भारतीय राजनय और हिन्द-प्रशांत महासागर
Dr Vijay Sakhuja

हिन्द-प्रशांत महासागर का भारत की कार्टोग्राफिक सीमा पश्चिमी प्रशांत महासागर से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया होती हुई पश्चिमी हिन्द महासागर के साथ-साथ अफ्रीका के पूर्वी किनारे तक व्यापक रूप से फैली हुई है। भारत अपने इस विस्तृत समुद्रीय फैलाव में ‘संरचनावाद’ और ‘यथार्थवाद’ के ‘विविधतापूर्ण सामंजस्य’ का संधान करता है।1 यह इस तथ्य का दिग्दर्शन कराता है कि सामाजिक-सांस्कृतिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों के अपने लम्बे इतिहास वाली सभ्यतागत ताकतें इस अहाते में अपने समकालीन राजनय और आर्थिक मेलजोल से किस तरह रह सकती हैं। वस्तुत: ये प्राचीन कालों के स्मरण कराने वाले तथ्य हैं और मजबूत सभ्यतागत आधारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्व में चीन एवं फारस, अरबिया, मिस्र, रोमन साम्राज्य और पश्चिम में अफ्रीका के साथ मेलजोल का वैशिष्ट्य दिखाते हैं। बहुआयामी मेलजोल; मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के जरिये आर्थिक उलझनों को दूर करने; ‘सागर’(SAGAR) यानी सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल) मंत्र के साथ क्षमता का निर्माण समकालीन राजनयिक की पहलों की धुरी है। ये भारत की नरम शक्ति के प्रतीक हैं, जिसकी जड़ पुराकाल में है।

भारतीय राजनय

भारत के हिन्द-प्रशांत विजन का वास्तविक ढांचा भारत के प्राचीन रणनीतिक चिंतक और राजनयिक कौटिल्य के दृष्टिकोण पर रखा गया है। कौटिल्य (350-275 ईसा पूर्व) को भारतीय जनमानस चाणक्य के नाम से भी जानता है, जिन्होंने अर्थशास्त्र की ख्यात किताब लिखी थी। चाणक्य की यह महान रचना ‘राजनीतिक यथार्थ’ में एक प्रबंध की तरह है, जो इस बात का दिग्दर्शन कराती है कि राजनीतिक दुनिया स्व-हित, रणनीतिक स्वायत्तता और गठबंधन की गत्यात्मक प्रकृति में किस तरह सुदृढ़ बुनियाद के साथ काम करती है। 2. यह अपने हितों, गठबंधनों और रणनीतिक व्यवहार का एक भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक संकल्पनाओं को एक आधार प्रदान करता है और क्षेत्रीय सुरक्षा निर्मित करने के लिए हितों की प्राथमिकता के जरिये एक ‘क्षेत्रीय अनुशासन’ की कल्पना करता है। ये ‘मंडल’ कहे जाते हैं।

अपने प्रबंध में कौटिल्य एक ‘मंडल’ के दायरे में आने वाले किसी देश के सम्राट को दूसरे राज्यों के साथ राजनीतिक बातचीत करने और राजनयिक सम्बन्ध बनाने के लिए संधि, गठबंधन, तटस्थता से लेकर ‘सिर्फ युद्ध का सिद्धांत’ जैसे कई विकल्प रखते हैं। मंडल की केंद्रीय धुरी स्पष्ट रूप से ‘समानता और प्रतिकूलता; गठबंधन और अभिसरण; प्रतियोगिता और सहयोग; और नियम-कायदों पर आधारित पर एक क्षेत्रीय अनुशासन रखने की महत्तर अवधारणा है।’3 स्थानिक संदर्भों में मंडल का मतलब एक क्षेत्र (जोन) से है और यह योजनाबद्ध तरीके से निश्चित वृत्तों का अलंकरण है, जो एक देश के उसके ‘निकटतम’, मध्यवर्त्ती और वृत्त के ‘बाहरी’ वलय पर बसे देशों के साथ सम्बन्धों को परिभाषित करता है।

समुद्रवर्त्ती मंडल

समुद्री ‘मंडलों’ के संदर्भ में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की थाह लेना और इस क्षेत्र में नई दिल्ली की संलग्नता के बारे में साफ दिमाग रखना बड़ा उपयोगी है। भारत के समुद्री मंडल का घेरा हिन्द महासागर से शुरू होकर दक्षिण-पूर्व एशिया होते हुए पश्चिमी प्रशांत महासागर तक जा पहुंचता है। नई दिल्ली की राजनीतिक-राजनयिक संलग्नता, आर्थिक पहुंच और उभरते रणनीतिक सरोकार समूचे हिन्द-प्रशांत सागर तक फैले हैं। भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं, आर्थिक हितों और भू-सामरिक अपरिहार्यताओं से मंडल निर्देशित होता है। वह नौ सेना के अपने अभियान की व्यूह रचना करता है। भारत का ‘निकटस्थ मंडल’ चीन और पाकिस्तान है। ये दोनों विवादित राज्य हैं, जिनके साथ भारत का अनसुलझा सीमाई विवाद है। भारत की इन दोनों देशों के साथ जंग भी हुई है। इस मंडल में, चीन और भारत एशिया में उभरती हुई शक्ति हैं। वे दोनों इस क्षेत्र की रणनीतिक गत्यात्मकता को एक आकार दे रहे हैं। दक्षिण एशिया में चीन की राजनीतिक और आर्थिक पहलें बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के तहत 21वीं शताब्दी में समुद्री रेशमी मार्ग के तहत प्रदर्शित हो रही हैं। साथ ही, यह हिन्द महासागर में विगत कुछेक सालों में अपने नौ सैनिकों की तैनाती बढ़ा कर समुद्री जंग की भूमिका तैयार कर रहा है। इसके साथ ही, चीन रणनीतिक महत्त्व के कुछ खास जगहों जैसे जिबूती, ग्वादर और हम्बनटोटा तक अपनी पहुंच बढ़ाने और वहां अड्डे बनाने के साथ अपनी क्षमता निर्माण कर रहा है। भारत के समीपस्थ मंडल में समुद्री अड्डों के परमाणु हथियारों के प्रक्षेपणस्थल ने पहले से ही जटिल एवं तनाव पूर्ण सुरक्षा वातावरण में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। भारत के पास एक मजबूत नौसैनिक परमाणु प्रतिरोधक प्रणाली है, जिसे ‘परमाणु त्रयी का तीसरा चरण’ कहा जाता है। इसी तरह, वहां जाहिराना तौर पर पाकिस्तान की इच्छा भी अपने परम्परागत पनडुब्बियों को परमाणु मिसाइल क्षमता से लैस करने की दिखाई देती है। इसके अलावा, अब चीन ने भी हिन्द महासागर में परमाणु पनडुब्बियां तैनात कर दी हैं।

भारत के मध्यवर्त्ती मंडल में कम से तीन रणनीतिक मुहाने शामिल हैं। पहला, फारस की खाड़ी है, जो भारत के ऊर्जा आयात के लिहाज से काफी अहम है। तेल आयात के लिए भारत की गरदन की रग होमरुज के जलडमरूमध्य के बचाव और सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह भी कि, इस क्षेत्र में काफी तादाद में भारतीय प्रवासियों की मौजूदगी के चलते उनके द्वारा भेजे जाने वाला धन देश की अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इसलिए फारस की खाड़ी के देशों के साथ भारत को नजदीकी सम्बन्ध बनाना और उसे कायम रखने के लिए एक बेहद परिष्कृत कार्यनीति की जरूरत है। दूसरे, भारत के पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ समुद्रीय सम्बन्ध के चलते भारत ने समुद्रीय सुरक्षा के लिए अपने नौसैनिकों की तैनाती की है। इसकी शुरुआत सन् 2003 में मोजाम्बिक के मैपुटो शहर में आयोजित अफ्रीकी यूनियन शिखर सम्मेलन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए युद्धक पोत के तैनाती के साथ ही हो गई थी।4 वैसी पहलें लगातार जारी हैं और सन् 2009 से भारतीय नौसेना के युद्धक पोत सोमालिया के समुद्री डकैतों से जहाजों की आवाजाही की रक्षा के लिए अदन की खाड़ी में तैनात हैं। सबसे बढ़कर बात यह कि भारत ने अपनी अनेक समुद्री/नौसेना सुरक्षा पहलों का पूर्वी अफ्रीका और हिन्द महासागर के तटों तक विस्तार किया है।

पूरब में, मध्यवर्त्ती मंडल दक्षिण-पूर्वी एशिया पर फोकस करता है, जहां इस क्षेत्र के अनेक देशों के साथ भारत के बहुत पुराने जमाने से स्थायी आर्थिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध है। यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी आसियान (ASEAN) देशों के साथ रणनीतिक-कार्यनीतिक सम्बन्ध बनाने का जबर्दस्त उपकरण है, जिसकी केंद्रीकता को नई दिल्ली निरंतर बढ़ावा देती है। आसियान (ASEAN) सद्भाव और सहयोग संधि ((TAC), दक्षिण-पूर्व एशिया परमाणु हथियार रहित क्षेत्र (SEANWFZ) और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) के साथ यह अन्य पहलों पर आधारित है।

भारत का ‘बाहरी मंडल’ बड़ी शक्तियों (आस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) का तोरण द्वार (आर्क) है, जिसके साथ राजनीतिक-राजनयिक, आर्थिक एवं कार्यनीतिक सम्बन्ध रणनीतिक अभिसरण के आधार पर मजबूत सम्बन्धों के तालमेल के नियम-कायदों से तय होते रहे हैं। राजनीतिक और सुरक्षा स्तर की बातचीतों ने समझौते को ताकत प्रदान की है। इसने चतुष्कोणीय सुरक्षा संवाद अथवा ‘चतुष्क’ की बुनियाद रखी है। इसके अतिरिक्त भारत, जापान और अमेरिका की नौसेनाएं हिन्द-प्रशांत के समूचे जल क्षेत्र में सैन्याभ्यास करती हैं।

मंडल और नौसेना रणनीति

भारतीय नौसेना की समुद्रीय रणनीति हिन्द-प्रशांत के मंडल के साथ सद्भाव में है। उदाहरण के लिए, भारत की सैन्य-समुद्रीय रणनीति (2007)हिन्द महासागर को अपने हितों और अभियानों के प्राथमिक क्षेत्र के रूप में परिकल्पना करती है। यह लाल सागर, दक्षिणी चीन सागर, दक्षिणी हिन्द महासागर और पूर्वी प्रशांत क्षेत्र को अपने हितों के लिहाज से दूसरी वरीयता देती है। लेकिन किसी घटना या परिघटना होने की सूरत में ये क्षेत्र भारत के लिए ध्यान की प्राथमिकता में आ जाते हैं। सन् 2015 में भातीय नौसेना ने ‘समुद्रों की रक्षा सुनिश्चित रखने के लिए : भारत की समुद्रीय सुरक्षा रणनीति’ दस्तावेज का प्रकाशन किया था। इसमें हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को अनेक हितों और अभियानों के लिहाज से एक रणनीतिक क्षेत्र माना गया था। हालांकि इसमें भी, हिन्द महासागर को हितों के लिहाज से प्राथमिक क्षेत्र रखा गया था। दक्षिणी-पूर्वी चीन सागरों, पश्चिमी प्रशांत महासागर और उनके किनारों को हितों के नजरिये से दूसरी वरीयता दी गई थी।

व्यावहारिक स्तर पर, भारतीय नौसेना की रणनीतिक सोच में ताओस एजिमोथ की अवधारणा दिखाई देती है। भारतीय नौसेना ने सन् 2017 में, हिन्द महासागर में वर्ष भर सातों दिन 24 घंटे चौकसी के लिए एक अभियान आधारित तैनाती (मिशन बेस्ड डेपलॉयमेंट यानी MBD) योजना का प्रारम्भ किया था।5 MBD के तहत भारतीय नौसेना के 15 युद्धपोत क्षेत्र के विभिन्न जगहों; मसलन फारस की खाड़ी से लेकर मलाका जलडमरूमध्य और उत्तरी बंगाल की खाड़ी से लेकर दक्षिण हिन्द महासागर होते हुए अफ्रीका के पूर्वी तट तक किसी भी समय तैनात रहते थे। पश्चिमी प्रशांत महासागर के साथ दक्षिण चीन सागर में भारतीय नौसैनिकों की तैनाती उसके राष्ट्रीय हितों को चुनौती देने वालों की निगरानी करने, उनका पता लगाने, उनकी पहचान करने और उनके अभियोजन की क्षमता के मद्देनजर है। इसलिए कि इस क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय हितों को बाधित करने, समुद्र में उसकी विशिष्ट परिसम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारतीय जहाजों की आवाजाही में रुकावट पैदा होने के पहले ही उनका शमन किया जा सके।

संक्षेप में, यह कि ‘समुद्री मंडल’ परियोजना के तहत, भारतीय नौसेना ने मध्यवर्त्ती मंडल में प्रबल चुनौतिकारी का शमन करने के लिए ताकतवर मित्रों और रणनीतिक साझेदारों के साथ एक योजना तैयार की है। फिलहाल तो इस क्षेत्र में एक चीन है, जो अपनी बढ़ती विशालकाय अर्थव्यवस्था और रणनीतिक-सैन्य क्षमताओं के साथ अडंगा लगा रहा है। दूसरा पाकिस्तान है, जो लगातार अपना परमाणु कार्ड खेल रहा है।

क्षेत्र (जोन) या मंडल

भारत सरकार की नीति रही है कि ेत पत्रों का प्रकाशन नहीं किया जाए। तो ऐसे में दस्तावेजों के अभाव में, इसका ठीक-ठीक पता नहीं चल पाता कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को लेकर नई दिल्ली के दिमाग में क्या चल रहा है। भारत के पास हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को ‘‘खुला, स्थिर, सुरक्षित, समृद्ध और समावेशी’’ बनाने के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए कम से कम तीन विकल्प हैं। पहला, संलग्नता के क्षेत्र की संकल्पना करनी होगी, जिसमें कूटनीतिक चतुरता और रणनीतिक स्वायत्तता दोनों अपना काम करेंगी। इसमें भारत की विकसमान राजनीतिक और राजनयिक कद, आर्थिक ताकत और प्रौद्योगिक-औद्योगिक कौशल उसकी पहलों के निर्धारक हैं। ये क्षेत्र या जोन कई देशों के समूह होंगे जो आपस में भूगोल से बंधे होंगे। इनके साथ भारत ने सम्मिलित हितों और प्राथमिकताओं के आधार पर बेहद मजबूत द्विपक्षीय सम्बन्ध बनाया है। यह भारत के अपनी राजनीतिक-आर्थिक-रणनीतिक-सांस्कृतिक निरंतरता के हिस्सा है। उदाहरण के लिए एक क्षेत्र बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, फारस की खाड़ी और पूर्वी अफ्रीका के तट हो सकता है। दूसरा जोन, पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत के आसपास का क्षेत्र, जिसमें जापान, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, ताईवान और आसियान के अनेक देशों; जिनमें पूरब में फिलिपींस तथा आस्ट्रेलिया एवं दक्षिण में न्यूजीलैंड हो सकता है। तीसरा जोन स्वाभाविक रूप से अमेरिका और प्रशांत द्वीप के देशों का होगा।

एक दूसरा दृष्टिकोण यह है कि मंडल का आंतरिकीकरण किया जाए और एक रणनीतिक रूप में इसे बढ़ावा दिया जाए; जिसमें समाभिरूपता (कन्वर्जेंस), प्रतियोगिता और सहयोग प्राथमिक निर्देशक कारक होंगे। वास्तव में, भारत ने पहले से ही हिन्द-प्रशांत के बाबत रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है, जिसमें भारतीय नौसेना अपनी समुद्री रणनीति, मध्यवर्त्ती मंडल और बाहरी मंडल के देशों के साथ नौसेना एवं समुद्री अभियानों के जरिय संलग्न हो गया है। मजबूत पारस्परिकता और इसकी नई दिल्ली की राजनयिक एवं प्रतियोगितात्मक उपलब्धियों को हासिल करने की पूरक क्षमता भारत की रणनीति की विशेषता के तत्व हैं। खास बात यह कि यह हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में अमेरिकी दृष्टिकोण के समान नहीं है, जिसने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के जोड़ लिया है।

तीसरा दृष्टिकोण ‘क्षेत्रों की संलग्नता’ और ‘मंडल’ की रचनात्मक मिलावट होगी। यह उस प्रस्ताव पर आधारित होगी कि दुनिया का इतिहास सभ्यतागत ताकतों से भरा-पूरा है। ये ताकते हैं, मिनोअंस, फोनिशियन्स, मिस्र, यूनानी, रोमन, अरब और चीनी। ये सभी अपनी सम्पूर्ण क्षमता के दोहन के लिए समुद्र पर आश्रित थे। उन्होंने समुद्र के उपयोग के लिए एक मजूबत रुझान का प्रदर्शन किया, जिसने उनमें अभियान सम्बन्धी भूमिकाएं बढ़ाई। यहां तक कि उन्होंने भूमध्य सागर, हिन्द महासागर और एशियाई सागरों होते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन तक अपने समुद्री व्यापार का विस्तार किया।

निष्कर्ष रूप में, 21वीं सदी में भारत का उदय उसकी अपनी ताकत की एक पुनर्खोज है। यह ऐसे समय पर हुआ है, जब भारत का बढ़ता कद और अभियानी क्षमता से लाभ उठाने की उसकी योग्यता एशिया और एशिया के बाहर के ताकतवर तटवर्त्ती देशों के साथ सुमद्री सम्पर्क बनाने के लिए बेहद स्पष्ट है। संक्षेप में, भारत कौटिल्य लिखित क्लासिक ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में प्रतिपादित राजनय कौशल का उदारतापूर्वक उपयोग कर रहा है, जो अब सर्वोत्कृष्टता का अभ्यासी था।

Notes :
  1. W. Lawrence S.Prabhakar, "The Emergent Vistas of the Indo-Pacific", (ed) Rajiv K. Bhatia & Vijay Sakhuja Indo-Pacific Region: Political and Strategic Prospects (New Delhi, Vij Books, 2014).
  2. Vijay Sakhuja, Asian Maritime Power in the 21st Century: Strategic Transactions China, India and Southeast Asia (Singapore: ISEAS, 2010), pp.278-284.
  3. W. Lawrence S.Prabhakar, "The Emergent Vistas of the Indo-Pacific", (ed) Rajiv K. Bhatia & Vijay Sakhuja Indo-Pacific Region: Political and Strategic Prospects (New Delhi, Vij Books, 2014).
  4. 'Defence Cooperation', Ministry of Defence, available at http://www.mod.nic.in/ainstitutions/welcome.html, accessed on 30 June 2019.
  5. "Indian Navy informs government about the fleet's reoriented mission pattern", http://www.newindianexpress.com/nation/2018/apr/01/indian-navy-informs-government-about-the-fleets-reoriented-mission-pattern 1795404.html http://www.newindianexpress.com/nation/2018/apr/01/indian-navy-informs-government-about-the-fleets-reoriented-mission-pattern-1795404.html (accessed 19 September 2019).

Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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