजह से पाकिस्तान में कोविड संक्रमण के मामलों की असली संख्या बताई जा रही संख्या से बहुत अधिक हो सकती है।1 जांच की क्षमता अप्रैल के अंत तक बढ़कर 25,000 रोजाना हो जानी चाहिए थी मगर मई के मध्य तक आंकड़ा इसका आधा भी नहीं हो पाया था। अजीब बात है कि अप्रैल के आखिरी हफ्ते में सिंध के अलावा बाकी सभी प्रांतों ने जांच धीमी कर दी थी, जिससे संदेह होता है कि संक्रमण के मामले कम दिखाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया गया।2
कराची में सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों की एक रिपोर्ट में बताया गया कि अप्रैल में हर हफ्ते पाकिस्तान में संक्रमण के मामलों में 50 फीसदी इजाफा होता रहा। मामले इसी रफ्तार से बढ़े तो मई के अंत तक मामलों की संख्या 1 लाख के करीब पहुंचती और 2,000 के करीब मौतें हो चुकी होतीं। रिपोर्ट में कहा गयाः “मान लें कि संक्रमित मरीजों में से 20 फीसदी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तो मई के आखिर तक हर हफ्ते करीब 6,000 मरीजों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ेगा।”3
बलूचिस्तान में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 11 मई तक 2,158 लोग संक्रमित पाए गए थे और 27 मर चुके थे। लेकिन प्रांतीय सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार 4 मई को बलूचिस्तान में संक्रमण के करीब 20,000 मामले थे यानी बताए गए संक्रमण से 10 गुना अधिक।4 रिपोर्ट में बचाव के उपायों को देखते हुए जुलाई तक संक्रमण का अनुमान भी लगाया गया था। अनुमान के मुताबिक बचाव अच्छी तरह किया गया तो संक्रमण के 24,000 मामले होंगे और 360 मौत हो गई होंगी। ठीकठाक बचाव होने पर संक्रमण के मामले 6.40 लाख होंगे और 7,600 मौत होंगी और अगर बचाव ठीक से नहीं किया तो संक्रमण के 83.9 लाख मामले हो सकते हैं और 1 लाख से अधिक लोगों की मौत हो सकती है। यदि बलूचिस्तान से जैसे कम सघन आबादी वाले प्रांत का यह हाल है तो बाकी मुल्क और खास तौर पर घनी शहरी आबादी वाले पंजाब और सिंध की हालत की कल्पना की जा सकती है।
कराची और लाहौर में डॉक्टरों की चेतावनी के मुताबिक वायरस तेजी से फैला तो पहले से खस्ता स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था ढह सकती है। एक डॉक्टर ने मीडिया से शिकायत करते हुए कहा, “हमारे पास तो रेबीज का टीका तक नहीं है। कोरोनावायरस के इलाज के लिए हजारों लोग यहां आएंगे तो हम क्या करेंगे।”5
संकट के समय लोग ऐसा नेता चाहते हैं, जो निर्णायक तरीके से काम करे और अंदरखाना मतभेद भूल जाए ताकि देश एकजुट होकर संकट से उबर सके। लेकिन इमरान खान इसमें नाकाम रहे। उन्हें संकट की बहुत कम समझ है, जो उनके इस शुरुआती बयान से पता चल गई कि संक्रमित लोगों में 97 फीसदी ठीक हो जाएंगे और बूढ़े और बीमार ही खतरे में हैं, जबकि संक्रमण के 84 फीसदी मामले 20 और 64 साल की उम्र वालों के हैं।6 वह निर्णायक कदम नहीं उठा पाए और लॉकडाउन लगाने या ‘आंशिक’ या ‘स्मार्ट’ लॉकडाउन लगाने की ऊहापोह में झूलते रहे।
वह राष्ट्रीय जनमत तैयार करने में भी नाकाम रहे और विपक्ष के साथ काम करना तो दूर उसकी सुनने से भी इनका कर दिया। कोविड-19 पर चर्चा के लिए खास तौर पर बुलाए गए नेशनल असेंबली के विशेष सत्र में यह बात एकदम स्पष्ट हो गई। सत्र के दौरान एकजुट होकर रणनीति बनाने के बजाय विपक्ष और सत्ता पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे। हैरत की बात नहीं है कि जिस वक्त एकता की सख्त जरूरत है, उस वक्त देश इतनी बुरी तरह बंटा हुआ है। राजनीतिक ध्रुवीकरण तेज होने का ठीकरा पूरी तरह सरकार के सिर ही फूटना चाहिए।
आम सहमति तैयार करने में इमरान खान की नाकामी नीति पर केंद्र एवं प्रांतों के बीच भ्रम से ही खुलकर सामने आ गई। पहले सिंध और बाद में दूसरे प्रांतों ने प्रधानमंत्री की अनदेखी करते लॉकडाउन कर दिया। सेना ने फैसला किया कि वह लॉकडाउन कराएगी। इस तरह राष्ट्रीय नीति और सामूहिक प्रतिक्रिया के बजाय विभिन्न प्रांतों का लॉकडाउन कलह और दिक्कत भरा रहा।
इमरान के अक्षम नेतृत्व का एक और सबूत लॉकडाउन में ढील देने के उनके फैसले के समय से दिखा, जबकि वह खुद कह रहे थे कि लॉकडाउन था ही नहीं। हालांकि पाकिस्तान में अभी तक बड़े पैमाने पर वायरस नहीं फैला है मगर सभी मान रहे हैं कि वायरस अभी चरम पर पहुंचेगा। इसलिए ढील उस वक्त दी जा रही है, जब मामले और मौतें बढ़ रही हैं, जांच बहुत कम हो रही है और चिकित्सा पेशेवर भी ढील देने से मनाही कर रहे हैं। इसके अलावा शारीरिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का निर्देश तो दे दिया गया है, लेकिन इसे लागू नहीं कराया जा रहा। बाजारों और मस्जिदों के दृश्य वैसे ही हैं, जैसे कोविड-19 से पहले के दिनों में थे।
अमेरिका से तुलना करते हैं। जब अमेरिका में संक्रमण के 42,000 मामले सामने आए थे तो वहां मरने वालों की तादाद 522 थी मगर पाकिस्तान में संक्रमण के इतने मामले आने पर 900 मौत हो चुकी थीं। अमेरिका में अब 80,000 से ज्यादा मौत हो चुकी हैं। इतना ही नहीं, पाकिस्तान में भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों की तुलना में प्रति 10 लाख लोगों पर संक्रमण के पुष्ट मामलों और मौतों की तादाद काफी ज्यादा है। इन देशों ने पाकिस्तान जैसी ही सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के बाद भी ज्यादा सख्ती से लॉकडाउन लागू किया।7
एक अहम मगर अजीबोगरीब घटनाक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ण पीठ ने 18 मई को प्रांतीय सरकारों को सभी शॉपिंग मॉल खोलने का आदेश दे डाला। उसने शनिवार और रविवार को दुकानें, बाजार और व्यापार बंद रखने का केंद्र सरकार फैसला भी ताक पर रख दिया और कहा कि इसकी कोई तुक नजर नहीं आती। अदालत ने कहा कि “पाकिस्तान में वायरस महामारी जैसा नहीं लग रहा है” और यह भी पूछा कि इससे लड़ने में “इतना पैसा खर्च क्यों हो रहा है”।8 हालांकि यह कार्यपालिका के अधिकार पर अतिक्रमण है मगर पीटीआई ने इसे लॉकडाउन की जरूरत नहीं होने के अपने रुख की जीत मान लिया है।
पाकिस्तान में महामारी नहीं होने की अदालत की बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की उस घोषणा के एकदम उलट है, जिसमें उसने कोविड-19 को वैश्विक महामारी बता दिया है। यह बात इस हकीकत के भी उलट है कि महामारी में लाखों लोग मर चुके हैं और लाखों अन्य संक्रमित हैं। पाकिस्तान शायद अब इकलौता देश है, जो महामारी नहीं होने की बात पर अड़ा है।
यह सब पाकिस्तान के इस भरोसे के कारण है कि वही इस्लाम का आखिरी गढ़ है। सऊदी अरब ओर ईरान समेत अधिकतर इस्लामी देशों ने रमजान के दौरान धार्मिक जुटान पर रोक लगा दी मगर पाकिस्तान ने रोज की नमाज और विशेष नमाज की इजाजत दे दी। यह उलेमा की ताकत और उनके आर्थिक हितों का सबूत ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान के कमजोर नेतृत्व का भी सबूत है, जो उलेमा के सामने खड़ा नहीं हो सकता। सामूहिक नमाज के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के जिन नियमों को लागू किया जाना था, उनका पूरे पाकिस्तान की हजारों मस्जिदों में खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया गया। इससे आने वाले दिनों में संक्रमण और मौतों की तादाद बहुत बढ़ सकती है।
डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों में संक्रमण की बढ़ती घटनाएं भी अच्छे लक्षण नहीं हैं। 11 मई तक 440 डॉक्टर, 215 अर्द्धचिकित्साकर्मी और 111 नर्स संक्रमित हो चुकी थीं, जिनमें से 257 मामले तो 5 मई से 9 मई के बीच ही सामने आए थे। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े 11 लोग घटिया पीपीई के कारण अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं।9 देश के कई हिस्सों में डॉक्टरों ने इस मुद्दे पर धरने दिए हैं और भूख हड़ताल भी की हैं। अगर संक्रमण के मामले बहुत अधिक बढ़े तो गंभीर हालत वाले मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर कम पड़ने का खतरा भी हो सकता है। कराची में एक वरिष्ठ डॉक्टर की मौत इसीलिए हो गई क्योंकि उसे जिस भी अस्पताल में ले जाया गया, वहां वेंटिलेटर खाली नहीं थे। कोढ़ में खाज यह है कि पाकिस्तान को टिड्डियों से भी जूझना पड़ रहा है, जो बलूचिस्तान, सिंध और पंजाब में फसल बरबाद कर रही हैं। उन पर काबू नहीं किया गया तो देश में खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होगी।10 आपूर्ति में रुकावट आने के कारण मई के दूसरे पखवाड़े में पाकिस्तान में पेट्रोल-डीजल खत्म होने की पूरी आशंका है।11 सबके बाद दवा उद्योग को जीवनरक्षक दवाओं के लिए कच्चे माल की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि भारत से होने वाली थोक आपूर्ति बंद कर दी गई है।12
आर्थिक मोर्चे पर और भी बुरी खबर है। विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में 1.3 से 2.2 फीसदी की ऋणात्मक वृद्धि कर सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 1.5 फीसदी ऋणात्मक वृद्धि का अंदेशा जताया है।13 यूएनडीपी की एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि अपने सीमित मानव विकास, कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और इससे जुड़ी दूसरी समस्याओं के कारण पाकिस्तान में तैयारी सबसे कम है।14 केंद्रीय योजना मंत्री के अनुसार संकट के कारण 2 से 7 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे जा सकते हैं, लॉकडाउन से 1.8 करोड़ लोग बेरोजगार हो सकते हैं और करीब 10 लाख इकाइयां हमेशा के लिए बंद हो सकती हैं।15
इस बात की पूरी आशंका है कि पाकिस्तान खतरनाक दौर में प्रवेश कर रहा है और कोरोनावायरस के नर्क के कगार पर खड़ा है। खस्ताहाल चिकित्सा ढांचे, सोशल डिस्टेंसिंग के और भी कमजोर उपायों, नेतृत्व की कमी, ढहने के कगार पर पहुंची अर्थव्यवस्था और बंटी हुई राजनीति के कारण पाकिस्तान को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा का सामना करना पड़ सकता है। पाकिस्तान के नेतृत्व को कमर कसनी होगी वरना उसके सामने कोरोनावायरस की जंग हारने का खतरा खड़ा हो जाएगा।
Post new comment