मोजाम्बिक गणराज्य अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। इस देश की आबादी 3 करोड़ है। पूर्व में यह हिंद महासागर से घिरा है तो तंजानिया, मलावी, जाम्बिया, जिम्बॉब्वे, स्वाजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका इसके पड़ोसी देश हैं। वर्ष 1498 में वास्कोडिगामा ने इसकी खोज की थी जो 1505 में पुर्तगाल का उपनिवेश बना। वर्ष 1975 में इसे आजादी मिला और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए। मोजाम्बिक सोलह वर्षों के लिए गृहयुद्ध की आग में झुलसता रहा, फिर भी भारत उन शुरुआती देशों में से एक था जिन्होंने राजधानी मापुतो में कूटनीतिक मिशन शुरू किया जबकि मोजाम्बिक ने नई दिल्ली में अपना कूटनीतिक मिशन वर्ष 2001 में ही शुरू किया। अफ्रीकी महाद्वीप से आर्थिक एकीकरण करने के लिए राष्ट्रपति न्यूसी ने पिछले वर्ष रवांडा में आयोजित हुई अफ्रीकी संघ की दसवीं महासभा में महाद्वीपीय मुक्त व्यापार समझौते (सीएफटीए) पर हस्ताक्षर किए।
वर्तमान में भारत और मोजाम्बिक के बीच 1.5 अरब डॉलर का व्यापार होता है। भारत से मोजाम्बिक को मुख्य रूप से शोधित पेट्रोलियम उत्पाद और दवाएं निर्यात की जाती हैं। वहीं भारत मोजाम्बिक से मुख्य रूप से कोयले और काजू का आयात करता है। भारत और मोजाम्बिक ने कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा कई क्षेत्रों में सहयोग के लिए आशय पत्र (एमओसी) पर भी सहमति जताई है। इन क्षेत्रों में कृषि, ग्रामीण विकास, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शोध, निवेश संरक्षण, दोनों देशों के छोटे एवं मझोले उपक्रमों के लिए दोहरे कराधान से बचने की संधि, खनिज संसाधन, तेल एवं प्राकृतिक गैस, रक्षा सहयोग जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं। उसे भारतीय आयात-निर्यात बैंक के माध्यम से रियायती दरों पर मिलने वाले कर्ज (एलओसी) के रूप में सहायता भी उपलब्ध कराई गई है। (भारतीय उच्चायोग, मापुतो, 2017)
मोजाम्बिक के अभी तक के चारों राष्ट्रपतियों ने भारत का दौरा किया है। राष्ट्रपति समोरा मशेल 1982 में, जोएकिम चिसानो 1988 और 2002 में, अर्मांदो गुएजुबा 2010 में फिलिप न्यूसी 2015 में भारत आ चुके हैं। भारत के भी दो प्रधानमंत्रियों ने मोजाम्बिक का दौरा किया है। 1982 में इंदिरा गांधी इस अफ्रीकी देश का दौरा करने वाली पहली भारतीय प्रधानमंत्री बनीं तो जुलाई 2016 में नरेंद्र मोदी मोजाम्बिक जाने वाले दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री रहे। उस दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने मादक दवाओं की तस्करी रोकने, खेल और दालों के व्यापार से जुड़े सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। विदेश राज्य मंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह ने भी पिछले वर्ष फरवरी में मोजाम्बिक का दौरा किया जिसके बाद मोजाम्बिक के विदेश मंत्री जोस एंटोनियो पसोचे भी 28 नवंबर से 2 दिसंबर के बीच भारत दौरे पर आए।
वर्ष 2010 में राष्ट्रपति गुएजुबा के दौरे से ही दोनों देशों के बीच एलओसी-प्रवर्तित परियोजनाओं की राह खुली जिनका दायरा भी 14 करोड़ डॉलर से बढ़कर 50 करोड़ डॉलर के बीच पहुंच गया है। इस मदद से मोजाम्बिक को बिजली उत्पादन एवं वितरण, पेयजल की उपलब्धता, कृषि उत्पादन में सुधार, सिंचाई अवसंरचना के कायाकल्प और आईटी पार्क इत्यादि बनाने में मदद मिली है। भारत द्वारा मोजाम्बिक के छात्रों को छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण के रूप में बड़ी महत्वपूर्ण मदद उपलब्ध कराई जा रही है।
मोजाम्बिक विपुल प्राकृतिक संसाधनों से धनी देश है और तमाम भारतीय कंपनियां वहां बड़े पैमाने पर निवेश भी कर रही हैं। भारतीय कंपनियों का अधिकांश निवेश कोयला और प्राकृतिक गैस के क्षेत्रों में हो रहा है। इनमें ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉर्पोरेशन विदेश लिमिटेड और ऑयल इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियां प्रमुख हैं। वहीं कोयला क्षेत्र में इंटरनेशनल कोल वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड जैसे दिग्गज निवेशक भी हैं। मोजाम्बिक के साथ हमारी बढ़ती सहभागिता से स्वास्थ्य, शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी और दवाओं के क्षेत्र में भारी निवेश किया जा रहा है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मोजाम्बिक के विदेश मंत्री पसेचो ने चौथे भारत- मोजाम्बिक संयुक्त आयोग की बैठक की। इस बैठक में दोनों नेताओं ने वाणिज्यिक, निवेश, रक्षा, विकास और सामाजिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने दोनों देशों के बीच संपर्क बढ़ाने की संभावनाएं भी तलाशीं। इसके अलावा उन्होंने रक्षा सहयोग बढ़ाने और इंडियन ओशियन रीजन (आईओआर) में सुरक्षा को बेहतर बनाने पर चर्चा की। दोनों सरकारों ने रक्षा-सुरक्षा, न्यायिक और कांसुलर सिस्टम, पारंपरिक दवाओ और सांस्कृतिक विनिमय पर भी काम करने के लिए सहमति जताई। दोनों देशों ने तस्करी, आतंकवाद, समुद्री दस्युओं और अवैध शिकार से निपटने में साथ मिलकर काम करने की महत्ता की समीक्षा और विश्लेषण भी किया।
नई दिल्ली में बैठक के दौरान संयुक्त आयोग ने भारत और मोजाम्बिक के बीच बढ़ते व्यापार और निवेश पर संतोष जताया। इस बीच यह तथ्य भी सामने आया कि वर्ष 2017 में मोजाम्बिक ने भारत को ही सबसे अधिक निर्यात किया। मोजाम्बिक के कुल निर्यात राजस्व में 35 प्रतिशत योगदान भारत का ही रहा। वहीं मोजाम्बिक में कोयला और प्राकृतिक गैस के मोर्चे पर भारतीय निवेश अफ्रीका में प्रमुख रहा। इसके अलावा उन्होंने कृषि, कृषि आधारित उद्योगों, बुनियादी ढांचे, खनन, ऊर्जा और पर्यटन के क्षेत्रों में भी निवेश बढ़ाने पर भी चर्चा की।
एलओसी और अन्य किस्म की मदद के माध्यम से भारत ने मोजाम्बिक को खाद्य सुरक्षा, छोटे एवं मझोले उपक्रमों, बिजली, सड़क, पेयजल उपलब्धता, सौर ऊर्जा और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में और मजबूत बनाया है। इस मामले में टिका-बुजी हाईवे जैसी हाल में पूरी हुई परियोजना की मिसाल दी जा सकती है जो भारत की 15 करोड़ डॉलर की मदद से बनकर तैयार हुआ है। बिजली और आवासीय परियोजनाओं में बड़ी एलओसी परियोजनाएं चल रही हैं। दौरे के दौरान भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार और नेशनल डॉक्युमेंटेशन एंड इन्फॉर्मेशन सेंटर ऑफ मोजाम्बिक के बीच एमओयू पर भी हस्ताक्षर किए गए। अभिलेखागार प्रबंधन के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी।
वर्ष 2018 की शुरुआत में विदेश मंत्री पचेओ ने मोजाम्बिक में चीन के योगदान का भी उल्लेख किया कि उसने सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में तमाम मुश्किल हालात से निपटने अहम भूमिका निभाई। आज मोजाम्बिक में सबसे अधिक निवेश करने के अलावा चीन उसके प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है जो उसके लिए वित्त मुहैया कराने वाला प्रमुख स्रोत बना हुआ है। साथ ही मोजाम्बिक के बुनियादी ढांचा विकास में भी चीन अहम योगदान दे रहा है।
मोजाम्बिक की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। दक्षिण पूर्वी हिस्से में उसकी तट रेखा भी बहुत लंबी है। इतनी लंबी तट रेखा की रक्षा के लिए मोजाम्बिक के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। ऐसे में वहां नौसैनिक सहयोग के लिए भारत के लिए बढ़िया अवसर है कि वह यहां अपनी मौजूदगी को विस्तार दे सके। वहीं रूस, ईरान और कतर के बाद मोजाम्बिक संरक्षित गैस भंडार के लिहाज से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है। यही वजह है कि मोजाम्बिक के ऊर्जा क्षेत्र में भारत की सक्रियता और निवेश लगातार बढ़ रहा है।
चूंकि दोनों देशों का व्यापार मुख्य रूप से समुद्री मार्ग पर निर्भर है तो भारत और मोजाम्बिक के बीच सीधी शिपिंग लाइन बनाने की भी दरकार है ताकि यह सहभागिता एवं सक्रियता और बढ़ सके। वायु संपर्क को प्रोत्साहित करने के लिए दोनों देशों ने वर्ष 2016 में वायु सेवा अनुबंध पर सहमति जताई, लेकिन नियमित शिपिंग लाइन बनाने पर कोई चर्चा नहीं हुई जिसने मोजाम्बिक के साथ हमारे रिश्ते बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाई।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि दोनों देशों के सामुद्रिक सुरक्षा और हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में बेहतर आवाजाही के मोर्चे पर साझा आग्रह हैं जो आने वाले वर्षों में और निकट सहयोग की ओर संकेत कर रहे हैं।
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