भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता है। किंतु भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के खिंचाव और दबाव को देखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति पर चलना आसान काम नहीं है। भारत में प्राय: अमेरिका और जापान पर ही अपने को केंद्रित करने और रूस को उपेक्षित कर देने की प्रवृत्ति देखी जाती है। ऐसा करना एकदम अनुत्पादक होगा। भारत इस तथ्य को झुठला नहीं सकता कि रूस परमाणु और ऊर्जा क्षेत्र में एक प्रमुख प्रारम्भिक ताकत है और रहेगा; कि वह आने वाले लम्बे समय तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बना रहेगा। भारत को अपनी रक्षा एवं ऊर्जा-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भविष्य में रूस पर निर्भर रहना पड़ेगा। चूंकि विश्व तेजी से बहु-ध्रुवीय होता जा रहा है, भारत के लिए एक ही समय रूस तथा अमेरिका के साथ गहरे और रणनीतिक सम्बन्ध बनाये रखना अपरिहार्य होगा। भारत रूस के साथ अपनी सुदृढ़ साझेदारी का अन्य देशों से समझौतों में भी फायदा उठाता है।
सोवियत संघ के विघटन के बाद, तात्कालीन रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन के शासनकाल में भारत और रूस सम्बन्ध में कुछ वर्षो के लिए सुखाड़ आ गया था। हालांकि इस रिश्ते को ‘बेहद खास और विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी’ के स्तर तक ले जाने का श्रेय रूस के वर्तमान राष्ट्रपति पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री को है। यह भारत-रूस मैत्री की मजबूती के बारे में कहता है, जो वैश्विक राजनीति के हेर-फेर में भी परवान चढ़ती रही है। आवश्यकता इस बात की है कि इन दोनों देशों के बीच इस ‘बेहद खास और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक भागीदारी’ को उपर्युक्त विषय-सामग्री दी जाए।
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है कि द्विपक्षीय रिश्ते को गहराई देने की दोनों देशों की उत्कट इच्छा के बावजूद यह सम्बन्ध कई क्षेत्रों में औसत से भी कम हैं। दोनों पक्षों के काफी प्रयास के बावजूद भारत-रूस आर्थिक एवं वाणिज्यिक सम्बन्ध अपनी वास्तविक क्षमता से भी निचले स्तर पर बने हुए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत और रूस सम्बन्ध केवल रक्षा और ऊर्जा के अपेक्षाकृत सीमित आधार पर ही बने हुए हैं। इसके अलावा, वैश्विक स्थिति में आ रहे त्वरित बदलावों ने दोनों देशों को नये साझेदार खोजने पर विवश कर दिया है। इस स्थिति ने द्विपक्षीय सम्बन्धों में कभी-कभार शक-शुबहा और तनाव पैदा किया है।
रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ती शत्रुता ने रूस को चीन के नजदीक ला दिया है। अब ये दोनों देश अमेरिका की दादागीरी रोकने के लिए बहु-ध्रुवीय विश्व की वकालत करते हैं। यही वजह है कि वे आरआईसी (रूस-भारत-चीन), ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) पर जोर देते हैं। यह सब करते हुए रूस यह भी महसूस करता है कि अमेरिका के साथ अपनी बढ़ती नजदीकियों के चलते भारत इन मंचों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध नहीं है। इसके अलावा, प्रतिबंध कानून के जरिये अमेरिकी वैरियों का प्रतिरोध करना’ (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रो सैंक्शन एक्ट या सीएटीएसएए) के अंतर्गत रूस और ईरान पर लगे प्रतिबंधों ने भारत और रूस के द्विपक्षीय सम्बन्धों को दुष्प्रभावित किया है। इस सूरतेहाल में भारत को रूस-अमेरिका में तनावों के बीच अपने लिए एक मार्ग तलाशना है। ऐसे में मुएलर के इस निष्कर्ष से कि मास्को ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित नहीं किया है; अमेरिका-रूस के सम्बन्ध सहज होने की उम्मीद बंधती है। यह भारत-रूस सम्बन्धों के लिए भी लाभदायक होगा।
रूस-चीन शक्ति-संतुलन में रूस उसके एक कनिष्ठ साझेदार की जगह ले रहा है। यह चीन को प्राकृतिक गैस, खनिज, रक्षा प्रौद्योगिकी मुहैया करता है और अपने यहां चीनी कम्पनियों को निवेश के मौके दे कर चीनी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर रहा है। इसने भारत के लिए बड़ी दिक्कतें पैदा कर दी हैं कि भारत-चीन अभी तक समस्याग्रस्त हैं और दोनों के बीच अंदर ही अंदर शत्रुता व प्रतिस्पर्धा से यह बात जाहिर भी होती है। इसके अतिरिक्त, इस तथ्य ने भी जटिलता बढ़ाई है कि चीन ने पाकिस्तान को हर संभव तरीके से उसको कवच प्रदान किया है। इसने भारत से अपने वैर भाव जारी रखने के लिए पाकिस्तान की हौसलाअफजाई ही की है। पाकिस्तान को चीन से बड़ी मात्रा में परमाणु, मिसाइल, सैन्य और आर्थिक सहायता मिलती है। चीन को सबसे पहले रूस से मिली आधुनिकतम प्रौद्योगिकी को पाकिस्तान को हस्तांतरित करने में जरा भी हिचक नहीं हुई। जेएफ श्रृंखला के चीनी लड़ाकू विमानों के लिए रूस से मिले बेहद सटीक आरडी-93 इंजिनों को पेइचिंग ने पाकिस्तान को दे दिया है।
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी रूस में चिंता का विषय है, जहां यह धारणा बन गई है कि भारत धीरे-धीरे ही सही पर निश्चित रूप से पश्चिमी गुट में शामिल होने जा रहा है। रूस ने भारत को अपने पाले में करने के लिए उसे ब्रिक्स और एससीओ में शामिल होने का न्योता दिया था। लेकिन इसके बावजूद उसकी यह चिंता बनी हुई है कि भारतीय-अमेरिकी बढ़ती साझेदारी रूस पर दुष्प्रभाव डालेगी।
अत: भारत उधेड़बुन में है कि रूस, चीन और अमेरिका के बीच वह कौन सा रास्ता अख्तियार करे?
भारत के पास अमेरिका एवं रूस के साथ सम्बन्ध रखने तथा चीन के साथ मुश्किल रिश्ते को दुरुस्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। इसी प्रकार, रूस भी भारत को खो देने की जुर्रत नहीं कर सकता; क्योंकि भारत उसके रक्षा-उपकरणों और प्रौद्योगिकियों, परमाणु रिएक्टर्स और हीरों के लिए एक विशालकाय बाजार है। और यह भी कि भारत संवृद्धि के रास्ते पर चल रहा है और उसके पास एक बहुत बड़ा बाजार है; जिसका लाभ रूस चाहे तो उठा सकता है। वहीं, चीन पर अपनी बढ़ती निर्भरता और उसके साथ साझेदारी में एक कनिष्ठ दोस्त की हैसियत से रूस कदापि खुश नहीं रह सकता। ऐसे में भारत रूस के लिए आवश्यक संतुलन प्रदान करता है।
पाकिस्तान के साथ रूस के विकसित होते सम्बन्ध, जिसमें अब सैन्य आपूर्ति और संयुक्त सैन्य अभ्यास भी शामिल हो गए हैं, भारत के लिए चिंता की शुरुआत है। यद्यपि रूस ने शीर्ष स्तर पर भारत को यह आश्वासन दिया है कि भारत की कीमत पर उसके सम्बन्ध चीन और पाकिस्तान के साथ नहीं बनेंगे; जाहिर है कि भारत की चिंताएं पूरी तरह शमित नहीं हुई हैं। वहीं, अफगानिस्तान में अमन लाने के तरीके पर भारत और रूस के बीच स्पष्ट मतभेद हैं। भारत में सीमा पार से जारी आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की निंदा करने में रूस की लड़खड़ाती जुबान पर भारत ने गौर किया है। रूस ने हिन्द-प्रशांत के बारे में भारतीय अवधारणा तथा उसकी विदेश नीति के केंद्र होने जा रहे ‘क्वैड’ (चतुष्कोणीय) को लेकर रूस ने खुली आलोचना की है।
रूस को चीन पर अपनी बढ़ती निर्भरता का भान है और वह अपने सम्बन्धों में विविधता चाहता है। इसलिए भारत रूस के लिए महत्त्वपूर्ण है। रूस यूरेशिया इकनोमी फोरम (ईईयू) के विचार को बढ़ावा दे रहा है, उसने इसके लिए भारत से भी अपील की है, लेकिन इस बारे में अभी बहुत प्रगति नहीं हुई है। सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए हिन्द-प्रशांत और यूरेशिया दोनों ही अहम हैं। हालांकि भारत को ईईयू की तरफ भी बहुत ध्यान देना चाहिए क्योंकि वह रूस के लिए महत्त्वपूर्ण है।
कुल मिला कर ये रुझान निकट भविष्य में बने रहने वाले हैं। भू-राजनीति की निरंतर परिवर्तित हो रही प्रकृति को देखते हुए भारत और रूस के बीच कुछ मतभेदों का बना रहना अपरिहार्य है। रूस का पश्चिम के साथ जब तक सम्बन्धों में तनाव रहेगा, वह चीन की तरफ देखता रहेगा। इसी तरह, जब तक चीन-भारत रिश्तों में मुश्किल रहेगी, रूस का चीन के प्रभाव क्षेत्र में जाना लगा रहेगा, जो भारत को नहीं रुचेगा।
भारत और रूस को परस्पर सहयोग के ऐसे क्षेत्रों की खोज करने की जरूरत है, जिसमें वे उन कारकों से, जो उनके नियंत्रण में नहीं हैं, जहां तक संभव हो, उनसे बच सकें। रूस अपनी प्रौद्योगिकी क्षमता तक भारत की पहुंच बना कर उसके निर्माण में मदद कर सकता है। इसी तरह, भारत रूसी वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों के लिए अपने बाजार उपलब्ध करा सकता है। रूस को अमेरिका के साथ भारत के विकसित होते सम्बन्धों पर अत्यधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कि अमेरिका से मिली तकनीक का उपयोग किसी भी तरह से रूस के विरुद्ध होने नहीं जा रहा है। उसी प्रकार, भारत को अमेरिका के दबाव में आ कर रूस से अपने सम्बन्ध में कटौती नहीं करनी चाहिए।
भारत को रूस और अमेरिका दोनों एक ही समय लुभाने पर लगे हुए हैं। ऐसे में भारत के लिए इस या उस दिशा में खिंचे हुए बिना, दोनों पक्षों से एक साथ जुड़े रहने का एक नायाब मौका है। इसके अतिरिक्त, भारत को यह क्षमता-सामर्थ्य़ विकसित करनी चाहिए, जिससे वह अमेरिका, रूस और चीन से एक ही समय अपनी स्थिति का लाभ ले सके।
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