उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ती सहभागिता
Dr Rashmini Koparkar

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने हाल में उज्बेकिस्तान का आधिकारिक दौरा किया। उज्बेक राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोवेव के साथ उनकी मुलाकात में व्यापार, सुरक्षा, विद्युत और शिक्षा सहित कई अन्य क्षेत्रों में 20 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। जहां तक दोनों देशों के बीच संबंधों की बात है तो पिछले एक वर्ष के दौरान उनके रिश्ते काफी प्रगाढ़ हुए हैं और राजनीतिक संवाद के साथ-साथ काफी आर्थिक सक्रियता बढ़ी है। चारों ओर भूभाग से घिरे इन दोनों देशों में नजदीकियां बढ़ना इस क्षेत्र के लिए स्वागतयोग्य है।

ताशकंद-काबुल संबंध एक दृष्टि में

उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान ‘रणनीतिक रूप’ से एक दूसरे के नजदीक स्थित पड़ोसी हैं। उज्बेकिस्तान की सीमा सभी मध्य एशियाई गणतंत्रों (सीएआर) और अफगानिस्तान से लगती है। दूसरी ओर अफगानिस्तान दक्षिण और मध्य एशिया के बीच एक सेतु की तरह है। कुल पांच मध्य एशियाई देशों में से तीन देशों तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ इसकी सीमा लगती है। चूंकि ये दोनों देश चारों ओर जमीन से ही घिरे यानी लैंडलॉक्ड हैं, ऐसे में व्यापार, परिवहन और संपर्क के लिए एक दूसरे पर काफी निर्भर हैं। दोनों देश 137 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं और अमु दारया नदी के रूप में एक प्राकृतिक सीमा ही है। उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान ऐतिहासिक साझा समानताओं और नस्लीय-सांस्कृतिक जुड़ाव रखते हैं, क्योंकि अतीत में लंबे समय तक दोनों देश एकसमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में साथ रह चुके हैं। सोवियत संघ के दौर में सीमा-पार से संपर्क गतिविधियां काफी अधिक थीं खासतौर से अफगानिस्तान में हस्तक्षेप (1979 से 1989 के बीच) के दौरान ये बहुत बढ़ गई थीं। उज्बेकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच अफगान सीमा के निकट स्थित हेरातन नामक स्थान पर 1982 में मित्रता सेतु बनाया गया जो अमु दारया के बीच कड़ी को मजबूत बनाता है। उज्बेक आजादी के बाद 1991 में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए जो काबुल पर तालिबानी नियंत्रण के बाद टूट गए। 1990 के दशक में उज्बेकिस्तान चरमपंथ और हिंसक अतिवाद जैसी चुनौतियों से जूझ रहा था। ताजिक गृह युद्ध (1992-97) और तालिबान के उभार के बाद ये चुनौतियां और ज्यादा बढ़ गई थीं। उज्बेक सरकार सीमा पार से होने वाली गड़बड़ी को लेकर सशंकित थी तो उसने 1997 में मित्रता सेतु को बंद कर दिया जिसे 2002 में पुनः खोला गया। अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमला इस क्षेत्र के हालात बदलने में निर्णायक रहा। उस समय उज्बेकिस्तान ने कार्शी-खानबाद में अमेरिका को एयरबेस उपलब्ध कराने के साथ ही सीमावर्ती शहर तरमेज में जर्मन इकाई को आधार उपलब्ध कराया। आंदिजान प्रकरण को लेकर अमेरिका-उज्बेकिस्तान में हुए मनमुटाव के बाद 2005 में हालांकि उज्बेकिस्तान ने अमेरिकी बेस बंद कर दिया। अमेरिकी सैन्य बलों के लिए आपूर्ति का एक प्रमुख मार्ग नॉर्दर्न डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क (एनडीएन) का रास्ता मित्रता सेतु से होकर जाता था जिसके माध्यम से नाटो सेनाओं के लिए 70 प्रतिशत तेल की आपूर्ति होती थी। उज्बेकिस्तान-अफगानिस्तान रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान नाटकीय रूप से सुधार हुआ है जहां व्यापार, परिवहन, विद्युत इत्यादि क्षेत्रों में सहभागिता बढ़ी है।

- तरमेज से हेरातन के बीच एक रेलवे लाइन के माध्यम से गेहूं-आटा, ईंधन, उर्वरक और उपभोक्ता वस्तुओं की ताजिकिस्तान से अफगानिस्तान को आपूर्ति होती है।
- वर्ष 2011 में उज्बेक की राष्टीय रेल कंपनी तेमिर युल्लारी ने 75 किलोमीटर लंबे हेरातन-मजार-ए-शरीफ रेलवे नेटवर्क को तैयार किया। 1.5 अरब डॉलर की लागत से बनी इस परियोजना को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से वित्तीय मदद मिली।
- काबुल और मजार-ए-शरीफ को जोड़ने वाली सड़क पर उज्बेकिस्तान ने 11 पुल और क्रॉसिंग भी बनाए।
- उज्बेकिस्तान अफगानिस्तान को बिजली उपलब्ध कराने वाला प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। काबुल को बिजली आपूर्ति करने के लिए 2009 में 150 मेगावाट क्षमता की एक विद्युत पारेषण लाइन की आधारशिला रखी गई। बाद में इसकी क्षमता बढ़ाकर 300 मेगावाट कर दी गई।

लगभग 3.2 करोड़ की आबादी के साथ उज्बेकिस्तान मध्य एशिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। अपनी गतिशील और विविधीकृत अर्थव्यवस्था के साथ यह अफगानिस्तान के राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में बहुत मददगार हो सकता है और विशेषकर खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग में बहुत सहायक सिद्ध होगा।

उज्बेकिस्तान अफगानिस्तान की ओर से अस्थिरता को लेकर अभी भी आशंकित है कि वहां से अमेरिकी फौज की विदाई के बाद स्थितियां बिगड़ सकती हैं। अफगानिस्तान में असुरक्षा और अस्थिरता का बढ़ा भाव पड़ोसी मध्य एशियाई देशों के लिए भी चिंता का कारण बनेगा। भले ही बड़ी संख्या में उज्बेक अफगानिस्तान में रहते हों, लेकिन अक्सर यह पहलू द्विपक्षीय रिश्तों में निर्णायक रहता है। इस मामले में सुरक्षा चिंताओं और आर्थिक हित सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मिर्जियोवेव की पड़ोसियों को वरीयता देने वाली नीति

वर्ष 2016 में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति मिर्जियोवेव ने दोहराया कि मध्य एशिया ही उनकी विदेश नीति के मूल में होगा। चूंकि उज्बेकिस्तान चारों ओर से जमीन से घिरा देश है तो वह आंतरिक और बाहरी वृद्धि के लिए काफी हद तक पड़ोसियों पर ही निर्भर है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मिर्जियोवेव अन्य मध्य एशियाई पड़ोसी देशों के साथ ही अफगानिस्तान के साथ रिश्तों को सुधारने की दिशा में कड़ी मेहनत कर रहे हैं। एक साल में मध्य एशियाई देशों के 12 दौरे और इस दौरान द्विपक्षीय बैठकों के अनगिनत दौरों के साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों से इतर हुई वार्ताओं से यह साफ तौर पर झलकता है।

वर्ष 2017 के पहले नौ महीनों के दौरान उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान के बीच कारोबार में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसी तरह किर्गिस्तान के साथ भी उसके रिश्तों में सुधार हो रहा है जहां सीमाओं को खोलने और जल विवादों को सुलझाने की पहल हुई है। ताजिकिस्तान के मामले में ताशकंद और दुशांबे के बीच 25 वर्षों बाद सीधी उड़ान सेवा शुरू की गई। मिर्जियोवेव की संतुलित, खुली और व्यावहारिक विदेश नीति ने क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में सकारात्मक माहौल का निर्माण किया है।

प्रगाढ़ होते उज्बेक -अफगान संबंध

पिछले कुछ महीनों के दौरान उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। जनवरी, 2017 में उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुलाजिज कामिलोव ने काबुल का आधिकारिक दौरा किया। उस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार को एक अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय व्यापार एवं आर्थिक रोड मैप पर हस्ताक्षर किए। वर्ष 2016 में व्यापार टर्नओवर 52 करोड़ डॉलर रहा। साथ ही परिवहन अवसंरचना, सुरक्षा और मादक पदार्थों की तस्करी रोकने के समझौतों पर भी सहमति बनी।

जून 2007 में अस्ताना में हुई शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और सितंबर, 2017 में इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन से इतर भी उज्बेक-अफगान राष्ट्रपतियों ने द्विपक्षीय बैठक की। मई, 2017 में मिर्जियोवेव ने इस्मातिल्ला इर्गाशेव को अफगानिस्तान में राष्ट्रपति का विशेष दूत नियुक्त किया।

नवंबर, 2017 में अफगान राष्ट्रीय विमानन सेवा काम एयर ने ताशकंद और काबुल के बीच पहली सीधी यात्री उड़ान शुरू की। दोनों देशों के बीच विमानन सहयोग में अफगान पायलटों को प्रशिक्षण, काम एयर के विमानों का रखरखाव और ताशकंद में ट्रांजिट सुविधाएं उपलब्ध कराना भी शामिल है।

राष्ट्रपति गनी की दिसंबर, 2017 में उज्बेकिस्तान यात्रा उज्बेक-अफगान रिश्तों को आगे ले जाने का महत्वपूर्ण कदम रही। दोनों राष्ट्रपतियों ने छोटे से लेकर बड़े और व्यापक विषयों पर बात करते हुए संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान व्यापार, सुरक्षा, विद्युत और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में 20 अंतरमंत्रीय समझौते हुए। इसमें कुछ अग्रलिखित बिंदुओं पर सहमति बनी।

- हेरात और मजार-ए-शरीफ के बीच रेलवे लाइन निर्माण का अनुबंध।
- 500 किलोवाट क्षमता वाली सुरखान-पुल-ए-खुमरी विद्युत पारेषण लाइन का निर्माण।
- सुरक्षा मामलों पर संयुक्त आयोग की स्थापना।
- हेरातन सेतु की सुरक्षा को लेकर सहयोग पर समझौता।
- काबुल और मजार-ए-शरीफ में उज्बेक-अफगान ट्रेडिंग हाउस के साथ ही तरमेज में इंटरनेशनल लॉजिस्टिक सेंटर की स्थापना।
- सीमावर्ती शहर तरमेज में अफगान काउंसलेट को खोलना।

दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और विदेशी लड़ाकों, अतिवाद, संगठित अपराध, अवैध आव्रजन और अवैध चीजों और मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए संयुक्त कार्रवाई पर भी सहमति जताई। दोनों राष्ट्रपतियों ने अफगान-नेतृत्व के माध्यम से अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच शांति के साथ कोई राजनीतिक हल निकालने पर भी जोर दिया। इस बात पर जोर दिया गया कि इसमें कोई भी राजनीतिक समझौता संयुक्त राष्ट्र चार्टर में उल्लिखित मूलभूत अंतरराष्टीय प्रावधानों और सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।

निष्कर्ष

चूंकि उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान पड़ोसी देश हैं तो एक दूसरे की विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति का मध्य एशिया की सुरक्षा और स्थायित्व पर सीधा असर पड़ सकता है। ऐसे में शांति बहाली की प्रक्रिया में उज्बेकिस्तान अफगान सरकार को पूरा सहयोग दे रहा है। साथ ही अफगानिस्तान को क्षेत्रीय आर्थिक प्रगति का हिस्सा बनाने के लिए उसे परिवहन और ऊर्जा के क्षेत्र में भी मदद कर रहा है।

भारत ने भी अफगानिस्तान के साथ अपनी मित्रता को और गहराई दी है जिसमें राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और मानवीय क्षेत्रों में संबंधों को नया क्षितिज मिला है। अभी हाल में ही हमने ईरान स्थित चाबहार बंदरगार के माध्यम से 15,000 टन गेहूं की शुरुआती खेप अफगानिस्तान पहुंचाई है। इसके माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार एवं आवाजाही हेतु भारत के लिए एक नया रास्ता खुला है। व्यापार, संपर्क, ऊर्जा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बढ़ता सहयोग भारत, उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को और करीब ला सकता है जो हजारों वर्षों के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधो को और प्रगाढ़ बनाएगा।

(लेख में व्यक्त विचारों से वीआईएफ की सहमति अनिवार्य नहीं है)

Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: http://afghanistan.asia-news.com/en_GB/articles/cnmi_st/features/2017/12/15/feature-01

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