पिछले दिनों, पश्तून समुदाय में पहली बार ऐसी लामबंदी देखने को मिली, जिसके माध्यम से इस्लामाबाद प्रेस क्लब में 10 दिन लम्बें विरोध प्रदर्शन को हवा मिली जिसमें इस समुदाय के लोग एक वज़ीरी युवक की मौत का विरोध कराची में कर रहे थे. राव अनवर, कराची में मालीर क्षेत्र के एसएसपी है, जो आरोपियों के साथ मुठभेड़ों और कत्लेआम के लिए पूरे क्षेत्र में कुख्यात है (उन्हें लगातार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान अथवा टीटीपी के द्वारा जान से मारने की धमकी मिलती रही है) ने 26-वर्षीय नक़ीबुल्लाह मसीद समेत तीन अन्य लोगों का 13 जनवरी 2018 को कथित मुठभेड़ मार दिया. उनका यह मानना था की नकीब व् अन्य लोग टीटीपी के सदस्य थे. इसके अलावा नक़ीब की हत्या के बाद पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ जश्कर-ए-झांगवी और इस्लामिक स्टेट के साथ संपर्क होने के आरोप लगाते हुए झूठे मुक़दमे भी दायर किये थे.
इस घटना के बाद से ही अनवर फ़रार है और यह माना जा रहा है कि सुरक्षा एजेंसीयों ने पहले ही उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया होगा. एक अनुमान के अनुसार 2011 से अब तक राव अनवर ने लगभग 450 लोगों को मुठभेड़ में मारा है और इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण भी मौजूद नही है कि ये सभी वाज़िब मुल्जिम थे. पुलिस द्वारा जाँच में बरती गयी लापरवाही के कारण प्रशासन पर दवाब बना और इसलिए सिंध सरकार ने जाँच आयोग की स्थापना की थी जिसकी जाँच में यह साफ़ हुआ की नक़ीब निर्दोष है और उसकी हत्या एक फर्जी मुठभेड़ की आड़ में की गयी.
यह पश्तून समुदाय की एकता का एक दुर्लभ क्षण था जब इस समुदाय से जुड़े अलग-अलग कबीलों ने अपने आपसी मतभेदों को दरकिनार करते हुए एक विशेष कारण के लिए साथ आए. इसमें देश के तमाम बुद्धिजीवियों और महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था. इस लंबी पदयात्रा की घोषणा 26 जनवरी को पश्तून कौमी जिरगा के बैनर के तहत की गयी थी और महसूद तहाफुज़ आन्दोलन (जिसका उदय वजीरिस्तान से बारूदी सुरंगों को हटाने के लिए हुआ था) ने भी इस ओर रुख किया है.
आगामी चुनावों के चलते यह आन्दोलन राजनीतिक गलियारे की सुर्खियाँ बटोरने में कामयाब रहा. इमरान खान की गिरती लोकप्रियता के चलते अन्य राजनीतिक दल, खास कर आवामी नेशनल पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) इसका फायदा उठाने की कोशिश में लगी हुई है.
गोमल विश्वविद्यालय के वज़ीरी युवक के नेतृत्व वाला यह आन्दोलन खैबर पख्तूनख्वा के दक्षिणी जिले में डेरा इस्माइल खान से शुरू हुआ और लक्की मारवात, बन्नू, कोहत, पेशावर, चारसद्दा, मर्दन और स्वाबी जिलों से आंदोलनकर्ताओं को जोड़ता चला गया. आन्दोलनकारियों ने डेरा इस्माइल खान जिले से इस्लामाबाद प्रेस क्लब तक तकरीबन 350-400 किमी लम्बी पदयात्रा निकाली, और प्रेस क्लब पहुँच कर वे देश में फैली पश्तून समुदाय के प्रति बेरुखी और नक़ीब के लिए इंसाफ की गुहार लगाते हुए विरोध करते हुए प्रदर्शन पर बैठ गये. आन्दोलनकारियों ने सरकार से निम्न माँगें की है :
1. नक़ीब महसूद को मारने वाले पुलिस अफ़सर पर कड़ी कार्यवाही;
2. पश्तून समुदाय से जुडी हत्यायों पर एक न्यायिक आयोग की स्थापना जिसकी स्वयं मुख्य न्यायधीश निगरानी करें.
3. सभी गुमशुदा लोगों की कोर्ट में हाजरी;
4. फाटा यानि (राज्य द्वारा प्रशासित जनजातीय क्षेत्र) से बारूदी सुरंगें हटाई जायें.;
5. फाटा क्षेत्र में प्रत्येक आतंकी घटना के बाद लागू होने वाली कर्फ्यू नीति का खात्मा
इन माँगों के प्रकृति से यह साफ़ जाहिर होता है कि लोगों में काफ़ी आक्रोश है. हो सकता है कि नक़ीब की मौत ने आग में घी डालने का कार्य किया हो मगर यह कोई छिपी बात नही है कि 9/11 के बाद से ही पश्तून समुदाय के लोगों को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. जब से तालिबानी ताकतों ने पाकिस्तानी क्षेत्र, अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर विशेषकर की फाटा और के पी इलाकों में अपनी पैठ बनाई है, ये इलाके पाकिस्तानी सेना और आतंकियों की रणभूमि में तब्दील हो गया है जिससे इलाके की लगभग सारी जनसँख्या खत्म होने की कगार पर है.
फाटा क्षेत्रों में कानूनी समाधानों की कमी और सरकार की लगभग न के बराबर पहुँच के कारण सुरक्षा बल वहाँ मनमानी करते है. जैसे कि, प्रमुख अपराध नियमावली का बर्बरतापूर्ण उपयोग करते हुए आदिवासी क्षेत्रों में किसी एक के अपराध की सजा पूरे परिवार को दी जाती है, राजनैतिक अनुबंधकों द्वारा अपनी शक्ति का दुरूपयोग, आंतरिक विस्थापकों की अधिक संख्या में उपस्थिति और वजीरिस्तान में बारूदी सुरंग आदि प्रमुख समस्याएं है जिनसे फाटा क्षेत्र जूझते है.
प्रधानमंत्री शाहिद खाकां अब्बासी ने अपने दूत पश्तून नेता आमिर मुक़ाम (पीएमएलएन के केपीके अध्याय के अध्यक्ष) को आक्रोषित आन्दोलनकारियों से बातचीत हेतु भेजा था. प्रदर्शनकारियों की माँगों को मानने की लिखित मंजूरी देने के बाद आख़िरकार विरोध प्रदर्शन दसवें दिन ख़त्म हुआ. लिखित में यह मंजूरी दी गयी कि नक़ीबुल्लाह के हत्यारों को सज़ा दी जाएगी, पाकिस्तानी सेना की 10 टुकड़ियाँ बनाकर फाटा, दक्षिणी वजीरिस्तान क्षेत्र से सभी सुरंगों को बंद किया जायेगा, हिंसा में पीड़ित व्यक्तिओं को मुआवजा दिया जायेगा. हालाँकि प्रदर्शनकारियों ने यह चेतावनी भी दी है कि यदि इन माँगों को तीस दिनों के भीतर पूरा नही किया गया तो यह आन्दोलन दोबारा शुरू होगा.
इन घटनाओं ने, खासतौर पर विरोध प्रदर्शन और इन प्रदर्शनों के प्रति एजेंसीयों के शुष्क रवैय्ये के चलते कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किये है. अभी यह कहना जल्दबाजी होगी की यह आक्रोश कायम रहेगा या नही, लेकिन यह तय है कि लोगों के मन में काफी गुस्सा है. शायद यही वजह है कि पाकिस्तानी सरकार ने भी लोगों के गुस्से को चुनौती देना ठीक नही समझा. साथ ही, यह लामबंदी इसलिए भी मुमकिन हो सकी क्यूंकि यह आन्दोलन मुख्य रूप से अहिंसावादी था और इस आन्दोलन में सरकार का विरोध नही किया गया था.
आन्दोलनकारियों ने राष्ट्रपति घनी और अफ़ग़ान सरकार द्वारा दिए गये किसी भी तरह के सहयोग को नकार दिया. फिर भी यह सरकार के लिए एक चेतावनी है जिसने बहुत लम्बे समय से फाटा और उससे जुड़े मसलों को अनदेखा किया है, हालाँकि अब निवासियों को मुख्यधारा में लाने के प्रयास किये जा रहे है. कुछ सकारात्मक कदम उठाये गये है जिसमें फाटा को सर्वोच्च न्यायलय और उच्च न्यायलय के क्षेत्र में लाना और राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति ने फाटा सुधारों (जिसके प्रमुख प्रधानमंत्री है) पर जो कुछ अनुसंशायें दी है जिसमें फाटा को केपीके के साथ सम्मिलित करने जैसे कार्य शामिल है, को लागू करना भी है. यह देखना अभी बाकी है कि सरकार किस प्रकार लंबे समय से लटकी इन समस्यायों का निबटारा करती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
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