पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद ने पिछले कुछ वर्षों में कई विरोध और धरना प्रदर्शन देखे है। परन्तु शायद पहली बार यहाँ 5000 पश्तूनों द्वारा खास तौर पर संघीय प्रशासनिक आदिवासी क्षेत्रों (फाटा) से आकर 10 दिनों (1 से 10 फरवरी) तक सरकार और सुरक्षा बालों के विरोध में बैठक हुई। यह बैठक कोई आम सभा नही थी, यह बैठक दरअसल पश्तून समुदाय के लोगों का गुस्सा, उनको दशकों से संदिग्ध नीतियों के तहत हाशिये पर रखने और अफ़ग़ानिस्तान में ‘रणनैतिक पैठ’ स्थापित करने की उनकी मंशा के विरुद्ध आक्रोश की अभिव्यक्ति थी। यह घटना केवल ख़बर नही है बल्कि आने वाले समय में यह सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम साबित हो सकती है।
इस आन्दोलन को हवा देने वाली घटना के तहत कराची में 13 जनवरी 2018 को नाकीबुल्लाह महसूद नामक पश्तून युवक की बिना किसी न्यायिक कार्यवाही के हत्या कर दी गयी थी। नाकीबुल्लाह, दक्षिणी वज़ीरिस्तान के मकीन नामक फाटा क्षेत्र का निवासी था और बहलोलजाई उप-जनजाति के अब्दुल्लाही काबिले का सदस्य था, जो महसूद जनजाति की तीन में से एक शाखा है। सैन्य-अभियानों के चलते वो और उसका परिवार कराची की ओर चले गये। 23-वर्षीय युवक कपडे की दुकान चलाता था और मॉडल बनने का ख़्वाब रखता था। फेसबुक पर अपने नृत्य और बालों की बनावट के चलते वह काफ़ी लोकप्रिय था। 3 जनवरी 2018 को उसे कुछ गैर-वर्दीधारी लोगों ने पकड़ा और दस दिन बाद एक फ़र्जी मुठभेड़ में उसकी हत्या कर दी।
दो प्रमुख कारणों के चलते यह मुठभेड़ सुर्ख़ियों में छा गयी। पहला कारण तो यह कि नकीब की शक्ल फाटा क्षेत्र के आतंकवादी से बिल्कुल मेल नही खाती थी। दूसरा यह, की कराची के मलिर जिले के एसएसपी राव अनवर, मुठभेड़ विशेषज्ञ है। पुलिस आँकड़ों के अनुसार, राव अनवर, इस जिले के 2011-18 तक प्रभारी रहें है जिसमें बड़ी मात्रा में पश्तून जनसँख्या निवास करती है। इन सात वर्षों में उन पर अन्यायिक ढंग से 200 फ़र्जी मुठभेडों में 444 लोगों की हत्या का आरोप है। इनमें से अधिकांश मूलतः पश्तून थे। अगर सोशल मीडिया की शक्ति नही होती तो नाकीबुल्लाह भी मृत तालिबानी करार दिया जाता। मगर उसकी हत्या ने पश्तूनों पर हो रहे अत्याचार और उनके प्रति भेदभाव के विरुद्ध छिड़े इस आन्दोलन में चिंगारी लगा दी और पश्तून समुदाय के लोग अपने हितों की रक्षा हेतु सडक पर उतर आए। नकीब की हत्या के खिलाफ़ भड़के इस जन-आक्रोश के कारण सरकार पर बढ़ते दवाब के चलते सरकार ने नकीब की हत्या की स्वतंत्र जाँच हेतु समिति की स्थापना की है। समिति को नकीब के आंतकी गतिविधियों में लिप्त होने का कोई पुख्ता प्रमाण नही मिला। अतः उसकी मौत को न्यायेतर हत्या करार दिया गया। इसके बाद से ही राव अनवर फरार है। यदि वे कोई आम पुलिस अफ़सर होते तो उन्हें अबतक गिरफ्तार किया जा चुका होता। उनकी गिरफ़्तारी न होना इस बात की ओर इशारा करता है कि यदि राव अनवर पकडे जाते तो वे कुछ अहम ख़ुलासे कर सकते थे, जिनसे गड़े मुर्दे फिर ज़िन्दा होने लगते।
नाकीबुल्लाह की न्यायेक हत्या ने इस घटनाक्रम में मोड़ पैदा कर दिया। उसकी हत्या ने उसके समुदाय के लोगों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया और पश्तून समुदाय के लोगों के प्रति हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले आन्दोलन को इसने हवा दी। 18 जनवरी को पश्तून कौमी जिरगा के बैनर के तहत कराची में महसूद समुदाय के बुजुर्ग बैठक-शिविर में विरोध प्रदर्शन के लिए बैठ गये। इस शिविर में हजारों लोगों ने भाग लिया।
दो हफ़्तों के बाद ‘जस्टिस फॉर नक़ीब’ से आन्दोलन का रुख 1 फरवरी को, ‘पश्तून लॉन्ग मार्च’ की ओर हो गया और आन्दोलन कराची से इस्लामाबाद स्थानांतरित हो गया। फाटा और अन्य प्रभावित क्षेत्रों से आये 5000 पश्तून प्रदर्शनकारियों ने बैठक में भाग लिया। इस अवसर का राजनैतिक फायदा उठाने के लिए, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई), जमीअत-उलेमा-ए-इस्लाम-फ़जल (जेयूआई-एफ़), पख्तुन्ख्वा मिली आवामी पार्टी (पीकेएमएपी) और आवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) ने प्रदर्शनकारियों की माँगों में सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। राव अनवर की गिरफ़्तारी की माँग से शुरू हुए इस आन्दोलन में जल्द ही माँगों का विस्तृत इजाफ़ा होने लगा। आन्दोलनकारियों की माँगे कुछ इस प्रकार है- (I) राव अनवर की जल्द से जल्द गिरफ़्तारी और सज़ा, (II) पाकिस्तान में हो रही न्यायेक हत्यायों और गुमशुदगी पर रोक और उनसे जुड़े मामलों की स्वतंत्र जाँच, (III) आदिवासी क्षेत्रों में लोगों के निरादर एवं शोषण का खात्मा, (iv) फाटा क्षेत्र में बारूदी-सुरंगों को बंद करना जिनसे बड़े पैमाने पर लोगों की जान गयी है।
सरकार द्वारा लिखित रूप से आन्दोलनकारियों की सभी माँगे मान लेने के बाद, 10 फरवरी को यह आन्दोलन वापस ले लिया गया। आयोजकों ने यह सुनिश्चित किया है कि इस आन्दोलन को केवल कुछ समय के लिए स्थगित किया है। यदि सरकार ने अपनी माँगे पूरी नही की तो यह आन्दोलन पुनः खड़ा किया जायेगा।
इस आन्दोलन की विशेषता यह थी की यह आन्दोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण था और आन्दोलनकारियों ने किसी प्रकार की कोई धमकी नही दी। यह आन्दोलन नवम्बर 2017 को फैज़ाबाद में होने वाले ‘इश-निंदा’ आन्दोलन के विपरीत था। इस आन्दोलन का प्रभाव इतना गहरा था की अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति घनी (एक पश्तून) ने भी ट्विटर पर इस ऐतिहासिक आन्दोलन के पक्ष में #पश्तूनलॉन्गमार्च के साथ अपना सहयोग दर्ज करवाया। उन्होंने इस आन्दोलन को ‘कट्टरपन के विरुद्ध एक चेतावनी’ करार दिया।
आतंकवाद को मिटाने के नाम पर पाकिस्तानी सेना ने पिछले कुछ वर्षों में उत्तरी-दक्षिणी वज़ीरिस्तान समेत अन्य फाटा क्षेत्रों में काफ़ी अभियान छेड़े है। इन अभियानों में 20 लाख लोग विस्थापित हुए है और पाकिस्तान के शिविरों या शहरी केन्द्रों में शरण ले रहे है। पाकिस्तानी सेना ने इन इलाकों को युद्ध-क्षेत्र में तब्दील कर दिया है और अपने ही लोगों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया है। बारूदी सुरंग लगाने, कर्फ्यू लगाने से लेकर सम्पूर्ण फाटा क्षेत्र में अतिरिक्त सुरक्षा पोस्ट लगाने जैसे गैर-वाजिब कदम उठाये गए है। ये कदम या तो आतंकियों से निबटने में पाकिस्तान सरकार की नकामियाबी दर्शाता है या फिर कई कडवी सच्चाई अपने भीतर समेटे हुए है।
कडवी सच्चाई यह है कि सेना द्वारा पश्तूनों का इस्तेमाल महज़ अपनी भू-रणनैतिक मंशाओं को पूरा करने के लिए चारे के स्वरुप हुआ है। यह क्षेत्र राज्य-द्वारा पोषित आतंकियों को पनाह देने के लिए उपयोग किया जाता है। परिणामस्वरुप पश्तून, पिछले 30 वर्षों से अपने जीवन और संपत्ति के लिए, अपने द्वारा बोये बीजों के विरुद्ध युद्ध नही कर रहे बल्कि अन्य कारकों से लड़ रहें है। उन्हें उनकी जमीनों से विस्थापित किया गया और हर स्तर पर उनका दमन और निरादर किया गया है।
जहाँ फाटा इलाकों में बदहाली है, (50 लाख की जनसंख्या वाले समुदाय के लगभग सत्तर प्रतिशत लोग गरीबी में जी रहें है)। पश्तून शहरी केन्द्रों में भी स्थिति लगभग ऐसी ही है। इसमें कोई शक नही की पश्तूनों को सामान्य रूप से, विशेषकर फाटा क्षेत्र से आने वाले पश्तूनों को नकारात्मक रूप से रूढ़िवादी सोच से देखा जाता है और शहरी केन्द्रों में भी उन्हें संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। मानवाधिकार कार्यकर्ता जिबरान नासिर के अनुसार यह मसला ‘जातिगत रूपरेखा’ तैयार करने का है। कई पश्तून आतंकवादी भी रहे है।
यह बात जाहिर है की आतंक से निबटने के नाम पर हजारों युवा पश्तूनों को उठाया गया और वे दोबारा कहीं देखे नही गये। पिछले वर्ष, पंजाब पुलिस ने विशेषकर लाहौर और रावलपिंडी में पश्तून समुदाय से कई लोगों को आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के शक में गिरफ्तार किया था। हाल ही में पंजाब विश्वविद्यालय में विद्यार्थी संघ से झडप के बीच करीब 200 पश्तूनों और बलूच विद्यार्थियों को आतंकवाद में लिप्त होने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया। एक पश्तूनी सीनेटर ने बताया कि इन पश्तूनों को युद्ध के बंदियों या ऐसे विदेशी जिनसे जातीय आधार पर भेदभाव के शिकार होते है, उनकी तरह बर्ताव किया जाता है। इसका एक उदाहरण पंजाब प्रान्त में पाकिस्तानी स्टडीज में पढाई जाने वाली एक किताब में देखने को मिलता है जिसमें पश्तूनों के लिए राष्ट्रद्रोही जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।
इसमें कोई आश्चर्य नही कि पश्तूनो के प्रति भेदभाव देशभर में पुरज़ोर रूप से किया जाता है। डॉ. सयीद आलम महसूद, एक दक्षिणपंथी कार्यकर्ता, कहते है,”पश्तून होना अब इस देश में गुनाह है”। पाकिस्तानी आंकड़ों के अनुसार 60,000 नागरिक आंतक-विरोधी युद्ध में मारे गये मगर उनके संयोजन को लेकर कोई आंकड़े उपलब्ध नही करवाये गये है। माना जाता है कि इसमें 95 प्रतिशत पश्तून है। पश्तून युवाओं के भीतर इस बात को लेकर भी बेहद आक्रोश है कि किस प्रकार उन्हें दूरगामी विदेशी नीति के लक्ष्यों के लिए कुर्बान कर दिया जाता है। बली का बकरा बनने में अब उनकी कोई दिलचस्पी नही है।
युवा पश्तून पाकिस्तान के शहरी केन्द्रों में पढाई करते है, विशेषकर कराची और लाहौर में और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पक्षपात का अनुभव किया है। इससे एक प्रकार की राजनैतिक चेतना का प्रवाह हुआ है जो पिछले वर्षों में पश्तूनों के साथ हुए अन्याय के विरुद्ध राजनैतिक मंशा पर सवाल उठाता है। उनके लिए संबंधों का दायरा पुरानी राष्ट्रवादी धारणाएं नही है बल्कि वर्तमान परिस्थितियां है। इन परिस्थितियों में विस्थापन, जातीय रूपरेखा का निर्माण, अन्यायपूर्ण अपहरण, मुकदमे, हत्याएं और सैन्य बालों द्वारा ही यातना शामिल है। इसके अलावा आतंकवादियों द्वारा भी वे ही निशाना बनाए जाते है।
इस्लामाबाद में हुई विरोध की यह बैठक इस राजनैतिक चेतना का पहला सन्देश है कि अब पश्तूनों का इस्तेमाल नही किया जायेगा। एक तरह से इस विरोध प्रदर्शन ने पश्तूनी पहचान की एक अलग कहानी और मामला तैयार किया है, जिसे कई लोग पाकिस्तानी पहचान से जुड़ा हुआ और उसमें समाहित मानते थे। मुख्य बात यह नही है कि प्रदर्शकारियों की माँगें पूरी होती है अथवा नही, या फिर यह प्रदर्शन राजनैतिक रूप लेता है या नही। मुख्य बात यह है की इस प्रदर्शन ने 21वीं सदी के पश्तून की पहचान को लेकर स्थिति स्पष्ट की है और ऐसा करने से पश्तूनो को लेकर पाकिस्तान में एक बार फिर राजनैतिक विमर्श छिड़ गया है। पश्तूनों में यह आक्रोश और गुस्सा अनदेखा नही किया जाना चाहिए। इसके परिणाम घातक हो सकते है। जैसा की ‘देश ने चेतावनी’ दी थी,” अगर सरकार जनजातीय लोगों की माँगे पूरी करने में असमर्थ रही तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि विद्रोही गतिविधियों में तेजी से इजाफ़ा हो सकता है और एक प्रकार से जातिगत विद्रोही राष्ट्रवाद देश में पनप सकता है”। नाकीबुल्लाह की हत्या ने यह सुनिश्चित किया है पाकिस्तान में पश्तूनी पहचान को लेकर असल स्थिति देश के सामने आये और अब सरकार उन्हें चारे की तरह का इस्तेमाल न करे। इसके सरकारी नीतियों पर क्या परिणाम होंगे ये तो आगे देखने वाली बात है।
(लेखक, कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार में पूर्व विशेष-सचिव है।)
सन्दर्भ
1Rahimullah Yusufzai, ‘Mehsuds struggle to find a voice’, The News, 11 February 2018, http://tns।thenews।com।pk/mehsuds-struggle-find-voice/#।WoVXNK2B10u
2 ‘Afghan president backs Islamabad sit-in’ Dawn, 10 February 2018, https://www।dawn।com/news/1388484/afghan-president-backs-islamabad-sit-in
3 Talimand Khan, ‘If fallen on deaf ears’, Daily Times, 08 February 2018, https://dailytimes।com।pk/197493/fallen-deaf-ears/
4 ‘Police Killing of Pashtun Youth Fuels anger over ‘Encounters’’, Reuters, 27 January 2018, https://nation।com।pk/27-Jan-2018/police-killing-of-a-pashtun-youth-fuel।।।
5 Mumtaz Alvi, ‘Issue of violence against Pakhtun, Baloch students in Lahore echoes in Senate, The News, 27 January 2018, https://www।thenews।com।pk/print/273463-issue-of-violence-against-pakhtu।।।
6 Abdur Rauf Yousafzai, ‘Long march against Naqeeb killing reaches Peshawar’, Daily Times, 29 January 2018, https://dailytimes।com।pk/191100/long-march-naqeeb-killing-reaches-pesha।।।
7 Aslam Kakar, ‘ The problem with ‘terrorism’ charges’ Daily Times, 07 February 2018। https://dailytimes।com।pk/196689/problem-terrorism-charges/
8 Rafiullah Kakar, ‘Pashtun sit-in — a new political awakening?’ The Express Tribune, 08 February 2018। https://tribune।com।pk/story/1628826/6-pashtun-sit-new-political-awakening/
9 Afrasiab Khattak, ‘Pashtun protest’, The Nation, 10 February 2018 , https://nation।com।pk/10-Feb-2018/pashtun-protest।
10 ‘Pashtun Sit-In Ends’, The Nation, 12 February 2018, https://nation।com।pk/12-Feb-2018/pashtun-sit-in-ends।
(ये लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
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