प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के न्योते पर 4-5 सितंबर 2019 को ईस्टर्न इकनॉमिक फोरम की पांचवीं बैठक के मुख्य अतिथि के रूप में व्लादीवोस्तोक गए। व्लादीवोस्तोक में 20वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक हुई, जिसके बाद विस्तृत संयुक्त बयान जारी किया गया।
दो मुख्य बातें हैं। पहली, रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र को व्यवस्थित तरीके से द्विपक्षीय समीकरण में शामिल कर ली गई है। इससे द्विपक्षीय संबंधों को बल मिलेगा। दूसरी, रूस का सुदूर पूर्वी इलाका एशिया-प्रशांत क्षेत्र के केंद्र में स्थित है, इसीलिए क्षेत्र के साथ भारत के संपर्क के भू-राजनीतिक प्रभाव भी होंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्रों के बीच आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंध विकसित करने के लिए भारत की ‘एक्ट फार-ईस्ट नीति’ आरंभ की। एक्ट फार-ईस्ट नीति भारत की विदेश नीति का सबसे नया अंग है। एक्ट ईस्ट नीति और हिंद-प्रशांत नीति इसमें पहले से ही शामिल है।
रूस का सुदूर पूर्वी इलाका फेडरल ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट के नाम से भी जाना जाता है। 2010 की जनगणना के अनुसार वहां लगभग 60 लाख लोग रहते हैं और करीब 1 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर का जनसंख्या घनत्व है। इस क्षेत्र में लोग बहुत कम रहते हैं, लेकिन संसाधनों के मामले में यह बहुत समृद्ध है। यहां लकड़ी और तेल एवं गैस, कोयला, दुर्लभ खनिज, कोबाल्ट, टंग्स्टन जैसे विभिन्न प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। यह क्षेत्र चीन, उत्तर कोरिया और मंगोलिया की सीमाओं पर स्थित है तथा जापान एवं अमेरिका उसके समुद्री पड़ोसी हैं। एशिया-प्रशांत के संदर्भ में इसका बड़ा रणनीतिक महत्व है। प्रमुख बंदरगाह व्लादीवोस्तोक, खाबरोव्स्क, चीता, याकुत्स्क, उलान-उडे आदि इस क्षेत्र के प्रमुख शहर हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण स्थायी पाला पिघलने के कारण इस क्षेत्र में पहुंचना पहले के मुकाबले और भी आसान हो गया है।
रूस की विकास की रणनीति उसके सुदूर पूर्वी क्षेत्र के विकास पर बहुत अधिक निर्भर है ताकि रूस की समूची अर्थव्यवस्था को गति मिल सके। क्षेत्र को आर्कटिक और प्रशांत के तट पर उत्तरी सागर मार्ग का लाभ मिल सकता है। पश्चिम के साथ बढ़ते तनाव ने रूस को अर्थव्यवस्था के विकास के लिए साइबेरियाई, उत्तरी और सुदूर पूर्वी क्षेत्रों की ओर देखने के लिए मजबूर कर दिया है। रूस की विदेश नीति और आर्थिक रणनीति में यूरेशिया तथा यूरेशियाई संघ पर बहुत जोर दिया जाता है।
संपर्क की अपर्याप्त सुविधा, कमजोर जनांकिकी और धन की कमी के कारण यह क्षेत्र विकसित नहीं हो पाया है। विदेशी निवेशकों को क्षेत्र में बुलाने के लिए रूस ने कई आकर्षक उपायों की घोषणा की है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 60 अरब डॉलर से अधिक की लगभग 1780 परियोजनाएं मंजूर की जा चुकी हैं। क्षेत्र को बहुत अधिक निवेश एवं तकनीक की जरूरत है। क्षेत्र की प्रचुर खनिज संपदा के लोभ में चीन झट से रूस के सुदूर पूर्वी इलाके में निवेश करने पहुंच चुका है। चिंता जताई जा रही है कि क्षेत्र में चीनियों की उपस्थिति के साथ ही चीन का बढ़ता प्रभाव रूस के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक खतरा हो सकता है। रूस और चीन के बीच बढ़ती साझेदारी से रूस में भी चिंता है मगर उसे खुलकर कहा नहीं जा रहा है।
चीन के साथ संतुलन बिठाने के इरादे से अन्य देशों को भी सुदूर पूर्व में निवेश के लिए न्योता देने की रूस की मंशा है। कुछ वर्ष पहले उसने फार ईस्टर्न इकनॉमिक फोरम गठित किया था, जिसमें चीनी, जापानी, मंगोलियाई और दक्षिण कोरियाई नेता जा चुके हैं। यह पहला मौका था, जब राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को फार ईस्टर्न इकनॉमिक फोरम की बैठक में आमंत्रित किया।
प्रधानमंत्री की यात्रा संपन्न होने पर जारी भारत-रूस संयुक्त बयान में रूस के सुदूर पूर्व को विकसित करने के लिए सहयोग करने की इच्छा जताई गई है। अपनी नई एक्ट फार ईस्ट नीति के तहत भारत ने क्षेत्र में अपना निवेश बढ़ाने के लिए शीघ्रता से 1 अरब डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट यानी ऋण व्यवस्था का ऐलान कर दिया है। सहयोग के क्षेत्र चिह्नित करने के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल अगस्त 2019 में व्लादीवोस्तोक गए। उनके साथ भारत के चार राज्यों के मुख्यमंत्री भी थे। कुछ भारतीय कंपनियां पहले ही उस क्षेत्र में पहुंच चुकी हैं। इनमें व्लादीवोस्तोक में हीरातराशी करने वाली कंपनी मैसर्स केजीके, कामचातका के क्रुतोगोरोवो में कोयल खनन के क्षेत्र में मैसर्स टाटा पावर्स शामिल हैं। ओएनजीसी इंडिया प्रशांत महासागर में सखालिन अपतटीय क्षेत्र में निवेश करती रही है और वहां से पिछले दो दशक से वह तेल निकाल रही है। दोनों देश भारत से ‘अस्थायी’ तौर पर कुशल श्रम बल के निर्यात की संभावनाओं पर भी चर्चा कर रहे हैं।
भारत-रूस व्यापार (12 अरब डॉलर) की वर्तमान मात्रा वास्तविक संभावना से बहुत कम है। रूस के सुदूर पूर्व में खनिज संपदा तक पहुंच होने पर यह समस्या दूर हो सकती है। दोनों नेताओं ने व्यापार को 2025 तक 30 अरब डॉलर कर देने का संकल्प जताया है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। यदि भारतीय कंपनियां रूस के सुदूर पूर्व में निवेश करती हैं तो स्थिति बेहतर हो सकती है। व्लादीवोस्तोक से चेन्नई के बीच जहाजरानी मार्ग स्थापित करने की घोषणा इस सिलसिले में स्वागतयोग्य कदम है।
पर्यटन की बड़ी भूमिका हो सकती है। भारतीय बड़ी तादाद में विभिन्न स्थानों की यात्रा कर रहे हैं। कई देश भारतीय सैलानियों को आकर्षित कर रहे हैं। रूस के सुदूर पूर्व में सुरम्य स्थान बड़ी संख्या में भारतीय पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। दोतरफा पर्यटन को बढ़ावा देने के कदम उठाना दोनों पक्षों पर निर्भर है।
सुदूर पूर्व में भारत-रूस सहयोग को बड़े भू-राजनीतिक परिदृश्य में देखा जाना चाहिए। संयुक्त बयान में दोनों पक्षों ने “पूर्वी एशिया शिखर बैठक और अन्य क्षेत्रीय मंचों की व्यवस्था के भीतर रहते हुए एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र में समान तथा अविभाज्य सुरक्षा ढांचा खड़ा करने” का संकल्प किया। वे “वृहत्तर यूरेशियाई क्षेत्र में तथा हिंद एवं प्रशांत महासागर के इलाकों में एकीकरण तथा विकास कार्यक्रमों के बीच पारस्परिक निर्भरता पर चर्चा तेज करने” हेतु सहमत हो गए हैं। रूस का सुदूर पूर्व क्षेत्र प्रशांत महासागर में स्थित है। भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने “समावेशी” बताया है, से रूस को भरोसा मिलना चाहिए।
रूस को भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा आरंभ किए गए हिंद-प्रशांत विचार से चिंता होना स्वाभाविक है। किंतु उसे एशिया-प्रशांत तथा यूरेशिया के विचार से दिक्कत नहीं है। भारत हिंद-प्रशांत विचार पर ज्यादा जोर दिए बगैर यूरेशियाई एवं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रूस के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है। इसलिए जापान एवं अमेरिका के साथ रूस के संबंध सुधरे तो हिंद-प्रशांत एवं एशिया-प्रशांत एक साथ चल सकते हैं।
रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक पर ध्यान केंद्रित कर भारत क्षेत्र की भू-राजनीति में अपना रुख तय कर रहा है। यह बड़ा और साहसिक कदम है। भारत के ध्यान केंद्रित करने से क्षेत्र में उसका निवेश बढ़ना चाहिए। इससे भारत का कद बढ़ेगा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को प्रभावित करने की अधिक गुंजाइश उसके पास होगी। चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए रूस के पास भारत होगा। जापान भी धीमे ही सही रूस के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की व्लादीवोस्तोक यात्रा के कई दिलचस्प भू-राजनीतिक परिणाम दिखे हैं। बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि दोनों पक्ष व्लादीवोस्तोक में तय बातों को किस तरह लागू करते हैं।
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