दुनिया में शायद ही ऐसा कोर्ई देश हो, जो कोवि़ड-19 जैसी वैश्विक महामारी से पीड़ित न हुआ हो। हालांकि महामारी के दुष्प्रभाव सभी देशों पर एक समान नहीं हैं। जबकि कुछ देशों में कोरोना से लोगों के बीमार होने तथा उनके मरने की दरों के लिहाज से इसके दुष्परिणाम काफी घातक रहे हैं जबकि अन्य देशों में स्पष्टतया कम रहे हैं। थोड़े से देश उचित कार्य नीति अपना कर इस महामारी को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं, लेकिन कई ऐसे देश जो प्रभावी उपायों को अपनाने में विफल रहे हैं, उन्हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए दुनिया के कई देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए अब कुछ उपाय करने शुरू कर दिए हैं।
1929 की वैश्विक मंदी के बाद से पहली बार दुनिया कोविड-19 के चलते व्यापक मंदी से गुजर रही है। 3.3 बिलियन सकल वैश्विक कार्य बल का 81 फीसद से ज्यादा विकासशील और विकसित दोनों ही देशों में, इस महामारी से पूरी तरह या आंशिक रूप से प्रभावित हुआ है। यह भी कि 2020 में संभावित वैश्विक समृद्धि दर में -3 फीसद की गिरावट हुई है। दक्षिण एशिया में अनुमानित आर्थिक वृद्धि दर 1.8 फीसद से लेकर 2.8 फीसद तक गिरी है, यह पहले की अनुमानित दर 6.3 फीसद से कम है। भारत में 2020 में आर्थिक वृद्धि की दर में 1.9 फीसद और चीन में 1.2 फीसद की गिरावट होने का अनुमान है।
वहीं दूसरी ओर, नेपाल के आर्थिक विकास की दर में, 2020 में, 1.5 फीसद की गिरावट का अनुमान है। कोविड-19 की वजह से ही नेपाल को प्रत्येक दिन 11.58 मिलियन डॉलर (10 बिलियन नेपाली रुपये) का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह घाटा इसलिए हो रहा है कि इस महामारी ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के सभी मुख्य क्षेत्रों पर बुरी तरह चोट किया है। नेपाल को पर्यटन क्षेत्र से होने वाली अनुमानित आय में 60 फीसद की गिरावट आई है, इस वजह से उसे 2020 में 44 मिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा हो गया है।
नेपाल में, अपने पड़ोसी देश भारत की तुलना में कोविड-19 से तबाही भयावह होती गई है। सितंबर महीने में, जब कोविड-19 के मामले शीर्ष पर थे, तब भारत में नए मामलों की दर लगभग आधी रह गई थी, जबकि नेपाल में इस दौरान कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते रहे थे।
इसके विपरीत, नेपाल में मार्च तक कोविड-19 के मात्र दो मामले सामने आए थे, जब पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया था। लेकिन जब 17 सितंबर से लॉकडाउन हटाने की प्रक्रिया शुरू की गयी तो कोविड-19 के मामलों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखी गई। 25 नवंबर तक देश में कोरोना वायरस से पीड़ित होने वाले लोगों की तादाद 22,626 पहुंच गई थी जबकि इससे मरने वालों की संख्या 1,389 हो गई थी। आज नेपाल में काठमांडू घाटी इस महामारी से सर्वाधिक पीड़ित हो गई है।
कोरोना वायरस के संक्रामक होने के ठीक बाद 280,000 अप्रवासी कामगारों के रोजगार छीन गए। इसी तरह, नेपाल की जीडीपी में एक चौथाई का राजस्व देने वाले रेमिटेंस में भी 2019 के 8.2 बिलियन डॉलर के बनिस्बत 2020 में 7.4 बिलियन डॉलर की कमी आई है।
इसके अलावा, देश में लोगों को रोजगार का सर्वाधिक अवसर देने वाला कृषि क्षेत्र भी कोविड-19 की वैश्विक महामारी से बुरी तरह हिल गया क्योंकि किसानों को इसके चलते समय पर रासायनिक खाद और कीटनाशक उपलब्ध नहीं हो सके थे। श्रम बल अनुपलब्ध होने तथा पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की आपूर्ति न होने की वजह से कई बड़ी और छोटी औद्योगिक इकाइयां ठप पड़ गईं। इन सबसे बढ़कर, लोगों की आमदनी पर इस कदर मार पड़ी कि देश में वस्तुओं और सेवाओं की मांग लड़खड़ा गई।
आर्थिक खुशहाली लौटाने के लिए नेपाल सरकार ने 150 बिलियन नेपाली रुपये का आवंटन किया है, जो उसके जीडीपी का 5 फीसद (160 नेपाली रुपये 100 भारतीय रुपये मूल्य के बराबर है) हिस्सा है। सरकार ने 600,000 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए 20 बिलियन नेपाली रुपये का आवंटन किया है। प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत 200,000 लाख रोजगारों के अवसरों के सृजन करने के लिए 11.6 बिलियन डॉलर धन अतिरिक्त दिया गया है। इसी तरह, गरीबी निवारण कोष के तहत 150,000 लाख रोजगार के अवसर सृजित किए गए थे। इसके अलावा, बाजार में रोजगार प्राप्त करने योग्य बनाने के लिए 75,000 लोगों का कौशल संवर्धन किया गया था।
यद्यपि रोजगार सृजित करने के अवसरों के लिए ठोस व महत्वपूर्ण प्रयास अब तक नहीं किए गए हैं क्योंकि देश के राजनीतिक नेता आंतरिक सत्ता संघर्ष में मशगूल हैं। उनके पास इतना वक्त ही नहीं है कि वे रोजगार पैदा करने के अवसरों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पूरी कर सकें। इस तरह से आम लोगों की आमदनी और संपत्ति में क्रमिक छीजन हो रहा है, जो इस तथ्य में भली-भांति दिखाई देता है कि दासाइन और तिहाड़ जैसे त्योहार के समय में भी घरेलू बाजारों में वस्तुओं की वैसी बिक्री नहीं हुई।
इस समय, वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि करने की सर्वाधिक आवश्यकता है क्योंकि देश तेजी से मंदी की तरफ बढ़ रहा है। इससे बचने के लिए संघीय, प्रांतीय और स्थानीय सरकारों को ज्यादा से ज्यादा व्यय करने तथा आधारभूत संरचना के विकास कार्यों; जैसे सड़क बनवाना, सिंचाई करना एवं लोगों के लिए रोजगार पैदा करने वाली ऐसी ही गतिविधियों को शुरू करना होगा जिनसे कि उनकी आय बढ़ सके।
इसके अतिरिक्त, 753 स्थानीय सरकारों को अपने करों को माफ करने या उनकी दरों को घटाने की आवश्यकता है, जो उन्होंने अपने लोगों पर लाद रखे हैं। संघीय ढांचे के अंतर्गत, स्थानीय निकाय विकास कार्यों के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने हेतु लोगों पर भारी भूमि कर, मकान कर और अन्य प्रकार के कर लगाते हैं। लेकिन इन मदों से प्राप्त होने वाले संसाधनों में भारी दुरुपयोग देखा गया है।
अब चूंकि कोविड-19 के प्रकोप के जल्द समाप्त होने के आसार नजर नहीं आ रहे तो देश में संघीय, प्रांतीय और स्थानीय स्तर की कुल 761 सरकारों को इस वैश्विक महामारी के नियंत्रण के लिए एक तरफ तो प्रभावी उपायों पर अमल करने की आवश्यकता है, वहीं दूसरी तरफ अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए नीतियां व कार्यक्रम बनाने की जरूरत है। इसके लिए रोजगार के अवसरों को सृजित करने के लिए युद्ध स्तर पर बाजारों में वस्तुओं की मांगों को पैदा करना निहायत जरूरी है। अगर रोजगार को पैदा करने के लिए सरकार के पास कोई ठोस योजनाएं और कार्यक्रम नहीं हैं तो केवल मिट्टी काटने और गड्ढे भरने के कामों से क्या कुछ हासिल हो सकता है। इसी तरह, इन सभी सरकारों को करों को घटाने- अगर वे उसे पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते हैं-की जरूरत है, जिससे लोगों की आमदनी बढ़ सके।
इसके अतिरिक्त, हमारे पड़ोसी देश भारत के पास संपत्ति के पुनर्वितरण, रोजगार सृजन के अवसरों, किसानों के खाते में सीधे-सीधे धन का हस्तांतरण करने, मजदूरी की दर बढ़ाने तथा समाज के कमजोर क्षेत्रों; जैसे वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और दिव्यांगों की सहायता-समर्थन के अपार अनुभव हैं। उसने देश में, उद्यमियों के लिए संपार्शि्वक मुक्त कर्ज (collateral-free loans) की राशि बढ़ाने और अपने बहुत सारे लोगों को चिकित्सा बीमा मुहैया कराने का प्रशंसनीय कार्य किया है। भारत के ये अनुभव, इनमें से कुछ क्षेत्रों में, नेपाल के लिए भी इस कोविड-19 काल में बेहद उपयोगी हो सकते हैं, न केवल श्रम-सघन गतिविधियों में अतिरिक्त संसाधन लगाने के लिहाज से बल्कि बाजार की गतिविधियों को सुचारु-संचालित करने और इस तरह से देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की गरज से लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए धन देने के काम आ सकते हैं।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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