प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में भारत की पाकिस्तान नीति कैसी हो
Commodore Somen Banerjee

विलियम शेक्सपियर ने कहा था, “अनईजी लाइज द हेड दैट वियर्स द क्राउन” यानी राजमुकुट कांटों से भरा होता है। नरेंद्र मोदी ने जश्न के बीच एक बार फिर पांच वर्ष के लिए पद संभालने की शपथ ली। चूंकि वह पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटे हैं और यह उपलब्धि 48 वर्ष में कोई नहीं दोहरा पाया था, इसलिए देश और दुनिया को उनके निर्णायक नेतृत्व से काफी उम्मीदें हैं। पहले 100 दिन अहम होंगे, जब उनकी नीतियों की लकीरें मोटे तौर पर खींची जाएंगी। भारत की पाकिस्तान नीति ऐसी ही लकीर होगी, जिसे बहुत सावधानी के साथ खींचना होगा।

70 वर्ष से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बावजूद भारत-पाकिस्तान संबंधों में सौहार्द घोलने के तमाम प्रयास नाकाम साबित हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी का पहला कार्यकाल भी अलग नहीं रहा। तो क्या भारत और पाकिस्तान के बीच चली आ रही कड़वाहट खत्म होने की कोई उम्मीद नजर आ रही है? नोबेल से सम्मानित नाइल्स बोर ने कहा था कि ‘प्रत्येक बड़ी मुश्किल का हल भी उसी में छिपा होता है। उसे ढूंढने के लिए हमें अपना सोचने का तरीका बदलना पड़ता है।’ सत्ता में मजबूत प्रधानमंत्री की वापसी भारत की पाकिस्तान नीति का रास्ता बदलने का सही समय हो सकता है।

भारत के बारे में पाकिस्तान की नीति असुरक्षाओं के बजाय विचारधारा पर ही आधारित रही है। भारत के खिलाफ शुरू किया गया सरकार प्रायोजित आतंकवाद भारत को अस्थिर करने और उसे क्षेत्रीय नेता नहीं बनने देने का पाकिस्तान का तरीका है। इसलिए क्रिश्चियन फेयर की इस बात से सहमत होना पड़ता है कि कश्मीर के क्षेत्र के मामले में रियायत बरतने से पाकिस्तान की कश्मीर को पूरी तरह हासिल करने की जिद और बढ़ जाएगी। अपनी प्रतिष्ठा और धार्मिक विचारधारा को देखते हुए पाकिस्तान यथास्थिति पर कभी राजी नहीं होगा। इसलिए वह हमेशा भारत के खिलाफ छद्म आक्रमण करता रहेगा। जब तक पाकिस्तान की भू-राजनीतिक प्रासंगिकता बनी रहेगी तब तक वह भारत को दक्षिण एशिया में बांधे रखने की चीन जैसी ताकतों की रणनीति के लिहाज से अहम बना रहेगा। पाकिस्तान यह सुनिश्चित करने की भी पूरी कोशिश करता है कि अपने पड़ोसियों के साथ भारत के रिश्ते कड़वे बने रहें। उसके इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने भारत को निशाना बनाने के लिए आपराधिक षड्यंत्र और दबाव का हरेक तरीका बनाया है। साथ ही साथ वह नैतिक रूप से ऊंचा बनने के लिए शांति की बात भी करता है। जब तक पाकिस्तान की विदेश एवं सुरक्षा नीतियां आईएसआई और सेना के इशारे पर चलती रहेंगी तब तक भारत और पािकस्तान के बीच शांति की अपेक्षा करना भोलापन ही होगा।

पाकिस्तान की सेना राष्ट्रीय एकता के लिए और ‘हिंदू’ भारत के खिलाफ लगातार लड़ाई के सही ठहराने के लिए विचारधारा का इस्तेमाल करती है। ऐसे रवैये से बेशक देश के तौर पर पाकिस्तान की साख और वैधता कम हो जाए, लेकिन वह इतिहास बदलने की अपनी कोशिश शायद ही छोड़ेगा। ऐसे में न तो दोनों देशों की जनता के बीच सामाजिक मेलजोल हो सकता है और न ही आर्थिक संपर्क से इसे बढ़ाया जा सकता है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय व्यवहार के आदर्श तरीके मानने के लिए राजी करने का संभावित विकल्प यथार्थवादी रवैया अपनाना ही है। उसके लिए भारत के पास क्या विकल्प हैं? पाकिस्तान प्रायोजित साजिशें और आतंकवाद खत्म करने का रामबाण सुरक्षा की इस स्पर्द्धा को साधन में ही छिपा है।

भारत की कूटनीतिक संस्कृति ऐसी स्थिति को संभाल सकती है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र राज्यों को तीन श्रेणियों में बांटता हैः मजबूत, बराबर और कमजोर। कौटिल्य पहली दोनों श्रेणियों के बीच शांति की बात करते हैं और कमजोर तथा बेईमान विरोधी के खिलाफ लड़ाई छेड़ने की सलाह देते हैं। धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति प्राचीन ग्रंथ है, जिसका अनुवाद सर विलियम जोन्स ने ब्रिटिश औपनिवेशीकरण के दौरान हिंदू कानून बनाने के लिए किया था। मनुस्मृति में भी विग्रह (युद्ध) को शासनकला की छह नीतियों में शामिल किया गया है। विग्रह दो तरह से काम करने के लिए कहता हैः पहले में स्वयं किसी विरोधी के खिलाफ युद्ध किया जाता है और दूसरे में चुनौती देने वाले के खिलाफ युद्ध में अपने सहयोगी की मदद की जाती है। जब तक पाकिस्तान की विदेश नीति आईएसआई और सेना के इशारे पर लिखी जाती रहेगी तब तक यह भारत विरोधी ही रहेगी। इसलिए भारत को आत्मरक्षा में जवाब देना ही पड़ेगा। मनुस्मृति का दोतरफा तरीका पाकिस्तान की शत्रु सरकार को आइना दिखाने का सबसे सही तरीका है।
खुला युद्ध समाधान नहीं है और 20 करोड़ पाकिस्तानियों के बड़े देश को भारतीय खुफिया एजेंसियों के गोपनीय अभियानों से अस्थिर भी नहीं हो सकता। पाकिस्तान के साथ आर्थिक रिश्तों में भारत को बहुत बढ़त हासिल नहीं है और उसे राजनयिक रूप से एक सीमा से अधिक अलग-थलग भी नहीं किया जा सकता। समाधान दोतरफा तरीके में ही है।

पहला, खुद को बहुत ऊंचा और बेहतर बताने की पाकिस्तानी राजनेताओं और सेना की फितरत से वहां की जनता के बड़े वर्ग का मोहभंग हो चुका है। वे पाकिस्तान की सरकार में उदार विचार नहीं होने के पीछे बाहरी कारणों पर इल्जाम थोपने वाले साजिशों वाले सिद्धांत के परे देख सकते हैं। इसलिए दरारें बढ़ती जा रही हैं और सत्ता के खिलाफ दूसरी दरारों से मिलती जा रही हैं। सिंधी, सराइकी, बलोच, पख्तून और अहमदिया जैसे जातीय समूहों के पास सत्ता से विद्रोह के पर्याप्त कारण हैं। यदि पाकिस्तान के भीतर मौजूद ताकतें प्रधानमंत्री की जबदस्त जीत के इस मौके पर भारत के बारे में अपनी विदेश एवं सुरक्षा नीतियां नहीं बदलती हैं तो भारत के पास पाकिस्तान के भीतर मौजूद इन दरारों का फायदा उठाने का विकल्प मौजूद है।

दूसरा, पाकिस्तान के पड़ोसी इस देश में मौजूद उस अराजकता के शिकार होते आए हैं, जो इस्लामी आतंकवाद तथा जातीय भेदभाव को सही ठहराती है। विदेश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग रहते हैं, जो पाकिस्तानी धरती पर रहने वाले संघर्षरत जातीय समुदायों से सांस्कृतिक रिश्ते रखते हैं। 70 साल से लगातार अनदेखी के कारण अलगाववाद की भावना घर कर गई है। पाकिस्तान में रहने वाले 3.2 करोड़, अफगानिस्तान में 1.4 करोड़, ईरान में रहने वाले 1.1 लाख, अमेरिका में रहने वाले 138,550 और रूस में 10,000 पख्तून विद्वान, मीडिया और उग्रपंथी सत्ता के खिलाफ एकजुट होने लगे हैं। पाकिस्तान में 70 लाख, ईरान में 20 लाख, ओमान में 5.13 लाख, संयुक्त अरब अमीरात में 4.68 लाख, अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान में 1-1 लाख तथा सऊदी अरब में 16,000 आबादी वाले बलोच समुदाय में भी आक्रोश बढ़ रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में संवाद को कश्मीर से आतंकवाद की ओर मोड़ने में सफल रहे थे। राजनयिक और आर्थिक घेराबंदी अच्छी तरह से की गई। उसके बाद आतंकी हमलों के मुंहतोड़ जवाब ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के जरिये दिए गए। सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तान की परमाणु धमकी को तो गीदजडभभकी साबित कर ही दिया है, उसने दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन का गणित भी बदल दिया है। भारत की सुरक्षा एवं विदेश नीति में बहुत कुछ पहली बार हुआ है। लेकिन उससे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का अड़ियलपन खत्म नहीं हुआ है। नई सरकार को पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाकर और उसके खिलाफ सुनियोजित योजना तैयार कर इस सिलसिले को आगे बढ़ाना होगा। दोतरफा तरीके पर तब चलना होगा, जब तक सेना और आईएसआई नरम न पड़ने लगें। जब तक पाकिस्तान में नीतिगत फैसले सेना और आईएसआई के हाथ में रहते हैं तब तक शांति वार्ता रुकी रहनी चाहिए।

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा था कि नेपोलियन महान सम्राट था, लेकिन मानव जाति के लिए अच्छा यही होता कि वह कभी जन्म ही नहीं लेता। यह बात शायद पाकिस्तान के लिए भी सही है। इस घिनौनी कहानी को भी हमेशा के लिए खत्म करने का समय आ गया है।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://www.hindustantimes.com/rf/image_size_640x362/HT/p2/2016/11/23/Pictures/prominent-filmmaker-violation-september-balochistan-september-pakistani_85639dbc-b164-11e6-a9a7-656025b680d0.jpg

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