पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का बहुप्रतीक्षित चीन दौरा 2 से 5 नवंबर के बीच संपन्न हुआ। यह दौरा ऐसे वक्त हुआ है जब पाकिस्तान कई मोर्चों पर चुनौतियों से जूझ रहा है। एक तो भुगतान संतुलन की बढ़ती समस्या को देखते हुए उसे तत्काल वित्तीय राहत पैकेज की सख्त दरकार है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत बन रही ऊंची लागत वाली परियोजनाओं की निरंतरता और व्हावहार्यता को लेकर भी वहां संदेह के बादल गहरा रहे हैं। वहीं पाकिस्तानी सरकार उन कट्टरपंथियों के आगे भी नतमस्तक हो गई जो ईशनिंदा के आरोप में आसिया बीबी की रिहाई से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे।
बहरहाल चीन दौरे के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को औपचारिक प्रोटोकॉल मिला और इस दौरान 15 सामान्य सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी हुए। शब्दाडंबरों से भरा एक संयुक्त बयान भी जारी किया गया, लेकिन उसमें भी कोई ऐसी बात नहीं थी जो सुर्खियां बटोर सके।
पाकिस्तान को उम्मीद थी कि उसे चीन से भारी-भरकम राहत पैकेज मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। चीनी प्रधानमंत्री ने इमरान खान से कहा, “हम पाकिस्तान को अपनी क्षमता के अनुरूप सहायता उपलब्ध करा रहे हैं।” इसके बावजूद उन्होंने ठोस वादा नहीं किया। इस मुद्दे पर खामोशी अपनी कहानी साफ कह रही थी। चीन ने हालांकि अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को मदद का वादा जरूर किया है, लेकिन यह भी कहा है कि इसके स्वरूप पर बाद में चर्चा की जाएगी।
संयुक्त बयान में भी बेलआउट यानी राहत पैकेज को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों की चर्चा है। व्यापार, निवेश और वित्तीय सहयोग के तहत श्रम-आधारित उद्योगों और संयुक्त उपक्रमों के पुनर्गठन से पाकिस्तान की औद्योगिक क्षमताओं को बढ़ाने की बात कही गई है। व्यापार असंतुलन को संतुलित करने के लिए भी दोनों पक्षों ने कुछ ठोस कदम उठाने पर सहमति जताई है। चीन-पाकिस्तान मुक्त व्यापार समझौते का दूसरा चरण भी जल्द ही पूरा होगा। वे ‘सेवा’ समझौते पर भी बातचीत शुरू करेंगे। ये सभी दीर्घावधिक लाभ वाले कदम हैं जिनका पाकिस्तान को तात्कालिक तौर पर कोई खास फायदा नहीं मिलने वाला।
चीन ने संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान को मदद को दूसरे विकल्पों पर गौर करना चाहिए। चीन ने पाकिस्तान को इशारा किया कि उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ से मदद लेनी चाहिए। वहीं सऊदी अरब से मिला 6 अरब डॉलर का राहत पैकेज हद से हद पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को सीमित और अस्थायी राहत दिला सकता है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों को लगता है कि पाकिस्तान को राहत पैकेज के लिए जल्द से जल्द आईएमएएफ से गुहार लगानी चाहिए। पाकिस्तानी सरकार अभी तक इसी उम्मीद से ऐसा नहीं कर रही थी कि उसका सदाबहार दोस्त चीन उसे भारी-भरकम राहत पैकेज उपलब्ध कराएगा। चूंकि अब चीन से ऐसी मदद मिलने की उम्मीद कम ही है तो पाकिस्तानी सरकार अब आईएमएफ से मदद मांगेगी और बदले में वह सीपीईसी परियोजनाओं की कड़ी निगरानी करेगा।
चीन ने यह भी संकेत दिए हैं कि वह सीपीईसी के दायरे में किसी भी तरह की कटौती नहीं करना चाहेगा जो इस क्षेत्र में उसके भू-राजनीतिक खेल के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसके उलट चीन ने इमरान खान से कहा कि सीपीईसी के दायरे का विस्तार किया जाए। सीपीईसी को लेकर सभी तरह की नकारात्मक बातों को चीन ने सिरे से खारिज किया। चीनी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ के अनुसार चीनी प्रधानमंत्री ने इमरान खान को बताया, “सीपीईसी परियोजनाओं की काफी गहनता से पड़ताल की गई है और वे आर्थिक सिद्धांतों के अनुरूप और आर्थिक रूप से पूरी तरह व्यावहारिक हैं।”
चीन इमरान खान की इस सार्वजनिक टिप्पणी से बिल्कुल नाखुश था कि उनकी सरकार सीपीईसी परियोजनाओं की समीक्षा कर उनके दायरे को घटाने पर विचार करेगी।
चीन म्यांमार और मलेशिया में पहले ही साख के संकट से जूझ रहा है जहां कुछ चीनी परियोजनाएं बंद कर दी गई हैं। वह पाकिस्तान में एक और झटका बर्दाश्त नहीं कर सकता। अपनी अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत को देखते हुए इस मामले में चीन के साथ मोलभाव में भी पाकिस्तान के लिए बहुत गुंजाइश नहीं है। पाकिस्तान के चालू खाते के घाटे की स्थिति बहुत खराब है। वहीं सीपीईसी को लेकर पाकिस्तान में असंतोष और आक्रोश पनप रहा है। चीनी कर्ज की शर्तें बहुत सख्त हैं। चीन ने पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर मशीनें लगाई हैं। चीनी कुशल कर्मचारी पाकिस्तानी लोगों की नौकरियां हड़प रहे हैं।
संयुक्त बयान में सीपीईसी का एक पूरा खंड दिया गया है। यह स्पष्ट है कि चीन के दबाव में इमरान खान को सीपीईसी को लेकर अपने तेवर नरम करने पड़े। संयुक्त बयान के अनुसार, “दोनों पक्षों ने सीपीईसी के भविष्य की रूपरेखा को लेकर अपनी पूर्ण सहमति को दोहराया।” इमरान खान को सिर्फ इतनी राहत-रियायत मिली कि सीपीईसी में अब सामाजिक विकास, रोजगार सृजन और आजीविका जैसे मुद्दों पर भी गौर किया जाएगा। इसके लिए ‘सहयोग की नई संभावनाएं’ तलाशने के लिए सीपीईसी संयुक्त सहयोग समिति की बैठक भी होगी। पाकिस्तान में आजीविका परियोजनाओं के सहायतार्थ सामाजिक-आर्थिक विकास पर एक कार्यबल भी गठित किया गया है। यह स्थिति इमरान खान के पुराने रुख से काफी अलग है जिसमें उन्होंने सीपीईसी परियोजनाओं की व्यावहार्यता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनकी सरकार इन परियोजनाओं की समीक्षा करेगी। सीपीईसी परियोजनाओं के मामले में भी चीन की वरीयताएं एकदम स्पष्ट हैं। संयुक्त बयान के अनुसार, “ग्वादर सीपीईसी का आधार स्तंभ है और दोनों पक्ष इस बंदरगाह और उससे संबद्ध परियोजनाओं के तेजी से विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। ”
पाकिस्तान में कार्यरत अपने नागरिकों पर हमलों के मामलों के देखते हुए उनकी सुरक्षा को लेकर चीन की चिंता संयुक्त बयान में भी झलकी। इस पर संयुक्त बयान में कहा गया है, “दोनों पक्षों ने सीपीईसी को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार को खारिज किया है और इसकी सभी परियोजनाओं की सभी खतरों से सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्धता भी जताई। पाकिस्तान में चीनी कर्मियों की सुरक्षा को लेकर की गई सुरक्षा व्यवस्था की चीन ने सराहना की। ”
बहरहाल जब इमरान खान चीन में थे तब घरेलू मोर्चे पर उनकी सरकार ने उन कट्टरपंथियों से विरोध-प्रदर्शन खत्म करने के लिए समझौता किया जो आसिया बीबी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ लामबंद हो रहे थे। पाकिस्तानी सरकार का यह समझौता धार्मिक कट्टरपंथियों के समक्ष दयनीय आत्मसमर्पण ही का जा सकता है। चीन में भी इस पर गौर किया गया। इससे पाकिस्तान में काम कर रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर उसकी चिंता बढ़ना स्वाभाविक ही है। हालांकि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से सीपीईसी चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और उसने पाकिस्तान पर दबाव डालकर उसे यही समझाया है कि वह उसे निराश न करे। पाकिस्तान के पास चीन की बात मानने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है। चीन अपने सदाबहार दोस्त के लिए जरूरी मुद्दों पर कितना संवेदनशील है इस पर चीन की खामोशी ही काफी कुछ कहे देती है।
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