सम्मानों की कूटनीति
Amb Anil Trigunayat, Distinguished Fellow, VIF

इस बात पर विवाद तो हो सकता है, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई देशों की सरकारों द्वारा सबसे अधिक सम्मानित किए जाने वाले राज्याध्यक्ष हैं और ये सम्मान उन्हें पांच वर्ष से भी कम समय में मिले हैं। उन्हें मिलने वाले सबसे नए सम्मान की घोषणा पिछले हफ्ते ही रूसी महासंघ के राष्ट्रपति पुतिन ने की, जब प्रधानमंत्री मोदी को दोनों देशों के बीच विशेष एवं गौरवपूर्ण साझेदारी तैयार करने में विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्र्यू द अपासल’ से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान दो हफ्ते पहले ही संयुक्त अरब अमीरात द्वारा दिए गए सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जायद या जायद मेडल’ के फौरन बाद दिया गया।

अक्टूबर, 2018 में प्रधानमंत्री को मोदीनॉमिक्स तथा भारत की उच्च आर्थिक वृद्धि में योगदान के लिए दक्षिण कोरिया में ‘सोल शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार और फलस्तीन तथा सऊदी अरब से मिले ढेरों सम्मान भारतीय नेता की लोकप्रियता और निर्णायक क्षमता के प्रमाण भर नहीं हैं बल्कि इससे यह भी साबित होता है कि सवा अरब भारतीयों की कितनी मान्यता और सम्मान है। सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला यह देश सबसे बड़ा स्थिर बाजार उपलब्ध कराता है और बुनियादी ढांचे तथा परियोजनाओं में खरबों डॉलर के निवेश का मौका भी देता है। हथियारों तथा गोला-बारूद की आपूर्ति करने वालों के लिए भी यहां एकदम नए मौके हैं। भारत हथियारों और हाइड्रोकार्बन का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। वास्तव में भारत की धमक बढ़ गई है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे सम्मान एवं अपेक्षाओं के साथ देखा जाता है। चूंकि कूटनीतिक संपर्क में राष्ट्रहित ही निहित एवं अपरिहार्य पहलू होता है, इसलिए विदेशी नेताओं को अवार्ड तथा मान्यता भारत के रणनीतिक ढांचे में निहित है।

भारत और रूस की साझेदारी 20वीं और 21वीं सदी की सबसे अधिक परिभाषित साझेदारियों में है और कुछ अन्य प्रमुख साझेदारियों पर दोनों पक्षों को कुछ आपत्तियां होने के बावजूद उनके रिश्ते सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए हैं।

पाकिस्तान के साथ रूस की बढ़ती नजदीकी को भारत संदेह की नजर से देखता है और रूस को इस बात की चिंता है कि उसकी जगह अमेरिका भारत का सबसे बड़ा हथियार एवं प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्ता बन गया है। चूंकि अमेरिका-रूस रिश्तों में शीत युद्ध के समय से ही कई मोड़ और पेच आए हैं, इसलिए भारत को अपने रिश्तों में इस तरह संतुलन बिठाना था कि उसके राष्ट्रीय हित अच्छी तरह से सध सकें। वैश्विक परिस्थितियां अधिक उतार-चढ़ाव भरी और टकराव वाली होने के बावजूद बहुत कुछ नहीं बदला है। इसीलिए प्रतिबंध लगाया जाना बहुत सामान्य हो गया है। इससे भारत जैसे जो देश निर्णय लेने की अपनी क्षमता में रणनीतिक स्वायत्तता चाहते हैं, उनके सामने जो मौजूद है, उसे ही स्वीकार करने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं है। चूंकि तमाम प्रतिबंधों के कारण अमेरिका-रूस संबंध और भी बिगड़ रहे हैं, इसलिए भारत को अपने हित ध्यान में रखकर संबंध गढ़ने और फैसले लेने पड़े चाहे रूस से एस-400 मिसाइल खरीदना हो या ईरान से तेल लेना हो। वास्तव में रूस के साथ भारत का सैन्य सहयोग तथा रक्षा संबंध ओर भी अधिक मजबूत हुए हैं। लेकिन इस नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए अमेरिका को बड़े ठेके मिले हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को रूसी सम्मान मिलना इस बात का परिचायक है कि रूस द्विपक्षीय रिश्ते में उनकी दृढ़ता की सराहना करता है।

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आए तो इजरायल के प्रति उनके झुकाव और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ उनकी व्यक्तिगत दोस्ती के कारण कई अरब देशों को आशंका हुई थी। लेकिन इजरायल जाने से पहले वह संयुक्त अरब अमीरात और अन्य खाड़ी देशों की यात्रा पर गए, जिससे यह आशंका समाप्त हो गई। इतना ही नहीं शहजादा मोहम्मद बिन जायद को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने का न्योता भेजा गया, जो अनूठा सम्मान है और इससे दोनों देशों के विशेष संबंधों का पता चलता है। इसीलिए हैरत की बात नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी वहां दो बार जा चुके हैं और शहजादे भी दो बार भारत आ चुके हैं। परिणामस्वरूप रणनीतिक साझेदारी के वास्तविक सुरक्षा संबंधी पक्ष को ठोस नतीजों के जरिये प्रमुखता मिली है फिर चाहे वह भगोड़ों, आतंकवादियों और आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण हो या भारत को तेल में रियायतें देना, भारत में निवेश करना अथवा अबू धाबी में हिंदू मंदिर के लिए जमीन देना हो। इसलिए जायद अवार्ड बताता है कि संयुक्त अरब अमीरात के साथ द्विपक्षीय संबंध एवं रणनीति साझेदारी मजबूत करने में मोदी का कितना योगदान एवं केंद्रीय भूमिका रही है। यह शायद उस सम्मान का प्रत्युत्तर भी था, जो भारत ने शहजादे को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाकर दिया था।

इसी तरह जब मोदी फलस्तीन गए तो यह पहला मौका था, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री वहां पहुंचे थे। उस समय इजरायल और फलस्तीन के साथ हमारे रिश्तों की प्रकृति एकदम अलग होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फलस्तीन’ से नवाजा गया था। भारत इस क्षेत्र में सभी के लिए भरोसेमंद साथी बनकर उभरा है। इसी तरह रियाद की यात्रा के दौरान सऊदी शाह सलमान ने प्रधानमंत्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘किंग अब्दुल अजीज सैश’ प्रदान किया गया। सऊदी अरब और भारत के बीच पिछले कुछ समय में बेहद करीबी और रणनीतिक द्विपक्षीय संबंध बन गए हैं तथा नेताओं के बीच व्यक्तिगत संबंध बने हैं। इसलिए सऊदी शहजादे ने न केवल भारत में 100 अरब डॉलर के संभावित निवेश का ऐलान किया बल्कि रूढ़िवादी साम्राज्य में सुधार लाने के लिए अपना विजन 2030 पूरा करने में वह भारत की सहायता भी चाहते हैं।

जब बड़ी और कचरा तथा प्रदूषण फैलाने वाली अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई से कन्नी काट रही हैं तब भारत ने इस महत्वपूर्ण लड़ाई की कमान संभाल ली है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन आरंभ होने के पांच दशक से भी अधिक समय के बाद पहली बार भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर नया बहुपक्षीय मंच ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ आरंभ किया है, जो मानवता को मानवनिर्मित आपदाओं से बचाने के रास्ते तलाशेगा। इसीलिए पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने पर्यावरण के मोर्चे पर सहयोग के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों के नेतृत्व को ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ’ सम्मान से नवाजा। वैश्विक समुदाय द्वारा वास्तव में यह अनूठी सराहना और सम्मान है।

किसी भी देश द्वारा विदेशी हस्तियों और नेताओं को राष्ट्रीय सम्मान दिया जाना असामान्य बात नहीं है। भारत में भी कुछ समय से हम ऐसा करते आ रहे हैं। वास्तव में 2015 में युद्ध में घिरे यमन में फंसे अपने नागरिकों तथा दर्जनों अन्य देशों के नागरिकों को निकालने में मिली मदद के लिए भारत ने 2019 के गणतंत्र दिवस पर जिबूती के राष्ट्रपति इस्माइल उमर गुएले को दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया। यह देश अमेरिका, रूस और चीन के लिए नौसेना का ठिकाना तो है ही, आतंकवाद आतंकवाद रोधी एवं समुद्री डकैती रोधी अभियानों के मामले में भी प्रमुख रणनीतिक ठिकाना है।

कुछ छिद्रान्वेषियों और आलोचकों को रूस और संयुक्त अरब अमीरात से ये सम्मान मिलने का समय साजिश का हिस्सा लग सकता है क्योंकि इनकी खबरें भारत में आम चुनावों के दौरान आईं और प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी पार्टी को इनसे फायदा हो सकता है। मगर इसे मोदी के नेतृत्व में बढ़ते भरोसे के तौर पर भी देखा जा सकता है, जिसे मीडिया और चुनाव विश्लेषक पहले ही मान रहे हैं। इस मामले में कुछ लोग मूर्खता भरे तर्क देंगे कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का भाजपा की जीत के भरोसे बैठना बिल्कुल वैसा ही है, जैसा ‘निशाने पाकिस्तान’ देना और कश्मीर समेत द्विपक्षीय मसलों के समाधान की उम्मीद लगाना है। इसमें रत्ती भर भी सच नहीं है। लेकिन यह सच है कि जब किसी देश के पास ताकत होती है तो उसके विरोधी भी उसका सम्मान करने लगते हैं। कुछ समय बाद पता चलेगा कि अमेरिका और यूरोप की ही तरह भारत में भी चुनावों में रूस का हाथ था या नहीं क्योंकि कुछ लोग हारने पर हमेशा ऐसे ही बहाने ढूंढ लेते हैं। कुछ भी हो विदेश नीति में किसी भी कीमत पर ठहराव नहीं आता। इस बीच भारत दुनिया भर से समर्थन तथा प्रशंसा हासिल कर चुका है।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://dbpost.com/wp-content/uploads/2019/04/President-Putin-signs-the-decree-to-award-the-Prime-Minister-of-India-848x500.jpg

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