महामहिम राजा अब्दुल्लाह-इब्न-हुसैन, जॉर्डन के हाशेमाईट साम्राज्य के वारिस एवं उनकी महारानी रानिया इस माह के अंत में यानि प्रधानमंत्री मोदी के फिलिस्तान समेत अन्य दौरों के समाप्त होते-होते, अपने दूसरे आधिकारिक दौरे के लिए भारत आने वाले है. इससे पहले वे 2006 में भारत आये थे. उस वक़्त उनका ज्यादा झुकाव द्विपक्षीय-सम्बन्ध बढ़ाने और बेहतर करने की ओर था. परन्तु आपसी उच्च-स्तरीय कूटनीतिक बैठकों के दौरान बात नही बन पाई जो वर्तमान कूटनीतिक-व्यवस्था में काफी अहम माने जाते है और जिसकी मुख्य वजह भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध और जॉर्डन-पाकिस्तान की निकटता मानी गयी है.
पिछले 65 वर्षों में किसी भी भारतीय राष्ट्रपति ने कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु जॉर्डन का आधिकारिक दौरा नही किया. राजा हुसैन के अंतिम संस्कार के दौरान 1999 में उप-राष्ट्रपति ने जॉर्डन का दौरा किया था. इसके अलावा पूर्व-प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने 1988 में जॉर्डन का दौरा किया किया था. मगर किसी भी भारतीय विदेश मंत्री द्वारा द्विपक्षीय-वार्ता हेतु कभी कोई दौरा नही किया गया. प्रचलित संयुक्त आयोग की पूर्ती भी पिछले 9 महीने से नही की गयी है. यह बात लेखक ने खुद पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी को भी बताई जब अम्मान जाने से पहले 2014 में उन्होंने राष्ट्रपति से औपचारिक मुलाकात की थी, जहाँ उन्हें एक ‘बेहद महत्वपूर्ण एवं भू-रणनैतिक’ देश के एक क्षेत्र में भेजे जाने के लिए बधाई दी गयी थी. जॉर्डन के महत्त्व के विषय में शायद ही कोई संदेह हो मगर उच्च-स्तर पर बातचीत की अनदेखी ने हमारी नियत पर प्रश्न-चिन्ह खड़े कर दिए है. राष्ट्रपति ने जॉर्डन का अधिकारिक दौरा करना निश्चय किया था जो अक्टूबर 2015 में पूरा भी हुआ और यह इस राह में एक बड़ी उपलब्धी भी साबित हुई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामहिम अब्दुल्लाह से न्यूयॉर्क में हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा एवं आतंकवाद-विरोधी शिखर सम्मेलन में मुलाकात की थी जहाँ दोनों नेताओं के बीच काफ़ी बातचीत हुई और उन्होंने सुरक्षा एवं आसूचना तंत्र, व्यापर, निवेश व् रक्षा जैसे अहम विषयों पर सहमती बनाते हुए इनपर आपसी सहयोग बढ़ाने के सन्दर्भ में बातचीत की थी. आतंकवाद-प्रतिरोध, वाज़िब तौर पर दोनों देशों के से जुड़ा हुआ एक अहम मसला है क्यूँकी दोनों ही देश इससे पीड़ित है. नये तंत्र जैसे उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता, आसूचना-विनिमय एवं कट्टरपन का प्रतिरोध करने जैसे मसलों पर बनाये गये है. जॉर्डन के राजा ने भारत को आतंक के विरोध में आयोजित आकबा प्रक्रिया में भागेदारी हेतु आमंत्रित किया और भारत ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. संयुक्त आयोग पहले ही दो बार मिल चुका है और लंबे समय के अन्तराल को खत्म करने के लिए, विशेषतौर पर व्यापार व् निवेश के क्षेत्र में लगातार प्रयास कर रहा है.
व्यापार, सहयोग एवं मैत्री-संबंधों से जुड़े प्रथम द्विपक्षीय-समझौतों पर 1947 में दो नये-नवेले देशों के बीच पहले ही हस्ताक्षर हो चुके थे. भारत जॉर्डन के व्यापर एवं निवेश सहभागीयों में तीसरे स्थान पर है और पोटाश व् फॉस्फेट के बाज़ार में सबसे बड़ा बाज़ार बन चुका है. 8.60$ करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ भारतीय किसान उर्वरक निगम लिमिटेड (इफ्को) एवं जॉर्डन फॉस्फेट माइंस कंपनी ने साझेदारी के साथ मिलकर दक्षिणी जॉर्डन के इलाके में जॉर्डन-इंडिया फ़र्टिलाइज़र कंपनी (जिफ्को) नामक संयुक्त उद्धम स्थापित किया है जो फास्फोरिक एसिड के उत्पादन एवं आयात में सक्रीय है. लार्सेन एंड टर्बो द्वारा अम्मान में निर्मित अब्दोउन पुल, अकाबा में एफ्कोंस इंफ्रास्ट्रक्चर द्वारा निर्मित रॉक फॉस्फेट टर्मिनल और उत्तर के विशेष आर्थिक क्षेत्र में भारतियों द्वारा अधिग्रहित 20 कपडा इकाइयाँ इस बात का प्रमाण है की भारत को जॉर्डन के साथ जुड़ने के अवसरों में काफ़ी दिलचस्पी है. गौर करने लायक बात यह है कि जॉर्डन इस बात की डींगें हाँक सकता है की वह विश्व के सभी मुख्य बाज़ारों में सबसे अधिक निशुल्क व्यापार समझौते प्रदान करने वाला देश है. मगर इसका फायदा भारत को जरुर लेना चाहिए और जॉर्डन के साथ निशुल्क व्यापार समझौते स्थापित करने चाहिए जिससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक इन जॉर्डन’ के तहत आने वाले परियोजनाओं को निवेश के जरिये संबलता प्रदान की जा सके.
जहाँ एक ओर जॉर्डन के राजा, भारत-जॉर्डन कारोबारी मंच या सीईओ के साथ बातचीत के दौरान आधारभूत संरचना, फार्मा, ऊर्जा क्षेत्र में विशेष तौर पर नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों, ऑटोमोटिव, संचार एवं सूचना तकनीक, उच्च शिक्षा में सहयोग से लेकर ईराक और सीरिया में पुनर्निर्माण जैसे मसलों पर निवेश के लिए रजामंद होते नजर आये है. हमारे नजरिये से यदि देखा जाए तो, चूँकि जॉर्डन में शेल की अच्छी मात्रा है अर्थात यह सभी चाहेंगे की भविष्य के लिए, जब हाइड्रोकार्बन की तुलना में यह तकनीकी व् वित्तीय रूप से अधिक सुलभ होगा, इसके विषय में गंभीर बातचीत की शुरुआत आज ही से की जाए ताकि हमारे पास यह विकल्प के रूप में मौजूद रहे. जॉर्डन अब रूस के कुदानकुलम जैसे परमाणु पॉवर प्लांट स्थापित करने में तत्पर है जिसमें हम कुछ सहभागिता परमाणु ऊर्जा के लिए भी दे सकते है. दूसरी बात, अपनी कृषि-सम्बंधित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमें फॉस्फेट की खपत के लिए जॉर्डन के साथ दीर्घकालीन समझौते भी करने चाहिए. इस तरह से जॉर्डन ऊर्जा सुरक्षा एवं भोजन के मामले में एक अहम योगदान निभा सकता है.
जॉर्डन अपनी ऐतिहासिक विरासत, धार्मिक स्थलों एवं सभ्यता के चलते भारतीय सिनेमा जगत, भारतीय पर्यटक व् भारतीय कारोबारियों को काफी लुभाता है. योग भी जॉर्डन में काफ़ी लोकप्रिय है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दौरान यह काफी कौतूहल का विषय था जब यह देखा गया की जॉर्डन में कई योग केंद्र मौजूद है और रमजान के महीने में भी वहाँ लोगों के बीच योग काफ़ी लोकप्रिय रहा. यह चुनिन्दा मध्य-पूर्वी देशों में से एक है जो भारतियों के आगमन के लिए एंट्री वीजा प्रदान करता है. हमने भी इसे पारस्परिक बनाते हुए जॉर्डन को प्रथम समूह ई-वीज़ा कार्यक्रम के देशों की सूची में शामिल किया. केवल 10,000 भारतीय जॉर्डन में काम करते है, परन्तु राजा ने शाही न्यायलय के वरिष्ठ अधिकारी के तहत शिकायत-निवारक-तंत्र स्थापित करने की मंजूरी भी प्रदान की है. पर्यटन के प्रचार हेतु सीधी हवाई यात्रा एक ठोस कदम हो सकता है. रॉयल जॉर्डेनियन एयरलाइन्स ने 2014 में भारत से जाने वाली कई महत्वपूर्ण फ्लाइट्स रद्द करने का जो फैसला लिया था उसपर अब पुनर्विचार किया जाना चाहिए. साथ ही अब भारतीय उड़ानों को भी शायद और नये मार्ग तलाशने की जरूरत है.
सामान्य तौर पर भारत जॉर्डन की तरफ मैत्रेयी दृष्टिकोण रखता है परन्तु ऐतिहासिक तौर पर जॉर्डन और पाकिस्तान के सम्बन्ध इस बीच रुकावट बने हुए है और रणनैतिक तौर पर भारत की ओर से पहल करने में बाधा का कार्य कर रहें है. अब परिस्थितियाँ काफी बदली है. हालाँकि महामहिम इसी महीने इस्लामाबाद में थे, परन्तु उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अरब में अपने दौरे को संक्षिप्त करते हुए इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी से मिलने का समय निकाला है. आने वाले इस दौरे में हमें दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग का संस्थानीकरण देखने को मिल सकता है. इसके अलावा मीडिया सहयोग पर कुछ समझौते, व्यापार एवं निवेश के क्षेत्रों में बढ़ोतरी व् डिप्लोमेटिक वीज़ा व् मुफ्त यात्रा जैसे क्षेत्रों पर और भी समझौते देखने को मिल सकते है. महामहिम स्वयं बड़े कारोबारियों से बात करने के अलावा भारतीय रक्षा संस्थान एवं तकनीक से जुड़े उच्च संस्थानों का दौरा कर सकते है. जहाँ भारत इंडियन टेक्निकल एंड इकॉनोमिक कोऑपरेशन (आईटीईसी) के माध्यम से क्षमता से निर्माण में मदद पाता है वहीँ हो सकता है सीरिया के शरणार्थियों के लिए लोगों को और सहयोग राशी की आवश्यकता हो सकती है जिसमें भारत सहयोग दे सकता है. हमारे लिए जॉर्डन आतंक-प्रतिरोध व् कट्टरपन के विरुद्ध एक भरोसेमंद सहयोगी हो सकता है और साथ ही अरब देशों और पश्चिमी देशों के व्यापार, सेवा एवं निवेश हेतु एक व्यावहारिक मार्ग हो सकता है.
हाशेमाईट साम्राज्य अपने आसपास के अशांत वातावरण के बीच स्थिरता एवं संयम का आधार है, जो कट्टरपन और इस्लामिक स्टेट की हार से लौटे हुए आतंकियों के साथ ही लाखों सीरिया व् अन्य शरणार्थियोंके बोझ के तले दबा है. यह ऐसा क्षेत्र है जिसने रईस अरब देशों और प्रवासियों से आर्थिक सहायता लेने से भी इंकार किया है. इसके बावजूद राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा जेरूसलम को इजराइल की राजधानी बनाने के विरोध में उसने अपना मत बड़ी स्पष्टा के साथ संयुक्त राष्ट्र में रखा जिससे शांति स्थापित करने की प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित हुई.
जॉर्डन भले ही छोटा देश हो मगर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी अहमियत काफ़ी अधिक है. महामहिम राजा अब्दुल्लाह भी एक संयमित व् आधुनिक नेता माने जाते है जो अल-अक्सा नामक पवित्र मस्जिद के संरक्षक भी है और जेरूसलम में भी अन्य धार्मिक स्थलों के संरक्षण का कार्य देखते है. इसके अलावा वे फिलिस्तान के प्रतिबद्ध नायक है तो साथ ही इजराइल की सुरक्षा और रणनैतिक सहभागीदार अमेरिका के लिए भी महत्वपूर्ण है. वे भारत की सभ्यता, उसकी विरासत, विकास के नजरिये एवं वृद्धि से काफी प्रभावित है विशेषकर की हमारी विदेश नीति के तहत फिलिस्तान मसले पर लिए गये मत से. ये दोनों पक्ष, अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर एक जैसे मत अपनाते है जो हमारे क्षेत्र को प्रभावित करती है. अतः इन्हें साथ ही आगे बढ़ना चाहिए. महामहिम का स्वागत है.
(लेखक जॉर्डन, लीबिया एवं माल्टा में भारत के पूर्व राजदूत रह चुके है. ये उनके निजी विचार है)
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