यह आलेख भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) के प्रसिद्ध विशेषज्ञों के विचारों और जानकारी पर आधारित है, जो विचार उन्होंने वीआईएफ द्वारा 25 मई, 2020 को आयोजित वेबिनार में रखे थे। गणमान्य पैनल के सूत्रधार बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के चेयरमैन - इंडिया डॉ. जनमेजय सिन्हा थे और इसमें फीडबैक इन्फ्रा प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन श्री विनायक चटर्जी, टाटा केमिकल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आर. मुकुंदन, ब्लू स्टार लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री बी. त्यागराजन तथा विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के निदेशक डॉ. अरविंद गुप्ता शामिल थे।
कोविड-19 के असर को खत्म करने और वृद्धि को पटरी पर लौटाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के ‘आत्मनिर्भर पैकेज’ की प्रधानमंत्री की 12 मई, 2020 की घोषणा भारत के आर्थिक इतिहास में बड़े मोड़ सरीखी है। नए भारत के निर्माण में आत्मनिर्भरता को अहम बताते हुए उस पर प्रधानमंत्री द्वारा जोर दिए जाने के बाद वित्त मंत्री ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए घोषणाएं कीं। भारत के लिए आत्मनिर्भरता का रास्ता रक्षा एवं सुरक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में ताकत बढ़ाने से और दुनिया के साथ काम करने की शर्तें नए सिरे से तैयार करने से बनेगा। साथ ही साथ भारत को उभरती हुई नई विश्व व्यवस्था में अहम आर्थिक शक्ति के रूप में योगदान देने के लिए तैयार भी रहना होगा।
कोविड के बाद की नई विश्व व्यवस्था में काम करने के लिए तीन प्रमुख क्षेत्रों - स्वास्थ्य सेवा, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति में समन्वित कदम उठाने होंगे। महामारी ने दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा व्यवस्थाओं की कमियां उघाड़कर रख दी हैं और इस समय सबसे ज्यादा जरूरत बड़ी आबादी के लिए त्वरित परीक्षण, टीके, चिकित्सा उपकरण और प्रशिक्षित चिकित्सा एवं अर्द्ध-चिकित्सा कर्मी उपलब्ध कराने की है।
आर्थिक मोर्चे की बात करें तो महामारी से पैदा हुई उथलपुथल के कारण केवल 2020 में ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को 10 लाख करोड़ यानी 10 ट्रिलियन डॉलर की चोट लगने का अनुमान है। भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में गिरकर 1.9 फीसदी रह जाने की बात कही जा रही है। सरकार ने 26 मार्च, 2020 को घोषित ‘प्रधानमंत्री गरीब राहत पैकेज’ के तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये का ऐलान कर गरीबों को फौरी राहत दी है मगर वित्तीय क्षेत्र, कुल मांग में कमी और बुनियादी ढांचे पर खर्च जैसी बड़ी समस्याएं अब भी रह गई हैं।
विशेष आर्थिक पैकेज को इसी संदर्भ में समझने की जरूरत है। उद्योग विशेषज्ञों के मुताबिक विशेष आर्थिक पैकेज के अंतर्गत किए गए प्रावधानों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता हैः (अ) नीतिगत सुधार, (आ) तरलता डालना और (इ) मांग प्रोत्साहित करना। पहली श्रेणी के अंतर्गत सरकार ने लंबे समय से अटके कई सुधारों की घोषणा की है, जिनमें कृषि और बिजली क्षेत्र के सुधार खास हैं। ये सुधार और एमएसएमई क्षेत्र में नीतिगत बदलाव इन क्षेत्रों के घरेलू उत्पादकों की दीर्घकालिक वृद्धि के लिए सकारात्मक होंगे।
साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर सरकार ने तरलता प्रदान करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें ब्याज दर कम करना, भुगतान पर रोक लगाना और एमएसएमई क्षेत्र के लिए केंद्र तथा राज्यों की गारंटी शामिल हैं। इनसे आबादी के सबसे कमजोर वर्ग को फौरी मदद मिलेगी लेकिन अर्थव्यवस्था में मांग में एकाएक आई कमी से निपटने के लिए अधिक सघन कदम उठाने पड़ेंगे। अब पैकेज तीसरी मुख्य श्रेणी यानी मांग को बड़े स्तर पर प्रोत्साहित करने पर केंद्रित होना चाहिए। मांग बढ़ाने और रोजगार सृजित करने के लिए सरकार को आत्मनिर्भर पैकेज के जरिये बुनियादी ढांचे के लिए सीधे वित्त प्रदान करना होगा।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि मांग में वृद्धि बड़े स्तर के सार्वजनिक कार्य वाले कार्यक्रमों में निवेश के जरिये की जानी चाहिए। देश भर में ये बुनियादी ढांचा परियोजनाएं न केवल कारोबार की लागत घटाएंगी और कारोबारी माहौल बेहतर बनाएंगी बल्कि भारी बेरोजगारी, अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों के वापस घर की ओर पलायन तथा ग्रामीण संकट की समस्याएं भी इनसे हल हो जाएंगी। साथ ही बुनियादी ढांचे में निवेश का इस्पात, सीमेंट और निर्माण उपकरण जैसे क्षेत्रों पर भी भारी प्रभाव पड़ेगा।
इसके लिए सबसे पहले ग्रामीण इलाकों में तुरंत आरंभ होने वाली परियोजनाएं पहचाननी और क्रियान्वित करनी होंगी ताकि बड़ी तादाद में विस्थापित हुए अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों को फौरन आजीविका मिल सके। एनएचएआई और शहरी सार्वजनिक निकायों को तरलता यानी नकदी एवं निर्णय लेने का अधिकार देना होगा ताकि वे राजमार्ग निर्माण, शहरी गरीबों के लिए आवास, सिंचाई परियोजनाएं और ‘नल से जल परियोजना’ के अंतर्गत पाइप से जलापूर्ति के विस्तार जैसी बड़ी परियोजनाएं अपने हाथ में ले सकें। तय समय में इन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए सीआईआई जैसे उद्योग संगठनों के साथ साझेदारी कर निजी क्षेत्र के कौशल और विशेषज्ञता का फायदा उठाया जा सकता है।
इसके अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए विशेष कर एवं नियामकीय प्रोत्साहनों के साथ तटीय आर्थिक क्षेत्रों (सीईजेड) का निर्माण तेज करना होगा। इनसे श्रमिकों की अधिक जरूरत वाले निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और सार्वजनिक कार्यों के लिए बड़ा परिचालन पैकेज उपलब्ध होगा। विशेषज्ञों की सलाह है कि सबसे पहले पूर्वी तट पर पारादीप, विशाखापत्तनम और तूतीकोरिन तथा पश्चिमी तट पर कोच्चि, गोवा और कांडला में सीईजेड बनाए जा सकते हैं।
महामारी से पैदा उथलपुथल ने भारत को देश में ही विनिर्माण की क्षमताएं विकसित करने तथा चीन पर निर्भरता कम करने का मौका दिया है। महामारी शुरू होने से पहले ही चीन में परिचालन की बढ़ती लागत से परेशान बहुराष्ट्रीय कंपनियां विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिए दूसरे ठिकाने तलाश रही थीं। महामारी ने इसमें तेजी ला दी क्योंकि उन्हें अहसास हो गया कि पूरा विनिर्माण एक ही देश में रखने के क्या नुकसान हैं। कंपनियां अब ‘चीन प्लस वन’ फॉर्मूला अपनाते हुए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाकर और उन्हें दूसरी जगह ले जाकर जोखिम से बच रही हैं।
उदाहरण के लिए रसायन उद्योग में दुनिया भर के रासायनिक सामग्री बाजार का करीब 50 फीसदी हिस्सा चीन के कब्जे में है। प्रतिस्पर्द्धी रसायन उद्योग वाले भारत में 20-30 अरब डॉलर का यह मौका लपकने और वैश्विक आपूतिकर्ता बनने का माद्दा है। इसी तरह दूसरे क्षेत्रों में भी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक भागीदारी से अगले पांच वर्ष में भारत के सामने 1-2 ट्रिलियन डॉलर के मौके बन रहे हैं।
लेकिन इस मौके का फायदा उठाने के लिए सरकार को कारोबार सुगम बनाने के मकसद से लागत घटानी होगी और कई बाधाएं दूर करनी होंगी। भूमि, श्रम और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्रों में लंबे समय से अटके सुधार करने की जरूरत है। केंद्र ने पिछले कुछ वर्षों में कारोबारी माहौल सुधारने के लिए कुछ सुधार लागू किए हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही नियामकीय एवं पर्यावरण संबंधी मंजूरियों को तेज करना होगा ताकि निवेश को न्योता देने वाले माहौल का संकेत मिल सके। इस सिलसिले में केंद्र को ऐसी प्रणाली बनानी होगी, जिसमें सुधार करने वाले राज्यों को पारितोषित मिले।
इसी तरह कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीयरिंग पूंजीगत वस्तु और चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता कोविड के बाद के दौर में अहम होगी। इस समय इस क्षेत्र की निजी भारतीय कंपनियां लगभग 60 फीसदी पुर्जे और उपकरण प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चीन से ही मंगा रही हैं। मगर मांग कम होने के कारण इस समय देश में उत्पादन के लिए पूंजीगत निवेश नहीं किया जा रहा है। सरकार विशेष उद्देश्य वाली कंपनी (एसपीवी) का मॉडल अपनाकर भारतीय कंपनियों को उपकरण पहचानने एवं मिलजुलकर उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। इसके अलावा तकनीक का विकास दिक्कत नहीं है, भारत में कंपनियों के सामने बड़ी मुश्किल इस पर आने वाला भारीभरकम खर्च है, जिसे लॉजिस्टिक्स की कड़ियां मजबूत करने के लिए निवेश कर फौरन कम करना होगा।
इसी तर्ज पर भारत को देसी उद्यमियों खास तौर पर लघु उद्यमियों को कारोबार का आकार बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। नियामकीय संस्थाओं और उद्यमियों के बीच भरोसे की कमी को दूर करना होगा। कारोबार के लिए खुलासे एवं पारदर्शिता के कड़े नियम बनाए जा सकते हैं मगर भरोसे का माहौल मजबूत करने और कम खर्च में नई ईजाद करने की भारतीय ताकत का इस्तेमाल करने के लिए खुला माहौल होना चाहिए।
अपनी बड़ी आबादी का फायदा उठाने के लिए भारत को श्रम की सघनता वाले क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता भी हासिल करनी होगी। कोविड के बाद के दौर में भारत को अपनी ताकत वाले क्षेत्रों मसलन चिकित्सा सेवा निर्यात पर जोर देना होगा ताकि वह दुनिया भर के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बन सके। मजबूत एवं किफायती डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार करने से अकुशल एवं अर्द्धकुशल कामगारों को अपना कौशल बढ़ाने और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में सेवा प्रदाता बनकर मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिलेगा।
भारत में कोविड-19 फैलने के शुरुआती दिनों में आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के कारण आर्थिक नुकसान कम से कम करने की कोशिश में केंद्र सरकार ने चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन में ढील देना शुरू कर दिया है। लेकिन अर्थव्यवस्था खुलने के साथ ही देश में संक्रमण के मामले भी बढ़ने की आशंका है। कोरोनावायरस का प्रसार रोकने के लिए प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में लोगों से सार्वजनिक स्थलों पर एहतियात बरतने की अपील की है।
इसके साथ ही जब तक पूरी आबादी का असरदार टीकाकरण नहीं हो जाता तब तक वायरस का प्रभाव कम करने के लिए अपने व्यवहार में दीर्घकालिक बदलाव लाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लोगों पर डालना जरूरी है। लोगों की भागीदारी कार्यस्थलों, आरडब्ल्यूए और स्कूलों में कार्यबलों के जरिये हो सकती है ताकि शारीरिक दूरी का प्रभावी क्रियान्वयन, मास्क पहनना और सफाई रखना सुनिश्चित हो सके। इसके लिए समाज सेवा के अनिवार्य प्रयासों का प्रयोग किया जा सकता है।
मांग बढ़ाने तथा कोविड के बाद के आर्थिक झटके को कम करने के लिए सार्वजनिक व्यय में किया गया इजाफा भी सरकार के लिए राजकोषीय घाटे में इजाफे और जीडीपी की तुलना में कर्ज के बढ़े अनुपात की चुनौतियां पेश कर रहा है। विनायक चटर्जी ने सुझाव दिया कि इसके बजाय धन जुटाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर बजट से इतर समेकित कोष ‘नेशन रीन्यूअल फंड’ बनाया जा सकता है। इस कोष में लगभग 20-30 लाख करोड़ रुपये रखे जा सकते हैं, जिन्हें रिजर्व बैंक (60 फीसदी) और विदेशी उधारी (40 फीसदी) के जरिये 50 वर्ष में जुटाया जाएगा। इससे केंद्र सरकार को बुनियादी ढांचे पर अपना खर्च बढ़ाने के बाद भी राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) व्यवस्था के तहत अपनी बाध्यताएं पूरी करने का मौका तो मिलेगा ही, उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करने एवं मूल्य श्रृंखला में ऊपर चढ़ने के लिए रकम जुटाने में भी सहूलियत होगी। सरकार को इस तरह के वैकल्पिक कोष का ब्योरा फौरन तैयार करने की जरूरत है।
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