दक्षिण चीन सागर में पी एल ए की नौसेना का विराट अभ्यास: विश्लेषण
Brig Vinod Anand, Senior Fellow, VIF

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की नौसेना ने वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर उभरती सामरिक स्थितियों के बीच अप्रैल के दूसरे हफ्ते में हैनान के नजदीक और सुदूर पूर्व में अभ्यास किए एवं राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने उनका जायजा लिया। ऐसे विशाल नौसैनिक अभ्यास के पीछे चीन के आंतरिक घटनाक्रम भी हैं क्योंकि शी ने रक्षा सुधार आरंभ किए हैं और अपनी ताकत बढ़ाई है। नौसैनिक अभ्यास में 48 नौसैनिक पोतों का बेड़ा शामिल था, जिसमें युद्धपोत, विध्वंसक पोत और पनडुब्बियां थीं। साथ ही 76 विमान, 10,000 सैन्यकर्मी थे और इकलौता विमानवाहक पोत ‘लियाओनिंग’ भी था, जिस पर जे-15 लड़ाकू जेट तैनात थे।

वैश्विक स्तर पर अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और राष्ट्रीय रक्षा रणनीति में चीन को रूस से पहले अपना प्राथमिक ‘सामरिक प्रतिस्पर्द्धी’ बताया है और दोनों को ही ‘विरोधी’ कहा है। अमेरिका के अनुसार अब ‘विराट शक्ति स्पर्द्धा’ पर अधिक और आतंकवाद पर कम ध्यान दिया जा रहा है। इसलिए ताकतवर सेनाएं तैयार करना अपरिहार्य है। माना जा सकता है कि अमेरिका के ऐसे बयान सुनने के बाद अपनी बढ़ती नौसैनिक क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए ही चीन ने यह विशाल नौसैनिक अभ्यास किया है।

चीनी नौसेना के अभ्यास के समय ही अमेरिका का विमानवाहक पोत ‘थियोडोर रूजवेल्ट’ सिंगापुर होते हुए फिलीपींस गया और अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में कई अमेरिका फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशंस (फॉनॉप्स) भी किए। इससे पहले अमेरिकी विमानवाहक ‘कार्ल विनसन’ भी पहली बार वियतनाम में दा नांग तक गया था। अमेरिका के ऐसे नौसैनिक अभियानों का अपना महत्व है और चीन के लिए ये सुरक्षा संबंधी चुनौती खड़ी करते हैं।

क्षेत्रीय स्तर पर दक्षिण चीन सागर में जटिल स्थिति है, जहां संप्रभुता को लेकर विवाद हैं और कई दावेदार हैं। आसियान देश भी चीन बढ़ती क्षमताओं और अड़ियल रवैये को काबू में करने के लिए विदेशी ताकतों की ओर तकते आए हैं। ‘हिंद-प्रशांत’ के विचार और अभी आकार नहीं ले सके लोकतांत्रिक ताकतों के ‘चतुर्भुज’ (क्वाड) का भी प्रश्न है, लेकिन चीन सरकार इसे चीन को काबू में रखने का प्रयास ही मानती है। अमेरिका दक्षिण चीन सागर में अपने सहयोगियों और मित्रों की संयुक्त गश्त का हिमायती रहा है।

यह अभ्यास अमेरिका के अतिरिक्त अन्य बाहरी ताकतों जैसे ऑस्ट्रेलिया, भारत या ब्रिटेन और फ्रांस के लिए संदेश भी माना जा सकता है कि फॉनॉप्स में हिस्सा लेकर दक्षिण चीन सागर की जटिल समस्या में न उलझें वरना गंभीर परिणाम होंगे।

इस प्रकार चीनी नौसेना का अभ्यास चीन की बढ़ती नौसैनिक एवं सैन्य क्षमताओं को दिखाता है और यह भी दिखाता है कि विशेष तौर पर दक्षिण चीन सागर में अपने प्रमुख हितों की रक्षा के लिए वह कितना तत्पर है। इसी वर्ष जनवरी में 7000 जवानों को संबोधित करते हुए शी ने कहा था कि चीनी हितों, संपत्तियों और विदेश में चीनी लोगों की सुरक्षा कर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ (बीआरआई) के जरिये ‘चीनी स्वप्न’ का नेतृत्व करेगी। चीन के दक्षिणी तट पर स्थिति अन्य नौसैनिक अड्डों के साथ ही हैनान को चीनी नौसेना के बड़े ठिकाने के रूप में विकसित किया गया है। चीन की मैरीटाइम सिल्क रोड (एमएसआर) और बीआरआई परियोजनाओं का यह प्रमुख पड़ाव है। साथ ही नौसैनिक क्षमताओं में वृद्धि से पता चलता है कि चीन एमएसआर और बीआरआई से जुड़े अपने हितों की सैन्य उपायों से रक्षा करने के लिए कितना तैयार है।

अभ्यास आसियान देशों को इस बात का संकेत भी है कि सैन्य आक्रमण रोकने की चीन की बढ़ती क्षमताओं को देखते हुए इस क्षेत्र के बाहर की ताकतों की मदद से चीन का सामना करने के बजाय चीन से समझौता करना ही बेहतर रहेगा। हालांकि यह बात अलग है कि चीन की अड़ियल नीतियों से सबसे ज्यादा प्रभावित देश ऐसा करते हैं या नहीं। हो सकता है कि इसके बजाय वे दूसरी ताकतों की गोद में ही बैठ जाएं।

चीन के लोगों को इस अभ्यास से राष्ट्रपति शी का वह दृढ़ संकल्प भी दिखता है, जिसके तहत वह चीन का कायाकल्प करने और समयबद्ध तरीके से चीन का सपना पूरा करने के लिए ताकतवर सेना तैयार करना चाहते हैं। अभ्यास में हिस्सा लेने वाले सैनिकों को संबोधित करते हुए शी ने कहा कि मजबूत नौसेना तैयार करना हमेशा ही चीन की तमन्ना रही है क्योंकि यह चीनी राष्ट्र के विराट कायाकल्प की गारंटी है। अपनी आदत के अनुसार वह नौसेना अधिकारियों और सैनिकों से यह कहना नहीं भूले कि सशस्त्र बलों के ऊपर पार्टी का संपूर्ण नेतृत्व पूरी तरह स्थापित करने में वह मदद करें। हालांकि पार्टी हमेशा ही यह कहती है, लेकिन इससे पता चलता है कि पार्टी इस बात को लेकर परेशान है कि आधुनिकीकरण एवं सैन्यकरण की दिशा में चीन की लंबी यात्रा के कारण होने वाले सामाजिक-आर्थिक बदलाव सशस्त्र बलों के ऊपर पार्टी की पकड़ को कमजोर कर सकते हैं।

भू-राजनीतिक पहलुओं की बात करें तो तीव्र सैन्य आधुनिकीकरण के कारण और अमेरिका के दबदबे वाली मौजूदा विश्व व्यवस्था को चुनौती दे रही समग्र राष्ट्रीय शक्ति बनने के कारण चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को धक्का भी लगा है। अमेरिका और उसके साथ खड़ी ताकतों से मिले इस धक्के ने चीन को इस असमंजस में डाल दिया है कि ऐसी चुनौतियों से कैसे निपटा जाए। चीन की सेना 2035 तक तीव्र आधुनिकीकरण पूरा करने में और 2049 तक वैश्विक सैन्य शक्ति बनने में जुटी है। चीन को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि यह अभियान पूरा होने तक उसके भीतर कई प्रकार की कमजोरी हैं। इस बीच इस अभ्यास को बढ़ते हुए दबाव का जवाब माना जा सकता है।

अभियान के स्तर पर बात करें तो इस अभ्यास से चीनी नौसेना की कमियां भी उजागर हुई हैं क्योंकि अभ्यास समुद्र तट के करीब हुआ। हालांकि जे-15 युद्धक विमान विमानवाहक पोत से उड़े थे, लेकिन वे तट पर स्थित हवाई क्षेत्र के दायरे में ही रहे। इसलिए यह माना जा सकता है कि चीनी नौसेना के पास अभी समुद्र में लड़ाई करने की असली ताकत नहीं है या तट से दूर जाकर लड़ने वाले विमानवाहक पोत बेड़े की ताकत नहीं है। अगले साल जब नौसेना में दूसरा विमानवाहक पोत आ जाएगा तब यह स्थिति सुधर सकती है। लेकिन अमेरिकी नौसेना जिस तरह आसानी से अपने विमानवाहक पोत के समूहों को कहीं भी भेज देती है, उसमें चीनी नौसेना को अभी बहुत समय लगेगा।

इससे यह भी माना जा सकता है कि चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से उसकी वर्तमान क्षमताएं मेल नहीं खातीं।

(प्रस्तुत विचार लेखक के हैं और वीआईएफ का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://sputniknews.com/politics/201707241055834626-russian-chinese-joint-drills-significance/

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