फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ)1 के एशिया प्रशांत समूह (एपीजी) का दो दिन का पूर्ण अधिवेशन बैंकॉक में 22 मई, 2018 से आयोजित हुआ। पाकिस्तान ने एफएटीएफ के फरवरी अधिवेशन में लिए गए निर्णय के मुताबिक 25 अप्रैल को एक कार्य योजना पेश की। उस अधिवेशन में कहा गया था कि पाकिस्तान को इस वर्ष जून में ‘ग्रे सूची’ में डाल दिया जाएगा। पाकिस्तान ने इस मंच के पास एक उच्चाधिकार प्रतिनिधिमंडल भी यह बताने के लिए भेजा कि अपनी धन शोधन (काले धन को सफेद बनाना) निवारण तथा आतंकवाद को वित्तीय मदद रोकने वाली व्यवस्था में मौजूद खामियों को दूर कने के लिए वह क्या कदम उठा रहा है।
लेकिन उस बैठक में पाकिस्तान की कार्य योजना को स्वीकार नहीं किया गया। उसके बजाय पाकिस्तान से कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जमात-उल-दावा (जेयूडी) और फलह-इ-इंसानियत फाउंडेशन (एफआईएफ) को आतंकवाद के लिए मिलने वाली वित्तीय मदद पर रोक लगाने के लिए वह दो हफ्तों के भीतर समग्र योजना बनाए। उसने पाकिस्तान को आगाह किया कि यदि वह ऐसा नहीं करता है अथवा उसके द्वारा बनाई गई योजना नाकाफी पाई गई तो उसे आतंकवाद को वित्तीय सहायता रोकने में नाकाम रहने वाले देशों की काली सूची में डाला जा सकता है। वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल ने बताया कि ऐसी योजना 8 जून से 11 जून के बीच पेश की जाएगी। एफएटीएफ के 23 जून को पेरिस में होने वाले अधिवेशन में नई कार्य योजना पर चर्चा की जाएगी।
ग्रे सूची में ‘उन देशों को रखा जाता है, जहां धन शोधन रोकने अथवा आतंकवादियों को वित्तीय सहायता रोकने संबंधी रणनीति की कमी होती है और जो उसके लिए एफएटीएफ के साथ मिलकर कार्य योजना बना चुकी होते हैं।’ चूंकि पाकिस्तान ने फरवरी 2018 तक एफएटीएफ के साथ प्रस्तावित योजना पर काम नहीं किया था, इसीलिए उसे सीधे ग्रे सूची में डाल दिया गया। उसे एक योजना बनाने का मौका दिया गया, जिस पर मई में विचार किया गया और खारिज कर दिया गया। पाकिस्तान 8 से 11 जून के बीच संशोधित योजना पेश करने वाला है। यदि एफएटीएफ उसे मंजूरी दे देता है तो पाकिस्तान को ग्रे सूची में डालने की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। लेकिन यदि पाकिस्तान संशोधित योजना नहीं लाता है या एफएटीएफ उसे नकार देता है तो पाकिस्तान को उत्तर कोरिया और ईरान के साथ काली सूची में डाला जा सकता है।
पाकिस्तान के ग्रे सूची में आने का यह पहला मौका नहीं होगा। 2012 से 2015 के बीच तीन वर्ष तक वह इस सूची में रह चुका है। लेकिन इस बार यह कदम पाकिस्तान और वैश्विक समुदाय विशेषकर अमेरिका के बीच बदलते रिश्तों के दरम्यान उठाया जाएगा। इस तरह पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय रूप से अछूत हो सकता है। ग्रे सूची में डाले जाने और काली सूची में डाले जाने की आशंका बढ़ने से पाकिस्तान के लिए जोखिम बढ़ेगा और उसके बैंकिंग क्षेत्र पर गंभीर असर पड़ेगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय लेनदेन मुश्किल हो जाएगा। विदेशी बैंक ग्रे सूची में मौजूद देश के साथ लेनदेन करने में एहतियात करेंगे क्योंकि उन्हें डर होगा कि कहीं उन पर भी काले धन को सफेद करने का आरोप नहीं लग जाएगा। विदेशी सहायता और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के संभावित पैकेज पर निर्भर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की दुर्दशा देखते हुए उसे ग्रे सूची में डालने के और भी प्रतिकूल प्रभाव होंगे।
काली सूची में डाले जाने के तो और भी गंभीर परिणाम होंगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ पाकिस्तान के रिश्ते गड़बड़ा सकते हैं। निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मदद बहुत मुश्किल हो जाएगी, जिसका असर उसके व्यापार और निर्यात पर होगा। पाकिस्तान के रुपये पर इसकी चौतरफा मार हो सकती है।
इस संकट से निपटने के लिए पाकिस्तान निश्चित रूप से अपने सदाबहार संरक्षक चीन का रुख करेगा। लेकिन अभी चीन स्वयं ही अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध की आशंका और बढ़ते कर्ज से परेशान है। पाकिस्तान की खातिर चीन वैश्विक रुख के कितना खिलाफ खड़ा होगा, यह बहस का विषय है।
एफएटीएफ की बैठक से ऐन पहले फरवरी 2018 में राष्ट्रपति द्वारा एक अधिनियम लागू किया गया, जिसके जरिये आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 1997 में संशोधन करते हुए जमात-उल-दावा और उसकी सहायतार्थ शाखा एफआईएफ की सभी संपत्तियां जब्त करने की बात थी। लेकिन उन्हें अधिनियम की अनूसूची 1 में नहीं डाला गया। इस अनुसूची में आए प्रतिबंधित संगठनों के नेताओं को गिरफ्तार करना ही होता है। दोनों संगठनों को ऐसी धारा में डाला गया, जिनमें प्रतिबंधित संगठनों की संपत्तियां (चल, अचल एवं मानव संसाधन) जब्त करने का प्रावधान है। इससे एक बार फिर पता चला कि पाकिस्तान अपने वायदे पूरे करने के लिए गंभीर नहीं है। इतना ही नहीं, ये सभी प्रयास कितने खोखले हैं, यह बात उस चिट्ठी से पता चल गई, जो पाकिस्तान की विदेश सचिव ने बैंकॉक बैठक से ऐन पहले आंतरिक मामलों के मंत्री अहसान इकबाल और वित्त, राजस्व एवं आर्थिक मामलों के मंत्री मिफ्ता इस्माइल को लिखी थी। चिट्ठी में उन्होंने आशंका जताई कि सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट और प्रत्यक्ष कदम नहीं उठाए हैं कि ये संगठन अपने आप धन इकट्ठा करने और काम करने के लायक नहीं रह जाएं।2
हो सकता है कि यह लेख लिखे जाते समय पाकिस्तान की कार्य योजना कई कारणों से एफएटीएफ की जरूरतों से कम रह गई हो।
सबसे पहले तो पाकिस्तान की धन शोधन एवं आतंकवाद की वित्तीय मदद रोकने वाली व्यवस्था को वैश्विक संगठन की जरूरतों के मुताबिक बनाने के लिए एपीजी ने जो 40 सिफारिशें की थीं, उनमें से एक थी ऐसी संस्था को अधिसूचित करना, जिसके पास धन शोधन निवारण अधिनियम, 2010 के तहत जांच करने एवं मुकदमा चलाने के अधिकार हों।
9 जून 2018 को जारी सांविधिक नियामक आदेश एसआरओ-611 के द्वारा पाकिस्तान ने आतंरिक राजस्व खुफिया एवं अन्वेषण महानिदेशालय (डीजी आईएंडआई) को इस प्राधिकरण के रूप में अधिसूचित किया। उसे उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही आरंभ करने का अधिकार दिया गया, जिन पर कर से बचाया गया धन सफेद करने का संदेह है। लेकिन लाहौर उच्च न्यायालय ने जनवरी 2018 में इस अधिसूचना को इस आधार पर रद्द कर दिया कि उसे कैबिनेट से मंजूरी नहीं मिली थी। दिलचस्प है कि इसके बाद भी कैबिनेट ने 31 मई 2018 को पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस अधिसूचना को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। यह देखना दिलचस्प होगा कि कार्यवाहक सरकार इस स्थिति में क्या करती है।
दूसरी बात, निवर्तमान सरकार ने अपने पिछले बजट में कर अभयदान की एक योजना अधिसूचित की थी, जिस पर एफएटीएफ ने चिंता जताई थी। सरकार की दलील थी कि योजना उस धन पर लागू नहीं होगी, जो अपराध के जरिये कमाया गया है और जिसे सफेद बनाया गया है। लेकिन यह तय करने का अधिकार डीजी आईएंडआई को दे दिया गया था, जिसे कैबिनेट की मंजूरी नहीं होने के कारण लाहौर उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। चूंकि कैबिनेट की मंजूरी नहीं ली गई, इसीलिए डीजी आईएंडआई की शक्तियां लटकी रहीं। इसका एक नतीजा यह हुआ कि उन 270 प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी, जिन पर कर चोरी से कमाए धन को सफेद करने का आरोप था। यह बात एफएटीएफ के ध्यान में आई है और इससे पाकिस्तान का पक्ष बहुत कमजोर हो सकता है।
तीसरी बात, लश्कर अथवा जमात-उल-दावा का मुखिया हाफिज सईद पाकिस्तान में जनसभाओं को संबोधित करता आ रहा है। जमात ने राजनीतिक मोर्चा मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) बना लिया है, जिसने कुछ उपचुनावों में हिस्सा लिया है और आने वाले आम तथा प्रांतीय चुनावों में हिस्सा लेने जा रहा है। इसी तरह 26 नवंबर के मुंबई हमलों की साजिश रचने वाला लश्कर का शीर्ष कमांडर जकी-उर्रहमान लखवी 2015 में लाहौर उच्च न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा किए जाने के बाद फरवरी 2018 में एक बार फिर सभी के सामने आया।
चौथी बात, ब्रिटेन की राष्ट्रीय अपराध एजेंसी ने गंभीर एवं संगठित अपराधों के आकलन की अपनी वार्षिक रिपोर्ट मई 2018 में जारी की थी। उसमें पाकिस्तान को देश में धन शोधन के तीन शीर्ष स्रोतों में शामिल बताया गया है। दो अन्य देश नाइजीरिया और रूस हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापार में गलत बिल बनाकर ऐसे काम सबसे ज्यादा किए जाते हैं और ब्रिटेन में विशेषकर लंदन में संपत्तियों में निवेश करना धन को सफेद करने का आकर्षक तरीका बन गया है। इन बातों पर भी एफएटीएफ का ध्यान गया है।
कुल मिलाकर पाकिस्तान की रणनीति विदेश समस्या की जड़ पर प्रहार करने के बजाय नीति संबंधी कदमों पर, दोस्तों से समर्थन पर और साजिश का रोना रोने पर अधिक केंद्रित रही है। इसकी वजह एक्सप्रेस ट्रिब्यून बताता है, जो कहता हैः ‘चिंता बढ़ाने वाले ये संगठन (एलईटी, जेयूडी, एफआईएफ) रणनीतिक संपत्तियां हैं; अभी उनकी उपयोगिता कश्मीर में भारत का संतुलन बिगाड़ने में है, लेकिन पाकिस्तान के लिए अब व्यापक संदर्भ में वे बोझ बन गए हैं।’ सितंबर 2017 में तत्कालीन विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने यह बात स्वीकार करते हुए न्यूयॉर्क में कहा थाः “मैं मानता हूं कि वे (आतंकवादी) बोझ बन गए हैं, लेकिन हमें उनसे छुटकारा पाने के लिए वक्त दीजिए क्योंकि उनके बराबर संपत्तियां अभी हमारे पास नहीं हैं।”3
लेकिन दुनिया आतंकवाद पर पाकिस्तान के बहानों से ऊब चुकी है और शायद अब उन्हें मानना नहीं चाहती। हालांकि इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि सेना आतंकवादियों का सफाया करना चाहती है, लेकिन पाकिस्तान के लिए संदेश अब स्पष्ट है।
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