लॉकडाउन का पहला सप्ताह: आशा के बीच मिलेजुले परिणाम
Arvind Gupta, Director, VIF

चार-घंटे के नोटिस पर 3 सप्ताह के एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करने में साहस और दृढ़ विश्वास की आवश्यकता होती है। पीएम मोदी ने 24 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान इन गुणों को पूर्ण रूप से प्रदर्शित किया जब उन्होंने इस अभूतपूर्व कदम के कारणों को समझाया। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए और सख्त रूप से सामाजिक दूरी बनाए रखने के उनके तर्क से आश्वस्त, देशवासियों ने उनका पूरा समर्थन किया है।

लेकिन, कुछ दिनों के भीतर, यह स्पष्ट हो गया कि सरकार ने लॉकडाउन को लागू करने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की थी। लाखों अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक, जो आवास, भोजन और नौकरियों के अभाव में लॉकडाउन की कठिनाइयों से बचने के लिए पैदल ही अपने गाँवों की ओर प्रस्थान करने लगे। हजारों लोगों के अपने गाँवों की तरफ जाते हुए देखने वाला यह मार्मिक दृश्य लंबे समय तक हमारी स्मृति में बने रहेंगे। न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारों को इस तरह की कोई अपेक्षा थी और न ही इसपर उन्होंने कोई योजना बनाई थी। इनमें से कुछ श्रमिक शायद संक्रमित हो गए हों। कम से कम, वे अपने गांवों में रहने वाली आबादी के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। उनके समुदायों में वायरस के प्रसार के संबंध में श्रमिकों के प्रवास के प्रभाव का आकलन अभी किया जाना बाकी है। इतनी विकट स्थिति थी कि प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन के कारण आबादी के सबसे गरीब तबके को हुए कष्ट के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी, लेकिन लॉकडाउन के निर्णय को सही ठहराया।

13-15 मार्च को दिल्ली के तब्लीगी जमात मरकज़ में हुआ धार्मिक आयोजन, जो दिल्ली सरकार के बड़े समारोहों के निषेध के आदेशों की अवहेलना करता है, यह आयोजकों द्वारा नागरिक जिम्मेदारियों का पूरी तरह से अवहेलना को दर्शाता है। उनके कार्यों ने Covid19 संक्रमण के संबंध में राष्ट्रभर में फैली विशाल आबादी को खतरे में डाल दिया है। इनमें से कई लोग कोरोना वायरस संक्रमित देशों से आए थे। विभिन्न राज्यों में संक्रमण में आई वृद्धि तब्लीगी जमात धार्मिक आयोजन में भाग लेने वाले लोगों से जुड़ी हुई है। इसके आयोजकों के खिलाफ कानून तोड़ने के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया है, यह भी आश्चर्यजनक है कि पुलिस स्टेशन मरकज़ के बगल में स्थित था, जहां धार्मिक सभा आयोजित की जा रही थी। फिर भी, पुलिस ने सभा को रोकने के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की। यह देखना बाकी है कि लापरवाही और आपराधिकता के इस भयानक कार्य की देश को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। इससे भी बुरा यह है कि इस घटना को सांप्रदायिक रूप दिया गया। फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के सबक को भुला दिया गया।

यह ध्यान देने योग्य था कि अस्पताल, स्वास्थ्य देखभाल में लगे कार्यकर्ता, डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिक्स जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए अतिरिक्त और निस्वार्थ रूप से कार्य कर रहे हैं। उनके कार्य आसान नहीं हैं। मास्क, वेंटिलेटर, पर्सनल प्रोटेक्शन गियर्स वगैरह की कमी ने डॉक्टरों और कर्मचारियों को गंभीर खतरे में डाल दिया है। इन कमियों को दूर करने के लिए कदम उठाए गए हैं। सरकार और उद्योग जगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बड़ी संख्या में उपकरणों का उत्पादन शुरू करने के लिए एक-दूसरे के साथ बातचीत कर रहे हैं। सरकार द्वारा आवश्यक उपकरणों की खरीद के लिए टेंडर मंगाए गए हैं। भारतीय उद्योग इस तरह के उपकरणों के निर्माण का काम तेज गति से कर रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने उन वेंटीलेटर्स के डिज़ाइन को स्वीकृति दे दी है, जो उन्होंने उद्योग जगत को निर्माण के लिए मुफ्त में विकसित किया था। हालांकि, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के विघटन का खतरा हमेशा मौजूद है।

संकट के समय मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। फेक न्यूज खुलेआम चल रही है। सौभाग्य से, मुख्यधारा के मीडिया ने भारत और विदेशों के शीर्ष डॉक्टरों और विशेषज्ञों के साथ चर्चा और फोन-इन कार्यक्रमों का आयोजन करके वायरस के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अच्छा काम किया है। बड़े पैमाने पर, राजनीति को चर्चाओं से बाहर रखा गया है, हालांकि यह देखना है कि क्या मीडिया द्वारा दिखाया गया यह संयम आगे भी जारी रहेगा, विशेष रूप से, मरकज की घटना के बाद।
वायरस के परीक्षण की आवृत्ति के संबंध में बहस सप्ताह भर चलती रही। इसके संबंध में मत उन लोगों में विभाजित है, जिसमें एक वर्ग ने अधिक परीक्षण का पक्ष लिया और दूसरी ओर जिन्होंने कहा कि यह भारत जैसे आकार वाले देश में संभव नहीं है। क्या संक्रमित लोगों की संख्या व्यापक परीक्षण के अभाव में विश्वसनीय है? क्या वायरस समुदाय के बीच फैल गया है? इन सवालों के कोई स्पष्ट जवाब नहीं थे और आने वाले दिनों में इस पर बहस होने की संभावना है। सरकार ने कहा कि भारत में सामुदायिक प्रसार अभी तक नहीं हुआ है। वायरस अपेक्षाकृत नया है और अभी भी उसके व्यवहार पर रिसर्च अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है। अभी तक इसका कोई इलाज या दवा नहीं है। वैक्सीन कम से कम 12 से 18 महीने अब भी दूर है। जिस तरह से वायरस फैल रहा है उसके बारे में पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं है। नतीजतन, यहां तक कि विशेषज्ञ भी अनिश्चित हैं कि भविष्य में वायरस कैसी प्रतिक्रिया देगा।

सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा के बाद कई राहत उपाय किए हैं, जिसमें महामारी और कर व्यवस्था से निपटने के लिए 15,000 करोड़ का फंड आवंटित किया गया है। 1.7 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज समाज के सबसे गरीब तबके के लिए है। इन उपायों की सराहना की गई, लेकिन यह भी महसूस किया गया कि वायरस के कारण होने वाली गंभीर अव्यवस्था से प्रभावित लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह काफी नहीं है। अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को तत्काल समर्थन की आवश्यकता है। बेरोजगारी बढ़ने की संभावना है। वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई है। भारत की आर्थिक वृद्धि के और नीचे जाने की संभावना है। सरकार द्वारा गठित आर्थिक कार्य बल (Economic Task Force) को अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अधिक राहत उपायों और विश्वसनीय योजनाओं के साथ आने की आवश्यकता है।

कई लोगों ने यह महसूस किया है कि स्पेन, इटली, अमेरिका और अन्य देशों में वायरस के कारण हुई घातक तबाही की तुलना में, भारत में यह सक्रिय मामलों की संख्या और मृत्यु दर दोनों रूपों में फैला है। भारत में मामलों की संख्या अब भी 2000 से नीचे है और हताहतों की संख्या 100 से नीचे है। ये संख्या ऊपरी स्तर को दर्शा रही है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भारत को बदतर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। लॉकडाउन को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इसके सामुदायिक प्रसार को रोकना होगा। लॉकडाउन के पहले सप्ताह के दौरान, संक्रमण की संख्या तेजी से बढ़ी। इसलिए अगले दो सप्ताह महत्वपूर्ण हैं।

नई जानकारी के बाद सामने आने के बाद भारत को वायरस से निपटने की अपनी रणनीति की लगातार समीक्षा करनी होगी। समस्या के समाप्त होने का अभी तक कोई प्रमाण नहीं है। हालांकि, उम्मीद है कि लॉकडाउन के दो सप्ताह बाद सकारात्मक असर दिखने शुरू हो जाएंगे। उम्मीद है कि समय पर किए गए कदमों के कारण भारत को अपेक्षाकृत कम नुकसान की स्थिति में सक्षम हो सकता है। चिंता यह है कि इसमें बढ़ोतरी से कैसे निपटा जाए, क्या हमारा स्वास्थ्य तंत्र, जिसके लिहाज से अभी सबसे अच्छा समय है, क्या रोगियों के बढ़ते भार को सहन करने में सक्षम है।

कोरोनो वायरस के समय में इस बात पर चर्चा भी आरंभ हो गई है कि कोरोनो वायरस के बाद दुनिया की क्या स्थिति होगी। वायरस के प्रकोप की जानकारी छिपाने और अब खुद को दुनिया के रक्षक के रूप में पेश करने के लिए चीन की कड़ी आलोचना की गई है। उसने यूरोप, दक्षिण एशिया और अफ्रीका सहित अन्य देशों के लिए चिकित्सा उपकरणों और डॉक्टरों की टीमों को भेजने के तरीके को उजागर करते हुए प्रोपेगेंडा चलाकर प्रचार किया। लेकिन, यह पता चला कि परीक्षण किट और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जिनकी आपूर्ति की गई थे, उनमें से कई खराब क्वालिटी के थे। इसके बावजूद, देशों का चीन की ओर रुख करना जारी है कि उन्हें जो भी मदद मिल जाए, क्योंकि चीन चिकित्सा उपकरणों का सबसे बड़ा निर्माता है। शुरुआती दौर में संकट से निपटने के तरीकों पर चीन की आलोचना नहीं करने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भी तीखी आलोचना हुई।

शक्तिशाली संयुक्त राज्य अमेरिका वायरस से पीड़ित हो गया है। शुरुआती चरणों में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने वायरस की गंभीरता को कम करके आंका और इसे रोकने के लिए कोई अग्रिम उपाय नहीं किया। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि वायरस के चरम पर पहुंचने से पहले अमेरिका में 100,000 से 200,000 लोग मर सकते हैं। नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के कारण, राष्ट्रपति ट्रम्प का भाग्य अधर में लटका हुआ है।

पश्चिम, अपने उन्नत स्वास्थ्य प्रणालियों, उद्योग, अनुसंधान और विकास के बावजूद, संकट से घिर चुका है। हर दिन, इन देशों में हजारों लोग मर रहे हैं। यह अकल्पनीय है। कोरोना वायरस के बाद की दुनिया में, देशों को इस बात पर स्थान दिया जाएगा कि वे संकट से कैसे निपटे थे, अपनी सैन्य या आर्थिक ताकत के लिए नहीं।

स्वास्थ्य संकट के साथ-साथ गंभीर आर्थिक संकट भी आया है। वायरस मर सकता है, लेकिन आर्थिक व्यवधानों के परिणाम लंबे समय तक हमारे बीच रहेंगे। यात्रा, नागरिक उड्डयन, पर्यटन, हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र वायरस से तबाह हो गए हैं। दुनियाभर में बाजार डूब गए हैं। तेल की कीमतें ऐतिहासिक रूप से नीचे गिरी हुई हैं। वर्तमान आर्थिक संकट को 2008-2009 के वित्तीय संकट से भी बदतर माना जा रहा है। आईएमएफ ने आकलन किया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में है और 80 से अधिक देशों ने तत्काल सहायता के लिए आईएमएफ से संपर्क किया है। जी -20 की संकट से निपटने के लिए किसी सार्थक पहल के साथ आगे आने की इच्छा थी। लेकिन वास्तव में, अधिकांश देश स्वयं संकट से निपटने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, जो अपने चरम पर होना चाहिए था, वह अनुपस्थिति के निकट है।

हर कोई वायरस से प्रभावित हुआ है। इसने भारत में तीव्र सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को उजागर किया है। एक तरफ, लाखों श्रमिक, भोजन के अभाव में पैदल यात्रा कर अपने घरों की ओर प्रस्थान कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसी खबर भी थी कि पश्चिमी देशों के शिक्षण संस्थानों में फंसे बच्चों को निकालने के लिए सुपर-रिच ने चार्टर्ड प्लेन की व्यवस्था की थी। असमानताओं को कम करना, सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना अब से सरकार के की प्राथमिकता में होनी चाहिए।

भारतीय आर्थिक मॉडल को फिर से देखने की जरूरत है। महत्वपूर्ण कच्चे माल सहित सभी प्रकार के सामान के लिए चीन पर भारत की निर्भरता ने भारतीय आर्थिक रणनीति की कमजोरियों को बुरी तरह से उजागर किया है। महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, हमें प्रयास करना चाहिए और आत्मनिर्भर बनना चाहिए। इसके अलावा, अनौपचारिक क्षेत्र जो कि अर्थव्यवस्था के 90 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार है, बहुत लंबे समय से उपेक्षित रहा है। बढ़ती अर्थव्यवस्था के लाभों को समान रूप से साझा किया जाना चाहिए। अनौपचारिक क्षेत्र और समाज के गरीब वर्गों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। संकट के समय देखभाल के लिए परिवारों की क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।

यह स्पष्ट हो रहा है कि सामाजिक संस्थाओं की मदद के बिना किसी भी सरकार के लिए इतने बड़े अनुपात के संकट को संभालना मुश्किल होगा। लोग विशेष प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति निधि (पीएम केयर फंड) के माध्यम से राहत में योगदान दे रहे हैं। कई जमीनी स्तर के सामाजिक संगठन भोजन, दवा और आश्रय प्रदान करके गरीबों की मदद कर रहे हैं। हमें एक मजबूत, भरोसेमंद सरकार-सामाजिक संस्थाओं की साझेदारी की आवश्यकता है, जो पारस्परिक रूप से मजबूत हो। स्वैच्छिकता (Voluntarism) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

यह असामान्य नहीं है कि वर्तमान में युद्ध जैसी स्थिति के दौरान, नागरिकों को अपनी गतिविधियों और व्यवहारों पर प्रतिबंधों को स्वीकार करना होगा। भारत की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर अपने विश्वास को पुनः दोहराया है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना भी उतना ही आवश्यक है कि संकट के समय देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान न पहुंचे। साथ ही, नागरिकों को अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए और नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह कठिन समय में भी नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए प्रयास करना जारी रखे।

हम अभी भी संकट के बीच में हैं। लॉकडाउन के प्रभावों की पहचान हम कुछ सप्ताह पहले ही कर पाएंगे। यदि संक्रमण की संख्या स्थिर हो जाती है, तो भारत के पास ठीक होने का समय होगा। जाहिर है, सरकार संकट से निपटने के लिए तत्काल उपायों पर केंद्रित है। हालाँकि, संकट लम्बा हो सकता है और हमें बेहतर तैयारी के लिए दीर्घकालिक समाधान के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए। भारत के लिए यह सोचने का एक अच्छा समय है कि वह संकट को एक अवसर में कैसे बदल जा सकता है, अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार करके, सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों को संबोधित करके, अनौपचारिक क्षेत्र को मजबूत करके, अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करके और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रौद्योगिकी में विकास कैसे कर सकता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि हम इस दौरान सामाजिक सामंजस्य बनाए रखें। अधिक ध्यान समाज के सबसे कमजोर वर्गों पर दिया जाना चाहिए। कई संकेतों के बावजूद, हमने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। हमें महामारी संकट के राष्ट्रीय सुरक्षा पहलुओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। एक मजबूत और संवेदनशील नेतृत्व, जिस पर लोगों का भरोसा हो, इस समय यह आवश्यक है।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://akm-img-a-in.tosshub.com/indiatoday/images/story/202003/PTI29-03-2020_000025A-770x433.jpeg?g53yTb3r8wyd0CjJ7NjwUlV_GRr8CAPC

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