चीन रूपी ईस्ट इंडिया कंपनी का पाकिस्तान में प्रवेश
कर्नल शिवदान सिंह

लम्बे समय से कूटनैतिक विचार विमर्श के बाद चीन और पाकिस्तान ने दोनों के बीच बनने वाले आर्थिक गलियारंे के बारे में एक 30 पेज का एक प्रारूप तैयार करके इस योजना को एक ठोस रूप दे दिया है। पाकिस्तान के प्रसिद्ध अग्रेज़ी दैनिक डान ने इस योजना का खुलासा पाकिस्तान तथा विश्व के लिये करते हुए लिखा है कि इस समझौते के आधार पर चीन के चिनपयांग औद्योगिक क्षेत्र को सीधे सड़क मार्ग से गिलगिट वालिस्तान होते हुए बलूचिस्तान के खादर बंदरगाह से जोड़़ा जायेगा। पाकिस्तान की शुरू में 6 हजार एकड़ कृषि भूमि चीन को पट्टे पर आधुनिक बीज उगाने तथा सिचाईं परियोजनाएं स्थापित करने के लिये दी जाएगी। पेशावर से करांची तक के सब शहरों की आधुनिक इलैक्ट्राॅनिक प्रणाली से 24 घंटे निगरानी की जायेगी। पाकिस्तान में एक राष्ट्रीय आॅप्टिकल फाइवर केविल नेटवर्क स्थापित किया जायेगा जिसको पाकिस्तान के हर हिस्से में पहुंचाया जायेगा। इस नेटवर्क के द्वारा चीनी संस्कृति को टेलीविज़न द्वारा पाक के हर नागरिक को पहुँचाने की योजना है। इस सबके अलावा इस योजना के द्वारा चीन पाकिस्तान के हर आर्थिक क्षेत्र जैसे टेलीकाॅम, कपड़ा उद्योग और घरेलू उत्पादों के क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाना चाहता है। इन उत्पादों को बेचने के लिये चीन पाक में बड़ी बड़ी मंडियां स्थापित करेगा और इस सबके साथ इस समझौते का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि दोनो देशों के बीच आने जाने के लिए दोनों देश के नागरिकों को वीजा की जरुरत नहीं होगी। एक प्रकार से चीन और पाक के बीच ज़मीनी सीमा समाप्त हो जाएगी।

एक प्रकार से इस समझौते के द्वारा पाकिस्तान अपनी प्रजातंत्रिक सार्वभौमिकता चीन के पास गिरवी रख रहा है क्योंकि पाक जैसे अविकसित तथा कृषि आधारित आर्थिक व्यवस्था में यदि कृषि भूमि तथा रोज़मर्रा के घरेलू उत्पादों को भी दूसरे देश को नियंत्रित तथा चलाने के लिये दिया जा रहा है तब एक प्रकार से पाकिस्तान दोबारा 16वीं शताब्दी का इतिहास दोहराते हुए आज की ईस्ट इंडिया कंपनी रुपी चीन को अपने देश में ला रहा है और जैसा कि ईस्ट इंडिया ने किया था उसी प्रकार चीन पहले पाक को आर्थिक दास बनायेगा तथा उसके बाद धीरे धीरे राजनैतिक रूप से भी दास बनाकर आने वाले समय में विश्व के नक्शे से स्वतंत्र पाकिस्तान का नाम मिटाकर एक दिन इसे चीन का ही प्रान्त बना देगा क्योंकि एक देश की स्वतंत्रता के मानक संस्कृति, आर्थिक तथा राजनैतिक मुद्दों पर जब चीन की पकड़ हो जायेगी तो स्वतः ही वह देश गुलाम हो जाता है। चीन में आर्थिक क्रान्ति आयी तथा वह विकसित देशों की सूची में आ गया परन्तु विश्व की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश होने के कारण तथा औद्योगिक विकास होने के कारण चीन में कृषि भूमि तथा उद्योग धंधों के लिये जमीन की कमी होने लगी और इस कमी को पूरा करने के लिए उसे पाकिस्तान ने अपने आंतरिक हालातों को बिगाड़कर तथा आंतकवाद इत्यादि के कारण एक फेल गणराज्य की सूची में आकर अपने को चीन को सौंपने के लिये मजबूर कर लिया।

16वीं शताब्दी में बिट्रेन में औद्योगिक विकास शुरू हो चुका था इसकी भनक मुगल बादशाह जहाँगीर को लग गयी थी। इससे प्रभावित होकर जहाँगीर ने बिट्रेन की ईस्ट इंडिया कंपनी को 1605 में एक आज्ञा पत्र सौंप दिया था जिसके अनुसार भारत के सब बंदरगाहों पर बिट्रेन के जहाजों को आने की छूट थी तथा बिट्रिश नागरिकों को मुगल साम्राज्य के हर हिस्से में निवास करने तथा व्यापार करने की शाही आज्ञा थी। इस प्रकार कंपनी का भारत में आगमन हुआ तथा इसके बाद कंपनी व्यापार के साथ साथ अपनी सेना रखनी शुरू कर दी तथा 16वीं शताब्दी के अंत में जब औरंगजेब के बाद मुगल सल्तनत का पतन होना शुरू हुआ तब कंपनी ने अपनी आर्थिक तथा सैनिक शक्ति द्वारा भारत के शासकों पर अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी थी। केन्द्रीय मुगल सल्तनत के कमजो़र होने से देश छोटे छोटे स्वतंत्र राज्यों में बँट गया। इन राज्यों के शासक अपने आपसी मतभेदों एवं झगडों़ में कंपनी इनकी मदद के रूप में इनसे नये नये अधिकार एवं क्षेत्र प्राप्त करने लगी और आखिर में एक दिन भारत पर कंपनी का कब्जा हो गया और इस प्रकार भारत में अंगेज़ी शासन की शुरूआत हुई तथा उसके बाद अंग्रेज़ी की इस गुलामी से मुक्ति पाने के लिये पूरे भारत ने जिसमें पाकिस्तान भी सम्मिलित था ने संघर्ष किया तथा हजारों भारतवासियों ने अपनी जानों की बलि दी तथा जेलों की यातनाएं सही तब जाकर दोबारा से हमें 1947 में आजादी प्राप्त हो सकी। पाकिस्तान ने भी 16वीं शताब्दी की बादशाह जहाँगीर वाली गलती दोहरा दी है जबकि पाकिस्तान स्वयं अंग्रेज़ी की गुलामी भुगत चुका है। पाक के इस स्थिति में पहुँचने के लिए स्वयं उसके द्वारा अपनायी उसकी नीतियां जिम्मेदार है। पाक स्वयं 1947 से आज तक विश्व की महाशक्तियों जैसे अमेरिका तथा चीन के हाथों में खेलता रहा है। अफगानिस्तान में रूसी सेनाओं के आगमन के बाद अमेरिका ने पाक का इस्तेमाल रूसी सेनाओं के विरूद्व तालिबान रूपी छापामार लड़ाके प्राप्त करने तथा पाक में अपने अड्डे बनाने के लिये किया। इसके बदले अमेरिका ने पाक को कुछ आर्थिक सहायता तो दी परन्तु एक प्रकार से पाक को अपना उपनिवेश बना लिया। रूसी सेनाएं तो अफगानिस्तान से वापस चली गयीं परन्तु अमेरिका की सीआइए द्वारा तैयार तालिबान रूपी आंतकियों ने अपने ही देश पाक में आंतक एवं मुस्लिम कट्टरपन फैलाना शुरू कर दिया और मौलाना मसूद अजहर, हाफिज़ सईद तथा सैय्यद सलाहुद्दीन जैसे आंतकी उसी की उपज हैं। इन आंतकियों के कारण पाक में हर रोज बम धमाके तथा हत्याएं आम हो गयीं। जो भी राजनैतिक नेता इनके विरूद्व बोलता था उसकी हत्या कर दी जाती थी। इस अशान्त वातावरण के कारण पाक का आर्थिक विकास बिल्कुल रुक गया तथा विदेशी निवेश भी आना बंद हो गया और इस स्थिति में पाक में जरूरी सामान का आयात तथा अन्य जरूरी खर्चें केवल विदेशी सहायता पर ही चलने लगे और यह विदेशी सहायता उसे अमेरिका तथा सऊदी अरब से उसे सैनिक सहायता के बदले मिलती थी। राजनैतिक उथल पुथल के कारण पाक में सैनिक शासन लगता रहा तथा सैनिक तानाशाहों जैसे याह्या खां तथा जिया उल हक ने पाकिस्तान की बर्बादी में अपनी भूमिका निभाई। जैसे याह्या खां की हठ धर्मिता के कारण पाक का पूर्वी हिस्सा आज का बंगलादेश अलग हुआ। जिया उल हक के कारण पाक ने अफगानिस्तान में लड़ने के लिए देश में मुस्लिम कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया तथा तालिबान रूपी आंतकी पैदा किये जो पाक की इस स्थिति के लिये जिम्मेदार हैं। पाक सेना पाक जनता की नज़र में अपने आपको देश का रक्षक दिखाने एवं अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिये कश्मीर समस्या के रूप में भारत से दुश्मनी रखना चाहता है और इस कारण उसने भारत से चार बड़ी लड़ाईयां 1947, 1965, 1971 तथा 1998 लड़ी तथा 80 के दशक से अब तक पंजाब तथा कश्मीर में अद्योषित आंतकी युद्ध लड़ रहा है। इन लड़ाइयों में पाक को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी जिससे पाक की स्थिति और भी बिगड़ी तथा आज स्थिति यह आ गयी है कि पाक अपने अंतरराष्ट्रीय कर्ज़े की किस्तें भी चुकाने में असमर्थ होने के साथ वहाँ पर मुद्रा स्फ्रीति की दर 12 से 18 प्रतिशत के बीच रहती है। उपरोक्त गलत नीतियों के कारण ही आज पाक को स्वयं विवश होकर चीन की आर्थिक गुलामी स्वीकार करनी पड़ रही हैं।

अपने आंतरिक कारणों से ही एक देश दूसरे देश की गुलामी स्वीकार करता है। चीन पाक में प्रवेश तो कर रहा है परन्तु उसे पाक के आंतरिक हालातों तथा आंतकियों की गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी है। इसलिये चीन ने शुरू में पाक से पूरे देश में आॅपटिकल फाइवर केविल पर आधारित सिस्टम की मांग रखी थी। इसके द्वारा चीन पाक के सब राजमार्गों, शहरों, मुख्य बाजारों पर नज़र रखेगा तथा इसके संचालन के लिये जगह जगह कमांड सेन्टर भी स्थापित किये जायेगे तथा इन कमांड सेन्टरों के पास आंतकी या अन्य प्रकार के हमलों से निपटने के लिये सैनिक टुकड़ियां भी होगीं। चीन द्वारा पाक में पहुँचने का प्रभाव भारत की सुरक्षा तथा बाजारों पर भी पडे़गा। जिस चीन जैसी महाशक्ति से भारत केवल उत्तर पूर्व में ही मुकाबला कर रहा था अब वह महाशक्ति उत्तरपूर्व से कश्मीर सीमा होती हुई दक्षिण के करांची बन्दरगाह से भारत की दक्षिणी सीमाओं तक पहुँच गई हैं। अब आगे तो चेहरा पाक का होगा परन्तु पीछे भी चीन की पूरी मदद पाक सेना को होगी। यह मदद गोलाबारूद, सूचना तथा पाक सेना को प्रशिक्षित करने तथा उन्हें उनकी आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारियों से मुक्त करने के रूप में होगी।

चीन इस योजना में पेशावर को एक सुरक्षित शहर के रूप में विकसित करना चाहता है। इससे साफ हो जाता है कि वह अफगान सीमा पर चलने वाले आंतकियों का सफाया करके पाक सेना को उनकी अफगानिस्तान लगने वाली सीमाओं से मुक्त चाहता है इससे भी पाक सेना को ज्यादा सैनिक भारत के विरूद्ध इस्तेमाल करने के लिये मिल जायेगें। इससे भी भारत की सुरक्षा को खतरा बढ़ सकता है। इसलिये पाक चीन के इस गठजोड़ के बारे में भारत को अपनी सुरक्षा तथा आर्थिक नीतियों के बारे में गहन विचार विर्मश करना चाहिए।

संदर्भ –

1. पाकिस्तानी अंग्रेजी दैनिक डाॅन में छपी रिपोर्ट।
2. हुसैन हक्कानी की किताब-पाकिस्तान मस्जिद और मिलिट्री के बीच।


Image Source: http://hkmb.hktdc.com

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