कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रकोप के बाद वैश्विक विमर्श इसके दुष्प्रभावों और इसके परिणामों से निपटने पर केंद्रित होकर रह गया है। सभी स्तरों-अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर-के सभी विमर्शों, मसलन, समूह 201, क्षेत्रीय पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन2 और द्विपक्षीय बातचीत समेत,सभी में सार्वजनिक स्वास्थ्य कूटनीति ने अपना एक ऊंचा स्थान ग्रहण कर लिया है।
सारे देश इस महामारी का हल तलाशने में लगे हैं, जिसने आर्थिक और सामाजिक रुप से गहरा दुष्प्रभाव डाला है।अंतरराष्ट्रीय कूटनीति ने सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को दूर करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। अब वैक्सिन की कूटनीति पर जोर दिया जाने लगा है। यह सुरक्षात्मक उपकरण, चिकित्सीय पद्धति, मेडिसिन और उनके उत्पादन और वितरण से लेकर अंत में वैक्सीन के बनाए जाने से संबंद्ध हो गया है।
परंपरागत रूप से,कूटनीति वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक देश अपनी राष्ट्रीय ताकत को विभिन्न क्षेत्रों में समुच्चय करता है और इसका उपयोग राष्ट्रीय हितों को हासिल करने में करता है। भारत भी कोविड-19 से जुड़े समाधान तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयास करता रहा है। निश्चित रूप से, प्रत्येक देश प्रति व्यक्ति दो खुराकों के हिसाब से अपने नागरिकों के लिए वैक्सीन हासिल करने का प्राथमिकता से प्रयास करेगा। ठीक इसी समय भारत ने अपनी विनिर्माण क्षमता का उपयोग किया है क्योंकि पूरी दुनिया की फार्मेसी और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं आवश्यक दवाएं जैसे हाइड्रोक्लोक्वीन, पेरासिटामोल, मास्क और इसी तरह की अन्य चीजों को हासिल करने के लिए दुनिया के देशों तक अपनी पहुंच बनाई है।
वैक्सिन डिप्लोमेसी दो तरह के दृष्टिकोणों से संबंधित है। पहला, वैक्सीन का निर्माता और दूसरा वैक्सीन का वितरक। भारत पूरे विश्व में दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। जिसने दुनिया को एचआईवी, मस्तिष्क ज्वर और मलेरिया आदि के टीके उपलब्ध कराया है। भारत वैक्सीन बनाने वाले उन सबसे बड़े उत्पादक देशों में शुमार हैं,जिन्होंने अनेक रोगों के 60 फीसद हिस्से तक वैक्सीन की आपूर्ति करता है और इसीलिए वह कोविड-19 वैक्सीन के इतने व्यापक पैमाने पर उत्पादन की सुविधाओं से लैस है।3 अन्य प्रकार की वैक्सिंग डिप्लोमेसी साइंस और अनुसंधान और विकास से संबद्ध है, जहां एक देश नई वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया हिस्सा हो सकता है। भारत तीन प्रकार की कोविड-19 की संभावनाओं के विकास पर काम कर रहा है और उसे अन्य प्रकार के उत्पादनों, जिन्हें अन्य देशों में विकसित किया जा रहा है, उनकी विनिर्माण के लिए लाइसेंस देना पड़ेगा। भारत की जबरदस्त उत्पादन सुविधाएं और कौशल उसे विश्व के उत्पादन और वितरण के क्षेत्र में अनोखा स्थान देता है, यही उसकी वैक्सीन डिप्लोमेसी को एक नई धार देता है।4
चीन के अलावा, भारत नई वैक्सीन के सभी बड़े उत्पादकों के सघन संपर्क में है। यद्यपि उसने अपनी क्षमता कोदिल्ली में रहने वाले राजनयिकों के समक्ष प्रदर्शित भी किया है जब उसने उन्हें 9 दिसंबर 2020 को हैदराबाद के दौरे पर ले गया था। राजनयिकों के इस समूह ने अनुसंधान और विनिर्माण की बायो टेक्नोलॉजी कंपनियां भारत बायोटेक और बायोलॉजिकल ई का दौरा किया। इस समूह ने भारत के अपने बलबूते कोविड-19 वैक्सीनों के,मौजूदा क्लीनिकल परीक्षणों सहित विनिर्माण की क्षमता है।5 भारत की अनुसंधान और विकास की सुविधाएं, विनिर्माण क्षमता,वैक्सीन उत्पादन सहित दवा उत्पादन के व्यापक क्षेत्र में क्षेत्र में विदेशी सहयोग को उस समूह के सामने रेखांकित किया गया। भारत की धीमी किंतु सुधीर दृष्टिकोण की सराहना की गई।
वैक्सीन डिप्लोमेसी संशोधित अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक अनोखा अवसर प्रदान करती है। वैक्सीन की मांग वैश्विक है, कुछ ही देशों में इसका विकास किया जा रहा है। व्यापक स्तर पर उत्पादन की सुविधाएं भारत और चीन के समान बहुत कम ही देशों के पास हैं। इसीलिए वैक्सीन पर आधारित नए राजनयिक कार्यक्रम में दुनिया के साथ संलग्न होने के अवसर हैं,इसीलिए यह आगे के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंडे में शीर्ष पर है।
भारत ने साउथ अफ्रीका के साथ मिलकर एक नई पहल की है। वह विश्व अपनी TRIPs परिषद के मार्फत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) तक पहुंचा है और उससे वैक्सीन बनाने की अल्प अवधि तक के लिए कारोबार जनित बौद्धिक संपदा कर में छूट देने की मांग की है।6 यह महामारी से जुड़े चिकित्सा यंत्रों और उपकरणों से भी संबंधित है। यह अनुरोध महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर 2020 को डब्ल्यूटीओ से किया गया। हालांकि दो बैठकों के बाद कोई करार नहीं हो सका क्योंकि बड़े उत्पादक देश और जिन देशों में यह बड़ी उत्पादक कंपनियां कार्यरत हैं,वे विकासशील देशों के लिए राहत की खिड़की नहीं खोलना चाहते हैं। भारत इसमें मोजांबिक, और दक्षिण एशियाई देशों को शामिल किए हुए हैं जिसका ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपियन यूनियन, जापान, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा विरोध किया जा रहा है। इनमें से अनेक देशों के साथ महत्तर रणनीतिक अभिन्मुखता के बावजूद भारत को लगता है कि डब्ल्यूटीओ में परंपरागत दोषपूर्ण लाइनें बनी हुई हैं, जो इस वैश्विक महामारी के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को लगातार नुकसान पहुंचा रही हैं।
अगर विकल्प सफल हो जाता है तो भारत किसी पेटेंट प्रतिबंधों और ट्रेडमार्क के सीमित अवधि के लिए वैक्सीन, सहयोगी उपकरणों और यंत्रों. उनकी वितरण मशीनरी सहित, व्यापक पैमाने पर उत्पादन करने में सक्षम होगा। यह एआरवी की दवा के कॉकटेल के समान जीवन रक्षक हस्तक्षेप होगा।7 हालांकि विकसित देशों का यह विश्वास है कि उनकी कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को अवश्य ही सम्मानित किया जाना चाहिए, यहां तक कि वैश्विक महामारी में भी।
भारत कोवैक्स एंड गाबी के नेतृत्व वाले समूह के 189 देशों, जिनमें अमेरिका शामिल नहीं है, द्वारा की गई एक अन्य पहल में भी भागीदार है। उनका उद्देश्य 2021 के अंत तक 2 बिलियन खुराकों की खरीद करना है,इसका आधा हिस्सा पूरी दुनिया के निम्न आय वर्ग के देशों को दिया जाएगा, जिसे वे अपने यहां के उच्च जोखिम और आरक्षित समूहों विशेषकर स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले कार्यकर्ताओं को सुरक्षित करने के लिए वितरित करेंगे।8 केवल 20 फीसद मांगें ही अब तक पूरी हुई हैं। धनी देशों से अग्रिम भुगतान बड़े पैमाने पर व्यक्तियों के उत्पादन के समर्थन में लिया गया है, जिससे कि विश्व के 92 लक्षित देशों को इसे मुहैया कराया जा सके।
यह समझ में आने वाली बात है कि प्रत्येक देश सबसे पहले अपने नागरिकों को सुरक्षित कर लेना चाहता है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मायनेखेजहोने के लिए से समय में सहभागिता का तत्व अवश्य होना चाहिए। भारत ने 2 बिलियन खुराकों का कारोबारी आदेश दिया है। इसमें से आधा हिस्सा अमेरिकी उत्पादकों को और फिर ब्रिटेन को और इसका सबसे कम हिस्सा रूस को दिया जाएगा। इतना बड़ा ऑर्डर करने वाला भारत सबसे बड़ा देश है लेकिन यह वैक्सीन डिप्लोमेसी के लिए उसका निर्यात करेगा।
भारत ने पहले ही यह तय कर रखा है कि जैसे ही वैक्सीन उपलब्ध होगी. उसे दक्षिण एशिया के अपने पड़ोसी देशों, जैसे नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और ऐसे ही कुछ देशों को उपलब्ध कराएगा। बहुत संभव है कि भारत अफ्रीका को भी यह वैक्सीन उपलब्ध कराएं। इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि हाइड्रोक्लोरोक्वीन और पेरासिटामोल महामारी के पहले चरण में उपलब्ध कराए गए थे।
लगभग सभी वैक्सीनें वृहद पैमाने पर भारत में उत्पादित किए जाने हैं यद्यपि देश के निजी क्षेत्रों द्वारा इस दिशा में किए जा रहे जबरदस्त प्रयासों का लाभ सरप्लस वैक्सीन के निर्यात में होगा, जिसे दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों और अफ्रीकी देशों में प्राथमिक स्तर पर निर्यात किया जा सकेगा। जबकि ये भारत की तरह ही कम दामों पर व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराए जाएंगी। इस बात की पूरी संभावना है कि इनमें से कुछेक देश विदेश मंत्रालय के तहत वैक्सीन डिप्लोमेसी मद में दिए जाने वाले अनु दानों से लाभान्वित होंगे। हाल ही में भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 आसियान रिस्पांस फंड9 में 1 मिलियन समर्थन राशि दी है। ऐसी ही डिप्लोमेसी के तहत अफ्रीका के लिए 10 मिलियन डॉलर का एक स्वास्थ्य कोष पहले से ही है।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने भी 9 बिलियन डॉलर की एशिया-प्रशांत वैक्सिंग एक्सेस फैसिलिटी की घोषणा की है। यह सदस्य देशों इस वैक्सीन की खरीद के लिए अपने कोष की सुविधा देगी। यह कोविड-19 संकट से निबटने के लिए एशियाई देशों को दी गई सहायता की अतिरिक्त होगी। इस सुविधा को मुख्य जोर सरकार के व्यय कार्यक्रमों के समर्थन और निजी कंपनियों के लिए वित्तीय आवंटन पर रहेगा।10
इसके अलावा, वैक्सीन को स्वयं ही वितरण, निष्पादन, कोल्ड स्टोरेज और ऐसे अनेक नए अवसरों के साथ डील करना है।11 वैक्सीन भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की श्रृंखलाओं की कड़ी के रूप में पश्चिम एशिया के लिए दुबई और अफ्रीका के लिए इथियोपिया नए क्षेत्रीय केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं। उन्होंने विभिन्न देशों से यहां तक पहुंचने के लिए सघन संपर्क वाली एअरलाइनों के साथ एयर लाइंस हब भी बनाया है। भारत भी इन रीजनल हब का फायदा उठा सकता है और इसकी फार्मास्यूटिकल कंपनियों की इसके पड़ोसी देशों और अफ्रीकी देशों में वितरक श्रृंखला के एक हिस्से के रूप में मौजूदगी है।
विश्व गुरु के एक अंग के रूप में भारत कोविड-19 की वैक्सीनों, उनके उपयोग, वितरण, विशेषकर विकासशील देशों में अपनी क्षमताओं और उभरती प्रौद्योगिकी को साझा करने का मजबूत राजनयिक प्रयास करता है। भारत की उत्पादन सुविधाएं ने उसे वैक्सीन के मुख्य आपूर्तिकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://images.financialexpress.com/2020/10/covid-vaccine-2.jpg
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