भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 नवंबर को ऐलान किया कि भारत की पहली पूरी तह स्वदेश में डिजाइन की गई और बनाई गई परमाणु पनडिब्बी आईएनएस अरिहंत ने हमले और घुसपैठ की आशंका रोकने के लिए अपनी पहली निवारक (डिटरंस) गश्त सफलतापूर्वक पूरी कर ली है।1 भारत की परमाणु स्थिति में इसके साथ ही अहम बढ़त मिल गई क्योंकि इससे परमाणु तिकड़ी पूरी तरह सक्रिय हो गई और देश शत्रुओं को रोकने के लिए भरोसेमंद परमाणु क्षमता हासिल करने के करीब पहुंच गया है। यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके साथ ही भारत के परमाणु परीक्षण की ‘शक्ति’ श्रृंखला के बीस वर्ष पूरे हो गए। इस श्रृंखला के बाद ही देश ने भूमि, वायु और समुद्र से काम करने वाली परमाणु ताकतों की तिकड़ी बनाने का काम शुरू किया था।
भारत के सामरिक गणत में इस तिकड़ी का उद्देश्य रक्षात्मक परमाणु रुख बरकरार रखना है। भारत के 2003 के परमाणु सिद्धांत के मसौदे में परमाणु शक्ति का ‘पहले प्रयोग नहीं’ करने की नीति है, जिसमें संकल्प लिया गया है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल परमाणु युद्ध के बजाय शत्रु को रोकने के लिए किया जाएगा।2 लेकिन रक्षात्मक परमाणु नजरिये के कारण देश को ‘जवाबी हमले की अचूक क्षमता’ के साथ अचानक होने वाले परमाणु हमलों के प्रति सतर्क रहना पड़ता है। परमाणु तिकड़ी के तीनों चरणों में समुद्र के भीतर वाला चरण जवाबी हमले की मजबूत क्षमता हासिल करने और संभावित शत्रुओं को परमाणु दुस्साहस से रोकने के लिहाज से सबसे अहम है। आईएनएस अरिहंत की सफलत निवारक गश्त ने निस्संदेह देश के लिए यह लक्ष्य हासिल कर लिया है।
इसके अलावा क्षेत्रीय सामरिक माहौल में भारत के सामने आने वाली जटिल सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर भी निवारक गश्त महत्वपूर्ण है। भारत के रक्षात्मक निवारक रुख के बाद भी उसके क्षेत्रीय दुश्मन व्यापक दायरे वाली परमाणु एवं मिसाइल क्षमता हासिल करने की आक्रामक होड़ में जुटे रहे हैं। यह बात का अंदाजा चीन और पाकिस्तान के सामरिक प्लेटफॉर्मों तथा प्रक्षेपण प्रणालियों में होने वाले गुणात्मक एवं मात्रात्मक सुधार से आसानी से लगाया जा सकता है।3 उदाहरण के लिए चीन पहले ही 4 चिन क्लास (टाइप-094) शिप सबमर्सिबल बैलिस्टिक न्यूक्लियर (एसएसबीन) शामिल कर चुका है और इस श्रेणी की नई पनडुब्बियां शामिल करने की उसकी योजना है। लगभग 7000 किलोमीटर के दायरे में मार करने की क्षमता के साथ पनडुब्बी से प्रक्षेपित की जाने वाली जेएल-2 बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) से युक्त एसएसबीएन के कारण पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना (पीएलए-एन) को भारतीय भूमि में गहराई तक मार करने की क्षमता हासिल हो गई है।4
चीनी नौसेना ने अपनी युद्ध नीति के तहत एसएसबीएन को जो भूमिका दी हैं, उन पर बढ़ती अस्पष्टता भी भारत के सामरिक एवं नौसैनिक योजनाकारों के लिए चिंता की बात है। कथित तौर पर समुद्री डाकुओं के अभियान रोकने के लिए चीन ने हाल ही में हिंद महासागर में अपनी एसएसबीएन तैनात कर दी है, जिसके बाद हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी मंशा और मकसद पर व्यापक संदेह खड़ा हो गया है।5 चूंकि समुद्री डाकुओं के खिलाफ अभियानों में परमाणु पनडुब्बियों की भूमिका नहीं के बराबर होती है, इसलिए एसएसबीएन की तैनाती को दक्षिण चीन सागर में तथा उसके परे भी दबदबा बनाने की चीन की आक्रामक योजना का हिस्सा माना जा रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की एसएसबीएन पनडुब्बियों की आक्रामक गश्त की घटनाओं ने भारतीय नौसेना पर दबाव बढ़ा दिया है कि वह अपनी एसएसबीएन पनडुब्बी तैनात कर बराबर का जवाब दे।
दूसरी ओर पाकिस्तान भी अपनी सामरिक संपत्तियां तथा परमाणु सामग्री का भंडार बढ़ाने में आक्रामक तरीके से जुटा हुआ है। कथित रूप से भारत की परमाणु एवं पारंपरिक सेना के आधुनिकीकरण के जवाब में आधिकारिक रूप से घोषित अपनी ‘संपूर्ण निवारण नीति’ के तहत पाकिस्तान विभिन्न प्रकार की नौसेनिक परमाणु ताकतें विकसित कर रहा है। पाकिस्तान ने 2017 में कम दूरी वाली सबसोनिक क्रूज मिसाइल बाबर-3 का परीक्षण किया, जिसे पनडुब्बी से प्रक्षेपित किया जा सकता है। बताया जाता है कि बाबर-3 परमाणु हथियार लेकर जा सकती है और उसे अगोस्ता-90बी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी पर चढ़ाने के लिहाज से बनाया गया है।6 क्षेत्रीय स्पर्द्धा को और भी जटिल बनाते हुए चीन ने हाल ही में पाकिस्तान को डीजल और बिजली से चलने वाली 8 हमलावर पनडुब्बियां देने का फैसला किया है, जिससे भारत की चिंता और भी बढ़ गई है।
ऐसे टकराव भरे भू-सामरिक माहौल में आईएनएस अरिहंत की सफल गश्त भारत के शत्रुओं को मजबूत निवारक क्षमता का संकेत देती है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसे “परमाणु ब्लैकमेल में जुटे पक्षों को माकूल जवाब” बताया जाना एकदम सही है।7 इससे भी अहम बात यह है कि अरिहंत उन 5 या 6 एसएसबीएन में से पहली पनडुब्बी है, जिन्हें अगले एक दशक में शामिल करने की भारत की योजना है। कम से कम एक पनडुब्बी को हर समय गश्त पर लगाए रखने की सामरिक अनिवार्यता को देखते हुए इस श्रेणी की दूसरी एसएसबीएन पनडुब्बी अरिदमन तैनाती के लिए लगभग तैयार ही है। अभी समुद्र में अरिदमन के परीक्षण चल रहे हैं।8
हालांकि विभिन्न प्रकार की मंजूरी लटकने और तकनीकी इनकारों के कारण आईएनएस अरिहंत में अच्छी खासी देर हुई है, लेकिन डिजाइन तथा तकनीकी संबंधी जटिल चुनौतियों से पार पाने में भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक संस्थाओं ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। मौजूदा क्षमताओं के साथ भारतीय संस्थाएं इस क्षमता की बाकी पनडुब्बियां तेजी से तैयार करने वाली हैं, जिसे पता चलता है कि पिछले चार दशक में देश ने कितनी तकनीकी महारत हासिल कर ली है। आईएनएस अरिहंत उन्नत तकनीक वाली पनडुब्बियों (एटीवी) की जिस परियोजना का पहला एसएसबीएन उत्पाद है, वह परियोजना भारत के रक्षा तकनीकी विकास के इतिहास में स्वदेशी तकनीक हासिल करने वाला सबसे सफल कार्यक्रम है।
हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस और मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन जैसी परियोजनाओं की तुलना में एटीवी परियोजना व्यापक स्वदेशी डिजाइन एवं विकास क्षमता तैयार करने के मामले में सबसे सफल रही है। भारतीय नौसना की स्वदेशी योजना ढेरों पनडुब्बियों के लिए ढेरों हथियार प्रणालियां, पुर्जे तथा उप-प्रणालियां तैयार करने का श्रेय एटीवी को देती है।9 इनमें सार्वजनिक तथा निजी संस्थाओं ने विभिन्न मिसाइलें, रॉकेट, टॉरपीडो लॉन्चर/लोडर, शिप स्टैबलाइजर/स्टीयरिंग गियर, हाइड्रॉलिक सिस्टम्स, ऑटोमेटेड पावर मैनेजमेंट सिटस्टम तथा बड़ी संख्या में पुर्जे तथा असेंबलियां तैयार की हैं।
साथ ही परमाणु ऊर्जा के छोटे पैक का विकास भारत के वैज्ञानिक समुदाय के लिए सबसे अहम खोज बनकर उभरा है। हालांकि भारत को कथित तौर पर रूस से डिजाइन में कुछ मदद मिली है, लेकिन ध्यान रहे कि पावर रिएक्टर पूरी तरह से स्वदेशी प्रयास है, जिसे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) के वैज्ञानिकों की अगुआई में अंजाम दिया गया है। रिएक्टर में डिजाइन तथा विनिर्माण के मामले में कई नई पहल की गई हैं। उदाहरण के लिए रिएक्टर में स्टीम जेनरेटर, हीट एक्सचेंजर, कंट्रोल रॉड, प्रेशर पंप जैसे सभी अहम हिस्से स्वदेश में डिजाइन किए गए हैं तथा बनाए गए हैं।
इससे पता चलता है कि भारत के पास जरूरी तकनीकी क्षमता कितनी अधिक है, जिसे किसी भी समय वाणिज्यिक स्तर की प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर तकनीक तैयार करने के लिए बढ़ाया जा सकता है। आईएनएस अरिहंत में जल के भीतर मिसाइल दागने वाली प्रणाली भी है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने देश में ही तैयार किया है। लगभग 500 किलोग्राम का पेलोड ले जाने में सक्षम के-1 मिसाइल का कई बार सफल परीक्षण किया गया है।10
ऐसे कई कारणों से आईएनएस अरिहंत की सफल निवारक गश्त भारत के लिए गर्व का विषय है। क्षेत्र में सामरिक स्थायित्व बरकरार रखने के भारत सरकार के मजबूत संकल्प को सुनिश्चित करते हुए यह भारत की परमाणु स्थिति में बड़ी छलांग है। अहम बात है कि पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षण के 20 वर्ष पूरे होने पर इसने 1998 में परमाणु क्षमता हासिल करने और भरोसेमंद न्यूनतम निवारक क्षमता तैयार करने के लिए परमाणु तिकड़ी निर्मित करने के भारत के फैसले को सही साबित किया है।
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