शहजादे मोहम्मद बिन सलाम की लोकप्रियता सऊदी महिलाओं पर लगे प्रतिबंध कम करने तथा अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को सऊदी अरब में निवेश की अनुमति देने के कारण शहजादे मोहम्मद बिन सलमान की लोकप्रियता बढ़ गई। लेकिन पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या में शहजादे की कथित मिलीभगत, यमन में हूतियों के खिलाफ युद्ध जारी रखने में सऊदी सरकार की भूमिका और कठोर सजा एवं मानवाधिकार के उल्लंघन ने तेल से इतर क्षेत्रों में अपनी अर्थव्यवस्था के विस्तार के खाड़ी राजतंत्र के प्रयासों को हाशिये पर डाल दिया है। शहजादे की एशिया की धुरी यानी पाकिस्तान, भारत और चीन में सऊदी अरब के प्रयासों को आर्थिक, ऊर्जा एवं व्यापार निवेश का सकारात्मक माहौल वापस बनाने का प्रयास माना जा सकता है ताकि उसे राजनयिक रूप से अलग-थलग न डाल दिया जाए। लेकिन मलेशिया और इंडोनेशिया की शहजादे की यात्रा टाल दी गई। मोहम्मद बिन सलमान को शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के 40 जवानों की हत्या के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ जाएगा।
17 फरवरी, 2019 को शहजादे पाकिस्तान पहुंचे, जहां की यात्रा उन्होंने एक दिन छोटी कर दी थी। उन्होंने वहां आर्थिक विविधीकरण और सऊदी अरब को पर्यटन केंद्र बनाने की अपनी योजना की घोषणा की। पाकिस्तान इस समय भुगतान संतुलन के संकट और कमजोर देसी अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के मुताबिक वहां कुल 8.2 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार रह गया है। अक्टूबर, 2018 में प्रधानमंत्री इमरान खान की सऊदी यात्रा के दौरान सऊदी अरब की सरकार ने 3 अरब डॉलर का ऋण देने का वायदा किया था और 3 अरब डॉलर का तेल भुगतान देर से करने के लिए कह दिया था। शहजादे की फरवरी, 2019 की यात्रा के दौरान दोनों सरकारों ने 20 अरब डॉलर के निवेश सौदों पर हस्ताक्षर किए और वित्त, आंतरिक सुरक्षा, संस्कृति तथा खेल, मीडिया, नवीकरणीय ऊर्जा आदि में समझौते भी किए गए। सऊदी अरब ग्वादर में रिफाइनरी तथा पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स बनाने में 10 अरब डॉलर का निवेश करने को भी तैयार हो गया।
शहजादे की भारत यात्रा के दौरान दोनों सरकारों ने बुनियादी ढांचे, पर्यटन, आवास, निवेश एवं प्रसारण के क्षेत्र में पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए। शहजादे ने पुलवामा में हमलों की निंदा की और आतंकवाद पर चिंता व्यक्त की, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान की आलोचना नहीं की। दोनों पक्षों ने खुफिया सूचना के आदान-प्रदान और आतंकवाद विरोधी प्रयास तेज करने में सहयोग पर सहमति जताई। उन्होंने अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया पर भी चर्चा की।
चूंकि मोहम्मद बिन सलमान की राजकीय यात्रा पुलवामा हमलों के बाद हो रही थी, इसलिए उम्मीद के मुताबिक भारत में उन्होंने आतंकवाद की निंदा की और आतंकवादी गुटों के खिलाफ खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान में मदद की पेशकश की। लेकिन उन्होंने पाकिस्तान का नाम लेने और उसकी आलोचना करने से इनकार कर दिया। वास्तव में भारत ने भी दुनिया भर से पाकिस्तान पर जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव डालने की अपील करते समय इशारों में ही पाकिस्तान का नाम लिया।
सऊदी और अन्य अमीर खाड़ी राष्ट्र भरत और चीन में पनपते अवसर तलाश रहे हैं क्योंकि तेल की कीमतों में कमी आने और क्षेत्र में महंगे युद्ध, टकराव और एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने वाले कदमों के कारण हाइड्रोकार्बन से कमाए उनके पेट्रो डॉलर और भारी-भरकम मगर खस्ता होते सॉवरीन वेल्थ फंड की माली हालत खराब हो रही है। इसलिए सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन चुका भारत उनके लिए एकदम उपयुक्त है। यह बात उस समय स्पष्ट हो गई, जब सऊदी ने भारत में लगभग 100 अरब डॉलर निवेश करने की अपनी मंशा जताई और कारोबारी बैठक तथा सीईओ की चर्चा के दौरान एक दर्जन समझौतों तथा अभिरुचि पत्रों पर हस्ताक्षर किए।
मोहम्मद बिन सलमान के ‘विजन 2030’ में भारत की बड़ी कंपनियों के लिए जबरदस्त मौके हैं। अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी और भारतीय कंसोर्टियम के 44 अरब डॉलर के रत्नागिरि पेट्रोकेमिकल्स एवं रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स को अभी शुरू होना है, लेकिन रिलायंस इंडस्ट्रीज अरामको के साथ एक और रिफाइनरी पर बातचीत कर रही थी। रणनीतिक तेल भंडार सहयोग का एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है। नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग का प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरी है क्योंकि सऊदी अरब इंटरनेशनल सोलर अलायंस में शामिल हो गया है। आवास, कृषि क्षेत्र और पर्यटन में भी सहयोग बढ़ाने की बहुत संभावना है। इसलिए दोनों देशों के लिए भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बल पर होने वाली औद्योगिक क्रांति 4.0 में सहयोग के जबरदस्त अवसर हैं।
भारत यात्रा के बाद शहजादे ने 21 फरवरी, 2019 को पेइचिंग में चीनी नेतृत्व से मुलाकात की। चीन ने पंजिन में रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल परियोजना स्थापित करने के लिए सऊदी अरामको के साथ 10 अरब डॉलर का समझौता किया। दोनों पक्षों ने सऊदी के विजन 2030 के साथ चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव पर चर्चा की। इस समय चीन सऊदी अरब का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और 2018 में दोनों के बीच 63.3 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। शहजादे ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के चीन के अधिकार का समर्थन भी किया और आतंकवाद एवं चरमपंथ विरोधी प्रयासों में साथ देने का प्रण भी लिया, जिससे पता चलता है कि पश्चिम चीन में उइगर बहुल क्षेत्रों में चीन सरकार की नीति को सऊदी अरब का समर्थन हासिल है। लेकिन यह बात मुस्लिम जगत को शायद अच्छी नहीं लगी होगी।
29 जनवरी, 2019 को फलस्तीनी प्रशासन के प्रधानमंत्री रामी हमदल्ला और उनके मंत्रिमंडल ने फतह तथा हमास के बीच सुलह की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े करते हुए 2014 में गठित यूनिटी गवर्नमेंट से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा नई सरकार बनाने की फतह सेंट्रल कमेटी की सिफारिश के दो दिन बाद आया। नई सरकार के गठन का कारण गाजा पट्टी में समझौते के मुताबिक सत्ता फलस्तीनी प्रशासन को सौंपने में हमास की नाकामी थी। नई सरकार में फलस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) और स्वतंत्र उम्मीदवार को शामिल होना था। हमास ने 2007 में गाजा में राजनीतिक जनादेश हासिल किया था, जिसके बाद पट्टी से फतह को हटना पड़ा था। उसके बाद से ही फतह और हमास राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हो गए हैं। दोनों पक्षों ने सुलह के प्रयास और पश्चिमी तट तथा गाजा को एक ही सरकार के तहत लाने के लिए के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन ये सभी प्रयास नाकाम रहे हैं। हमास ने हमदल्ला के इस्तीफा देने के फैसले की आलोचना की क्योंकि इससे नया मंत्रिमंडल बनने का रास्ता साफ होगा, जो फलस्तीनी प्रशासन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास तथा फतह पार्टी की हितों की पूर्ति करेगा और फलस्तीनी राजनीति के गुट उससे बाहर रहेंगे।
प्रधानमंत्री हमदल्ला का इस्तीफा अमेरिकी प्रशासन के साथ बढ़ते तनाव और अप्रैल, 2019 में प्रस्तावित इजरायली राष्ट्रपति चुनावों पर मंडराती अनिश्चितता के बीच आया है। अमेरिका ने 14 मई, 2018 को अपना दूतावास तेल अवीव से हटाकर येरूशलम में बना लिया।
ईरान की विदेश संबंध रणनीति परिषद के प्रमुख कमाल खराजी ने कतर की राजधानी दोहा में अल जजीरा सेंटर फॉर स्टडीज में 11 फरवरी, 2011 को एक सम्मेलन में स्वीकार किया कि ईरान का अरब तथा गैर-अरब देशों पर प्रभाव है। खराजी के मुताबिक बाहरी मदद के बगैर ही प्रगति करने के कारण ईरान अन्य देशों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है। उन्होंने कहा कि ईरान सभी देशों के साथ बातचीत को तैयार है और उन्होंने क्षेत्र के अन्य देशों से साथ आने को कहा ताकि विदेशी हस्तक्षेप के बगैर शांति एवं सुरक्षा कायम हो सके। खराजी ने यह कहा कि अंतरक्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता से केवल इजराय को फायदा मिला है और सऊदी अरब समेत अरब देशों को नुकसान हुआ है क्योंकि अमेरिका संसाधनों (पेट्रोलियम) के दोहन के लिए ही खाड़ी देशों का समर्थन करता है।
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने दुनिया भर पर दादागिरी चलाने के लिए 2 फरवरी, 2019 को अमेरिका की आलोचना की और उस पर वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो का तख्तापलट करने की साजिश रचने का आरोप लगाया। ईरान वेनेजुएला का पुराना साथी है और इस्तीफा देने तथा अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जुआन गुआइदो को सत्ता सौंपने की अमेरिका तथा कुछ यूरोपीय देशों की मांग का सामना कर रहे मदुरो का समर्थन कर चुका है। ईरान ने कहा कि वह वेनेजुएला के साथ द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत करता रहेगा। वेनेजुएला अमेरिका के वैश्विक प्रयासों को हल्का करने के लिए इस्लामी गणतंत्र यानी ईरान का अहम साथी माना जाता है। रूहानी के मुताबिक अमेरिका सभी जनक्रांतियों के खिलाफ है और उसका लक्ष्य स्वतंत्र राज्यों को दबाने के लिए दुनिया भर में दादागिरी चलाना है।
अलेपो में मानवीय सहायता प्रदान करने के बशर अल असद सरकार के अनुरोध के बाद आर्मेनिया द्वारा सीरिया में अपनी टुकड़ियां तैनात किए जाने पर अमेरिका ने चिंता जताई है। अमेरिका ने कहा कि सीरिया में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिफाजत के बारे में आर्मेनिया की चिंता को वह समझता है, लेकिन उसे सीरियाई सेना के साथ आर्मेनियाई सेना के सैन्य सहयोग से दिक्कत है। उसने रूस के साथ आर्मेनिया के सैन्य संपर्क पर भी आपत्ति जताई है और उसका कहना है कि इससे मानवीय आपदा शुरू हो चुकी है।
कैदियों की अदलाबदली के बारे में राष्ट्रपति अब्द्राबू मंसूर हादी सरकार तथा हूतियों के बीच संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में चल रही बातचीत 9 फरवरी, 2019 को जॉर्डन के अम्मान में टूट गई। दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर शांति प्रक्रिया को महत्व नहीं देने, झूठ बोलने और कैदियों की फर्जी सूचियां सौंपने का आरोप लगाया। इससे पहले दिसंबर में संघर्षरत गुटों ने स्वीडन में बैठक की, जिसमें दोनों पक्ष 15,000 कैदियों की अदलाबदली पर राजी हो गए। अम्मान में बातचीत के दौरान हूतियों ने संकेत दिया कि वे कैद किए गए किसी भी उच्चपदस्थ सरकारी एवं सैन्य अधिकारी को नहीं छोड़ेंगे। इसके बाद बातचीत टूट गई, लेकिन दोनों पक्ष भविष्य में बातचीत की प्रक्रिया जारी रखने पर राजी हो गए।
13 और 14 फरवरी को पोलैंड के वॉरसा में शांति एवं सुरक्षा पर एक सम्मेलन हुआ, जिसका आधिकारिक शीर्षक “मिनिस्टीरियल टु प्रमोट अ फ्यूचर ऑफ पीस एंड सिक्योरिटी इन द मिडल ईस्ट” था। इसका लक्ष्य ईरान को क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर और भी अलग-थलग करना था। इस तरह अमेरिका चाहता था कि उसके यूरोपीय सहयोगी तेहरान के साथ परमाणु समझौता तोड़ दें तथा ऊर्जा और व्यापार संपर्क खत्म कर दें। लेकिन सम्मेलन में उसे बेहद हल्की प्रतिक्रिया मिली और कई देशों ने ईरान के खिलाफ गुट खड़ा करने के अमेरिका के प्रयासों पर पानी फेरते हुए निचले स्तर के अधिकारियों को ही वहां भेजा। पोलैंड ने ईरान के खिलाफ एजेंडे को हल्का करने का प्रयास किया और कहा कि सम्मेलन में पश्चिम एशियाई क्षेत्र में वर्तमान समस्याओं विशेषकर यमन और सीरिया में मानवीय संकट तथा इस्लामिक स्टेट (आईएस) एवं अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने पर बात हुई। मगर सीरिया और यमन के युद्धक्षेत्र में अहम हित रखने वाले रूस और हूतियों के नहीं होने से क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में कोई अहम पहल नहीं हो सकी।
13 फरवरी, 2019 को सिस्तान-बलूचिसतान प्रांत में एक फिदायीन हमले में ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कोर के 27 जवान मारे गए। हमले में 20 जवान घायल भी हुए। यह फिदायीन हमला पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को हुए हमले से मिलता-जुलता था, जहां विस्फोटकों से भरी कार बस से टकराई थी। पाकिस्तान से काम करने वाले आतंकी गुट जैश-अल-अदल ने हमले की जिम्मेदारी ली। यह हमला उस समय हुआ, जब वॉरसा सम्मेलन चल रहा था और जिसमें अमेरिका ने क्षेत्र में ईरान का प्रभाव कम करने के लिए प्रयास करने की मांग की थी। ईरान सरकार ने सऊदी अरब और अमेरिका पर इस्लामी गणतंत्र में विरोध भड़काने के प्रयास का आरोप लगाया। ईरान ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया और उसे चेतावनी दी तथा आतंकियों पर कथित हमले भी किए।
24 फरवरी को ऐतिहासिक घटना हुई, जब इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के विदेश मंत्रियों के 46वें सम्मेलन की मेजबानी कर रहे संयुक्त अरब अमीरात ने अबू धाबी में 1 और 2 मार्च, 2019 को होने वाले सम्मेलन के लिए भारत को ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के रूप में न्योता दिया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने निमंत्रण स्वीकार किया। इसे भारत की बड़ी कूटनीति विजय माना गया है क्योंकि पाकिस्तान ओआईसी में उसके प्रवेश का लगातार विरोध करता रहा है, जबकि दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में ही रहती है। 1969 में भारत हिस्सा नहीं ले पाया था क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने संगठन में भारत की भागीदारी के खिलाफ गुटबाजी की थी। पाकिस्तान के कहने पर ओआईसी भारत के खिलाफ तीखे बयान जारी करता रहा है, जिनमें जम्मू-कश्मीर में कथित अत्याचारों की बात कही जाती है। मगर भारत ने इन्हें सिरे से खारिज किया है।
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