प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरी बार जनादेश पाने के भारत के घरेलू और विदेश नीति दोनों के लिए अनेक गहरे निहितार्थ हैं। नई दिल्ली में, प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह में बे ऑफ बंगाल इनिश्एिटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरियल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बीआइएमएसटीईसी/बिम्सटेक) नेताओं की उपस्थिति इस क्षेत्र में भारत की प्रतिबद्धता और इसकी अब तक अनप्रयुक्त क्षमता दोनों को परिलक्षित करती है। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल के लिए हुए शपथग्रहण समारोह में आसियान नेताओं की मौजूदगी ने भारत की खुली एक्ट ईस्ट पॉलिसी और दक्षिण-पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्था के साथ पिछले दशक में उसकी मजबूती से बढ़ती संलग्नता को एक विसनीयता प्रदान की थी।
विगत पिछले पांच वर्षो में, यानी नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में द्विपक्षीय सम्बन्धों समेत, विस्तृत-पड़ोस के क्षेत्रीय एवं उप-क्षेत्रीय संगठनों के साथ भारत के हित स्पष्टत: विकसित और गहरे होते गए हैं। निश्चित रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों के साथ भारत के सम्बन्ध का बेहतर पोषण बिम्सटेक के जरिये ही किया जा सकता है, क्योंकि इसके पांव दोनों ही क्षेत्रों में फैले हुए हैं। जैसा कि आंकड़े बताते हैं कि बिम्सटेक देशों के साथ भारत का कारोबार बढ़ रहा है। बिम्सटेक देशों को भारत का निर्यात 29.5 प्रतिशत और कारोबार में 26 फीसद तक वृद्धि हुई है।1 इसने आधारभूत संरचना के विकास में भी सहयोग किया है कि भारत इन अनेक पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध विकसित कर रहा है। इस प्रकार, सीमा पार सम्पर्क व्यापार गलियारों में से कई निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं, वे पूरा हो कर क्षेत्रों को जोड़ने वाले आर्थिक गलियारे बनेंगे। वे क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र को बदलने की गुंजाइश के साथ पड़ोस से अंतर्सम्पर्क की संभावना बनेंगे।
2016 में, गोवा में, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के पाश्र्व में बिम्सटेक के सभी सदस्यों के साथ एकांत बैठक की शुरुआत कर मोदी ने 20 साल पहले के बने हुए इस पुराने संगठन में ऊर्जा का संचार कर उसे नींद से जगा दिया है। इस भौगोलिक क्षेत्र में घरेलू विकास को देखते हुए और क्षेत्रीय तथा अतिरिक्त-क्षेत्रीय किरदारों की पारस्परिकता के साथ बिम्सटेक ने अपनी महती प्रासंगिकता हासिल कर ली है। उसने क्षेत्र के लोगों की साझा आवश्यकताओं को पूरा करने में काफी योगदान का वादा किया है। साझा परम्परागत और अ-परम्परागत सुरक्षा के मसलों ने सदस्य देशों और आपस में बांधे रखा है। सुरक्षा रणनीति के घटक मसले पर श्रीलंका की अगली मेजबानी के साथ निरपवाद रूप से इसकी प्रतिध्वनि में कोलंबो में सभी सदस्यों की मौजूदगी में ज्यादा स्पष्ट तरीके से सुनाई देगी। संगठन देशों की सरकारें, विचार-मंच (थिंक टैंक्स) और भागीदार इस खास आयाम पर बिम्सटेक में विचार-विमर्श करते रहे हैं। इस प्रकार, 2017 से ही राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों की सालाना बैठक को एक संस्थागत रूप देना, सुरक्षा के अतिआवश्यक मसलों को एक विसनीयता प्रदान करता है। हालांकि पहले से ही सदस्य देशों के बीच सीमा पार सुरक्षा मसलों जैसे तस्करी, मानव तस्करी, नकली नोटों की आवाजाही, मादक द्रव्य और समुद्री डकैती रोकने के लिए सामान्य सहयोग सम्बन्ध बना हुआ है।
दरअसल, ‘क्षेत्रीय सुरक्षा’ पर हालिया हुए विचार-मंचों के बीच संवाद की पहल विवेकानन्द इंटरनेशनल फांउडेशन (वीआइएफ), दिल्ली ने की थी, जिसमें सभी सदस्यों ने बिम्सटेक क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग को औपचरिक रूप देने पर सर्वसम्मति जताई थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पहली बैठक के परिणामस्वरूप मिले दस्तावेज में बंगाल की खाड़ी को साझा सुरक्षा का स्थान बताया गया था। हालांकि साझा कानूनी सहायता संबंधी पहल पर बिम्सटेक कन्वेंशन पर अभी दस्तखत नहीं हुआ है, पर इस प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए भारत ने सैन्य अभ्यास का प्रस्ताव रखा है। क्षेत्रीय संगठन में एक साझा सुरक्षा ढांचा स्थापित करने की दिशा में सभी सदस्य देशों की सुरक्षा एजेंसियों का साझा सहयोग की आवश्यकता एक आवश्यक आधार है। वीआइएफ संवाद ने साझा हितों/सरकारों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव भी दिये हैं। इनमें शामिल हैं-पहला, सुरक्षा सहयोग साक्ष्य आधारित डेटा और अनुसंधान पर आधारित होना चाहिए, दूसरा, बिम्सटेक के सचिवालय को मजबूत करना और सुरक्षा मामलों पर अनुसंधान कार्य को संभव करना। तीसरे, विचार-मंचों (थिंकटैंक्स) को वह जटिल मसलों की सूत्र समीक्षा कर सरकार के पास विचार के लिए भेजने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। बड़ी जागरूकता के निर्माण के लिए न केवल विभिन्न भागीदारों और किरदारों की भूमिका आवश्यक है बल्कि आगे कार्रवाई की योजना बनाने के लिए ये परामर्श और विचार-विमर्श नियमित रूप से होते रहना चाहिए। इसकी दृढ़ सिफारिश की गई कि विदेश नीति से जुड़े किन्हीं लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आतंकवाद किसी भी सरकार की नीति का अंग नहीं बनाया जाना चाहिए। इसी तरह, आतंकवादियों की मदद करने वाले और उसे सुरक्षित पनाहगाह उपलब्ध कराने वाले देश को उसके इस काम के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।
आतंकवादियों और आतंकी समूहों की अति क्षेत्रीय प्रकृति होने के कारण इस क्षेत्र में या बिम्सटेक के दायरे में एक सुरक्षा ढांचा विकसित करने में सहयोगी प्रयासों को जटिल बना दिया है। भू-रणनीतिक स्थान और साझा पर्यावरण को देखते हुए इस समूह में इंडोनेशिया को शामिल किये जाने का ठोस तर्क है। इंडोनेशिया भारत का समुद्री पड़ोसी है। इसके उत्तरी सुमात्रा का पश्चिमी तट बंगाल की खाड़ी से सटा हुआ है। उसकी भू-अवस्थिति बिम्सटेक क्षेत्र में शामिल किये जाने लायक एक आदर्श स्थिति है। अद्यतन व्यापार कारोबारी रिपोर्ट के मुताबिक इंडोनेशिया अगले दशक में पांच शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने जा रहा है। इसलिए बिम्सटेक में इसको शामिल करने से न केवल इस क्षेत्रीय संगठन को आर्थिक ऊर्जा-शक्ति से लैस करेगा-अभी तो समूह के सदस्य भारत और बांग्लादेश दोनों पड़ोसी सर्वोच्च स्थान पाने के लिए इंडोनेशिया से आगे चल रहे हैं-बल्कि बिम्सटेक की भू-रणनीतिक अवस्थिति को और समग्रता में कवर करेगा।
भारत और इंडोनेशिया का मजबूत ऐतिहासिक नाता रहा है। इंडोनेशिया का समूह के सदस्यों के साथ भी व्यापार, आर्थिक, पर्यावरण और परम्परागत सुरक्षा के साझा मसले हैं। दक्षिणपूर्व एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ी आबादी वाला देश इंडोनेशिया सर्वाधिक भौगोलिक क्षेत्र पर भी दखल रखता है। इस लिहाजन, हिन्द और प्रशांत महासागर में उसकी भूमिका इस क्षेत्र में दिनानुदिन महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। इसलिए, बिम्सटेक के सदस्य देशों को अपने समूह में इंडोनेशिया को शामिल करने पर विचार करना चाहिए। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में स्थिर और शांत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कायम करने के लिए बंगाल की खाड़ी और बिम्सटेक में सहयोग और अभिसरण (कन्वर्जन्स) आवश्यक होगा। इस क्षेत्र में एक साझा सुरक्षा ढांचा व्यवस्था और सद्भाव बनाये रखने का फ्रेमवर्क मुहैया कर सकता है।
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