विशाखापत्तनम बंदरगाह नेपाल के लिए अधिक लाभकारी
Prof Hari Bansh Jha

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पड़ोसियों के साथ मेलजोल (नेबरहुड कनेक्टिविटी) की नीति के एक हिस्से के रूप में भारत ने 2016 में नेपाल को तीसरे देश के साथ व्यापार के लिए आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम बंदरगाह का प्रयोग करने की इजाजत दे दी। नेपाल लंबे समय से भारत में कोलकाता/हल्दिया बंदरगाह के स्थान पर इस बंदरगाह के उपयोग की मांग करता आ रहा है।

भारत में नेपाली दूतावास और दिल्ली के रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (इडसा) द्वारा 12 जुलाई, 2017 को विशाखापत्तनम में संयुक्त रूप से आयोजित कार्यशाला “नेपाल-भारत व्यापार, पारगमन एवं संपर्कः समस्याएं एवं सुविधा” के दौरान लेखक को विशाखापत्तन बंदरगाह के विभिन्न स्थानों को देखने और उनकी कार्यप्रणाली के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी हासिल करने का मौका मिला। बंदरगाह के अधिकारियों से मिली जानकारी तथा कार्यशाला के प्रतिभागियों के साथ बातचीत से पता चला कि तीसरे देश के साथ नेपाल के व्यापार हेतु बंदरगाह का प्रयोग देश के लिए सबसे लाभदायक है।

कोलकाता बंदरगाह (भारत) और बीरगंज (नेपाल) के बीच दूरी 706 किलोमीटर है और हल्दिया बंदगाह तथा बीरगंज के बीच दूरी 818 किमी है। निजी क्षेत्र का बंदरगाह धामरा पोर्ट कंपनी लिमिटेड (डीपीसीएल) बीरगंज से 941 किमी दूर है और वहां से विशाखापत्तनम बंदरगाह की दूरी 1,439 किमी है। दूरी बढ़ने के साथ ही बीरगंज और भारत के विभिन्न बंदरगाहों के बीच ढुलाई का खर्च भी बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए कोलकाता बंदरगाह और बीरगंज के बीच कोयला ढुलाई का न्यूनतम (बेस) भाड़ा 1,093 रुपये है, हल्दिया से 1,208 रुपये, धामरा से 1,400 रुपये और विशाखापत्तनम से 2,003 रुपये है। जाहिर है कि नेपाली क्षेत्र से नजदीक होने के कारण कोलकाता बंदरगाह को अन्य सभी भारतीय बंदरगाहों की अपेक्षा भौगोलिक बढ़त हासिल है। बीरगंज और कोलकाता बंदरगाह के बीच की दूरी बीरगंज और विशाखापत्तनम बंदरगाह के बीच की दूरी की लगभग आधी है। इसीलिए बीरगंज और कोलकाता बंदरगाह के बीच ढुलाई का भाड़ा बीरगंज और विशाखापत्तनम के बीच के भाड़े की तुलना में करीब आधा है। फिर भी कोलकाता बंदरगाह के मुकाबले विशाखापत्तनम बंदरगाह से कारोबारी समुदाय को अधिक शुद्ध लाभ होता है। 16.5 मीटर गहरे पानी के साथ विशाखापत्तनम बंदरगाह भारत के सबसे गहरे बंदरगाहों में से एक है। इस बंदरगाह पर छोटे आकार के चार जहाजों या बड़े आकार के तीन जहाजों से माल एक साथ उतारा जा सकता है या चढ़ाया जा सकता है।

मलक्का खाड़ी के निकट होने के कारण विशाखापत्तनम बंदरगाह से माल परिवहन का खर्च कोलकाता बंदरगाह के मुकाबले कम है। यह चीन, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से सीधा जुड़ा हुआ भी है। इसके अलावा विशाखापत्तनम तथा बीरगंज के बीच माल परिवहन में लागत, बीमा, भाड़ा सीआईएफ की सुविधा मिलती है, जो कोलकाता बंदरगाह पर नहीं है। इस समय विशाखापत्तनम बंदरगाह अपनी क्षमता से कम काम कर रहा है। कोलकाता अथवा हल्दिया बंदरगाह क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, लेकिन विशाखापत्तनम बंदरगाह की क्षमता का 60 प्रतिशत ही इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावा विशाखापत्तनम बंदरगाह की सेवाएं इतनी अधिक सक्षम हैं कि कम से कम समय में आयात होने वाले माल को उतारा और निर्यात होने वाले माल को चढ़ाया जा सकता है। इसलिए विशाखापत्तनम से माल की आवाजाही में विलंब शुल्क या दूसरे अलिखित खर्चों की कोई गुंजाइश ही नहीं होती, जो कोलकाता बंदरगाह में अक्सर होते हैं। नवीनतम प्रौद्योगिकी होने के कारण विशाखापत्तनम पर चौबीसों घंटे वैश्विक स्तर की अत्याधुनिक परिवहन सेवाएं मिलती हैं। यह पूरी तरह स्वचालित है और दक्षिण एशिया में सबसे आधुनिक है, जहां हाथों का इस्तेमाल कम से कम होता है। विशाखापत्तनम बंदरगाह पर सीमा शुल्क से जुड़ा लगभग सभी काम कंप्यूटर के जरिये होता है। इसीलिए सौदे कागजरहित और तेज होते हैं। वहां प्रत्येक काम पारदर्शी है। वहां बंदरगाह से गंतव्य तक और स्रोत से गंतव्य तक माल पहुंचाने की सुविधा दी जाती है। इंटरनेट से जुड़े होने के कारण आयातक और निर्यातक “स्रोत” से “गंतव्य” तक कंटेनर की स्थिति पता कर सकते हैं। विशाखापत्तनम टर्मिनल पर रेक का प्रबंधन करने की पूरी सुविधा वाले दो रेल लाइन हैं। वहां वस्तुओं को ठंडा रखने की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है। अगले वर्ष मार्च से वहां कंटेनरों में भरे सामान का पता लगाने के लिए एक्स-रे संयंत्र लग जाने की भी संभावना है।

बीरगंज और विशाखापत्तनम बंदरगाह के बीच सेवाएं पहले ही बहाल हो चुकी हैं। विशाखापत्तनम से कंटेनर लेकर पहली ट्रेन पिछले जून में बीरगंज पहुंची थी और अब दूसरी ट्रेन भेजे जाने की संभावना है। रेल कंटेनरों को विशाखापत्तनम से बीरगंज पहुंचने में पांच दिन लगते हैं। दूसरी ओर कंटेनरों को कोलकाता से बीरगंज पहुंचने में आम तौर पर 10 दिन लग जाते हैं, जबकि उनके बीच की दूरी बीरगंज और विशाखापत्तनम के बीच की दूरी से आधी है। विशाखापत्तनम बंदरगाह और बीरगंज के बीच रेल संपर्क होने के कारण नेपाल भारत में आंध्र प्रदेश से मेवों का आयात कर सकता है, जो स्थानीय बाजारों में उपलब्ध मेवों से बहुत सस्ते हैं। साथ ही विशाखापत्तनम बंदरगाह मछलियों और समुद्री खाद्य का भी केंद्र है, जिनका आयात नेपाल को सस्ता पड़ सकता है। इसके अलावा दक्षिण भारत में व्यापार का शानदार मौका भी नेपाल के सामने है, जहां अभी तक वह पहुंचा नहीं है। बीरगंज से विशाखापत्तनम लौटने वाले कंटेनरों का इस्तेमाल नेपाल में उत्पन्न होने वाले माल के निर्यात में भी किया जा सकता है। इस तरह नेपाल आंध्र प्रदेश समेत सभी दक्षिण भारतीय राज्यों को झरने का पानी, जड़ी-बूटियां, पशमीना और विभिन्न कृषि तथा औद्योगिक वस्तुएं बहुत कम खर्च में निर्यात कर सकता है।

विशाखापत्तनम तक जाने वाले जहाजों में सामान सिंगापुर में चढ़ाने-उतारने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि इस बंदरगाह पर पानी गहरा है। लेकिन कोलकाता बंदरगाह में पानी अधिक गहरा नहीं है, इसलिए सामान सिंगापुर में अवश्य चढ़ाना-उतारना पड़ेगा। कोलकाता बंदरगाह के जरिये माल के परिवहन का खर्च अधिक है क्योंकि सिंगापुर में माल चढ़ाना-उतारना पड़ता है और जहाजों की संख्या भी कम है। आज विशाखापत्तनम बंदरगाह में 7,000 तक कंटेनर ढोने वाले जहाज आते हैं, लेकिन यह 10,000 कंटेनर वाले जहाज भी संभाल सकता है। विशाखापत्तनम से ढुलाई का खर्च आम तौर पर 700 से 800 डॉलर प्रति कंटेनर होता है, जबकि सिंगापुर के रास्ते आने पर खर्च 12,000 डॉलर प्रति कंटेनर तक हो सकता है।

तीसरे देश के साथ व्यापार करना हो तो नेपाल के लिए विशाखापत्तनम बंदरगाह चीन के किसी भी बंदरगाह के मुकाबले सस्ता पड़ता है। पेइचिंग के नजदीक पड़ने वाले और नेपाल से 5,000 किमी दूर स्थित थ्यानचिन बंदरगाह का प्रयोग मार्च, 2016 में चीन के साथ हुए ट्रांजिट परिवहन समझौते के तहत नेपाल तीसरे देश के साथ व्यापार में कर सकता है। लेकिन किफायत के मामले में वह बंदरगाह विशाखापत्तनम बंदरगाह को टक्कर नहीं दे सकता। एक बात यह भी है कि नेपाल अभी तक चीनी बंदरगाह का इस्तेमाल नहीं कर पाया है। विशाखापत्तनम बंदरगाह का इस्तेमाल प्रयोग के तौर पर शुरू हुआ है। किंतु चीनी बंदरगाह के इस्तेमाल की संभावना न के बराबर है क्योंकि वह वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक होने के बजाय राजनीतिक रूप से अधिक प्रेरित है। नेपाल से चीनी बंदरगाह की दूरी अधिक है और वहां तक पहुंचने के लिए नेपाल को ऊंचाई भी पार करनी पड़ेगी, जिसका कारण चीनी बंदरगाह पिछड़ जाता है।

आज किसी अन्य देश के लिए नेपाल का 98 प्रतिशत आयात और निर्यात कोलकाता बंदरगाह के रास्ते ही होता है और यदि विशाखापत्तनम बंदरगाह का व्यापक इस्तेमाल हुआ तो इसमें काफी कमी आ सकती है। महाकाली नदी पर चार लेन का पुल बनने की संभावना है, जिसके बाद नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र से खाड़ी तथा पश्चिमी देशों को निर्यात कोलकाता अथवा विशाखापत्तनम बंदरगाह के बजाय गुजरात में पश्चिमी समुद्री बंदरगाहों के जरिये करना अधिक सुविधाजनक होगा। इसके बाद भी यदि समय और कुल परिवहन खर्च को देखा जाए तो किसी अन्य देश के साथ व्यापार के मामले में नेपाल के लिए इस समय कोलकाता बंदरगाह के मुकाबले विशाखापत्तनम बंदरगाह अधिक लाभदायक है। यदि नेपाल तीसरे देश के साथ व्यापार के लिए माल कोलकाता के बजाय विशाखापत्तनम बंदरगाह पर भेजता है तो कोलकाता बंदरगाह के अधिकारी भी अपनी सेवाओं को प्रतिस्पर्द्धात्मक बनाने के लिए मजबूर हो जाएंगे। नेपाल के विकास के प्रति भारत के उदार रवैये को देखते हुए वह देश अन्य देशों के साथ व्यापार के लिए कोलकाता/हल्दिया और विशाखापत्तनम बंदरगाह ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय बंदरगाह का इस्तेमाल करने की इजाजत भारत से मांग सकता है। दोनों देशों के बीच इस तरह का सहयोग हमारे मैत्रीपूर्ण संबंधों को और भी ऊंचाई पर ले जा सकता है और नेपाल को ‘जमीन से घिरे’ देश के बजाय ‘जमीन से जुड़ा’ और ‘समुद्र से जुड़ा’ देश बनने का व्यापक अवसर मिल सकता है।

(झा नेपाल में सेंटर फॉर इकनॉमिक एंड टेक्निकल स्टडीज के निदेशक हैं।)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: http://www.themaritimestandard.com/essar-ports-profits-on-the-up

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