चुनाव अचंभे में डालते ही हैं। मालदीव में 23 सितंबर, 2018 को हुए राष्ट्रपति चुनाव इतिहास में ऐसे चुनावों के रूप में दर्ज हो जाएंगे, जिन्होंने बड़े अचंभे में ही नहीं डाला बल्कि ऐसा जबरदस्त उलटफेर भी कर दिया, जो लोकतंत्र की स्थापना के इस देश के प्रयासों की प्रक्रिया नए सिरे से आरंभ कर सकता है।
मतदान के दिन लगभग सभी निर्धारित द्वीपों पर बड़ी संख्या में मतदाता कतारों में लगे और अपनी पसंद जाहिर करने के लिए आधिकारिक समय खत्म होने के बाद भी इंतजार करते रहे। 89.2 फीसदी मतदान स्वयं ही लोकतंत्र का प्रमाण है। मतदाताओं ने वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के खिलाफ संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी इब्राहीम मोहम्मद सोलिह को निर्णायक समर्थन (प्रतिद्वंद्वी से 16.8 फीसदी अधिक) देते हुए मतदान किया। इसे सोलिह की भारी जीत ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की भी जीत कहा जा रहा है और अब्दुल्ला यामीन के तानाशाही भरे नेतृत्व को खारिज करने का संकेत माना जा रहा है।
चुनाव आयोग द्वारा 29 सितंबर को घोषित अंतिम नतीजों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय तथा आम राजनीतिक पर्यवेक्षकों की चिंताओं और हिचक को दूर कर दिया। मालदीव के चुनाव आयोग ने जब अगले दिन (24 सितंबर) औपचारिक रूप से नतीजों की घोषणा की तो जनता में जबरदस्त और स्पष्ट उत्साह नजर आ रहा था। लेकिन जब यामीन की पार्टी ने चुनाव आयोग के पास आपत्ति दर्ज कराई और अनुरोध किया कि शिकायतों की जांच पूरी होने तक अंतिम परिणाम घोषित नहीं किए जाएं तो इस बात का डर बैठ गया कि यामीन संविधान से इतर तरीके आजमाकर जनमत को खारिज करने की आखिरी कोशिश करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि चुनाव आयोग ने अंतिम मतगणना की अधिसूचना जारी कर दी और इब्राहीम मोहम्मद सोलिह को विजेता घोषित कर दिया। लोगों को यह यकीन दिलाने के लिए उनके फैसले को पलटा नहीं जाएगा, सैन्य तथा पुलिस नेतृत्व ने भी परिणाम का सम्मान करने के संकल्प की घोषणा की। लोकतंत्र में यह दुर्लभ बात है, लेकिन इससे सभी लोगों को निश्चित रूप से सही समय पर निर्णायक संदेश मिल गया कि उन्हें परिणाम स्वीकार करना पड़ेगा।
भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित लक्षद्वीप से कुछ सौ किलोमीटर दूर स्थित 1,200 छोटे द्वीपों के समूह मालदीव में अस्थिरता भरे लोकतंत्र का संदिग्ध इतिहास रहा है। तीन दशक से भी अधिक समय तक एक व्यक्ति, एक पार्टी शासन चलने के बाद 2008 में लोकतांत्रिक व्यवस्था आई। नए संविधान में पांच वर्ष के लिए राष्ट्रपति और मजलिस (संसद) चुनने के उद्देश्य से चुनाव कराने की व्यवस्था दी गई। राष्ट्रपति पद का कोई भी उम्मीदवार पांच-पांच वर्ष के दो कार्यकाल के लिए पद संभाल सकता था। लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था अनिश्चितता से भरी रही, जैसा नवंब, 2013 में राष्ट्रपति चुनावों के दूसरे दौर में भी देखा गया था। उससे कुछ महीने पहले के चुनावों में विपक्षी नेताओं पर लगे धांधली के आरोप देखते हुए उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए पहले राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को पद छोड़ने के लिए विवश करने के बाद नवंबर, 2013 में हुए चुनावों में प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव्स का नेतृत्व कर रहे अब्दुल्ला यामीन को राष्ट्रपति घोषित किया गया।
हाल ही में सफलतापूर्वक संपन्न हुए तीसरे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव भी चिंतामुक्त नहीं रहे। यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने यामीन के असंवैधानिक तरीकों के कारण पर्यवेक्षक भेजने से इनकार कर दिया। मालदीव के चुनाव आयोग ने यूरोप, दक्षिण एशिया, एशिया-प्रशांत देशों समेत कुछ देशों और पश्चिम एशिया से एक देश तथा तीन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को चुनाव पर्यवेक्षण का न्योता दिया था। लेकिन बताया जाता है कि कई मंजूरी प्राप्त अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को अंत में वीजा नहीं दिए गए, जिससे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं होने का डर और अटकलें बढ़ गईं। चुनाव से ठीक एक दिन पहले विपक्षी पार्टी के कार्यालय पर छापा मारा गया, जिससे यामीन के कानून को ताक पर रखने और असंतोष को दबाने वाले तानाशाही भरे पांच साल के कार्यकाल से पैदा हुई घबराहट और भी बढ़ गई। याद रहे कि यामीन ने दो बार आपातकाल थोपा। दूसरी बार इसी वर्ष फरवरी में 45 दिन का आपातकाल लगाया गया था, जिसमें ताकत और नियंत्रण का बेहूदा प्रदर्शन करते हुए सभी लोकतांत्रिक तरीकों को ताक पर रख दिया गया था। आखिरी बार आपातकाल उच्चतम न्यायालय के उस असहज करने वाले आदेश के बाद लगाया गया था, जिसमें अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद समेत राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए कहा था।
लोकतंत्र के स्वतंत्र अंगों को ढिठाई के साथ ठेंगा दिखाते हुए यामीन ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों अब्दुल्ला सईद और अली हमीद को सीमाएं लांघने के लिए गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। इसके बाद आपातकाल घोषित करने वाले बयान में कहा गया, ‘...उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने कानूनी सरकार का तख्तापलट करने के लिए संविधान तथा मानक कानूनी नियमों और तरीकों का उल्लंघन करने के इरादे से राजनीतिक आकाओं के साथ साजिश रचकर संवैधानिक संकट रचा और उनकी हरकत से राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।’ इससे पता चल गया कि यामीन अपनी हदों से कितना आगे निकल गए थे।1 न्यायपालिका के प्रति असम्मान शायद काफी नहीं था तो राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करने पर अड़े पुलिस आयुक्त को भी गिरफ्तार करा दिया। न्यायपालिका से छेड़छाड़ करने के बाद उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया के जरिये संसद के 12 सदस्यों को भी मजलिस में उनके पदों से हटा दिया। संशोधनों के जरिये संसद से भी छेड़छाड़ की गई और 9 जुलाई को चुनाव संबंधी नियम बदले गए और कुछ निश्चित व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। चुनाव लड़ने के लिए जमानत राशि भी मनमाने ढंग से 2,600 डॉलर से 6,500 डॉलर कर दी गई और विपक्ष के समर्थक माने जाने वाले ढेरों मतदाताओं को उनके निवास स्थान से बहुत दूर के द्वीपों में पंजीकरण कराने के लिए विवश किया गया। इनमें से कई नए नियम बहुमत के समर्थन के बगैर या मजलिस में जरूरी संख्या के भी बगैर लागू कर दिए गए।
नियंत्रणकारी व्यक्तित्व वाले यामीन के उलट मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी), जम्हूरी पार्टी और अदालत पार्टी के सहमति वाले संयुक्त उम्मीदवार और राष्ट्रपति पद पर मनोनीत मोहम्मद सोलिह वरिष्ठ राजनेता हैं, 1994 से सांसद हैं, एमडीपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल हैं और सुधार संबंधी अपने प्रयासों के लिए प्रख्यात लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता हैं। तख्तापलट के जरिये नशीद को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद 2011 में उन्होंने एमडीपी के संसदीय समूह की बागडोर संभाली। उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया क्योंकि 2015 में अदालत द्वारा दोषी घोषित किए जाने और निर्वासित हो जाने के कारण नशीद चुनाव लड़ने के योग्य नहीं थे। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कयूम भी इस वर्ष जून में 19 महीने की सजा होने के कारण राजनीतिक परिदृश्य से हटा दिए गए थे। स्पष्ट है कि दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की कोशिश में यामीन ने किसी भी तरह के विपक्ष को कुचलने की जुगत में सभी सीमाएं पार कर ली थीं। इस मामले में वह कयूम सीनियर से भी आगे निकल गए थे, जिन पर 2008 में समाप्त हुए 30 वर्ष के कार्यकाल में अति करने के आरोप लगते थे।
अपने चुनाव अभियान में यामीन ने ‘तस्वीर बदल देने वाले आर्थिक विकास’, रोजगार और मकान का वायदा किया, विकास संबंधी समस्याओं और इस्लाम के लिए समर्थन उनका मुख्य एजेंडा था। दूसरी ओर सोलिह ने लोकतंत्र का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय एकता वाली सरकार बनाने का वायदा किया ताकि न्याय मिले और राजनीतिक व्यवस्था, न्यायपालिका और सुरक्षा सेवाओं में आमूल चूल सुधार हो, जिसमें व्हिसल ब्लोअर संरक्षण कानून भी शामिल होगा। सोलिह ने यामीन के खिलाफ मीडिया में खुले तौर पर आए परम भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराने का भी वायदा किया। वास्तव में भ्रष्टाचार के आरोप और देश से धन विदेशी खातों में जमा कराने की कहानियों ने यामीन की अलोकप्रियता और भी बढ़ा दी होगी। व्यवस्था और सरकारी तंत्र के स्पष्ट दुरुपयोग के बाद भी वह 475 के करीब मतदान स्थलों पर मतदान में गड़बड़ी कराने में नाकाम रहे।
सोलिह को अप्रत्याशित जनादेश इसीलिए मिला क्योंकि यामीन के अत्याचार और तानशाही एवं प्रतिशोध भरा शासन का तरीका लोगों को पसंद नहीं आया। प्रतिद्वंद्वियों का दमन करने वाली गतिविधियां, इस वर्ष फरवरी में लागू हुए आपातकाल का दूसरा दौर तथा भारी संख्या में गिरफ्तारियां कयूम के दौर की कड़वी यादों को वापस बुला लाईं, जिस दौर को जनता ने 2008 में नकारकर लोकतंत्र का दामन थाम लिया था। यामीन ने शायद अपनी सीमाएं लांघ ली थीं और अपने भारत विरोधी रुख से भी उन्हें मनचाहे परिणाम नहीं मिले।
चुनाव से पहले का राजनीतिक गरम होना ही था और यूरोपीय संघ की संसद समेत पश्चिमी लोकतंत्रों ने इसकी कड़ी आलोचान की। यूरोपीय संघ की संसद ने तो वोट पड़ने से पहले ही चुनावों को धांधली भरा करार देकर लगभग खारिज ही कर दिया था। राजनीतिक माहौल उस समय और भी जहरीला हो गया, जब चीन और सऊदी अरब ने छोटे से द्वीपीय देश के मामलों में इतनी बड़ी भूमिका निभानी शुरू कर दी, जितनी पहले कभी नहीं निभाई थी। चीन ने तो अपना दूतावास 2013 के बाद ही खोला था, लेकिन उसने मालदीव की अर्थव्यवस्था में झटपट पैठ बना दी। उसने दो वर्ष की बातचीत के बाद ही मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने में सफलता पा ली। उसे संविधान में हुए उस संशोधन से भी फायदा मिला, जिसमें 1 अरब डॉलर से अधिक निवेश करने पर मालदीव की जमीन का मालिकाना हक देने की बात कही गई थी। 2017 में मालदीव और चीन ने स्वास्थ्य, बैंकिंग, आवास, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, सड़क एवं बुनियादी ढांचा विकास और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उन्नयन समेत 12 प्रमुख क्षेत्रों में समझौतों और सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए। मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तकरीबन 30 प्रतिशत योगदान करने वाले पर्यटन क्षेत्र को हाल के वर्षों में चीन से बहुत अधिक फायदा हुआ है क्योंकि वहां से भारी संख्या में पर्यटक पहुंच रहे हैं।
इस द्विपक्षीय संपर्क का मुख्य बिंदु चीन-मालदीव फ्रेंडशिप ब्रिज (साइनामाले ब्रिज) का खुलना इन द्विपक्षीय संबंधों की सबसे मुख्य बात रही। बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत बना यह पुल 30 अगस्त को खोला गया और इसके जरिये माले को हुलहुले द्वीप से जोड़ दिया गया, जहां मालदीव का मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा स्थित है। इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना कहलाने वाले 2.2 किलोमीटर लंबे इस पुल पर 18.44 करोड़ डॉलर की लागत आई है, जिसमें से ज्यादातर रकम चीन ने सीधी सहायता और रियायती ऋण के जरिये दी है। कुल निवेश में 91.8 प्रतिशत योगदान इसी का है। पुल के उद्घाटन के दौरान यामीन ने चीनी भाषा में इसे ‘मालदीव के लोगों के लिए नए युग का आरंभ’ बताते हुए इस परियोजना की और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की बढ़ती गहराई की महत्ता समझाई।2 वास्तव में चीन के साथ कुछ द्विपक्षीय समझौतों का दीर्घकालिक प्रभाव होगा, जिसे आसानी से बदला नहीं जा सकेगा। माखंढू (भारत से अधिक दूर नहीं) में प्रस्तावित संयुक्त समुद्री अनुसंधान पर्यवेक्षण केंद्र समेत रक्षा समझौतों और प्रस्तावित अथवा निर्माणाधीन बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के भी दीर्घकालिक सामरिक प्रभाव होंगे।
यामीन की दोस्ताना भाषा का जल्द से जल्द फायदा उठाने के लिाए चीन ने निश्चित रूप से बड़ी योजना बनाई होगी ताकि भारत के नजदीकी क्षेत्र में तथा हिंद महासागर में सामरिक रूप से प्रभावी स्थिति हासिल की जा सके। मगर चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद पेइचिंग से जिस तरह की फीकी प्रतिक्रिया आई, उससे समझा जा सकता है कि चीन कितना निराश रहा। रणनीतिक पर्यवेक्षकों ने भी देखा होगा कि विभिन्न परियोजनाओं की शर्तों की समीक्षा नए सिरे से करने की जो इच्छा भावी सरकार ने जताई है, उस पर चीन ने कितनी तीखी प्रतिक्रिया की।
बुनियादी ढांचा एवं विकास परियोजनाओं पर ध्यान देने के अलावा यामीन ने ऊर्जा एवं परिवहन क्षेत्रों में सहयोग का अनुरोध करते हुए सऊदी अरब के साथ भी अपने संबंध मजबूत किए। उसे 2017 में पांच वर्ष के लिए 30 करोड़ डॉलर के आसान ऋण का आश्वासन भी मिला। दस ‘विश्वस्तरीय’ मस्जिदें बनाने का वायदा करने वाली सऊदी सरकार इस्लामी शिक्षा के लिए 1 लाख डॉलर का अनुदान भी देगी और उसने 50 छात्रों को सऊदी अरब में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देने की घोषणा भी की। मालदीव में हर वर्ष सऊदी अरब से 12 लाख पर्यटक आते हैं, इसीलिए दोनों देशों के बीच उड़ानों की संख्या अच्छी खासी बढ़ाने का प्रस्ताव भी रखा गया। सऊदी और दूसरे अरब देशों ने भी इस्लामी मामलों में मालदीव के साथ हाथ मिलाया है।
जहां तक भारत का प्रश्न है तो थाईलैंड और सऊदी अरब के बाद वह बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। अतीत में दोनेां के बीच जो घनिष्ठता थी, वह यामीन के शासन के दौरान ऊपर बताए गए तमाम कारणों से बहुत कम हो गई थी। लोकतंत्र का अगुआ कहलाने वाला भारत यामीन के तानाशाही रवैये और बदलते सामरिक रुख को चिंता की नजर से देख रहा था, जो सही भी था। अतीत में अक्सर भारत से विदेशी लड़ाकों की घुसपैठ या सत्तापलट के प्रयास नाकाम करने में भारत से सहायता मांगी गई है। इन घटनाआंे की खबर बारीकी और विस्तार के साथ मीडिया में दी गई हैं, इसीलिए यहां उन्हें दोहराया नहीं जा रहा है। संक्षेप में कहें तो ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति को केवल जबानी दोहराकर यामीन वास्तव में इस पुराने रिश्ते को खत्म कर रहे थे।
मनोनीत राष्ट्रपति ने आश्वासन देते हुए ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति को बहाल करने का वायदा किया है। भारत अगले कुछ महीनों में, विशेषकर नवंबर के मध्य में नई सरकार बनने के बाद की घटनाओं पर करीब से नजर रखेगा। भारत के पड़ोस में स्थित इस द्वीपीय राष्ट्र की अहमियत जितनी भी कही जाए कम है। भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध यामीन के शासन के दौरान हालिया वर्षों में विवादों से घिरे रहे, लेकिन चुनाव से पहले के दिनों में भारत की मूल प्रतिक्रिया अब सोची-समझी रणनीति लगती है, जिससे परिपक्वता और सकारात्मकता का संकेत मिलता है। भारत ने इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को फटाफट बधाई दी और उच्च स्तरीय राजनीतिक यात्रा को भी अच्छा प्रतिसाद मिलेगा। रक्षा तथा पारस्परिक फायदे वाले अन्य प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के नए रास्ते तलाशने का यह अच्छा मौका होगा। भारत को सोची समझी नीति के तहत काम करना चाहिए और किसी भी तरह की अति से बचना चाहिए।
अगले कुछ हफ्ते और महीने निश्चित रूप से अनिश्चितता भरे होंगे। हाल का इतिहास बताता है कि ये द्वीप साजिशों से दूर नहीं रहते और जनादेश को पटरी से उतारने वाली किसी घटना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। यामीन ने पूरी गरिमा के साथ हार स्वीकार की है और सत्ता के सुगम हस्तांतरण का वायदा किया है, लेकिन भारत ही नहीं दूसरे लोकतंत्र भी सेना तथा पुलिस नेतृत्व के मुंह से जनादेश एवं जनता की आकांक्षा पूरी करने के आश्वासन का स्वागत करेंगे। इसीलिए सत्ता हस्तांतरण एवं मनोनीत राष्ट्रपति के नेतृत्व में गठबंधन की एकजुटता की प्रक्रिया पर इस क्षेत्र तथा बाहर के अधिकतर देश करीबी नजर रखेंगे।
पिछले चार दशकों के इतिहास को देखते हुए मालदीव में भारी राजनीतिक नाटक की आशंका बनी रहेगी। चार अलग-अलग रानीतिक दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन के पास एक साथ बने रहने के अलावा कोई चारा नहीं है। प्रमुख नेता भी निजी महत्वाकांक्षाओं को ताक पर रखकर यह सुनिश्चित करेंगे कि राजनीतिक स्थिरता बनी रहे और देश में एक बार फिर कानून का शासन स्थापित हो। न्यायपालिका से भी अपेक्षा है कि हाल के दिनों की पक्षपातपूर्ण भूमिका को भुलाने में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जल्द ही उसे कुछ महत्वपूर्ण राजनेताओं से जुड़े मामलों में दिए अपने ही कई फैसलों की समीक्षा करनी पड़ेगी। पूर्व राष्ट्रपति कयूम ने खुद को दोषी ठहराए जाने को चुनौती देकर और जमानत की अर्जी देकर इसकी शुरुआत कर भी दी है। यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि जल्द ही न्यायाधीश, पुलिस अधिकारी और राजनेता सब कुछ ठीक करने का प्रयास करेंगे। शीर्ष अदालत के सामने जो सबसे चर्चित मामला आने की संभावना है, वह निर्वासन भुगत रहे पूर्व राष्ट्रपति नौशीद का हो सकता है।
प्रक्रियाएं तो चलती रहेंगी, लेकिन नई सरकार/गठबंधन को इस बात से भी सतर्क रहना चाहिए कि लोकतंत्र की पुनर्स्थापना का उनका राजनीतिक अभियान अभी आधी राह पर ही पहुंचा है; मजलिस का चुनाव दूर नहीं है। 85 सदस्यों वाली राष्ट्रीय संसद के चुनाव अगले वर्ष होने चाहिए। गठबंधन के साझेदारों के लिए यह बड़ी चुनौती होगी।
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