आतंकवादी और अलगाववादी धीरे-धीरे एक बार फिर पाकिस्तान में सिर उठा रहे हैं। जर्ब-ए-अज्ब और रद्द-उल-फसद जैसे अनेक अभियानों के बाद सेना ने दावा किया था कि स्थिति नियंत्रण में आ चुकी है। लेकिन हाल की घटनाएं बताती हैं कि ऐसा मानना अभी जल्दबाजी होगी। पंजाब को अभी हिंसा से छुटकारा नहीं मिला है और खैबर पख्तूनख्वा तथा बलूचिस्तान को हमलों की तपिश झेलनी पड़ रही है। आंकड़े खुद ही गवाही देते हैं।
अफगानिस्तान की सीमा से लगे उत्तर वजीरिस्तान के गुरबाज में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा की बाड़ के निकट उत्तर वजीरिस्तान के नए जिले खैबर पख्तूनख्वा में 27 जुलाई, 2019 को एक अधिकारी समेत कम से कम 6 सुरक्षाकर्मी मारे गए। पाकिस्तान का आरोप था कि हमले सीमा पार से हुए। प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने हमले की जिम्मेदारी ली।
21 जुलाई, 2019 को चार मोटरसाइकलों पर सवार टीटीपी आतंकवादियों ने खैबर पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खां शहर में कोटला सैदां चेकपोस्ट पर पुलिसकर्मियों के ऊपर गोलियां चला दीं। दो पुलिसकर्मी मारे गए। हमले के बाद एक बुर्कानशीं फिदायीन हमलावर (पुलिस मानती है कि वह महिला थी हालांकि बाद में तालिबान ने लंबे बालों वाले एक शख्स की तस्वीर जारी की और उसे हमलावर बताया) ने उस अस्पताल के दरवाजे पर बम विस्फोट कर दिया, जिसमें घायलों को लाया गया था। दोनों घटनाओं में चार पुलिसकर्मी और अपने रिश्तेदारों को अस्पताल देखने आए तीन नागरिक मारे गए तथा 30 अन्य घायल हो गए। ये आतंकी हमले उसी तरह के थे, जैसा 8 अगस्त, 2016 को क्वेटा में हुआ था। उन हमलों में अज्ञात आतंकवादियों ने बलूचिस्तान बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बिलाल अनवर कासी की हत्या कर दी थी। जब उनका शव क्वेटा के सिविल हॉस्पिटल में लाया गया तो अस्पताल में इकट्ठे वकीलों पर गोलीबारी की गई और बम फेंके गए, जिसमें कानूनी जमात के 70 सदस्य मारे गए।
10 जुलाई, 2019 को उत्तर वजीरिस्तान जिले में दो अलग-अलग बम विस्फोटों में एक जवान की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए। पहली घटना दाता खेल तहसील में खारकमर चेकपोस्ट के नजदीक हुई, जहां बम निरेाधक दस्ता इलाके की तलाशी ले रहा था और तभी रिमोट चालित देसी बम फट गया। दूसरा विस्फोट मीर अली कस्बे के नजदीक हुआ, जहां सुरक्षा बलों का वाहन देसी बम की चपेट में आ गया। सुरक्षा बल के दो कर्मचारी उस विस्फोट में घायल हो गए। 7 जून, 2019 को सेना के तीन अधिकारियों और एक जवान की मौत हो गई, जब उत्तर वजीरिस्तान जिले के खारकमर इलाके में सड़क के किनारे लगे देसी बमों के जरिये आतंकवादियों ने सेना के एक वाहन को निशाना बनाया। 1 जून, 2019 को उत्तर वजीरिस्तान के बोया इलाके में सैन्य वाहन पर बंदूक और बम से हमले में सेना का कम से कम एक जवान मारा गया। आतंकवादियों ने इलाके की नियमित गश्त कर रहे सेना के वाहन पर बम विस्फोट से पहले गोलियां भी चलाईं। 12 फरवरी, 2019 को डेरा इस्माइल खां जिले में परोवा सब-डिस्ट्रिक्ट के महारा क्षेत्र में घात लगाकर किए गए हमले में कम से कम चार पुलिसकर्मी मारे गए और एक एसएचओ घायल हो गया।
27 जुलाई को अज्ञात आतंकवादियों ने बलूचिस्तान में हुशाब और तुरबत के बीच फ्रंटियर कोर के काफिले पर हमला कर दिया, जिसमें 4 जवानों की मौत हो गई। 23 जुलाई को बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में बम विस्फोट में कम से कम तीन लोग मारे गए और 18 घायल हो गए। विस्फोटक मेडिकल स्टोर के सामने खड़ी साइकल में रखा गया था, जिसे बाद में रिमोट कंट्रोल से उड़ा दिया गया। किसी ने भी फौरन इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली। 26 जून को बलूचिस्तान के लोरालाई इलाके में सुरक्षा बलों ने तीन फिदायीन हमलावरों को मारकर आतंकी हमले की साजिश उस समय नाकाम की, जब उनमें से एक फिदायीन ने पुलिस लाइन्स क्षेत्र के प्रवेश द्वार पर खुद को विस्फोट से उड़ा लिया। दोनों ओर से गोलीबारी में एक पुलिसकर्मी मारा गया और एक महिला समेत पांच लोग घायल हो गए। 7 जून को जियारत क्षेत्र में दो वाहन दो विस्फोटों की चपेट मे आ गए और पांच लोग मारे गए तथा 13 घायल हो गए। पहले विस्फोट में बोहरा समुदाय के सदस्यों को ले जा रहा वाहन निशाना बनाया गया और दूसरे में जियारत के से क्वेटा लौट रहे शिया हाजरा समुदाय के सदस्यों का वाहन उड़ाया गया। 6 जून, 2019 को बलूचिस्तान के हरनई जिले में देसी बम फटने से फ्रंटियर कोर के दो कर्मी मारे गए।
18 अप्रैल को बलूच अलगाववादियों ने पाकिस्तान नौसेना, वायुसेना और तटरक्षक बलों से जुड़े 14 यात्रियों की हत्या कर दी। उन्हें बस से उतारा गया और गोली मार दी गई। 13 अप्रैल, 2019 को क्वेटा में हाजरा समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया गया। 20 लोग मारे गए, जिनमें नौ हाजरा थे। अन्य मृतकों में फ्रंटियर कोर का एक जवान और नागरिक शामिल थे। लश्कर-ए-झंगवी और इस्लामिक स्टेट या दाएश ने हमले की जिम्मेदारी ली और स्पष्ट किया कि हाजरा शिया समुदाय के लोग ही उनका निशाना थे। 29 जनवरी को तीन फिदायीन हमलावर लोरालाई में झोब रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक के आधिकारिक परिसर में घुस गए और खुद को उड़ा लिया। इसमें नौ पुलिसकर्मी मारे गए और 21 घायल हो गए।1
पंजाब भी आतंकवाद की मार से बचा नहीं है। 8 मई, 2019 को लाहौर में 11वीं सदी के सूफी संत अली हजवाइरी की लोकप्रिय दरगाह दाता दरबार के बाहर एक फिदायीन हमला हुआ, जिसमें इलीट पुलिस के एक वाहन को निशाना बनाया गया। चार पुलिसकर्मियों और एक सुरक्षाकर्मी समेत दस लोग मारे गए और 25 अन्य घायल हो गए। जमातुल अहरार से अलग हुए गुट हिज्बुल अहरार ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। जमातुल अहरार खुद अगस्त, 2014 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से टूटकर अलग हुआ था। दाता दरबार पर यह दूसरा आतंकी हमला था। इससे पहले 1 जून, 2010 को फिदायीन हमले में 50 से ज्यादा लोगों की जान गई थी और करीब 200 घायल हुए थे।
हमलों में हालिया तेजी दिखाती है कि आतंकवाद की समस्या से पूरी तरह नहीं निपटा गया है। हालांकि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने हालिया हमलों को ‘खीझी हुई दुश्मन ताकतों की आखिरी कोशिश’ बताया2, लेकिन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूच अलगाववादियों ने बार-बार दिखाया है कि विभिन्न स्थानों पर हमले करने की ताकत उनके पास है। हमले बताते हैं कि पाकिस्तान विभिन्न विचारधाराओं के आतंकियों से निपटने की समूची रणनीति अब भी नहीं बना पाया है।3
डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा, ‘हमले इस हकीकत से रूबरू कराते हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद से मुक्त करने का दावा करने से पहले बहुत कुछ करने की जरूरत है... अतीत में सरकार ने ‘अच्छे’ और ‘खराब’ आतंकियों के विचार को आगे बढ़ाने का पक्ष लिया है, जो खतरनाक बात है क्योंकि उसमें ‘अच्छे’ और ‘खराब’ जिहादियों के बीच के रिश्तों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।’ उसने यह भी लिखा कि मौजूदा सरकार को अपने भीतर झांकते हुए प्रतिबंधों और काली सूची से आगे बढ़ना होगा क्योंकि नई सोच को अप्रभावी तरीके से लागू करना आगे जाकर उलटा पड़ सकता है।’4
यहां तीन बिंदु काम के हैं। पहला, राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अपनी मुलाकात के दौरान इमरान खान ने अफगान तालिबान के साथ बातचीत के जरिये अफगानिस्तान में जंग और आतंकवाद खत्म करने के राजनीतिक समाधान की बात की थी। शायद अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान सरकार अपनी ही कही बात पर अमल करे और राजनीतिक रास्ता अपनाए। दूसरा, बलूचिस्तान में आतंकवाद शुरू हुए डेढ़ दशक हो चुका है। सेना हथियारों के जरिये इसे दबा नहीं पाई है। जाहिर है कि राजनीतिक नेतृत्व को बलूच समस्या का राजनीतिक हल ढूंढना होगा। अफगान समस्या के राजनीतिक समाधान की जरूरत का समर्थन करने वाली सरकार को बलूचिस्तान में भी वैसा ही करना चाहिए।5 तीसरा, पाकिस्तान को अब महसूस हो गया है कि आतंकवाद कई सिरों वाला दानव है। जबरदस्ती बनाए गए ये आतंकवादी जब तक भारत और अफगानिस्तान को निशाना बना रहे थे तब तक उन्हें मुजाहिदीन कहा गया। बाद में कुछ अपने पुराने मालिकों के ही खिलाफ हो गए तो वे आतंकवादी कहलाने लगे। जब तक पाकिस्तान ‘अच्छे’ और ‘खराब’ आतंकवादियों के बीच फर्क करने की अपनी दोगली नीतियां जारी रखता है तब तक हिंसा जारी रहेगी। पाकिस्तान को अब भी समझ नहीं आ रहा है कि सभी प्रकार के आतंकवादियों के खिलाफ समूची आतंकवाद निरोधक रणनीति ही सफल हो सकती है। उसके बगैर पाकिस्तान में हमले जारी रहने की आशंका है।
उदाहरण के लिए पाकिस्तान का अगंभीर रवैया इसी बात में देखा जा सकता है कि हाल ही में प्रतिबंधित जमात-उद दावा के नेतृत्व, जिसमें इसके संस्थापक सदस्य हाफिज सईद, अब्दुल रहमान मक्की और जफर इकबाल भी शामिल हैं, के खिलाफ मुकदमे शुरू किए गए। ऐसा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की अक्टूबर में होने वाली बैठक से पहले किया गया है ताकि काली सूची में नहीं डाला जाए। वह बैठक खत्म होने के बाद हाफिज सईद बिना शक आजाद कर दिया जाएगा।
(तिलक देवाशेर कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव रह चुके हैं और अभी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य एवं विवेकानंद इंटरनेशन फाउंडेशन के सलाहकार हैं। उन्होंने पाकिस्तान पर तीन पुस्तकें लिखी हैं)
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