कज़ाकस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव ने 19 मार्च 2019 को टेलीविजन संदेश के जरिये ऐतिहासिक घोषणा करते हुए इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि यह फैसला आसान नहीं है, लेकिन वह कज़ाकस्तान की राजनीति में नेताओं की युवा पीढ़ी के लिए रास्ता साफ करना चाहते हैं। इसके साथ ही वह मध्य एशिया में किर्गिज़िस्तान के राष्ट्रपति अतामाबायेव के बाद शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता सौंपने वाले दूसरे राज्याध्यक्ष बन गए हैं। अपने सबसे विश्वासपात्र कासिम-जोमार्त तोकायेव के हाथ में सरलता से सत्ता सौंपकर नज़रबायेव ने एक नज़ीर पेश की है, लेकिन तेल तथा हाइड्रोकार्बन के मामले में समृद्ध मध्य एशियाई गणराज्य कज़ाकस्तान के भविष्य को लेकर सुगबुगाहट भी उनके बाद शुरू हो गई है।
उनके इस्तीफे के एक दिन बाद 20 मार्च, 2019 को सीनेट के प्रमुख कासिम-जोमार्त तोकायेव को राष्ट्रपति के तौर पर नज़रबायेव के बाकी कार्यकाल तक अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में काम करने के लिए शपथ दिलाई गई। नज़रबायेव की सबसे बड़ी पुत्री दरीगा एकमत से सीनेट की प्रमुख अध्यक्ष चुनी गईं और इस तरह वह राष्ट्रपति के बाद देश के दूसरे सबसे ताकतवर पद पर आसीन हो गईं। तोकायेव अनुभवी राजनयिक और विद्वान राजनेता हैं, जो नज़रबायेव सरकार में कुछ बेहद महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं। अपने संबोधन में नज़रबायेव ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में उनकी क्षमताओंका बखान करते हुए कहा, “वह कज़ाकस्तान की आजादी के शुरुआती दिनों से ही मेरे साथ काम करते आए हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं। वह ईमानदार, जिम्मेदार हैं और ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके बगैर काम नहीं चल सकता। वह देश के भीतर और बाहर लागू की गई नीतियों का पूरा समर्थन करते हैं। सभी कार्यक्रम उनके साथ मिलकर ही बनाए और चलाए गए हैं। मुझे लगता है कि तोकायेव वह व्यक्ति हैं, जिन्हें हम कज़ाकस्तान का शासन सौंप सकते हैं।”1 शपथ लेने के बाद तोकायेव का पहला प्रस्ताव यह था कि राजधानी अस्ताना का नाम बदलकर कज़ाक राष्ट्र के संस्थापक प्रमुख के सम्मान में नूरसुल्तान कर दिया जाए। इससे पहले भी कई बार यह प्रस्ताव कज़ाक संसद में आया था, लेकिन इस बार यह फौरन मंजूर हो गया है।
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव अप्रैल, 2020 में होने थे। लेकिन 9 अप्रैल, 2019 को राष्ट्रपति तोकायेव ने ऐलान किया कि चुनाव इसी वर्ष 9 जून को होंगे। उन्होंने कहा कि यह फैसला राष्ट्र नेता (नूरसुल्तान नज़रबायेव) और सीनेट प्रमुख दरीगा नज़रबायेवा से राय-मशविरे के बाद लिया गया है। राष्ट्रपति चुनाव जल्द कराने के ऐलान का मकसद राजनीतिक अनिश्चितता को खत्म करना है क्योंकि इससे जनता के बीच तनाव बढ़ सकता है। राष्ट्रपति तोकायेव ने टीवी पर अपने संबोधन में कहा कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की गारंटी देते हैं, लेकिन यह महज कहने के लिए है। जल्द चुनाव होने पर किसी भी प्रतिद्वंद्वी के लिए चुनाव लड़ने की रणनीति तैयार करने का मौका भी घट गया है। दरीगा नज़रबायेवा ने कथित तौर पर कहा है कि वह कज़ाकस्तान के राष्ट्रपति पद की होड़ में नहीं हैं। बताया गया है कि नज़रबायेव की अध्यक्षता वाली सत्तारूढ़ पार्टी नूर ओतन बीस दिन में अपने उम्मीदवार का नाम घोषित कर देगी। दरीगा पार्टी की सबसे पहली पसंद होंगी। हालांकि वह चुनाव नहीं लड़ने की बात कह चुकी हैं, लेकिन आखिरी फैसला उनके पिता का होगा, जो कज़ाकस्तान के संस्थापक नेता हैं।
सोवियत संघ के विघटन के बाद कज़ाकस्तान ने बहुमुखी विदेश नीति अपनाई क्योंकि हर तरफ से घिरे होने के कारण उसे पड़ोस की दो प्रमुख शक्तियों रूस और चीन पर निर्भर रहना ही था। कज़ाकस्तान एक तरह से पूर्व और पश्चिम के बीच के चौराहे पर स्थित है और इस भू-राजनीतिक स्थिति का फायदा उठाते हुए नज़रबायेव आर्थिक विकास और निवेश के लिए पश्चिम की ओर मुड़ गए। लेकिन उन्होंने रूस तथा चीन के साथ प्रगाढ़ आर्थिक एवं राजनीतिक रिश्ते बरकरार रखे। उनकी दूरदर्शिता और विदेश नीति के कारण ही कज़ाकस्तान दूसरे मध्य एशियाई गणराज्यों को पछाड़ते हुए वैश्विक कद वाला देश बन गया।
कुछ अहम कारण हैं, जिनके माध्यम से नज़रबायेव के इस्तीफे को समझा जा सकता है। पहला कारण यह है कि नज़रबायेव ने बेशक देश को वैश्विक स्तर पर अहमियत और मान्यता दिलाई, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में उसे कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। नज़रबायेव के निरंकुश शासन को वैधता केवल इसीलिए मिली थी क्योंकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से उनका प्रदर्शन अच्छा रहा था। नज़रबायेव के 30 वर्ष के शासन का आकलन करते समय जीवन स्तर की बेहतरी, राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक वृद्धि को भी ध्यान में रखना होगा। लेकिन रूसी अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण जिंसों की कीमतें तेजी से गिर रही हैं, जिसके कारण आर्थिक वृद्धि की दर 2001 की 13.5 प्रतिशत से घटकर 2017 में 4.1 प्रतिशत ही रह गई।2 परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में कज़ाक समाज में आर्थिक असमानता बढ़ गई और आर्थिक विकास का लाभ पाने वालों तथा उससे वंचित रहने वालों के बीच सामाजिक असंतोष पैदा हो गया है।
कज़ाक सरकार के भ्रष्टाचार बड़ी चुनौती रहा है क्योंकि हाल में जारी भ्रष्टाचार सूचकांक में उसे 124वें स्थान पर रखा गया है।3 सभी जानते हैं कि निरंकुश शासन में राजनेता, सरकारी अधिकारी और सत्तारूढ़ वर्ग के परिवार तथा मित्रों को सबसे ज्यादा फायदा होता है और उनमें से अधिकतर भ्रष्टाचार में भी लिप्त रहते हैं। आम आदमी अलग-थलग और आक्रोशित महसूस करता है, जिसके कारण निरंकुश सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगता है। नज़रबायेव सरकार के साथ भी ऐसा ही हुआ है। हाल ही में अस्ताना में एक घर में लगी आग में फंसकर पांच बच्चों की मौत हो गई क्योंकि उनके माता-पिता घर चलाने के लिए काम पर निकल गए थे। इस घटना ने सामाजिक-आर्थिक असमानता और इसे दूर करने में सरकार की नाकामी के कारण जनता में पनपे असंतोष को और भी भड़का दिया। राष्ट्रपति नज़रबायेव ने स्थिति को फौरन भांप लिया और कज़ाकस्तान के नागरिकों को बेहतर हालात देने में नाकाम रही सरकार को बर्खास्त कर दिया।
पड़ोसी देश किर्गिज़िस्तान में सामाजिक-आर्थिक असमानता के कारण हुई जनक्रांति में लगातार दो सरकारों का सत्तापलट होते देख चुके राष्ट्रपति नज़रबायेव कज़ाकस्तान में सत्ता का सुगम हस्तांतरण चाहते थे। संभवतः वह यह भी चाहते हों कि नए नेता आधुनिकीकरण और आर्थिक वृद्धि की उनकी दबंग नीतियों को जारी रखें और केंद्रीकृत सत्ता तथा राजनीतिक नियंत्रण के लिए यह बेहद जरूरी है। लेकिन वह यह भी सुनिश्चित करेंगे कि कज़ाकस्तान में निवेश तथा बाजारीकरण के लिए समुचित संभावनाएं रहें।4
नज़रबायेव उज़बेकिस्तान के संस्थापक और तानाशाह इस्लाम करीमोव की मृत्यु के बाद वहां हुए सत्ता हस्तांतरण का अनुभव देख चुके थे। करीमोव की सरकार में प्रधानमंत्री रह चुके शौकत मिर्ज़ियोयेव राष्ट्रपति बन गए। लेकिन शांतिपूर्ण दिखने वाले इस सत्ता हस्तांतरण के गंभीर परिणाम पूर्व राष्ट्रपति के परिवार, मित्रों तथा प्रियजनों को भुगतने पड़े। शौकत मिर्ज़ियोयेव के नेतृत्व वाली नई उज़बेक सरकार ने कुछ कड़े कदम उठाए और कई अहम व्यक्तियों को उनके पदों से हटा दिया। इसलिए उज़बेकिस्तान में सत्ता का हस्तांतरण चुनौती भरा रहा है और नई सरकार करीमोव तथा उनके परिवार द्वारा की गई अनियमितताओं की तलाश में जुटी है। नतीजा यह हुआ है कि इस्लाम करीमोव की पुत्री गुलनारा करीमोव पर गंभीर वित्तीय धोखाधड़ी के आरोप लगे और उन्हें घर में ही नजरबंद रखा गया है।
निरंकुश सरकार वाले लगभग सभी मध्य एशियाई गणराज्यों में यही देखा गया है कि ज्यादातर मामलों में परिजन और रिश्तेदार ही सरकार में सबसे ताकतवर पदों पर रहते हैं। उज़बेकिस्तान में नई सरकार ने राष्ट्रपति के पूरे परिवार को बंद कर दिया और उन्हें सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया को राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से प्रभावित करने का कोई भी मौका नहीं दिया। यह देखकर नज़रबायेव ने हालात ऐसे होने का इंतजार नहीं किया बल्कि वह सुनिश्चित करना चाहते थे कि सत्ता हस्तांतरण के बाद भी सरकार की डोर उनके या उनके परिवार के हाथों में ही रहे।5 साथ ही वह यह भी चाहते थे कि कज़ाकस्तान में यदि सत्ता हस्तांतरण होना है तो इस काम को वह स्वयं अंजाम दें।
कज़ाक राष्ट्रपति के इस्तीफे की संभावित परिस्थितियों पर चर्चा के बाद यह जानना जरूरी है कि उन्होंने कज़ाकस्तान की राजनीति से संन्यास लिया है या नहीं। कज़ाकस्तान में सत्ता हस्तांतरण की अटकलें कुछ वर्षों से चलती आई हैं और यह भी माना जा रहा था कि नज़रबायेव सुनिश्चित करेंगे कि राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी वह राष्ट्र के नेता बने रहें। 2017 में नज़रबायेव ने संविधान में कुछ तब्दीली की थीं, जिनके बाद राष्ट्रपति की शक्तियां कम हो गईं। जुलाई, 2018 में उन्होंने सुरक्षा परिषद की भूमिका बढ़ाई और सभी सुरक्षा बलों तथा विदेश नीति का नियंत्रण उसी के हाथों में दे दिया। पिछले वर्ष से उन्होंने सरकार, सुरक्षा तथा राष्ट्रपति से जुड़े अधिकरियों को फिर से नियुक्त किया।6 कज़ाकस्तान के नागरिकों के नाम 19 मार्च के अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि वह सुरक्षा परिषद और नूर ओतन पार्टी के मुखिया बने रहेंगे। इस तरह वह निर्णय लेने की सर्वोच्च शक्ति उन्हीं के हाथ आ गई। उन्हें अलबासी यानी राष्ट्र के नेता का खिताब भी दिया गया है, जिसके बाद उन्हें और उनके परिवार को न तो गिरफ्तार किया जा सकता है और न ही उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है।
कज़ाकस्तान में राजनीतिक परिवर्तन ने नज़रबायेव के फैसलों तथा निकट भविष्य में उनके बरकरार रहने के बारे में कई सवाल खड़े किए हैं। हालांकि उन्होंने तोकायेव को अपना उत्तराधिकारी चुना, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि राष्ट्रपति पद के चुनावों के बाद वह सत्ता में रहेंगे या नहीं। चूंकि औचक चुनावों की घोषणा हुई है, इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि नज़रबायेव के परिवार के कुछ लोग चुनावों के बाद कज़ाकस्तान की बागडोर संभालने के लिए कतार में लगे होंगे। इस मोड़ पर सत्ता छोड़ने से नज़रबायेव को अपनी पसंद के व्यक्ति के हाथ में सत्ता सौंपने के लिए उपयुक्त माहौल बनाने का पर्याप्त समय मिल गया है।
असली प्रश्न यह है कि उत्तराधिकार का यह दूसरा चरण कज़ाकस्तान में कैसे काम करेगा। नज़रबायेव लगातार कहते आए हैं कि किसी युवा नेता को सत्ता संभालनी होगी। लेकिन यह केवल कहने की बात लगती है। इसीलिए तोकायेव के राष्ट्रपति बनने के बाद पूर्व राष्ट्रपति की सबसे बड़ी पुत्री दरीगा नज़रबायेवा के सीनेट प्रमुख के तौर पर निर्विरोध चुनाव ने इस धारणा को मजबूत किया है कि वही अगली राष्ट्र प्रमुख बनेंगी। वह लंबे समय से कज़ाकस्तान की राजनीति में सक्रिय रही हैं और सांसद तथा उप प्रधानमत्री (2015-16) के रूप में भी काम कर चुकी हैं। यह सच है कि वह मजबूत महिला और अनुभवी राजनेता हैं। लेकिन इस बात में संदेह है कि अपने पिता की मदद के बगैर वह प्रतिद्वंद्वी गुटों को एक साथ कर पाएंगी या नहीं। लेकिन 9 अप्रैल, 2019 को अंतरिम राष्ट्रपति द्वारा समय से पहले चुनाव कराए जाने की घोषणा होने के बाद कज़ाकस्तान के राष्ट्रपति के रूप में दरीगा की उम्मीदवारी तब तक स्पष्ट नहीं है, जब तक पार्टी उनके नाम का ऐलान नहीं कर देती।
नज़रबायेव के परिवार से एक और उम्मीदवार उनका भतीजा समत अबीश है, जो फिलहाल राष्ट्रीय सुरक्षा समिति का डिप्टी चेयरमैन है। हालांकि वह कभी खुलकर सामने नहीं आया है, लेकिन उसकी उम्मीदवारी युवा नेतृत्व का रास्ता साफ करने की नज़रबायेव की योजना के अनुकूल हो सकती है क्योंकि उसकी उम्र केवल 40 वर्ष है। वही नहीं बल्कि कुछ और लोग भी हैं, जो किसी न किसी तरह नज़रबायेव से जुड़े हैं और राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें सत्ता की होड़ में माना जा सकता है। कज़ाकस्तान में सत्ता के उत्तराधिकार में विवाद की संभावना भी है, लेकिन नज़रबायेव ऐसी स्थिति से निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं। इसलिए राष्ट्र के संस्थापक नेता नूरसुल्तान नज़रबायेव ही तय करेंगे कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद कज़ाकस्तान का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, लेकिन सत्ता हस्तांतरण के पीछे उनका अंतिम उद्देश्य यही होगा कि यथास्थिति बरकरार रहे।7 इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि कज़ाकस्तान अपनी घरेलू और विदेश नीतियों को आगे बढ़ाता रहे यानी सुधार लागू हों और उसकी बहुमुखी विदेश नीति का प्रचार हो।
इस बात से इनकार नहीं कि इस्तीफा देने के बाद भी नज़रबायेव संवैधानिक व्यवस्था के जरिये देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बने हुए हैं। वह कज़ाकस्तान के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक उदाहरण तय करने में केंद्रीय भूमिका निभाएंगे और अपने बाद देश का राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति को निर्देश भी दे रहे होंगे। हालांकि कहा जा रहा है कि कज़ाक समाज में फैलती सामाजिक-आर्थिक असमानता नई सरकार के लिए मुश्किल पैदा करने जा रही है, लेकिन पुराने अनुभवों से सीखने और नए नजरिये को अपनाने से कज़ाकस्तान के सामाजिक-आर्थिक विकास में तेजी आ सकती है। अब राष्ट्रपति तोकायेव के वायदे के मुताबिक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष राष्ट्रपति चुनावों का इंतजार करने का समय है और यह उम्मीद भी करनी चाहिए कि भावी नेतृत्व समान आर्थिक-सामाजिक विकास के नजरिये के साथ वांछित परिणाम देगा।
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