2003 में राष्ट्रपति खतामी के दौरे के लगभग 15 वर्ष बाद, राष्ट्रपति रूहानी 15-17 फ़रवरी तक भारत दौरे के लिए आये थेI इस बीच 2008 में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद एक बेहद संक्षिप्त मुलाकात के लिए भारत आये थे| हालाँकि भारत के प्रधानमंत्री को प्रतिउत्तर में वापसी दौरा करने में काफी विलम्ब हुआI 2012 के नॉन-अलाइनड मूवमेंट समिट में भारतीय प्रधानमंत्री ने वापस दौरा किया था| प्रधानमंत्री मोदी के आने के पश्चात् यह प्रक्रिया थोडी तेज हुई हैI उन्होंने 2016 में तेहरान का दौरा किया था और राष्ट्रपति रूहानी को भारत आने का न्योता भी दिया था|
यह दौरा, अफ़गानिस्तान में बेहाल होते हालत के बीच हुआ हैI 27 जनवरी को काबुल में हुए हमले में 158 लोग घायल हुए थे और 95 लोगों को जान गयी थी| इस हमले की जिम्मेदारी तालिबान ने ली हैI उनामा (संयुक्त राष्ट्र सहयोग मिशन अफ़ग़ानिस्तान) की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि 2017 की शुरुआत में ही 1,662 नागरिकों की मौतें हुई थी और 3,581 से ज्यादा नागरिक घायल हुए है|
खाड़ी में दोनों पक्षों के बीच तनाव ज़ारी है| गल्फ़ को-ऑपरेशन काउंसिल क़तर-सऊदी की तानातानी के बीच कमज़ोर पड़ गया है| यमन में युद्ध पर कोई फ़ैसला नही हुआI रूस की दख़ल के पश्चात् सीरिया में राष्ट्रपति बशर-अल-असद की स्थिति अब संभल गयी है| 2014-15 में जो आईएसआईएस अपने शीर्ष पर था, आज इराक़ और सीरिया, दोनों ही देशों में अपने इलाक़े छोड़ने पर मजबूर हुआ हैI अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर ताजी अनिश्चितायें है हालाँकि अभी तक यह कम से कम बचा रहा हैI तेल निर्यात में भी इराक़ अपनी पूर्व-स्वीकृत स्तर पर वापस आ गया है|
खाड़ी के दोनों पक्षों के देशों से भारत ने अपने ऐतिहासिक रिश्ते और मजबूत किये हैI 2016 में प्रधानमंत्री ने साउदी अरब का दौरा किया था| उन्होंने हाल ही में अरब देशों समेत संयुक्त अरब एमिरात, फिलिस्तान और ओमान का दूसरा दौरा किया| पिछले गणतंत्र दिवस पर अरब के राजकुमार मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किये गये थे|
राष्ट्रपति रूहानी के दौरे की समाप्ति पर एक संयुक्त बयान जारी किया गया जिसमें अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मलेन आयोजित करने के लिए जल्द से जल्द मंजूरी की बात कही गयी थी| दोनों ही पक्षों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘हिंसा एवं कट्टरपन के ख़िलाफ़ सम्पूर्ण विश्व (वेव)’ की पहल का प्रचार किया है|
भारत और ईरान ने इस बात पर भी सहमति जताई की वे भारतीय रेलवे निर्माण अंतरराष्ट्रीय लिमिटेड (आईआरसीओएन) और इसकी ईरानी इकाई, चाबहार-ज़ाहेदान रेल लाइन के तकनीकी बिन्दुओं व् वित्तीय विकल्पों पर अध्ययन करेगीI दोनों पक्षों ने अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिणी पारवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पुनः याद कियाI साथ ही चाबहार निशुल्क व्यापारिक क्षेत्र में भारतीय निजी/सहकारी निवेशकों को आकर्षित करने हेतु उचित वातावरण तैयार करने पर भी सहमती बनाई है| फ़र्ज़ाद-बी गैस फील्ड पर दोनों पक्ष जारी रहने के लिए तैयार है और समझौते पर सहमती बनाने की प्रक्रिया को और गति देने के लिए रजामंद हुए है|
संयुक्त बयानों के अलावा, राष्ट्रपति रूहानी के भारत दौरे पर नौ अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए है| इनमे सबसे महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह- प्रथम चरण के लिए अंतरिम अवधी तक पट्टेदारी अनुबंध शामिल है| यह उस समय तक कार्यकारी रहेगा जब तक की पूर्व में सहमती पर बनाये गये 10-वर्षीय अनुबंध कार्य में नही आताI ‘दोहरे कर-निर्धारण की अनदेखी और राजकोषीय अतिक्रमण से रक्षा’ पर भी समझौते तय हुए है| दोनों पक्षों ने प्रत्यर्पण संधि के अनुसमर्थन से जुड़े दस्तावेज भी आपस में साझा किये जिसपर वर्ष 2008 में हस्ताक्षर किया गया था| कूटनीति वीज़ा धारकों के लिए वीज़ा आवश्यकताओं से जुड़े एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गये है| इससे अन्य पारम्परिक दवा, कृषि, स्वास्थ, डाक और व्यापार से जुड़े सुधारों को लागू करने हेतु एक विशेषज्ञ समूह की स्थापना आदि पर पांच अलग समझौतों पर हस्ताक्षर हुए है|
चाबहार केवल अफ़ग़ानिस्तान में भारत की पहुँच के लिए ही आवश्यक नही है, बल्कि मध्य-एशियाई देशों (तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजीकिस्तान, किर्गिस्तान, कज़ाखस्तान) में हमारी पहुँच के लिए भी बेहद आवश्यक हैI जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे पर बातचीत के दौरान इन सभी ने इस परियोजनाओं पर सहमती प्रदान की थी| भारत ने ज़रांज-डेलाराम सड़क का निर्माण कर, सीमा पर चौकी को अफ़ग़ानिस्तान के ‘गारलैंड हाईवे’ से जोड़ने का कार्य किया है| चाबहार बंदरगाह समुद्री मार्ग को जमीन से जोड़ने का भी कार्य करेगा| यह पोर्ट केवल भारत और अफ़ग़ानिस्तान की पहुँच के लिए महत्वपूर्ण नही है बल्कि मध्य-एशियाई देशों ने भी इस परियोजना में सहयोग प्रदान किया है| इस बंदरगाह के माध्यम से आंतरिक इलाकों को भी जोड़ने की जरूरत है| हालाँकि सड़क-मार्ग अवश्य है, मगर एक रेल-मार्ग की भी जरूरत है| यह बंदरगाह पाकिस्तान के ग्वादार बंदरगाह से महज 140 किमी की दूरी पर है जिसका निर्माण चीन द्वारा किया जा रहा है| चाबहार निशुल्क व्यापारिक क्षेत्र में चीनियों की उपस्थिति भी पहले से मौजूद है, जो वहाँ एक रिफाइनरी का निर्माण कर रहे है|
आईएनएसटीसी में भी काफी प्रगति हुई है| यह मार्ग बन्दैर अब्बास से शुरू होता है और उत्तर की ओर ईरान में कैस्पियन समुद्र के छोर से गुज़रता है| उत्तरी ईरानी सीमा से बन्दैर अब्बास में कई स्थानों पर सड़क और रेल मार्ग जुड़ते है| यहाँ की आधारभूत संरचना का पहले ही काफ़ी विकास हो चुका है| संयुक्त अरब एमीरात और जापान इस मार्ग का इस्तेमाल कई बार विषम परिस्थितियों के दौरान भी मध्य-एशियाई देशों, रूस और अफ़ग़ानिस्तान तक पहुँचने के लिए कर चुके है|
हालाँकि संयोजकता के स्तर पर काफ़ी प्रयास हुआ है, मगर फ़र्ज़ाद-बी पर बातचीत अभी अपने मुकाम पर नही पहुंची है| हाल ही में भारत ने संयुक्त अरब एमीरात के साथ ऊर्ध्वप्रवाह तेल की ख़ोज हेतु समझौते पर हस्ताक्षर किये हैI इस क्षेत्र में भागेदारी देखते हुए यह ईरान के हित में है कि वह अपने सबसे बड़े व्यापार सहभागी के साथ इन मसलों पर अच्छे सम्बन्ध स्थापित करे| हालाँकि इस बीच चिंता की अन्य बातें भी है| भारत से ईरान के निर्यात में 2013-14 में 4I9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2016-17 में 2,379 बिलियन डॉलर तक कमी आई हैI वहीँ भारत का आयात (10I3506 अमेरिकी डॉलर से 10I506 अमेरिकी डॉलर) लगभग समान ही रहा है जिससे व्यापार-घाटे में बढ़ोतरी हुई है|
राष्ट्रपति रूहानी के दौरे की समाप्ति पर जो संयुक्त बयान जारी किये गये थे उनमे जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन के नाम से जानी जाने वाली परमाणु संधि के पूर्ण एवं प्रभावी ढंग से लागू होने पर सहयोग देने की बात भी कही गयी थी| इससे कई ताज़े प्रश्न भी पैदा हुए है| 17 फ़रवरी को आब्जर्वर शोध अधिष्ठान में राष्ट्रपति रूहानी द्वारा इसकी वर्तमान स्थिति को लेकर आलोचना की गयी थी| संयुक्त बयान में राष्ट्रीय एकीकृत सरकार का पक्ष लेते हुए इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया की शांति में दिलचस्पी और क्षेत्र में स्थिरता केवल एक लोकतांत्रिक, संयुक्त, मजबूत, संपन्न, बहुलवादी और स्वतंत्र अफ़ग़ानिस्तान के लिए संभव हैI चाबहार समझौते को जल्द-से-जल्द लागू करने से उनकी अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने के प्रतिबद्धता उनके विचारों की बुलंद अभिव्यक्ति होगी|
राष्ट्रपति रूहानी ने अपने दौरे की शुरुआत हैदराबाद से की थी, जहाँ उन्होंने मक्का मस्जिद में शुक्रवार को जुम्मे की नमाज की आगुवाई भी की थी| यह भारत-ईरान के बीच सांस्कृतिक समानता का संकेत है और साथ ही एक बहुल देश के तौर पर भारत को प्रदर्शित करता है| भारत-ईरान के संबंध वक़्त की कसौटियों पर खरे उतरे है| भारत ने बेहद विषम परिस्थितियों में भी ईरान के साथ तेल की खरीद कायम रखी है| प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में तेहरान की यात्रा की थी और राष्ट्रपति रूहानी के पिछले हफ्ते में संपन्न भारत दौरे ने इन रिश्तों को और संबलता प्रदान की है| ये सम्बन्ध अन देशों को ध्यान में रखकर नही जोड़े गये और न ही वे उनसे प्रभावित है|
(ये लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
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