भारत में चीन के राजदूत सुन वेइदोंग ने 30 जुलाई 2020 को दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज में एक अहम भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गलवान घटना के बाद भारत-चीन रिश्तों की मौजूदा स्थिति के बारे में बात की। उस घटना में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए और अपुष्ट संख्या में चीनी सैनिक भी मारे गए।
भाषण उस समय दिया गया, जब दोनों पक्ष सीमा पर सैन्य बल कम करने और टकराव से दूर रहने के लिए बातचीत कर रहे हैं। यथास्थिति बहाल करने के मोर्चे पर प्रगति सुस्त है और चीन की गंभीरता तथा मंशा पर इससे सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने एलएसी पर कई जगह खास तौर पर लद्दाख में पेंगोंग त्सो में तंबू गाड़ लिए हैं।
लद्दाख में एलएसी पर झड़प 1967 के बाद अपनी तरह की पहली घटना थी और भारतीय जनता ने उसे रिश्तों में ‘मोड़’ माना है। भारत-चीन संबंध नए सिरे से तय करने की मांग लगातार उठी है। सरकार ने अभी तक सतर्कता के साथ कदम बढ़ाए हैं।
राजदूत ने अपने भाषण में विभिन्न मुद्दे शामिल किए मगर ‘मोड़’ यानी टर्निंग पॉइंट वाला विचार छोड़ दिया और चेतावनी दी कि तिब्बत, हांगकांग, शिनच्यांग और दक्षिण चीन सागर पर भारत ने अपनी नीतियां बदलीं तो उसे चीन के अंदरूनी मामलों में दखल माना जाएगा।
राजदूत ने भारत-चीन रिश्तों में संभावनाओं और वैश्विक तथा क्षेत्रीय स्थिरता के लिए उनके महत्व के बारे में कई सकारात्मक बातें कहीं। उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को दोनों के लिए फायदेमंद बनाने की दिशा में काम करने का आह्वान किया। उन्होंने सहयोग पर जोर देने और सीमा विवाद को आपसी सहमति वाली द्विपक्षीय व्यवस्था के तहत ही सुलझाने पर दोनों नेताओं की ‘रजामंदी’ का भी जिक्र किया ताकि सीमाओं पर “शांति” बनी रहे। उन्होंने मौजूदा सीमा विवाद को “अस्थायी समस्या” बताया। उन्होंने भारत से इन समस्याओं के परे देखने और द्विपक्षीय संबंधों को आगे ले जाने की मोदी-शी सहमति को अमल में लाने के लिए काम करने का अनुरोध भी किया।
जैसी उम्मीद की जा सकती थी, एलएसी में एकतरफा बदलाव लाने की चीनी कोशिश पर जरा भी अफसोस नहीं जताया गया था। उलटे राजदूत ने गलवान की घटना का आरोप भारत के मत्थे मढ़ दिया। उन्होंने परोक्ष रूप से भारत पर आरोप लगाया कि उसकी हरकतों से सीमा पर शांति भंग हुई है। चीन की कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है। चीनी जवानों द्वारा रचा गया लद्दाख सैन्य टकराव इसका जीता-जागता उदाहरण है।
मतभेदों को उचित तरीके से सुलझाने के पुराने नुस्खे दोहराकर राजदूत ने इशारा किया कि इन घटनाओं के कारण चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा स्पष्ट करने की जल्दबाजी नहीं करेगा या सीमा के प्रश्न को जल्दबाजी में नहीं सुलझाएगा क्योंकि उनके हिसाब से यह प्रश्न इतिहास से जुड़ा है। भारत के लिए सीमा विवाद सुलझाना अहम है मगर चीन को इसकी कोई जल्दी नहीं है।
राजदूत इसी बात से संतुष्ट थे कि स्थिति नियंत्रण में आ रही है, सेना पीछे हट रही है और गर्मागर्मी भी कम हो गई है। हकीकत यह है कि सेना के हटने और रुख नरम करने का काम बहुत धीमे हो रहा है तथा चीनियों ने कुछ जगहों पर डेरा जमा लिया है। इस अहम मसले पर इतनी धीमी प्रगति से भारत में बहुत बेचैनी है।
भाषण से संकेत मिला कि भारत और चीन के बीच इतनी बड़ी सैन्य झड़प के बाद भी द्विपक्षीय रिश्तों पर चीन का रुख बिल्कुल नहीं बदला है। पिछले दो महीनों में सीमाओं पर हुई घटनाओं के बारे में दोनों देशों की समझ एकदम विपरीत है।
याद रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख में हाल ही में चीन का स्पष्ट नाम लिए बगैर कहा था कि भारत ‘विस्तारवाद’ का विरोध करेगा। उनके बयान का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए चीनी राजदूत ने चीन पर ‘विस्तारवाद’ और दादागिरी के आरोप को खारिज किया। उन्होंने कहा कि दादागिरी चीन के खून में ही नहीं है।
चीन के राजदूत ऊपर से तो समझदार और दोस्ताना नजर आए मगर उन्होंने काफी कठोर संदेश दे दिए। भाषण को पेइचिंग से हरी झंडी मिली होगी और उसका उद्देश्य भारत को ये संदेश देना थाः
चीनी राजदूत इतने सयाने हैं कि उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि गलवान घटना के बाद भारत में चीन के प्रति जनता का रुख काफी कठोर हो चुका है। भरोसा और भी दरक चुका है। भारत सरकार ने चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह अभूतपूर्व कदम है। अभी और कदम उठाए जाएंगे। भारत की नीति में यह बड़ा बदलाव है। भारतीय जनता का भरोसा दोबारा जीतना अब चीन की जिम्मेदारी है।
चीन के राजदूत ने यह नहीं बताया कि चीन सीमा विवाद को सुलझाना क्यों नहीं चाहता? क्या इसीलिए क्योंकि चीन भारत को हमेशा दबाव में रखना चाहता है? अगर अस्पष्ट वास्तविक नियंत्रण रेखा की वजह से सीमा पर लोग मर रहे हैं तो द्विपक्षीय संबंधों में अकूत संभावना की बात करने का क्या मतलब है?
चीन अपने राजदूत की तरह यह बहाना नहीं बना सकता कि गलवान घटना तथा एलएसी पर झड़प ‘अस्थायी मुश्किलें’ भर थीं। इसके उलट भारत-चीन संबंधों में बहुत कुछ बदल चुका है। भारत पर अपनी नीतियों में बदलाव का दबाव होगा।
चीनी राजदूत का प्रमुख संदेश यह है कि भारत को हालिया घटनाओं को भुलाकर आगे बढ़ना चाहिए। यह आसान नहीं होगा। संबंध पहले की तरह चलाते रहने का विकल्प शायद भारत के लिए अब नहीं होगा।
वुहान और मामल्लापुरम की अनौपचारिक शिखर बैठकों में यह छिपाने का प्रयास हुआ कि भारत तथा चीन के बीच सामरिक मुकाबला है। चीन की हरकतों ने वुहान की भावना का उल्लंघन किया है। भारत चीन के साथ सहयोग भरे संबंध चाहता है मगर वह नई हकीकत तथा स्पष्ट संकेतों को अनदेखा नहीं कर सकता। लगातार आक्रामक होते जा रहे चीन से निपटने के जो भी जरूरी होगा, भारत वह करेगा।
राजदूत के भाषण से भारतीय नीति निर्माताओं की आंखें खुल जानी चाहिए। चीन द्विपक्षीय संबंधों में अपनी ही चलाना चाहता है। दोनों पक्षों के बीच बढ़ रही स्पर्द्धा को देखते हुए भारत को तेज-तर्रार बनना होगा। ताली कभी एक हाथ से नहीं बज सकती।
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