इमरान खान ने जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद संभाला तो उनके सामने अर्थव्यवस्था विशेषकर ऋण की बुरी हालत और चालू खाते का घाटा बड़ी चुनौती थी। लग रहा था कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के दर पर जाना ही पड़ेगा। लेकिन विपक्ष में रहते हुए इमरान खान ऐलानिया अंदाज में कह चुके थे कि वह मर जाएंगे, लेकिन आईएमएफ से गुहार नहीं लगाएंगे। इमरान खान को बात से पलटना पड़ा, लेकिन ज्यादा फजीहत नहीं हो, इसके लिए उन्होंने दूसरे विकल्प तलाशने शुरू कर दिए जैसे ‘भाईचारे’ के रिश्ते वाले देशों और ‘सदाबहार’ दोस्त चीन से मदद।
पाकिस्तान को कुछ समय के लिए राहत भी मिली क्योंकि सऊदी अरब विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए उसे 3 अरब डॉलर देने के लिए तैयार हो गया और तेल खरीद के बदले 3 अरब डॉलर का भुगतान देर में करने की इजाजत भी दे दी।1 सऊदी से मिली मद को ‘तोहफा’ बताया गया, लेकिन असल में यह यमन और खशोगी मामले में रियाद की भूमिका पर पाकिस्तान की लंबी चुप्पी का इनाम था। चूंकि जमाल खशोगी की हतया के बाद उपजे राजनयिक संकट को देखते हुए बड़े देशों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने सऊदी अरब में होने वाले फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनीशिएटिव समिट का बहिष्कार कर दिया, इसलिए इमरान खान ने भी 23 से 25 अक्टूबर तक होने वाले इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया।2
सऊदी दरियादिली ने पाकिस्तान को फौरी संकट से तो बचा लिया, लेकिन यह मदद लंबे समय के हिसाब से कारगर नहीं है।
आईएमएफ से कर्ज लेने की सूरत में जो शर्तें रखी जा सकती हैं, उनसे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) खटाई में पड़ सकता है। इसीलिए आईएमएफ के कर्ज पर अपनी निर्भरता कम करने (खत्म चाहे नहीं कर सके) के लिए इमरान खान ने 1 से 5 नवंबर तक पांच दिन की चीन यात्रा की, जिसमें विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और वित्त मंत्री असद उमर भी उनके साथ थे। हालांकि ईशनिंदा के मामले में झूठे तरीके से फंसाई गई ईसाई महिला को रिहा किए जाने के मुद्दे पर तहरीक-ए-लबाइक पाकिस्तान के हिंसक विरोध प्रदर्शनों के कारण पाकिस्तान नाजुक दौर से गुजर रहा था, लेकिन इमरान खान को ऐसे समय में भी चीन से मदद मिलने की उम्मीद में वहां की यात्रा करना जरूरी लगा। यह प्रधानमंत्री के रूप में उनकी पहली चीन यात्रा थी। इसमें “कृषि, गरीबी उन्मूलन, औद्योगिक सहयोग और तकनीकी प्रशिक्षण तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना” समेत 15 समझौतों तथा सहमति पत्रों पर दस्तखत किए गए, लेकिन पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने संबंधी किसी समझौते की घोषणा नहीं की गई।3 इसे इमरान के प्रति पेइचिंग की असहजता का संकेत माना गया क्योंकि विपक्षी नेता के तौर पर वह सीपीईसी और चीनी ऋणों की आलोचना करते रहते थे।
अतीत में आईएमएफ और अमेरिकी प्रशासन सीपीईसी को अस्वीकार करते रहे हैं और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर चीनी ऋणों के असर के बारे में बार-बार चिंता जताते रहे हैं। विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने आगाह किया था, “भूल मत कीजिए। आईएमएफ के कदमों को हम देख रहे होंगे। इस बात की कोई तुक नहीं है कि आईएमएफ की वित्तीय मदद में शामिल अमेरिकी डॉलर चीनी बॉण्ड रखने वालों या खुद चीन की मदद के लिए दिए जाएं।” 4 याद रहे कि जब नवनिर्वाचित पीटीआई सरकार आईएमएफ के विकल्प पर विचार कर रही थी तब एजेंसी ने मांग की थी कि ऋण के अनुरोध पर विचार तभी किया जाएगा, जब सीपीईसी परियोजनाओं की शर्तें सार्वजनिक कर दी जाएंगी।
हालांकि किसी खास राहत पैकेज की औपचारिक घोषणा नहीं की गई, लेकिन इमरान खान ने कहा कि पेइचिंग ने पाकिस्तान को बड़ा पैकेज दिया है। पाकिस्तान में चीनी दूतावास के उप प्रमुख ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा, “पाकिस्तान की वित्तीय सहायता के लिए पैकेज पर काम चल रहा है... सऊदी अरब से वित्तीय अनुदान के रूप में मिले पैकेज के मुकाबले यह बड़ा होगा।”5 खान ने भी प्रधानमंत्री आवास पर पत्रकारों के साथ हाल में हुई एक बैठक में इसकी घोषणा की, लेकिन पैकेज में मौजूद राशि का खुलासा नहीं किया। उन्होंने राशि को गोपनीय रखने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि राशि का खुलासा करने पर दूसरे देश भी चीन से रकम मांगने लगेंगे, इसीलिए चीनी राष्ट्रपति ने उनसे धनराशि का खुलासा नहीं करने के लिए कहा है।6 हकीकत जो भी हो, मुद्दे की बात यह है कि चीन के साथ अपने वित्तीय लेनदेन को पाकिस्तान जानबूझकर अस्पष्ट रखना चाहता है।
अब पक्का हो चुका है कि पाकिस्तान आईएमएफ के पास जाएगा, लेकिन यह देखना बाकी है कि पाकिस्तान कितना कर्ज मांगता है। इमरान सभी संभावित नेताओं से बात कर रहे हैं ताकि आईएमएफ से कम से कम कर्ज लेना पड़े और बड़े कर्ज के साथ लगने वाली सख्त शर्तें भी नरम हो सकें। आईएमएफ की टीम ने हाल ही में पाकिस्तान की यात्रा पूरी की है और उसने सीपीईसी के कुछ क्षेत्रों विशेषकर ऊर्जा क्षेत्र में हो रही प्रगति पर संतुष्टि भी जताई है, लेकिन उन परियोजनाओं के लिए चीन के साथ हो रहे अस्पष्ट वित्तीय करारों पर उसने चिंता भी जताई।7 बहरहाल टीम ने कर राजस्व अर्जित करने के तरीके और राजकोष से जुड़े कुछ अन्य पहलुओं पर असंतोष जताया। पिछले पांच वर्ष में पाकिस्तान का कर राजस्व 2.2 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 3.8 लाख करोड़ रुपये हो गया, लेकिन आईएमएफ की अपेक्षाओं से यह अब भी कम है।8 टीम ने मुक्त विनिमय दर रखने की भी सलाह दी, जो विदेशी मुद्रा भंडार में आने वाली उस कमी को रोकता है, जो केंद्रीय बैंक के दखल वाली विनिमय दर से आती है। मगर इससे मुद्रा का मूल्यह्रास होने और अर्थव्यवस्था का व्यापार संतुलन बिगड़ने का खतरा रहता है। ऐसा अंदेशा भांपकर इमरान खान हताशा में अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय ऋणदाताओं से राहत पाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। अर्थशास्त्री अभी तक चीन से इमरान को मिल रहे “गुप्त पैकेज” को समझने की कोशिश ही कर रहे हैं और जब यह लेख लिखा जा रहा था तो इमरान और रकम हासिल करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात और उसके बाद मलेशिया की यात्रा पर निकल गए थे।
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