भारत और अमेरिका के बीच 2 + 2 संवाद (26-27 अक्टूबर, 2020) की तीसरी श्रृंखला हाल ही में समाप्त हुई है, जो इस बात का संकेतक है कि दोनों देश प्रायः ‘इतिहास की हिचक’ कहे जाने वाले पछतावे के दौर से बाहर आने में कामयाब हुए हैं। अमेरिकी चुनाव से कुछ ही दिन पहले और लद्दाख में भारत के चीन से जारी प्रतिरोधों के बीच भारत-अमेरिकी संवाद के अंतर्निहित संकेत इस मौके पर जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य में बखान की गई उपलब्धियों से कहीं बढ़कर हैं।1 इस संवाद श्रृंखला में सबसे अधिक गौर करने वाली बात है दोनों पक्षों द्वारा ‘संस्थागत सम्मेलन’ (नेताओं के बीच बनी व्यक्तिगत नजदीकियों के दायरे से बाहर) के ठोस प्रयासों के जरिए वास्तविकता के इस एहसास के साथ कि हिंद-प्रशांत महासागर में भारत स्थिरता का एक मजबूत स्तंभ है और इस क्षेत्र में चीन की प्रभुता को चुनौती देता है। इसकी पृष्ठभूमि में भारत को अमेरिका की तरफ से दिया जाने वाला यह आश्वासन है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद उभरी भू-रणनीतिक चुनौतियों के समक्ष अमेरिका एक ‘पूर्व से अनुमानित’ और ‘विश्वसनीय’ रक्षा सहयोगी है। दरअसल, यह सितंबर 2018 में 2 + 2 संवाद श्रृंखला के शुभारंभ पर अमेरिकी रक्षा मंत्री मैटिस की एक अभिव्यक्ति है, “भारत क्षेत्र के भौगोलिक मोर्चों पर एक महत्वपूर्ण स्थिरकारी ताकत है।”2
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और सुरक्षा संबंधों में मजबूती देने में पिछले दो सालों में विशेषकर 2018 में शुरू हुई 2 + 2 संवाद श्रृंखला के बाद उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जिसने दोनों देशों के नीति-निर्माताओं को उपलब्धि का एक वास्तविक बोध कराया है।यह 27 अक्टूबर 2020 को जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य में परिलक्षित हुआ है, जब दोनों पक्षों ने समग्र, लचीला और बहुपक्षीय अहम रक्षा सहभागिता के लिए एक दूसरे की सराहना की।
भारत अब सभी बुनियादी रक्षा समझौतों, जिसके संवेदनशील होने के कारण, पहले ‘इनेबलिंग एग्रीमेंट’ कहा जाता रहा है ) पर दस्तखत किया हुआ है : एलईएमओए (भारत केंद्रित एलएसए- लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट) पर 2016 में हस्ताक्षर किया; सीओएमसीएएसए (भारत केंद्रित सीआईएसएमओए कम्युनिकेशन इंट्रोपर्बलिटी एंड सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट) पर 2018 में दस्तखत किया; और बीईसीए ( बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जिओ स्पेशल कोऑपरेशन) पर 27 अक्टूबर 2020 को हस्ताक्षर किया गया। औद्योगिक सुरक्षा एनेक्सी (आईएसए) से लेकर जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआईए-2002) को दिसंबर 2019 में 2 + 2 संवाद के दौरान दस्तखत किया था, जिसके जरिए वर्गीकृत प्रौद्योगिकी और सूचनाओं भारत और अमेरिका की निजी उद्योगों को मुहैया कराना सुनिश्चित हुआ था। अब दोनों देश शीघ्र होने वाले आईएसए शिखर सम्मेलन की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं, जो आगे के रक्षा उद्योग सहयोग को मजबूत करेगा। यह भी 2 + 2 संवाद की ही उपलब्धि है, जिसने भारत की हैसियत सामरिक व्यापार प्राधिकरण (स्ट्रैटेजिक ट्रेड ऑथराइजेशन, एसटीए-वन) तक बढ़ा दी है। इसके तहत परिभाषित शर्तों के मुताबिक बिना खास लाइसेंस के ही नियंत्रित वस्तुओं के आयात की अनुमति मिल जाएगी। यह प्रबंधन रक्षा सहयोग के बहुआयामी क्षेत्रों में पुख्ता बुनियाद की नींव डालेगा।
भारत अमेरिकी संबंधों में 2 + 2 संवाद की प्रत्यक्ष योगदान के अलावा कुछ अन्य वास्तविक घटनाक्रम भी रहे हैं, जिन्होंने इस फोरम के मुताबिक सफलता को गति प्रदान किया। सितंबर, 2018 में 2 + 2 संवाद के शुभारंभ के मौके पर जिसे अमेरिकी कांग्रेस ने जुलाई-अगस्त में नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट 2019 (एनडीएए-19) विधेयक पारित किया था। इसमें “काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट” (सीएएटीसीए) की धारा 231 के तहत बनाए गए दंडात्मक प्रावधानों में कुछ संभावित राहत प्रदान की जाती है। यह विदेश मंत्रालय द्वारा बड़े रक्षा भागीदारों (भारत) तक इन प्रावधानों को पहुंचाने का प्रयास था, यह टाइटल 22 के अंतर्गत इसे विधायी अधिकार देती है। हालांकि यह प्रावधान अभी तक विदेश मंत्रालय तक नहीं बढ़ाए गए हैं, लेकिन कम से कम इस विचार का जन्म तो हो ही गया है। भारत के पक्ष से, बुनियादी समझोतों तक पहुंचने के निर्णय के राजनीतिक महत्व मिलने के अलावा, यह संवाद 1.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर की नेशनल एडवांस सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम-2 (एनएएसएम-II), खरीद3 और 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि की बहुउद्देशीय हेलीकॉप्टरों 24 एमएच 60 आर (सी हॉक) खरीद4 को सैद्धांतिक अनुमति प्रदान कर दी है।
इसके अतिरिक्त, सेना से सेना के साथ सहयोग पहले से ही जबरदस्त रफ्तार पकड़े हुए हैं। दोनों देशों के सैन्य अभ्यासों की प्रचुरता को और बढ़ाते हुए भारत और अमेरिका के बीच पहली बार तीनों सेनाओं का युद्धाभ्यास ‘टाइगर ट्रंप’ भारत के पूर्वी तट, बंगाल की खाड़ी में, नवंबर 2019 में हुआ था। संपर्क अधिकारी, भारतीय और अमेरिकी नौसेना के साथ संपर्क कर रहे हैं तथा बहरीन एवं हिंद महासागर में भारत के इंफॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर (आईएफसी- आईओआर) के लिए अमेरिकी नेवल फोर्सेस सेंट्रल कमांड (एनएवीसीईएनटी) तैनात किया है। दोनों देशों के बीच खुफिया सूचनाओं एवं समुद्री सूचनाओं को संयुक्त सैन्य सेवाओं और सेवा से सेवा स्तर तक साझा किया जा रहा है। हिंद-प्रशांत कमांड, सेंट्रल कमांड, अफ्रीका कमांड के अंतर्गत अमेरिकी नौसैनिक बेड़े के साथ सहयोग बढ़ाने के मसले पर बातचीत जारी है। इसके पश्चात इस सहयोग को उनकी सेना और वायु सेना के साथ बढ़ाये जाने की योजना है। विशेष अभियान के क्षेत्र में व्यापक सहयोग पर भी विचार किया जा रहा है।
दरअसल, जापान को 2015 से मालाबार सैन्य अभ्यास में शामिल किए जाने तथा रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी को 2020 के दूसरे संस्करण में सम्मिलित किया जाना, भारत अमेरिकी रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने में सीधे तौर पर योगदान किया है। इसका सकारात्मक प्रभाव चतुष्टय (क्वाड) पर भी महसूस किया जा रहा है, जो दूसरे चतुष्टय द्विपक्षीय मंत्रिस्तरीय बैठक (6 अक्टूबर 2020 को टोक्यो में संपन्न) के स्तर और सुरक्षा घटकों को बढ़ाने की दहलीज तक पहुंच गया है.
भारत-अमेरिकी रक्षा सहयोग में विस्तार का क्षेत्र दोनों देशों के रक्षा उद्योगों के विकास, रक्षा नवाचार के क्षेत्र में सहयोग तथा बड़े रक्षा प्लेटफॉर्म की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को अधिक लचीला बनाने तक विस्तारित हो गया है। औपचारिक रूप से रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (डीडीटीआई) को 2014-15 के मध्य में गठन किया गया, जो सालों दर साल मजबूती से विकास किया है और एक ‘मौन-संबल’ यह बड़ी रक्षा खरीदों की योजना और क्षमता विकास सहित विभिन्न क्षेत्रों में अखंडित गतिविधियों के ‘चालक’ के रूप में उभरा है। सुरक्षा की बड़ी परिधि का विस्तार करते हुए हालिया संयुक्त वक्तव्य ने सीमा पार से जारी आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को सीधे तौर पर कसूरवार ठहराया है। और संयुक्त कार्यकारी समूह (जेडब्ल्यूजी) के तहत आतंकवाद प्रतिरोधी अभियान के लिए सूचनाओं को साझा करने का आश्वासन दिया है। इसी तरह की एक रूपरेखा भारत अमेरिकी डिफेंस साइबर संवाद, अंतरिक्ष संवाद और अंतरिक्ष रक्षा सहयोग की संभावनाओं का पता लगाने के लिए बनाई गई है। जुड़ाव के दायरे में विस्तार की तेज रफ्तार को देखते हुए इसे नए अमेरिकी प्रशासन के दौर में भी जारी रहने की उम्मीद है।
आगत का कथन और क्रिस्टल बॉल गेजिंग राष्ट्रीय रणनीति की योजना के अंतर्वस्तु हैं। संभावनाशील भागीदारों या सहयोगियों के बीच “पूर्वानुमेयता और भरोसे” का तत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण विचारों में से एक है आखिरकार, इस संबंध में या परस्पर समझौतों और अंतरआश्रितता शिष्टाचार के अंतर्गत देश एक दूसरे से सशस्त्र प्रणाली, हथियार और युद्धक सामग्री की मांग करता है, जो देश लंबे समय में पुनर्विन्यास, प्रशिक्षण तथा व्यवस्था में समावेश किया हुआ होता है। इसके अलावा भी रक्षा उपकरणों की लाइफटाइम, तीन से चार दशकों तक काम करने की, गारंटी की दरकार होती है। लोकतांत्रिक देशों में अनिश्चितताएं द्विगुणित हुई हैं,जहां सत्ता में काबिज सरकारों और राष्ट्रीय अवधारणाएं गत्यात्मक बनी हुई हैं, जो अप्रत्याशितता का लगातार समर्थन कर रही हैं।
अमेरिकी प्रशासन/ पेंटागन (रक्षा मंत्रालय) द्वारा परिवर्तनकाल के हालिया प्रबंधन के अनुभवों को भारत-अमेरिकी रक्षा संबंधों के बारे में चिंताओं के समाधान में मदद लेनी चाहिए। ओबामा प्रशासन के अंतिम वर्ष, 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी साल जून में अमेरिका की यात्रा की थी। इस अवसर पर अमेरिका ने भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर (एमडीपी) बनाने की घोषणा की थी, जो दोनों देशों के ज्ञात इतिहास में यह पहली ऐसी घोषणा थी। पेंटागन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तत्कालीन निदेशक कीथ वेबस्टर के मुताबिक इस निर्णय और इसको संयुक्त वक्तव्य में शामिल5 करने का कारण था, ‘अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के भीतर तरक्की को एक ठोस रूप प्रदान करना, नीतिगत निर्णय में अग्रिमता लाना, जो अंततोगत्वा नाटो के अंतर्गत अन्य अमेरिकी सहयोगियों के साथ भारत का स्थान सुनिश्चित करने के जरिए उसके साथ द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित करना था। अमेरिकी नीति में यह परिवर्तन भारत को प्रौद्योगिकी हासिल करने और सहयोग के निर्णयों के क्षेत्र में इन देशों के साथ भारत को बराबरी का महत्व देना जिसका अर्थ राजनीतिक, सैन्य और औद्योगिक भागीदारी प्रदान करना था।’ 6. उन्होंने आगे कहा, “ओबामा के राष्ट्रपतित्व कार्यकाल के अवसान और तदनन्तर, समर्थित राजनीतिक रूप से नियुक्त व्यक्तियों के, जिन्होंने इस त्वरित और ऐतिहासिक बदलाव को साकार किया था, जो अमेरिकी दस्तावेजों, बयानों और विधायी के अंतर्गत परिवर्तन के जरिये कर इस प्रगति को परिलक्षित करता है, उन्हें आगे आने वाले नए प्रशासन तक आसान एवं अभिसरण सुनिश्चित करना था, बिना इसकी परवाह किये कि चुनाव में कौन प्रत्याशी विजयी होता है।”7 विगत 4 वर्षों के अनुभवों हमें बताते हैं की यह ‘सेतुबंध-प्रयोग’ सफल रहे हैं।
रक्षा संबंधों में ओबामा प्रशासन की सभी उपलब्धियां नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट (एनडीएए-2017) द्वारा अमेरिकी विधि व्यवस्था में विधिमान्य और संहिताबद्ध कर दिया गया है। इसके पश्चात जैसा कि अनुभवों से जाहिर है कि ट्रंप प्रशासन के पूरे कार्यकाल में भारत अमेरिकी रक्षा और सुरक्षा संबंध का परिपथ सकारात्मक बना रहा है।
हाल ही में, 27 अक्टूबर 2020 को संपन्न हुए 2 + 2 संवाद और इस अवसर पर जारी संयुक्त वक्तव्य को ‘सेतुबंध संक्रमण’ के संदर्भ में रखना अवांतर प्रसंग नहीं होगा। यह संयुक्त वक्तव्य फिर से ‘नए प्रशासन तक निर्बाध और नैरेन्तर्य संक्रमण’ कर सकता है। द्विपक्षीय रक्षा और सुरक्षा संबंधों की अग्रगामी प्रवृत्तियों के लिए एक बुनियादी संदर्भ दस्तावेज उपलब्ध कराता है कि अब इसका कोई मतलब नहीं कि चुनाव में कौन विजयी होता है। यह निरंतरता, संभाव्यता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है।
जैसा कि भारत और अमेरिका ने रक्षा संबंध के लिए नए कदम उठाए हैं, लेकिन दोनों देशों के परंपरागत विचारकों के बीच कुछ निश्चित शंकाएं (तर्कसंगत) भी हैं। भारत की तरफ से कुछ विचारक विश्वास करते हैं कि बुनियादी समझौतों को मान लेने से राष्ट्रीय सुरक्षा हित खतरे में पड़ सकते हैं। इसी तरह के सवाल अमेरिकी द्वारा भी उठाए जाते हैं कि भारत मेजर डिफेंस पार्टनर कि अपनी नई पदवी को युक्तिसंगत बनाने के लिए क्या कर रहा है और क्या वह चाइना से सीधे मुठभेड़ कर सकता है? यह कुछ वास्तविक किंतु कठिन सवाल हैं जिनको एक दूसरे के अहम सरोकारों एवं उनकी अवधारणाओं को परस्पर लोकतांत्रिक ढांचों के अंतर्गत गहरी समझदारी के जरिए बेहतर तरीके से हल किए जा सकते हैं।
जहां तक बुनियादी समझौतों पर दस्तखत करने की बात है, अब भारत की तरफ से यह समझदारी बनी है कि उसके लिए यह प्रक्रियागत लाभ ह।. इसलिए कि भारत के अनुरोध पर लाइसेंस जारी करने, तकनीक देने और उत्पाद (सैन्य उपकरण) की आपूर्ति की प्रक्रिया जिसमें पेंटागन, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय सभी की भूमिका रहेगी, निर्णय को सरल और त्वरित करेगी। यह दोनों भागीदार देशों के बीच खुफिया एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान और उसे क्रियात्मक अंतर सक्रियता के स्तर तक बढ़ाने को औपचारिक और सरल बनाएगी।
जहां तक भारत के चीन के बारे में दृष्टिकोण की बात है, लद्दाख में हालिया आमना-सामना होने बाद भारत ने यह व्यापक रूप से स्वीकार किया है कि चीन उसके लिए प्राथमिक खतरा है। किंतु इसके पहले तक भारत का रक्षा अभिविन्यास बुहान और मालापुरम में अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों में प्रतिरक्षा की रणनीतियों के साथ मूलतः पाकिस्तान केंद्रित ही रहा है। चीन को सीधे खतरा मानने में भारत को एक हिचक रही है और द्विपक्षीय संबंधों से परस्पर सीमा विवाद को अलग रखने का प्रयास सीमा विवाद को नजरअंदाज करने की कोशिश कही जा सकती है जबकि चीन के साथ भारत ने कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध बनाए हैं। अमेरिका एवं चीन के जबर्दस्त आर्थिक अभिसरण को लेकर ग्रुप 2 बनाने की आशंका भी खड़ी की गई थी। चीन की सैन्य आक्रामकता के साथ यह धारणा बदल गई है। इसने एक बिंदु के बाद भारत की मदद ही की है। अब चीन को प्राथमिक खतरा और अनिर्णित सीमा रेखा को सर्वाधिक असुरक्षा का मामला मान लिया गया है।
यद्यपि इस वैश्विक अंतरआश्रितता के वातावरण में चीन, और अमेरिका तथा चीन के बीच कुछ क्षेत्रों में सामंजस्य के साथ बहुत सारे क्षेत्रों में एक दूसरे से संबंध की गुंजाइश है। यद्यपि रक्षा और सुरक्षा के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनके संबंधों में परिवर्तन शायद ही हो। चीन की ताजा कारगुजारी को भारत ने प्राथमिक खतरा माना है, अमेरिका और अन्य क्षेत्रीय पड़ोसी देशों ने भी उसकी यह बात मान ली है।
घनिष्ठ साझेदारी की विकासशीलता के बीच, अमेरिका रूस के साथ भारत के रक्षा संबंधों पर अपनी चिंताएं जाहिर करता रहा है और रूस निर्मित रक्षा प्रणाली हासिल करने पर लगातार सवाल उठाता रहा है। अमेरिका को यह अच्छी तरह से पता है कि भारतीय सेना के साजो-सामान का 60% हिस्सा सोवियत रूस निर्मित हथियारों का है। इसके अलावा, भारत ने रूस के साथ अपने परंपरागत प्रकृति के संबंधों तथा एससीओ, आरआईसी एवं ब्रिक्स के इर्द-गिर्द बने मौजूदा क्षेत्रीय गत्यात्मकता को खुलकर स्वीकार करता रहा है। अमेरिका के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह जुड़ाव हिंद-प्रशांत महासागर में साझा रणनीतिक दृष्टिकोण और अभिसरण के प्रति बिना पूर्वाग्रह के हैं, जिसे भारत और अमेरिका ने गढ़ा है।जहां तक हथियारों को हासिल करने की चिंता है, तो भारतीय सैन्य साजो-सामान रूस और अमेरिकी/ पश्चिमी हथियार प्रणालियों से लगभग अलहदा है।.विभिन्न स्रोतों से हासिल प्रौद्योगिकियों की सुरक्षा के बारे में भारत बार-बार आश्वासन दोहराता रहा है.
फिर भी दोनों देशों के बीच विचलन का एक क्षेत्र रहा है, भारत जहां अपनी भू सीमाओं पर प्राथमिक रूप से ध्यान देता रहा है, चाहे वह चीन के साथ लगी वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा (एलएसी) हो या पाकिस्तान के साथ सीमा नियंत्रण रेखा (एलओसी) अमेरिका को यह स्थिति हिंद महासागर के समुद्री क्षेत्र में भारत की प्रतिबद्धता के प्रति विचलन लगती है। चीन के साथ मौजूदा गतिरोध तथा जमीनी सीमाओं पर दोतरफा खतरा भारत की विकट परिस्थिति के बारे में स्पष्ट विचार दिया है। जमीनी सीमाओं पर बने खतरों को दूर करना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का मामला है और इसे सरजमीन पर ‘भारतीय पांवों के निशान’ के जरिए हल किया जा सकता है। इस संदर्भ में अमेरिका का समर्थन क्षमता संवर्धन के क्षेत्र में, खासकर खुफिया निगरानी और टोह ( आईएसआर), खुफिया जानकारियों को साझा करने, बहुस्तंभीय सेना के प्रावधान, खासकर, गैर मानव हवाई प्रणाली, स्ट्रैटेजिक और टैक्टिकल एअरलिफ्टिंग इत्यादि क्षेत्रों में मूल्यवान होगा। इन चिंताओं को दूर करते हुए, कि भारत हिंद-प्रशांत के समुद्री आयाम में चीन से खतरों के प्रति सजग है और साथ ही इस क्षेत्र, खासकर हिंद महासागर, में अपनी क्षेत्रीय जवाबदेहियों के प्रति भी सजग है। प्रतिबद्धता में किसी विचलन से ज्यादा रक्षा बजट का संकुचन प्राथमिकताओं के चयन और परिचालन को ज्यादा प्रभावित करता है।
भारत और अमेरिका इस बात को लेकर सजग हैं की अर्थवान प्रयासों के बावजूद ‘रणनीतिक सहयोग का ढांचा’ बनाने की बेहद जरूरत है, जो ‘रक्षा संबंधों के परिपथ’ को परिभाषित करने के लिए अपरिहार्य है, जिस पर अभी काम चल रहा है। यह एक रोडमैप है, जिससे कि सभी तरह की क्षमताओं के विकास, प्रशिक्षण और अभ्यासों की प्रकृति, बड़ी आपूर्ति और तकनीकी हस्तांतरण, रक्षा उद्योग का विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा स्थापत्य का विकास और अंतरपरस्परता आदि ऐसे अनेक निर्णय करने हैं। अब अपेक्षित ढांचा द्विपक्षीय समझदारी से विकसित होगा, जिनमें वे मामले भी शामिल हैं, जिन्हें लेकर दोनों की अवधारणाओं में एक विचलन दिखाई देती है। भारत और अमेरिका के लिए दोनों के समान लोकतांत्रिक देश होने की समान योग्यता है, जिसके अंतर्गत दोनों एक दूसरे की संप्रभुता के प्रति सर्वोच्च आदर का भाव रखते हैं. 8 अंततोगत्वा, यह रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि रक्षा और सुरक्षा संबंध अन्य क्षेत्रों में पहले से चले आ रहे अन्य विवादित मसलों के निपटान के लिहाज से संभावनाशील हैं। इस पृष्ठभूमि में,यह साझेदारी सच में क्षमताशील है।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://images.news18.com/ibnlive/uploads/2020/10/1603800114_india-us-1.jpg?impolicy=website&width=534&height=356
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