हाल ही में किर्गिजस्तान एक दशक में सर्वाधिक खराब राजनीतिक संकटों से गुजरा है। मौजूदा राजनीतिक विप्लव इसके पहले 2005 और 2010 में हुए लोकप्रिय क्रांतियों से जरा भी भिन्न नहीं था। 2005 में हुए “ट्यूलिप क्रांति” ने तब के राष्ट्रपति ऑस्कर अकायव को सत्ता से बेदखल कर दिया था जबकि 2010 की जून में संघर्ष के बाद हुई “मेलोन रिवॉल्यूशन” के परिणामस्वरूप तत्कालीन राष्ट्रपति कुर्मान्बेक बकिएव को गद्दी छोड़नी पड़ी थी। चारों ओर भूमि से गिरे मध्य एशिया के इस गणतांत्रिक देश में लगभग बराबर ही कोई न कोई राजनीतिक संकट उठ खड़ा होता है, जिसकी वजह से देश के राजनीतिक अभिजनों और सत्ता पक्ष के विरोधियों द्वारा लोकप्रिय क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया जाता है। यह मौजूदा संकट खास है क्योंकि इसमें पहले की दो राजनीतिक क्रांतियों की तरह कोई रक्तपात नहीं हुआ है। इसने मौजूदा राष्ट्रपति का इस्तीफा ले लिया है और जेल से रिहा करा कर प्रधानमंत्री की नियुक्ति की गई है।
4 अक्टूबर 2020 को किर्गिज गणतंत्र ने नई संसद का चुनाव का चुनाव किया। इन चुनाव नतीजों के परिणामस्वरूप देश में सरकार समर्थक संसद कायम हुई जहां 16 पार्टियों में से केवल 4 पार्टियां ही 7 फीसद चुनावी मत पाने में कामयाब रहीं, जिनको कि सात फीसद मत मिले। इनमें से तीन पार्टियां जीनबेकोव की समर्थक थीं।1 केवल एक विरोधी पार्टी चुनाव में विजयी हो सकी। चुनावी नतीजों को फर्जी बताते हुए विपक्षी पार्टियां और आम नागरिकों ने विश्शेक में और इसके साथ ही समूचे देश में विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। इन प्रदर्शनकारियों ने संसद और राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस को घेर लिया, जिस वजह से आखिरकार सेंट्रल इलेक्शन कमिशन को यह चुनाव रद्द करना पड़ा। इस असंतोष ने प्रधानमंत्री कुबटबेक बोरोनोव और संसद के स्पीकर दास्तान जुम्माबेकोव को उनके पदों से इस्तीफा देना पड़ा। जेल में कैद अनेक कद्दावर कैदियों को रिहा करना पड़ा जिनमें पूर्व राष्ट्रपति अल्माज़बेक अताम्बेव, पूर्व प्रधानमंत्री सपर इसकोव और राष्ट्रवादी नेता सदिर झपरोव2 भी शामिल थे। हालांकि अताम्बेव को सरकार विरोधी प्रदर्शन करने के आरोप में 10 अक्टूबर को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। राष्ट्रपति जीनबेकोव जो रणनीतिक महत्त्व के दक्षिणी क्षेत्र ओश से ताल्लुक रखते हैं, वे इसी क्षेत्र के एक अन्य कद्दावर और रसूखदार नेता रायमबेक मत्रिमोव के साथ काफी नजदीकी संबंध रखते हैं। मत्रिमोव बहुत बड़े वित्त-प्रबंधक व असरकारक नेता हैं। मत्रिमोव कस्टम ऑफिसर रहे हैं, जिनका किरगिज़-चाइनीज सीमा चौकी से होकर गुजरने वाले वस्तुओं की आवाजाही पर नियंत्रण था, जिसने उन्हें मालदार और रसूखवाला नेता बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। अक्टूबर में हुए चुनाव में जीनबेकोव के साथ उनके गठजोड़ ने देश के उत्तरी कुल-बिरादरी को नाराज कर दिया था, जिनकी चुनाव में बुरी तरह से पराजय हुई थी और जिन्हें नई संसद में प्रतिनिधित्व करने से वंचित होना पड़ा था। इससे बौखलाए इन नेताओं ने अपने समर्थकों को बिश्केक शहर को अपने कब्जे में लेने के लिए उकसाया, जिसकी अंततोगत्वा परिणति सरकार गिराने में हुई। राज्य का लड़खड़ाता ढांचा ध्वस्त हो गया। और इन्हीं अराजक परिस्थितियों में राष्ट्रपति जीनबेकोव को छिपने पर विवश होना पड़ा। इस वजह से देश में सत्ता शून्यता की स्थिति आ गई।3
सरकार विरोधी जन भावनाओं के उभार को देखते हुए गतिरोध निवर्तमान राष्ट्रपति जीनबेकोव के समर्थन में आता प्रतीत दिखता है। उन्होंने नई सरकार और पार्लियामेंट के स्पीकर की मांग करते हुए देश में एक संवैधानिक व्यवस्था बहाल करने की बात कही, जो ऐसी परिस्थिति आने पर इसका निर्णय कर सकता है कि संसद राष्ट्रपति से इस्तीफा मांगा जाए या उन पर महाभियोग चलाया जाए। यद्यपि तेजी से बदल रही स्थिति कुटुंब आधारित स्वार्थों को बहुपक्षीय युद्ध में बदल दिया था।
किर्गिजस्तान में राजनीतिक सत्ता के अनेक दावेदार थे। इनमें पहला धड़ा झोपरोव के समर्थकों का था। उनकी समर्थक संगठित थे और उन्हें किर्गिजस्तान के प्रधानमंत्री बना देने पर आमादा थे। रिपोर्ट यह भी है कि इसके लिए उन्होंने गलियों में हिंसा भी की। दूसरा धड़ा, पूर्व राष्ट्रपति अताम्बेव का है, जो राष्ट्रपति पद के पूर्व उम्मीदवार ओमुरबेक बबनोव के साथ गठबंधन किया हुआ है। ये बबनोव अताम्बेव के विरोधी भी रहे है। एक तीसरा धड़ा, विरोधी दलों और सामाजिक आंदोलनों के गठजोड़ का है, जिसमें बीर बोल, अता मेकेन और रिफॉर्मा पार्टियां शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों की इस मांग के बाद की आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता लोगों को राजनीति में भाग लेने से रोकने के लिए कानून बनाया जाए तो इस समूह ने अताम्बेव के साथ गठबंधन पर चिंता जाहिर की। यह धड़ा मुख्य रूप से अपने क्षेत्रीय एसोसिएशन और कबीलाई हितों के बीच विभाजित है। जीनबेकोव रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के करीबी सहयोगी थे। चुनाव के पहले उनका समर्थन मांगने के लिए वे रूस भी गए थे। हालांकि देश में जारी राजनीतिक संकट पर रूस की प्रतिक्रिया जीनबेकोव के लिए निराशाजनक थी, जिसने उन्हें अपना पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। किर्गिजस्तान में राजनीतिक क्रांति के इतिहास को देखते हुए उनके पद छोड़ने का भी एक सराहनीय संदेश अवाम में गया।
झपरोव को देश के 61 सांसदों ने 10 अक्टूबर को उन्हें अपना प्रधानमंत्री चुना। हालांकि वोट के दौरान कथित रूप से 51 सांसद ही मौजूद थे। जीनबेकोव ने प्रक्रियाओं में अनियमितताओं के आधार पर झपरोव के निर्वाचन को वैध मानने से इनकार कर दिया। लेकिन 14 अक्टूबर को उन्होंने उनकी नियुक्ति को अपनी स्वीकृति दे दी और 15 अक्टूबर को राष्ट्रपति पद से अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने देश में जारी चुनावों के मद्देनजर होने वाले किसी रक्तपात से बचने के अपने आग्रहों को दोहराया। अंततोगत्वा, नई संसद के स्पीकर कनात ईसाएब ने कार्यकारी राष्ट्रपति की जवाबदेही लेने से इनकार कर दिया आखिरकार नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री झपरोव को वह दायित्व भी लेना पड़ा।4
सदिर झपरोव किर्गिजस्तान की क्षेत्र इज़िक-कू कुल से ताल्लुक रखते हैं। सांसद निर्वाचित होने के पहले वह पुलिसकर्मी थे. 2005 की क्रांति के बाद बाकियेव के शासनकाल (2005-10) में उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक इकाई का प्रमुख नियुक्त किया गया। सदिर झपरोव 2010 में कमचि बेक ताशिव के नेतृत्व वाली अता जर्ट पार्टी के हिस्सा हो गए। एक राजनीतिक के रूप में रसूखदार झपरोव की एक सफलता में उनके दीर्घकालीन मित्र और राष्ट्रवादी नेता ताशिव का बड़ा योगदान है।5 झपरोव को कमचि बेक के साथ 2012 तख्तापलट की साजिश रचने आरोप लगाते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। कुमतोर सोने की खदान के राष्ट्रीयकरण के लिए 2013 में उन्होंने एक अभियान चलाया था और इस दौरान एक स्थानीय राजनीतिक नेता का कथित रूप से अपहरण कर लिया था। बाद में झपरोव को देश छोड़कर भागना पड़ा था। 2017 में देश लौटने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। फिलहाल ताशिव एक राष्ट्रीय पार्टी में कांचीताल्लुक रखते हैं, जो चुनाव में 6.99 फीसद मत प्राप्त कर पिछड़ जाने वाली पार्टी में शुमार हुई है।6
किर्गिजस्तान में हाल ही में हुए घटनाक्रमों को समझने के लिए चार बुनियादी अभिव्यंजनाएं महत्वपूर्ण हैं। पहली, किर्गिजस्तान पहले से ही कोरोना महामारी से निबटने में बुरी तरह विफल रहा था, इसने देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा है। दूसरी, राजनीतिक साजिश से अनुप्रेरित चुनावी षड्यंत्र की पृष्ठभूमि में एक राजनीतिक शून्यता पैदा हुई है। इस विवाद ने राजनीतिक अभिजनों, कारोबारियों, और आपराधिक समूह के प्रतिद्वंदी नेटवर्क ने राज्य सत्ता पर दखल जमाने के लिए एक होड़ शुरू कर दिया है। तीसरी अभिव्यंजना यह की, किर्गिजस्तान में स्थानीय राजनीति को दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्र में परस्पर संघर्ष के रूप में देखा जाता है, जिसमें जीनबेकोव और झोपरोव धडो़ं के साथ इस राजनीतिक उथल-पुथल में दक्षिणी समूह भी शामिल हैं। झोपरोव देश के पूर्वी भाग से आते हैं और वह दक्षिणात्य नहीं हैं। अतः मौजूदा राजनीतिक संघर्ष को देश के उत्तर-दक्षिणी हिस्से की कशमकश में सरल रूप से विभाजित करके देखना संपूर्णता में सही नहीं हो सकता।7 और अंत में, किर्गिजस्तान में जारी आंतरिक राजनीतिक संघर्ष में किसी बाहरी शक्ति का कोई हाथ नहीं है।
झोपरोव प्रारंभिक वादे उनकी प्रतिबद्धता दिखाते और राजनीतिक समूहों के बीच शक्ति को संगठित करते प्रतीत होते हैं। देश में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए उन्होंने एक रिफॉर्म कमिशन का गठन किया है। भ्रष्टाचार के आरोप में जिनके खुद के घनिष्ठ सहयोगी मित्रों को 20 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया है।8 इससे झोपरोव के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की विश्वसनीयता में सुधार होगा बल्कि यह उनके विरोधी समूहों पर भी नियंत्रण रखने में मदद करेगा। उन्होंने संविधान में संशोधन करने का इरादा जताया है, जो उन्हें अगला चुनाव लड़ने की इजाजत देगा। हालांकि झोपरोव को चुनाव में देश के प्रख्यात और धनाढ्य राजनीतिक ओमुरबेक बबनोव सहित अन्य लोगों से टक्कर मिल सकती है।9 भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के अंतर्गत पूर्व सरकारी अधिकारियों को “आर्थिक क्षमादान” की घोषणा की है, जिसके तहत भ्रष्टाचार के धन को सरकारी खजाने में जमा कर उन्हें कार्रवाई से मुक्त हो जाने का विकल्प दिया गया है।10 हालांकि भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम के लिए यह कोई वैधानिक संकेत नहीं है। झोपरोव के सहयोगी ताशिव को स्टेट नेशनल सिक्योरिटी कमिटी का प्रमुख नियुक्त किया गया है, जो इस कार्यक्रम को संचालित करेंगे। साथ ही, यह देश में होने वाले चुनावों में झोपरोव के नियंत्रण को मजबूत करेगा।11
झोपरोव को अपने राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपने शासनकाल की वैधता को सुनिश्चित करने की जरूरत है और यह काम नई पीढ़ी के युवा कार्यकर्ताओं समेत विभिन्न राजनीतिक समूहों को विश्वसनीय संस्थाओं की स्थापना की इजाजत देने से ही हो सकता है। कानून लागू करने वाले निकायों और न्यायपालिका में वास्तविक सुधारों के क्रियान्वयन से क्षेत्रीय राजनीतिक जोखिम को कम करने तथा भ्रष्टाचार को मिटाने में मदद मिलेगी। अगर यह नहीं होता है, तो उन्हें जन असंतोष का सामना करना पड़ेगा जैसा कि उनकी पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों को व्यवस्थागत खामियों को दूर न कर पाने का खामियाजा उठाना पड़ा था। सरकार की ओर से बिना वित्तीय सहायता के भी यह काम संभव है, लेकिन झोपरोव इसे अकेले नहीं कर सकते। इस काम को विधि सम्मत और वैधानिक तरीके से करने की आवश्यकता है।
किर्गिजस्तान संकट में बाहरी किसी शक्ति का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई हाथ नहीं है। रूस और चीन किर्गिजस्तान के दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। बीजिंग पर इसकी आर्थिक निर्भरता कि अक्सरहां चर्चा की जाती है, उसका 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज है। लेकिन किरगिज़ संकट पर उसकी प्रतिक्रिया मौन रही है। किर्गिजस्तान की झरझर सीमा चीन के शिनजियांग प्रांत से मिलती है, जहां के उईगर समुदाय विशेष का प्रभाव समूचे मध्य एशिया क्षेत्र में है। चीन का निवेश किर्गिजस्तान में खतरे में पड़ा हुआ है। देश में चीन विरोधी मानसिकता उभर रही है। साथ ही, यहां जारी चीनी गतिविधियों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को व्यापक बना दिया है। लिहाजा, अब देखना होगा कि नई हुकूमत चीन और चीनी फोबिया के साथ कैसे तालमेल बिठाती है।
किर्गिजस्तान मध्य एशिया में रूस की सुरक्षा रणनीतियों की महत्वपूर्ण परिसंपत्ति है।12 रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कैंट हवाई अड्डा अहम है। इन्हीं सब के मद्देनजर रूस ने 6 अक्टूबर को जारी अपने प्रारंभिक वक्तव्य में किर्गिजस्तान में मची अराजकता का उल्लेख किया था। इसमें कहा गया कि, “हम देश के सभी राजनीतिक ताकतों का आह्वान करते हैं कि वे इस कठिन समय में आंतरिक स्थिरता और सुरक्षा को बनाए रखने में अपनी बुद्धिमत्ता और उत्तरदायित्व की भावना का प्रदर्शन करें।”13 इसके बाद, रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ दिमित्री कोजाक ने 12 अक्टूबर को कुछ घंटों के लिए विश्शेक का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने झोपरोव और जीनबेकोव से मुलाकात की थी। ऐसा कहा जाता है कि कृषि संकट के दौरान किर्गिज संकट के दौरान जीनबेकोव ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से कई मर्तबा फोन पर बातचीत की थी जबकि झोपरोव ने अपने सत्ता आरोहण के दौरान जोर देकर कहा था कि विश्शेक के रणनीतिक साझेदार के रूप में रूस की भूमिका है। हालांकि क्रेमलिन में न तो झोपरोव का और न ही जीनबेकोव का पक्ष लिया था। इसके बजाय उसने देश की स्थिरता बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया था। इस मुखर सहायता में कमी का यह संकेत था कि पुतिन बेदखल हुए राष्ट्रपति जीनबेकोव में भरोसा नहीं करते।14
क्रीमिया संकट के सन 2014 में शुरू होने और रूस के खिलाफ तेल के दाम न घटाने के एवज में पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंध के बाद से मास्को की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही। उसके पड़ोसी आर्मीनिया, बेलारूस और किर्गिजस्तान में हालिया संकट होने का उत्तर सोवियत यूरेशियन दायरे में रूस के हितों पर सीधा प्रभाव पड़ा है। क्षेत्र के प्रति रूस की सर्वोच्च प्राथमिकता के प्रति आग्रह से मध्य एशिया में यथास्थितिवाद के संरक्षण में दिखाई देता है। यह सभी देश रूस के नेतृत्व वाली सुरक्षा पहल, कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (सीएसटीओ) और यूरेशियन इकोनामिक यूनियन (ईएईयू)15 के सदस्य हैं। इसीलिए रूस की अर्थव्यवस्था और इस क्षेत्र में उसकी सामरिक महत्वाकांक्षाएं दांव पर हैं।
भारत उन चुनिंदा देशों में पहला है, जिसने किर्गिजस्तान के साथ 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित किया था। दोनों देशों के साथ व्यापार और आर्थिक सहयोग, निवेश संवर्धन और संरक्षण, दोहरे कराधान से बचाव सहित अनेक समझौते हुए हैं। सन 2011 में संयुक्त सैन्य अभ्यास “खंजर” भी शुरू किया गया है। हजारों भारतीय छात्र इस देश की विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं। किर्गिजस्तान का नेतृत्व कश्मीर मसले पर भारत के रुख का सर्वाधिक समर्थन करता रहा है। साथ ही, वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई दावेदारी का भी समर्थन करता है। भारत एक विशाल लोकतांत्रिक देश है और किर्गिजस्तान मध्य एशिया में अकेला लोकतांत्रिक देश के रूप में शुमार किया जाता है। लिहाजा, भारत को यहां की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की स्थापना में अपना योगदान देना है। किर्गिजस्तान में, लोकतांत्रिक सत्ता का प्रस्थान भारत के हितों के विरुद्ध वातावरण बना सकता है। ऐसे में, किर्गिजस्तान में लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था के पक्ष में एक संवाद प्रक्रिया बनाए रखने की आवश्यकता है।
भारत का अपनी मध्य एशिया नीति को फिर से पुनर्जीवित करने के प्रयास के विगत में सकारात्मक परिणाम मिले हैं। ऐसे में कोई भी खराब घटनाक्रम मध्य एशिया में भारत की आकांक्षाओं-अपेक्षाओं पर सीधा प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। लिहाजा, भारत को सभी संभव मोर्चों पर द्विपक्षीय संवाद-जुड़ाव बनाए रखना लाजमी होगा।
संसदीय चुनावों से संबंधित घटनाक्रमों ने किर्गिजस्तान को राजनीतिक संकट में फंसा दिया है। नई सरकार की नियुक्ति और राष्ट्रपति के इस्तीफे ने असंतोष को खत्म कर दिया है। सदरी झोपरोव की अगुवाई वाली सरकार ने देश में स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए हैं। उनकी सरकार के लिए उत्तरदायित्व का प्राथमिक क्षेत्र होगा- वैश्विक महामारी कोरोना से प्रभावी तरीके से निबटना और सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों को खत्म करना। एक बेहद सक्षम विदेश नीति नई किर्गिज सरकार के लिए दूसरा अहम क्षेत्र होगा। रूस किर्गिजस्तान का निकटतम राजनीतिक सहयोगी है और उसकी यह हैसियत आने वाली नई हुकूमत में भी रहेगी। प्रधानमंत्री झोपारोव ने अपनी नियुक्ति के तत्काल बाद ही यह मुनादी कर दी थी कि किर्गिज गणतंत्र के लिए रूस एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार बना रहेगा।
अलबत्ता चीन- किर्गिजस्तान संबंधों पर हालिया राजनीतिक संकट का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। प्रदर्शनकारियों ने चीन के लोगों और देश में चीनी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर हमले किए हैं। इसलिए बीजिंग की प्राथमिक चिंता अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा की होगी। भारत का भी किर्गिजस्तान के साथ नजदीकी संबंध है, व्यापार संवर्धन, कनेक्टिविटी और निवेश दोनों के लिए समान महत्व के मुद्दे हैं। ऐसे में भारत से यह अपेक्षा की जाती है कि किर्गिजस्तान में शांति और स्थिरता बनाने में महती भूमिका निभाए। यह काम द्विपक्षीय संवाद मशीनरी को मजबूत बनाने से ही हो सकता है।
https://www.rferl.org/a/kyrgyzstan-detains-former-customs-chief-matraimov-on-corruption-charges/30902497.html.
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://sl.sbs.com.au/public/image/file/f7e84e3c-8cdf-4cb7-abe4-274dbba7fa1f
Post new comment