इस साल 26 अप्रैल को दक्षिण कोरियाई धरती पर कदम रखते ही किम जोंग उन 1950 के दशक में कोरियाई युद्ध के बाद वहां जाने वाले पहले उत्तर कोरियाई नेता बन गए। वहां नेताओं ने कोरियाई युद्ध पर पर आधिकारिक रूप से विराम लगाने के लिए सक्रियता से वार्ता पर सहमति जताई। यह घोषणा 1950 के दशक में बनी संयुक्त राष्ट्र कमान (यूएनसी) को खत्म कर सकती है जिसका अर्थ होगा कि कोरिया से अमेरिका सुरक्षा बलों की वापसी हो जाएगी। दोनों कोरियाई देशों के बीच संबंधों का सामान्य होना उनके बीच लंबे समय से चले आ रहे सामुद्रिक विवादों के सुलझने की भी उम्मीद जगाता है। हालांकि मौजूदा शांति प्रक्रिया के पलटने से इस प्रायद्वीप में फिर से संघर्ष की आग भड़क सकती है।
दोनों देशों के बीच उत्तरी सीमा रेखा (नॉर्दर्न लिमिट लाइन, एनएलएल) विवाद की एक प्रमुख वजह है जिसे लेकर अक्सर तनातनी होती रही है और इसके चलते दोनों पक्षों को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा। वर्ष 1953 में यूएनसी और उत्तर कोरिया के बीच हस्ताक्षरित युद्धविराम समझौते के बाद यूएनसी ने ही एनएलएल खींची थी। इसके साथ ही कोरियाई युद्ध तो समाप्त हो गया, लेकिन इसमें उत्तर कोरिया की 12 नॉटिकल मील की सीमा में आने वाले कुछ द्वीप भी यूएनसी और दक्षिण कोरिया के नियंत्रण में रहे। समुद्री सीमा रेखा पर सहमति बनाने वाला कोई समझौता नहीं हो सका। इसकी मुख्य वजह यही रही कि जहां यूएनसी टेरिटोरियल वाटर की सीमा तट से तीन नॉटिकल मील तय करना चाहता था जबकि उत्तर कोरिया इसके लिए 12 नॉटिकल मील का स्तर चाहता था। परिणामस्वरूप एनएलएल रेखा अमेरिकी प्रभाव वाले यूएनसी ने एकतरफा तरीके से खींची जो दोनों देशों के बीच विवाद की जड़ बन गई। उत्तर कोरिया एनएलएल को मान्यता नहीं देता और अपने युद्धपोतों और फायरिंग के माध्यम से अक्सर इस पर अपने अधिकार का दावा जताता रहता है। यूएन कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (यूएनलसीएलओएस) के व्यापक प्रावधानों के तहत एनएलएल को कानूनी रूप से सही नहीं ठहराया जा सकता।
कोरियाई युद्ध मोटे तौर पर थर्टीएट्थ पैरलल के उसी पड़ाव पर खत्म हुआ जहां से वह शुरू हुआ था। अगस्त 1953 में हुए युद्धविराम समझौते के अनुसार दोनों पक्षों ने वहां से अपनी सेनाएं दो किलोमीटर दूर कर दीं ताकि एक गैरसैन्यकृत क्षेत्र (डीएमजेड) बनाया जा सके। लेकिन कटी-फटी तटरेखा और द्वीपों के व्यापक फैलाव को देखते हुए डीएमजेड का पीत सागर तक विस्तार करना खासा चुनौतीपूर्ण है। हालांकि दक्षिण कोरिया ने एनएलएल को हमेशा डीएमजेड का सामुद्रिक विस्तार मानने के साथ ही उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच वास्तविक सीमा रेखा माना है जो कानूनी तौर पर भले ही असंगत हो।
दक्षिण कोरियाई द्वीपों पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) को लेकर उत्तर कोरिया का दावा कुछ ट्रिब्यूनल्स (पंचाटों) के फैसले से मजबूत हुआ है जिसमें उन छोटे द्वीपों के लिए ‘समान सिद्धांतों’ को नहीं अपनाया गया जो बड़े स्थलीय भाग की समुद्र तक पहुंच में अवरोध बनते हैं। वर्ष 2009 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का एक निर्णय इस मामले में एक उदाहरण है जो फैसला काले सागर में यूक्रेन और रोमानिया की सामुद्रिक सीमा तय करने से जुड़ा है। अदालत ने यूक्रेन को सर्पेंट्स द्वीप में एक टेरिटोरियल सी एन्क्लेव तो दिया, लेकिन दो देशों के बीच सीमा निर्धारित करने में इसे पैमाना नहीं माना। इससे पहले 1970 के दशक में फ्रांस और यूके के बीच दो द्वीपों के विवाद में भी यही परिणाम आया था जहां जर्सी और ग्यूर्नसी जैसे यूके के दो द्वीप फ्रांसीसी तट के मुहाने पर थे। उन्हें भी टेरिटोरियल सी एन्क्लेव दिए गए, लेकिन पुनर्सीमांकन नहीं किया गया।
जून 1999 और जून 2002 में उत्तर एवं दक्षिण कोरियाई युद्धपोतों टकराव हुआ। असल में जून और जुलाई का महीना वहां केकड़े पकड़ने वाला होता है। नीले केकड़े की काफी मांग होती है जिसके निर्यात बाजार में अच्छे दाम मिल जाते हैं। तब केकड़े पकड़ने को लेकर उत्तर और दक्षिण कोरिया की सेनाओं में हुए टकराव ने एनएलएल के आसपास हिंसक रूप ले लिया। 15 जून, 1999 को तीस उत्तर कोरियाई नाविकों को मार दिया गया। फिर 29 जून, 2002 को दक्षिण कोरियाई गश्ती नौका को उत्तर कोरिया ने डुबो दिया जिसमें पांच दक्षिण कोरियाई नाविक मारे गए और एक उत्तर कोरियाई जहाज में आग लगा दी गई। 10 नवंबर, 2009 को एक हादसा हुआ जो ‘द बैटल ऑफ देआचिओंग’ नाम से जाना जाता है जिसमें दोनों पक्षों के जहाजों से गोलाबारी हुई जिसमें एक उत्तर कोरियाई गश्ती जहाज क्षतिग्रस्त हो गया। जवाबी कार्रवाई में उत्तर कोरिया ने 26 मार्च, 2010 को दक्षिण कोरिया के 1,200 टन वजनी कॉर्वेट चेओनान को डुबो दिए जिसमें 46 नाविक मारे गए। यही माना गया कि एक पनडुब्बी से तारपीडो लांच करके उस जहाज को डुबोया गया।
जनभावनाओं को देखते हुए किसी भी राजनेता के लिए टेरोटोरियल यानी क्षेत्रीय सीमा में छूट देना बेहद मुश्किल होता है विशेषकर तब जब उनके कारण पहले से ही कई हादसे हो चुके हों और इससे नागरिकों का जीवन प्रभावित हो रहा हो। जरूरत से ज्यादा केकड़े निकाले जाने को लेकर दक्षिण कोरिया की चिंता तार्किक लगती है, क्योंकि इससे भविष्य में उनकी उपलब्धता एवं निरंतरता पर असर पड़ सकता है। ऐसे में वार्ता के माध्यम से केकड़े पकड़ने को लेकर एक समझौते पर सहमति की जरूरत है जिसकी वहज से कई अवसरों पर दोनों कोरिया एक दूसरे से भिड़ने पर मजबूर हुए हैं। यह दर्शाता है कि नीली अर्थव्यवस्था कैसे दो देशों के बीच युद्ध भड़का सकती है।
उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच नए सिरे से शुरू हुई बातचीत सामुद्रिक विवादों के समाधान की उम्मीद जगाती है। इसके लिए तीन विकल्प उपलब्ध हैं। सबसे पहले तो सामुद्रिक पुनर्सीमांकन पूर्व में हुए फैसलों के आधार पर किया जाए, लेकिन इसके लिए दक्षिण कोरिया को कुछ झुकना होगा। दूसरा यही कि विवादित क्षेत्रों को मरीन प्रोटेक्टेड एरिया घोषित किया जा सकता है जिससे मछुआरों के जीवन पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। तीसरा यही कि इस क्षेत्र को तटस्थ क्षेत्र घोषित किया जाए, लेकिन इसके लिए उत्तर कोरिया की सहमति की भी जरूरत होगी। इन तीनों में पहला विकल्प ही कानून रूप से सही ठहरने के साथ ही स्थायी समाधान भी है।
(The paper does not necessarily represent the organisational stance. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct).
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