अयोध्या में 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर भूमि पूजन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीज भाषण में कई संदेश थे, जिन्हें समझने और विश्लेषण करने की जरूरत है। राम मंदिर के निर्माण का आरंभ आजाद भारत के इतिहास में बड़े बदलाव वाला ऐतिहासिक क्षण है। भूमि पूजन के साथ ही राम मंदिर निर्माण के लिए छेड़े गए उस आंदोलन का पटाक्षेप हो गया, जिसमें कई लोगों ने अपने प्राण न्योछावर किए थे। आशा है कि उच्चतम न्यायालय के बाध्यकारी निर्णय के बाद बन रहा मंदिर समाज में ध्रुवीकरण को समाप्त करेगा और कटु इतिहास को पीछे छोड़कर देश को आगे ले जाएगा।
प्रधानमंत्री के भाषण में राजनीतिक और आध्यात्मिक बातें थीं। राजनीतिक संदेश यह था कि हमें सहयोग, समावेश और भाईचारे की भावना के साथ नए भारत के निर्माण के लिए मिलकर काम करना चाहिए। मंदिर को मरहम का काम करना चाहिए। भाषण के आध्यात्मिक अंश में उन शाश्वत और सार्वभौमिक मूल्यों का उल्लेख था, जिन पर भगवान राम अडिग रहे थे और अतीत की तरह आज भी जो प्रासंगिक हैं।
भूमि पूजन के साथ ही राम जन्मभूमि आंदोलन भी संपन्न हो गया, जिसे उस स्थान पर राम मंदिर बनाने के लक्ष्य के साथ आरंभ किया गया था, जिस स्थान पर खड़े मंदिर को आक्रांताओं ने 16वीं शताब्दी में मस्जिद बनाने के लिए नष्ट कर दिया था। मस्जिद या विवादित ढांचे को भी 1992 में कारसेवकों ने ढहा दिया, जिसके बाद देश के विभिन्न भागों में हिंसा आरंभ हो गई। भूमि पूजा होने के बाद अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण होगा। राम जन्मभूमि आंदोलन से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बहुत राजनीतिक लाभ हुआ और प्रधानमंत्री मोदी के दो कार्यकालों में वह संसद में बहुमत के साथ सबसे मजबूत राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी। शुरुआती चरण में आंदोलन बहुत उग्र था, जिसमें हिंसा हुई और ध्रुवीकरण भी हुआ। उसके बाद न्यायिक प्रक्रिया समाप्त होने की लंबी प्रतीक्षा की गई। उच्चतम न्यायालय ने 2019 में फैसला सुनाया।
नया संदेश गढ़ते हुए प्रधानमंत्री ने राम जन्मभूमि आंदोलन की तुलना भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से की, जिसमें बड़ी संख्या में भारतीयों ने अपने प्राण दिए। मंदिर के लिए संघर्ष पांच सदी से भी पुराना हो गया है, स्वाधीनता संग्राम से बहुत पुराना। प्रधानमंत्री ने संकेत दिया कि राम जन्मभूमि आंदोलन का स्वरूप बदल जाएगा। आशा है कि मंदिर का निर्माण आरंभ होने के साथ ही आंदोलन में शामिल आक्रामक तत्व नरम रुख अपना लेंगे।
पांडित्यपूर्ण भाषण में प्रधानमंत्री ने भगवान राम और रामराज्य के मूल्य समझाए तथा उनकी सराहना की। राम को ईश्वर ही नहीं माना जाता बल्कि राष्ट्रीय एकता तथा सभी क्षेत्रों और धर्मों में भाईचारे का प्रतीक भी माना जाता है, जिनकी पूरे विश्व में मान्यता है। इस प्रकार राम के रूप में भारत के पास एक और राष्ट्रीय एवं वैश्विक प्रतीक हैं, जिनकी जड़ें प्राचीन सभ्यता एवं विरासत में हैं। राम का करुणा, न्याय, बंधुत्व, न्याय, आत्मसंयम, सेवा, सामाजिक साहार्द, दरिद्रों का विशेष ध्यान, सत्य एवं ईमानदारी का संदेश सार्वभौमिक है और केवल हिंदुओं को नहीं बल्कि सभी को उसका अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा, “राम हर जगह हैं, राम सभी के हैं।” उन्हें विश्वास था कि मंदिर निर्माण पूरे भारत को एकता के सूत्र में बांध देगा। इससे बंधुत्व एवं सौहार्द उत्पन्न होगा।
यह संदेश भी है कि आंदोलन की सफलता ने भारतीयों को कठिन कार्य का बीड़ा उठाने का आत्मविश्वास प्रदान किया है। मंदिर निर्माण से भविष्य में आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का विश्वास उत्पन्न होगा। राम के चरित्र से आधुनिक, आकांक्षाशील भारत का विकास होगा। पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक आकांक्षाओं के बीच किसी तरह का विरोधाभास नहीं है। मंदिर सभी भारतीयों के लिए शक्ति का स्रोत होगा।
मोदी ने कहा कि राम के संदेश को रामायण के अनगिनत रूपों के माध्यम से पूरी दुनिया में समझा जाता है और रामायण आज भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पढ़ी जाती है। मानवता के कल्याण के लिए राम के मूल्यों को बल प्रदान करना भारतीयों का दायित्व है। अपने भाषण के दौरान मोदी ने प्रत्यक्ष रूप से या विभिन्न स्थानों तथा उनके धार्मिक महत्व का उल्लेख कर परोक्ष रूप से प्रमुख धर्मों को भी याद किया।
मोदी के संदेश ने भारत में धर्मनिरपेक्षता के अर्थ पर फिर बहस छेड़ दी है। विरोधियों ने प्रधानमंत्री के रूप में किसी धार्मिक समारोह में भाग लेने पर मोदी की निंदा की है। उन्होंने कहा कि इस हरकत से धर्मनिरपेक्षता के विचार को ठेस पहुंची है। वे भूल जाते हैं कि अतीत में भी उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति सार्वजनिक रूप से धार्मिक समारोहों में भाग ले चुके हैं। दूसरा पक्ष कहता है कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द बाद में जोड़ा गया। भारत में यूरोपीय शैली की धर्मनिरपेक्षता - चर्च को राज्य से एकदम अलग कर देना - असंभव है। उदाहरण के लिए सरकार हज यात्रियों को सब्सिडी देती आ रही है। भारत के सभ्यतागत मूल्यों और चरित्र को नकारने तथा निष्प्रभावी बनाने वाली धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए बिल्कुल भी सही नहीं हो सकती। हिंदु धर्मनिरपेक्ष धर्म है, जो किसी अन्य धर्म को अस्वीकार नहीं करता।
कुछ लोगों को डर है कि देश में बहुसंख्यकवाद बढ़ रहा है और लोकतंत्र खतरे में है। उनका कहना है कि 5 अगस्त को हिंदुत्व की विचारधारा पर आधारित नए गणतंत्र का जन्म हो गया। राम मंदिर का निर्माण उसी का परिचायक है। राम मंदिर के समर्थक इस आरोप को यह कहकर नकारते हैं कि भारत का संविधान ही सर्वोपरि है। कुछ नहीं बदला है। मंदिर का निर्माण लंबी बहस और प्रतीक्षा के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिए जाने के उपरांत ही किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के पीठ ने अच्छी तरह विचार करने के लिए सर्वसम्मति से यह निर्णय किया। बहुसंख्यकवाद का आरोप अनावश्यक प्रतिक्रिया का परिणाम है।
ये बहस चलती रहेंगी। कभी-कभी उनमें कड़वाहट भी आ जाएगी। सौभाग्य से देश में अभी तक शांति बनी हुई है और आगे भी बनी रहने की संभावना है। जन सामान्य को इस बात से राहत मिली है कि विवाद सुलझ गया। राजनेता और कथित ‘एक्टिविस्ट’ लड़ते रहेंगे। अधिकतर राजनीतिक दलों ने यह बात स्वीकार कर ली है कि राम भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक हैं। करोड़ों भारतीय उन्हें चाहते हैं, उनकी भक्ति करते हैं। इससे कोई असहमत नहीं है। आलोचना पूरी तरह राजनीतिक है और मुक्त लोकतांत्रिक समाज में ऐसी आलोचना अपेक्षित भी होनी चाहिए। लेकिन अतीत से एकदम उलट किसी भी राजनीतिक दल ने मंदिर निर्माण का विरोध नहीं किया है।
भविष्य में क्या होगा, यह एकदम सटीक तरीके से नहीं बताया जा सकता। लेकिन संकेत उत्साहवर्द्धक हैं। जिन्होंने आंदोलन में प्रतिभागिता की, यदि वे विजयोल्लास छोड़ दें और उन लोगों को गले लगाएं, जो अप्रसन्न या दुखी हैं तो मंदिर से मेलजोल बढ़ेगा। लेकिन राजनीति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अपने भाषण में मोदी को विश्वास था कि मंदिर निर्माण से देश एक हो जाएगा।
गांधीजी रामायण की बात करते थे। रामराज्य का अर्थ निष्पक्ष, न्यायपूर्ण एवं मूल्य आधारित सुशासन है। वह सुशासन समावेशी होता है। नए भारत की नींव इन्हीं मूल्यों से रखी जानी चाहिए। प्रत्येक भारतीय को रामराज्य की आकांक्षा है। कौन नहीं करेगा? हमेशा की तरह मंशा और मूल्यों का क्रियान्वयन सबसे महत्वपूर्ण है।
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