पूर्वोत्तर में तस्वीर बदलने वाले समझौते
Rajesh Singh

पिछले दिनों दो अहम समझौते किए गए और उनसे पूर्वोत्तर में स्थायी शांति और समृद्धि आने की उम्मीद है। हैरत की बात नहीं है कि 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर मचे बवाल के पीछे दौड़ रहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस घटनाक्रम पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। इन दोनों समझौतों ने दशकों से चले आ रहे विवाद खत्म कर दिए हैं। कुछ हिचकिचाहट बेशक बची है, लेकिन नए माहौल में उसे भी सुलझाया जा सकता है। मानवीयता भरे ये समझौते देश की सुरक्षा और संप्रभुता का भी ध्यान रखते हैं।

पहला समझौता ब्रू-रियांग समुदाय के लोगों को त्रिपुरा में बसाने के बारे में है। जातीय संघर्ष के कारण मिजोरम में अपने घर छोड़कर भाग इस समुदाय के 30,000 से अधिक सदस्य 23 साल तक वहां राहत शिविरों में शरणार्थियों की तरह रहे। समुदाय के आधे से अधिक लोगों ने मिजो समुदाय के कुछ वर्गों के साथ हिंसक टकरावों के बाद मिजोरम छोड़ दिया था। ब्रू समुदाय त्रिपुरा, मिजोरम और दक्षिण असम के हिस्सों में फैला है। इस समय त्रिपुरा में सबसे बड़ी आबादी वाली यह जनजाति मिजो समुदाय से अलग है और इसकी अपनी भाषा तथा परंपराएं हैं। ब्रू त्रिपुरा के 20 से अधिक जातीय कबीलों में से एक है। हिंसा और उसके बाद हुए विस्थापन के कारण ब्रू-रियांग लोगों के लिए संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत स्वायत्तशासी जिला परिषद की मांग उठने लगी।

इस संकट के हल के लिए अतीत में भी कई प्रयास किए गए थे। 2010 के बाद से त्रिपुरा और मिजोरम की सरकारों ने समाधान तलाशने की कोशिश की। हालांकि 2018 में सरकार ने समुदाय के सामने शांति से त्रिपुरा लौटने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन 330 से भी कम परिवार वापस गए क्योंकि मिजो उग्रवादियों और ब्रू-रियांग समुदायों को स्वीकार होने वाला समझौता नहीं होने के कारण स्थिति अनिश्चितता भरी थी। नए समझौते में सभी पक्ष - मिजोरम और त्रिपुरा की सरकारें, केंद्र और समुदाय के प्रतिनिधि - शामिल हैं और यह त्रिपुरा में उन शरणार्थियों के पुनर्वास का रास्ता साफ करता है, जो वहीं रहना चाहते हैं। जो मिजोरम लौटना चाहते हैं, उनके लिए भी अब माहौल अनुकूल होगा। बसने वालों के लिए प्रशासनिक उपाय जैसे शरणार्थियों का भौतिक सत्यापन और गरिमा भरे जीवन के लिए उनकी जरूरतें तय करने का सर्वेक्षण किए जाएंगे। साथ ही बसने वालों के लिए जमीन भी चिह्नित की जाएगी। केंद्र उनकी जरूरतों के लिए 600 करोड़ रुपये जारी करने का ऐलान तो कर ही चुका है, वह इस राशि के अलावा विशेष पैकेज भी तैयार करेगा। प्रत्येक पुनर्वासित परिवार को घर बनाने के लिए तय आकार की जमीन दी जाएगी (आवास सहायता राशि भी दी जाएगी और राज्य सरकार मकान बनाकर लाभार्थियों को सौंपेगी) और एक बार चार लाख रुपये नकद भी दिए जाएंगे। जमीन सरकारी संपत्ति में से दी जाएगी और निजी जमीन का अधिग्रहण भी किया जाएगा क्योंकि सरकारी जमीन कम पड़ सकती है। मगर 2009 के बाद से आठ चरणों में चलाए गए प्रत्यारोपण अभियान के दौरान मिजोरम लौट चुके ब्रू-रियांग लोगों को त्रिपुरा में नहीं बसाया जाएगा। ब्रू-रियांग सदस्यों को त्रिपुरा में ‘विशेष रूप से संकटग्रस्त जनजातीय समूह’ कहा जाता है। उनमें से अधिकतर यंग मिजो एसोसिएशन जैसे संगठनों और कुछ अन्य जातीय गुटों के निशाने पर आने के बाद मिजोरम से भाग गए थे।

ऐतिहासिक समझौते से पहले लंबी-चौड़ी बातचीत हुई। त्रिपुरा के पुराने राजपरिवार के एक सदस्य ने पुनर्वास का समर्थन करते हुए नवंबर 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा। उसके बाद मुख्यमंत्री विप्लव देव ने भी पुनर्वास की मांग की। त्रिपुरा को पुनर्वास से कोई दिक्कत नहीं थी कयोंकि ब्रू-रियांग समुदाय वास्तव में इसी राज्य से ताल्लुक रखता था और 1976 में उस समय मिजोरम चला गया था, जब पनबिजली संयंत्र शुरू होने पर उसके घर और जमीन पानी में डूब गए थे।

इतने ही ऐतिहासिक दूसरे समझौते से असम में बोडो और गैर-बोडो समुदायों के बीच दशकों से जारी टकराव रुकने की उम्मीद है। हालांकि कुछ गैर-बोडो नेताओं ने समझौते पर संदेह जताया है, लेकिन ये बातें स्थानीय राजनीति के कारण कही जा रही हैं। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के चारों प्रमुख धड़ों, ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (यूबीपीओ) ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते पर दस्तखत अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री और उनके कुछ वरिष्ठ सहयोगियों की मौजूदगी में हुए। यह पहला मौका है, जब सभी पक्ष एक साथ इकट्ठे हुए। इस समझौते की अहमियत यह है कि अलग बोडो राज्य के लिए सशस्त्र संघर्ष खत्म होगा। बदले में समझौते के तहत सरकारें बोडो आबादी की अनूठी पहचान की हिफाजत करेंगी और उसे बढ़ावा देंगी तथा समुदाय के सर्वांगीण विकास और उसे मुख्यधारा में शामिल करने की दिशा में काम करेंगी।

पिछले कुछ दशकों में बोडो और गैर-बोडो समुदायों के बीच संघर्ष में 4,000 से जानें गईं। उसके कारण फैली अशांति ने पूर्वोत्तर में असम और आसपास के क्षेत्र के विकास पर प्रतिकूल असर डाला। समझौते में सशस्त्र उग्रवादी गुट भी शामिल हैं और उन्हें हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिल रहा है। सरकार ने बोडो समुदाय के लिए 1,500 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज (जिसमें केंद्र और राज्य का बराबर योगदान होगा) की घोषणा की है। साथ ही राज्य के चार जिलों से मिलकर बनी बोडोलैंड टेरिटरियल कौंसिल (बोडालैंड क्षेत्रीय परिषद) को अतिरिक्त अधिकार भी दिए जाएंगे। आबादी में भी कुछ बदलाव होगा - एक आयोग गठित किया जाएगा, जो तय करेगा कि परिषद में कौन से नए क्षेत्र शामिल किए जाएं और बोडो आबादी के कम प्रतिशत वाले कौन से क्षेत्र उसमें से बाहर किए जाएं। इस परिषद को अधिक सार्थक बनाने के लिए इसका नाम भी बदलकर बोडालैंड टेरिटरियल रीजन किया जाएगा।

नए समझौते से शांति होने की उम्मीद है, जो पिछले दो समझौतों से नहीं हो पाई थी। पहला समझौता 1993 में एबीएसयू के साथ किया गया था, जिससे बोडोलैंड स्वायत्तशासी परिषद का गठन हुआ था। दस साल बाद दूसरा समझौता हुआ, जिसमें बोडो लिबरेशन टाइगर्स शामिल थे और उसके कारण बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन हुआ, जिसमें बोडोलैंड टेरिटरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट कहलाने वाले क्षेत्र शामिल थे। इन समझौतों से शांति नहीं हो पाने की एक वजह यह थी कि सभी पक्षों को साथ नहीं लिया गया था। समझौतों के ढिलाई भरे क्रियान्वयन ने भी उन्हें नाकाम बना दिया।

दोनों नए समझौते पूर्वोत्तर में प्रगति और समृद्धि की रफ्तार तेज करने के मोदी सरकार के संकल्प को दर्शाते हैं। मई 2014 में सत्ता में आने के बाद से सरकार ने इस दिशा में और विशेषकर बुनियादी ढांचा बेहतर करने के लिए कई कदम उठाए हैं। सड़क और रेल संपर्क पर बहुत ध्यान दिया गया है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक लगभग पूर्वोत्तर में 900 किलोमीटर लंबी पटरियों को ब्रॉड गेज में बदल दिया गया है; नए रेल मार्गों का ऐलन किया गया है और कुछ पर काम शुरू हो भी चुका है; पिछले तीन साल में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश वाले 3,700 किलोमीटर से अधिक लंबे राष्ट्रीय राजमार्गों को मंजूरी दी गई है और 1,000 किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली सड़कें बन भी चुकी हैं। हवाई संपर्क के मामले में भी ऐसी ही पहल की गई हैं। इसके अलावा भारत-म्यांमा-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग आसियान के लिए दरवाजे का काम करेगा, जिसका सबसे अधिक फायदा पूर्वोत्तर क्षेत्र को ही होगा।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://nenow.in/wp-content/uploads/2020/01/Bodo-Accord-2020-750x375.jpg

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