भारत में राज्य सरकारों और केंद्रशसित प्रदेशों द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों (ई-वाहन) के लिए नीतियां तथा उपाय तैयार करने के लिहाज से 2019 अहम वर्ष रहा। यह सब ऐसे समय में हुआ है, जब भारत के प्रमुख शहर प्रदूषण के भारी स्तरों से जूझ रहे हैं और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत कुछ शहर तो दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में जगह तक बना चुके हैं। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को अब अपनाया जा रहा है, जबकि चीन शैशवकाल से गुजर रहे इस बाजार में बड़ी बढ़त हासिल कर चुका है और व्यावसायिक एवं निजी इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्यात भी शुरू कर चुका है।
2019 में तमिलनाडु, पंजाब, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश जैसे भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपनी-अपनी ई-वाहन नीतियों के मसौदे जारी किए। केंद्र सरकार के विचार समूह नीति आयोग ने शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों के बारे नीतिगत खाके की सिफारिश सितंबर 2018 में की थीं।1 साथ ही नीति आयोग के मुख्य कार्य अधिकारी एवं उपाध्यक्ष ने भरोसा दिलाते हुए बयान भी दिया था कि राष्ट्रीय नीति तैयार की जा रही है।2 अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा 2010 में आरंभ किए गए इलेक्ट्रिक वाहन कार्यक्रमों के अनुरूप ही भारत में भी इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दिया जा रहा है।
Source: https://www.autocarindia.com/car-news/ev-sales-in-india-cross-75-lakh-mark-in-fy2019-412542
अमेरिका और चीन ऊपर बताए गए कार्यक्रम में सबसे अग्रणी हैं। चीन को 2025 तक लगभग 70 लाख ई-वाहन की वार्षिक बिक्री तक पहुंचने की उम्मीद है।3 अनुमान है कि परिचालन में कम खर्च, ग्राहकों की स्वीकार्यता तथा चार्जिंग स्टेशनों में वृद्धि के कारण अमेरिका में बिकने वाले वाहनों में 65 फीसदी शून्य उत्सर्जन वाले वाहन होंगे। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी की योजना जीवाश्म ईंधन पर चलने वाली कारों की संख्या आधी करने की तथा 2050 तक उन्हें खत्म कर देने की है।4 अमेरिका और यूरोप में ई-वाहनों का प्रचलन लगातार लेकिन धीमे हो रहा है। चीन ने कोबाल्ट उत्पादन स्थलों तथा उसकी वैश्विक आपूर्ति पर नियंत्रण हासिल करने में बढ़त दर्ज कर ली है तथा वह दुनिया भर के ई-वाहन उद्योग पर अपना दबदबा भी कायम कर रहा है। दुनिया का 62 फीसदी कोबाल्ट उत्पादन पहले ही उसके कब्जे में है।5 कोबाल्ट का इस्तेमाल मोबाइल फोन तथा ई-वाहन में लगने वाली बैटरियों में होता है। इसका कम से कम 10 फीसदी हिस्सा सुरक्षा तथा बैटरी की लंबी उम्र के लिए कैथोड में इस्तेमाल किया जाता है।6 लेकिन चाइना एसोसिएशन ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के अनुसार सितंबर 2019 तक चीन में नई ऊर्जा वाले वाहनों के बाजार में 34 फीसदी की गिरावट आई। चीन सरकार ने 2017 में 3.1 अरब डॉलर की सब्सिडी दी थी, जिसका बड़ा हिस्सा चीन में सबसे बड़ी बस निर्माता युतोंग तथा इलेक्ट्रिक कार की शीर्ष वैश्विक निर्माता बीवाईडी (बिल्ड योर ड्रीम्स) को मिला। 2019 में सब्सिडी कम कर दी गई, जिससे नई ऊर्जा वाले वाहनों की बिक्री भी घट गई। बाजार के विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन सरकार वाहन निर्माताओं को ऐसी स्थिति में लाना चाहती है, जहां वे अच्छे बने इलेक्ट्रिक वाहनों को कम कीमत पर बेच ही नहीं पाएंगे। सब्सिडी में कटौती से नई ऊर्जा वाले वाहनों पर केंद्रित छोटी वाहन कंपनियां दिवालिया हो रही हैं क्योंकि उनका घाटा बढ़ रहा है। अमेरिका तथा चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण ग्राहकों की धारणा कमजोर पड़ना भी बिक्री में कमी का एक कारण है। व्यापार युद्ध के कारण ग्राहकों के लिए नई सब्सिडी वाली नीतियों के प्रति समर्थन में कमी आई है और बड़े शहरों पर कारों पर प्रतिबंध भी ढीला पड़ा है।7
इस बीच भारत में वाहन निर्माता ऊहापोह में फंसे हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों पर ध्यान केंद्रित करें या नहीं क्योंकि उसके लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा ही नहीं है। ऊहापोह की यह स्थिति 2020 में भी जारी रह सकती है। बजाज ऑटो लिमिटेड, टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा जैसी वाहन कंपनियां मानती हैं कि ऊहापोह खत्म करनी चाहिए और वाहन निर्माताओं को ही ई-वाहन की आपूर्ति तैयार करनी चाहिए, जिसके कारण जरूरी बुनियादी ढांचे की मांग उत्पन्न होगी।8
(Source: https://www.downtoearth.org.in/coverage/energy/the-future-is-electric-59653)
चंडीगढ़ की ई-वाहन नीति का गहन अध्ययन करने पर पता चलता है कि इसमें बुनियादी ढांचे तैयार करने पर अधिक जोर दिया गया है, जिसके कारण इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भरता बढ़ेगी। फिर 2030 के बाद केवल इलेक्ट्रिक वाहनों का पंजीकरण करने का शहर का लक्ष्य है।9 दिल्ली सरकार ने भी आखिरकार ई-वाहन नीति का मसौदा जारी कर ही दिया है, जिसका लक्ष्य दिल्ली में बढ़ते वाहन प्रदूषण को कम करना है। इसके तहत 2024 तक दिल्ली के वाहनों में ई-वाहनों की 25 फीसदी हिस्सेदारी करने की योजना है तथा ई-वाहनों के लिए वित्तपोषण, ड्राइविंग, सर्विसिंग, बिक्री एवं चार्जिंग में रोजगार सृजन पर भी जोर दिया जाना है। दिल्ली सरकार व्यावसायिक एवं निजी प्रयोग के लिए चार्जिंग उपकरणों की खरीद पर सब्सिडी देने की योजना भी बना रही है।10 हिमाचल प्रदेश सरकार अपनी नीति के जरिये राज्य के सभी वाहनों को 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन में बदलना चाहती है।11
राज्यों की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीतियां भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय की नई इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना, 2020 के अनुरूप ही है। इस मिशन के अंतर्गत 2020 में 60-70 लाख इलेक्ट्रिक एवं हाइब्रिड वाहन बेचने का लक्ष्य है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 10,000 करोड़ रुपये के व्यय को मंजूरी दे दी है, जिसका इस्तेमाल अगले तीन वर्ष में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर प्रोत्साहन देने के लिए किया जाएगा। इस मिशन के अंतर्गत इलेक्ट्रिक वाहनों को 12 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) वाली सूची में रखा जाएगा, बैटरी चालित वाहनों को भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा परमिट से मुक्ति दी जाएगी तथा अन्य कई प्रोत्साहन होंगे।12
वर्ष 2019 में ई-वाहन नीतियों के क्रियान्वयन में परिचालनगत चुनौतियां भी आईं। विशेषकर आंध्र प्रदेश में राज्य सरकार बसों का पुराना बेड़ा हटाकर हजारों नई बसें शामिल करना चाहती थी। यह आंकड़ा बाद में घटाकर 350 बस कर दिया गया, जिन्हें राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना द्वारा मिलने वाले प्रोत्साहनों का प्रयोग कर 12 वर्ष में शामिल किया जाएगा। समस्या निर्माताओं के साथ है क्योंकि केवल सात कंपनियां बैटरी से चलने वाली बस सरीखे व्यावसायिक वाहन बनाती हैं मगर मांग आपूर्ति से अधिक है। विभिन्न राज्यों ने 650 बसो के ठेके दिए, जिनमें से केवल आधी ही मिल सकी हैं। एक इलेक्ट्रिक बस की कीमत 2 करोड़ रुपये से अधिक पड़ी। राज्य के अधिकारियों का अनुमान है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा तैयार करने में लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च होंगे और राज्य की खस्ता वित्तीय हालत को देखते हुए यह बड़ बोझ माना जा रहा है।13
अंत में 2020 भारत में इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र के लिए नई संभावनाएं, चुनौतियां और प्रश्न लेकर आया है।
(आलेख में लेखक के निजी विचार हैं। लेखक प्रमाणित करते हैं कि लेख की सामग्री वास्तविक/अप्रकाशित है और इसे प्रकाशन/वेब प्रकाशन के लिए कहीं नहीं दिया गया है तथा इसमें दिए गए तथ्यों एवं आंकड़ों के संदर्भ सही प्रतीत होते हैं)
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