जापानी एजेंसियों ने 30 नवंबर को उत्तर कोरिया के जहाजों को लगातार कई दिनों तक तट से दूर विदेशी जहाजों के साथ अवैध गतिवधियों में शामिल रहते हुए देखा।1 उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ समिति की हालिया रिपोर्ट में तट से दूर जहाजों के बीच संपर्क को अवैध गतिवधियों में शुमार किया गया है, जिससे पता चलता है कि प्योंगयांग अलग-थलग पड़ी सरकार को अपने परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रम छोड़ने के लिए मजबूर करने के इरादे से लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचकर निकल रहा है।2 संयुक्त राष्ट्र समिति की रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक वर्ष से उत्तर कोरिया ने कोयले, तेल तथा अन्य वस्तुएं अपने जहाजों से दूसरे जहाजों में पहुंचाकर समुद्र में अवैध गतिविधियां तेज की हैं।
रिपोर्ट के अनुसार तट से दूर अवैध गतिविधियों में जबरदस्त इजाफे से ताजातरीन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध मोटे तौर पर “अप्रभावी” हो गए हैं।3 साथ ही संयुक्त राष्ट्र समिति के विशेषज्ञों ने विदेशों में उत्तर कोरिया की अवैध हथियार बिक्री की भी पड़ताल की और इसमें हुसैन अल-अली जैसे अंतरराष्ट्रीय हथियार तस्करों की मिलीभगत का इशारा किया। अल-अली ने यमन में हूती विद्रोहियों समेत पश्चिम एशिया में विभिन्न विद्रोही गुटों के लिए हथियार खरीदने के इरादे से उत्तर कोरिया की सेना के साथ सांठगांठ की है। खबर है कि हथियार तस्करी और अन्य अवैध कामों से उत्तर कोरिया ने लगभग 20 करोड़ डॉलर इकट्ठे कर लिए हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि “वित्तीय प्रतिबंधों को बहुत खराब तरीके से लागू किया गया है और प्रतिबंधों को सक्रियता के साथ नकार दिया गया है।” यह भी कहा गया कि “उत्तर कोरिया की वित्तीय संस्थाओं के विस्तारित अंगों के रूप में काम करने के अधिकार वाले व्यक्ति बिना किसी डर के कम से कम पांच देशों में काम कर रहे हैं।”4
संयुक्त राष्ट्र की ताजातरीन रिपोर्ट में कही गई बातें निश्चित रूप से राष्ट्रपति ट्रंप की “अधिकतम दबाव” की रणनीति के लिहाज से अच्छी नहीं हैं। इस रणनीति के तहत कठोर सैन्य एवं आर्थिक प्रतिबंधों के जरिये उत्तर कोरिया की परमाणु ताकत खत्म करने का प्रयास किया जाता है।5 2017 के आरंभ से ही ट्रंप प्रशासन ने कोरिया को निशाना बनाने वाले प्रतिबंधों के जरिये किम-जोंग-उन शासन पर अधिकतम दबाव बनाने का प्रयास किया है और प्योंगयांग के खिलाफ प्रतिबंध प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए रूस तथा चीन समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मनाया है। इस रणनीति के अंतर्गत ट्रंप प्रशासन ने दुनिया भर में नकली वस्तुओं का कारोबार करने वाली शैडो कंपनियों के साथ उत्तर कोरिया के वित्तीय लेनदेन का पता लगाने के लिए नए वित्तीय उपाय लागू किए। साथ ही ट्रंप प्रशासन ने प्योंगयांग के साथ राजनयिक संपर्क के प्रयास भी किए, जिससे जून, 2018 में ऐतिहासिक सिंगापुर शिखर बैठक में बातचीत के जरिये उत्तर कोरिया के परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रम के समाधान का रास्ता खुला।6
सिंगापुर शिखर बैठक में “अधिकतम दबाव एवं संपर्क” की रणनीति के शुरुआती कूटनीतिक फायदों को देखकर ट्रंप प्रशासन में कई लोगों को लगा कि केवल प्रतिबंधों से ही कोरियाई गणराज्य के व्यवहार को बदला जा सकता है और किम प्रशासन पर दबाव डालने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सुनिश्चित करना होगा कि प्रतिबंधों को सख्ती से लागू किया जाए। जब दोनों देशों ने हनोई में दूसरी शिखर बैठक करने का फैसला किया तो राष्ट्रपति ट्रंप ने एक बार फिर दोहराया कि प्रतिबंध “पूरी तरह लागू” हैं और किम जोंग से कहा कि प्रतिबंध पूरी तरह खत्म कराने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ राजनयिक संबंध सामान्य करने के लिए उन्हें “अधिक बड़े कदम” उठाने होंगे और व्यापक संहार करने वाले हथियारों के अपने कार्यक्रम पूरी तरह बंद करने होंगे।7
लेकिन हनाई शिखर बैठक के दौरान “अधिक बड़े प्रयास” का राष्ट्रपति ट्रंप का प्रयास प्योंगयांग को अपने परमाणु एवं व्यापक संहार के हथियार के कार्यक्रम एकतरफा तरीके से बंद करने के लिए मनाने में नाकाम रहा। “या तो सब कुछ या कुछ नहीं” के अमेरिकी वार्ताकारों के रुख ने किम जोंग-उन के साथ बातचीत ठप करा दी, जिससे हनोई में दूसरी शिखर बैठक बीच में ही खत्म हो गई।8 हनोई बैठक के नतीजे और इस खुलासे कि प्योंगयांग प्रतिबंधों से बचकर निकल रहा है, से ट्रंप प्रशासन की “अधिकतम दबाव” की उस रणनीति पर गंभीर चिंता पैदा होती है, जो प्योंगयांग पर दबाव डालने के लिए प्रतिबंधों को ही असली हथियार मानती है। हनोई शिखर बैठक के बाद अमेरिका के कई अधिकारी बैंकिंग और तेल पर रोक के जरिये अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने के बारे में सोच रहे हैं, लेकिन कई कारणों से यह भी नाकाम साबित हो सकता है।
उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति की हालिया और पिछली रिपोर्टों में दिए गए सबूतों से इस बात की पुष्टि होती है कि उत्तर कोरिया प्रतिबंधों का उल्लंघन करने और बचकर निकल जाने में माहिर होता जा रहा है। हालांकि उत्तर कोरिया के व्यापार एवं अर्थव्यवस्था के हालिया आंकड़ों से पता चला है कि प्योंगयांग के 2017 के परमाणु परीक्षणों के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से देश पर बुरा असर पड़ रहा है, लेकिन उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था खस्ता होने नहीं जा रही है। सोल के बैंक ऑफ कोरिया का एक अनुमान बताता है कि उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था में 2017 के दौरान पूरे 3.5 प्रतिशत की कमी आई।9 इसी तरह चीन के सीमाशुल्क विभाग के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर कोरिया से निर्यात में 2016 और 2017 के मुकाबले काफी कमी आई, जिसके कारण उसकी विदेशी मुद्रा आय भी कम हो गई।10
चीन उत्तर कोरिया का पड़ोसी है, जिस कारण प्योंगयांग द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के उल्लंघन पर कड़ी नजर रखने में उसकी केंद्रीय भूमिका है। लेकिन चीन कथित तौर पर प्योंगयांग की मदद करता जा रहा है क्योंकि उसे डर है कि आर्थिक कठिनाइयों के कारण यदि उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था ढह गई तो वहां के निवासी भारी संख्या में चीन में घुस आएंगे। अपनी कंपनियों को उत्तर कोरियाई फर्मों के साथ व्यापार करने की कथित इजाजत देकर पेइचिंग प्योंगयांग को काफी राहत दे रहा है।11 इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र समिति की ताजी रिपोर्ट ने पांच ऐसे देश पहचाने हैं, जहां उत्तर कोरिया प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहा है और नकदी कमा रहा है। अमेरिका के प्रसिद्ध प्रतिबंध विशेषज्ञ आंद्रे अब्राहमियन का एक अध्ययन बताता है कि उत्तर कोरिया की सेना को नए प्रतिबंधों का उल्लंघन करने में दो हफ्ते से अधिक नहीं लगते।
ऐसे कई कारणों से प्योंगयांग अभी तक अधिकतम दबाव से बचने में कामयाब रहा है, जिससे उसे अपने परमाणु कार्यक्रम को एकतरफा तौर पर छोड़े बगैर ही प्रतिबंधों से राहत पर बातचीत करने की अच्छी खासी गुंजाइश मिल जाती है। यदि अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ समझौते के लिए सफल बातचीत की उम्मीद जगानी है तो उसे प्रतिबंधों पर ही निर्भर रहने के बजाय बातचीत की किसी भरोसेमंद रणनीति के जरिये एक दूसरे को फायदा पहुंचाने वाले ऐसे उपाय तलाशने होंगे, जिन पर दोनों राजी हों। शुरुआत में प्रशासन को ‘सब कुछ या कुछ नहीं’ का वह रवैया छोड़ना होगा, जो उत्तर कोरिया को तभी राहत देने की बात कहता है, जब वह व्यापक विनाश के हथियारों का अपना बुनियादी ढांचा पूरी तरह खत्म कर देगा।
पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग को प्योंगयांग किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेगा। उसके बजाय वाशिंगटन को प्योंगयांग के साथ ऐसी योजना तैयार करने पर जोर देना चाहिए, जो प्योंगयांग द्वारा उसके परमाणु हथियार चरणबद्ध तरीके से खत्म किए जाने पर उसे प्रतिबंधों से भी चरणबद्ध तरीके से राहत दे। अमेरिका को स्पष्ट रूप से तय करना चाहिए कि योंगब्योन परिसर, व्यापक विनाश के हथियारों वाले अन्य प्रतिष्ठानों तथा मौजूदा हथियारों को खत्म करने की प्योंगयांग की पेशकश के बदले वह किस प्रकार के प्रतिबंध हटाएगा।
इस तरह हनोई शिखर वार्ता के नाकाम होने से अमेरिकी वार्ताकारों को नए सिरे से बातचीत शुरू करने और कोरियाई गणराज्य के पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए आदर्श समझौते की दिशा में बढ़ने का अप्रत्याशित मौका मिल गया है। इस कूटनीतिक प्रक्रिया को बहाल करने से वाशिंगटन को प्योंगयांग से अधिक से अधिक वायदे कराने के लिए प्रतिबंधों के सीमित लाभ का कुशलतापूर्ण इस्तेमाल करने का मौका ही नहीं मिलेगा बल्कि कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में पहला ठोस कदम उठाने का मौका भी मिलेगा। इसके लिए ट्रंप प्रशासन को सबसे पहले स्वीकार करना होगा कि उत्तर कोरिया का व्यवहार बदलने और परमाणु प्रसार की उसकी नीतियां खत्म कराने के लिए प्रतिबंधों के इस्तेमाल का कोई फायदा नहीं रह गया है।
प्रतिबंधों का आधार मुख्य रूप से यह तर्क होता है कि देश के नेता आखिरकार महसूस करेंगे कि उनकी नीतियों का कोई फायदा नहीं हो रहा है और इसीलिए वे अपनी कार्यशैली बदलेंगे। किम जोंग-उन को पता है कि प्रतिबंधों से उत्तर कोरिया की जनता को कितनी तकलीफ हो रही हैं और वह इन्हें खत्म कराना चाहते हैं, लेकिन यह भी सच है कि उन्हें लगता है कि परमाणु हथियार ही अमेरिका के खिलाफ उनकी इकलौती गारंटी हैं। इस निराशा भरी वास्तविकता को स्वीकारने के बाद ही ट्रंप प्रशासन ऐसे व्यावहारिक समझौते के लिए नए सिरे से बातचीत शुरू कर सकता है, जो समझौता प्योंगयांग के परमाणु कार्यक्रम पर सच्ची रोक लगा सके। प्रतिबंधों से राहत के एवज में परमाणु अस्त्र पूरी तरह खत्म करने की जिद का शायद कोई फायदा नहीं होगा।
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