श्रीलंका के वित्त मंत्री रवि करुणानायके ने 2017 का बजट पहली बार 10 नवंबर को पढ़ा। बजट पर दूसरी चर्चा और समिति स्तर की चर्चा नवंबर और दिसंबर में 26 दिन के भीतर होनी है। श्रीलंका के सामने इस समय मौजूद तमाम चुनौतियों को देखते हुए बजट 2017 अगले वर्ष के लिए सरकार की योजनाओं का खाका खींचने के लिहाज से महत्वपूर्ण है और सरकार की नीतियों के प्रति लोगों में विश्वास जगाने (या कम से कम नकारात्मक भाव खत्म करने) में उसकी भूमिका अहम है। सरकार ने 2017 के लिए कुल मिलाकर 1,819 अरब रुपये से अधिक आवंटित किए हैं। 1,208 अरब रुपये का कुल वर्तमान व्यय रखा गया है और 610 अरब रुपये का सकल पूंजीगत व्यय है।1 सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए कई कर बढ़ा दिए हैं। सकल बजटीय घाटा पिछले वर्ष के 670 अरब रुपये से घटाकर 625 अरब रुपये कर दिया गया है। परिणामस्वरूप सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी और बजटीय घाटे का अनुपात 2016 के बजट के 5.4 प्रतिशत की तुलना में 2017 में 4.6 प्रतिशत ही रहने का अनुमान है।2
जैसी अपेक्षा थी, बजट प्रस्तावों की सरकार के भीतर और बाहर से सराहना भी की गई है और आलोचना भी। सीलोन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने घाटा कम करने और निवेश के लिए नए पूंजीगत प्रोत्साहन प्रदान करने के कदमों का स्वागत किया है। किंतु सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों समेत कई राजनीतिक दलों ने सरकार की आलोचना करने में देर नहीं की। जथिका हेला उरुमया (जेएचयू) ने इसे ‘कंजूसी भरा बजट’ करार दिया, जो आर्थिक प्रक्रिया को विस्तार देने के बजाय कम कर देगा। उसने कहा कि सरकार को बेशक 7 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि की अपेक्षा है, लेकिन उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसने कोई योजना नहीं बनाई है।3 पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान सांसद महिंदा राजपक्षे की अगुआई वाले जॉइंट अपोजिशन (जेओ) तथा जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ने तो बजट 2017 के खिलाफ मतदान करने का फैसला किया। राजपक्षे ने कहा कि बजट में जनता के लिए कुछ भी खास नहीं है तो जेवीपी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए इसे जनविरोधी बजट बताया और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा थोपी गई शर्तों पर आधारित है।4
विभिन्न राजनीतिक खेमों से होने वाली ज्यादातर आलोचना में बजट के प्रावधानों के कथित नकारात्मक प्रभावों की बात कही गई, लेकिन तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) की प्रतिक्रिया अजीब लगी, जिसने ‘केवल तमिलों की पार्टी’होने का झंडा बुलंद करते हुए रचनात्मक विपक्ष की भूमिका को एकदम हल्का बना दिया। केंद्र सरकार के 2017 के बजट की आलोचना करते हुए उसने कुछ बड़े मुद्दों की तरफ तो ध्यान दिलाया, लेकिन उसने बजट के प्रावधानों को समाधान प्रक्रिया से जोड़ने की कोशिश की है और विशेष रूप से उत्तरी प्रांत में विकास पर जोर दिया। अन्य तीखी बातों के साथ टीएनए के सांसद और प्रवक्ता एम ए सुमंतिरन ने कहा कि ‘बजट में समाधान प्रक्रिया की फिक्र नहीं किए जाने से पता चलता है कि टीएनए के साथ बातचीत नहीं की गई।’उन्होंने उत्तरी प्रांत में बुनियादी ढांचे के कई कार्यक्रमों की आलोचना विभिन्न आधारों पर की और आगाह किया कि ‘सामाजिक असमानताओं के कारण एक और सामाजिक विद्रोह नहीं होने दिया जा सकता।’ टीएनए की आलोचना का एक आधार यह था कि वित्त मंत्री ने बजट प्रस्ताव तैयार करते समय उत्तर तथा पूर्व के जन प्रतिनिधियों से विचार विमर्श नहीं किया था। यही कारण है कि राष्ट्रीय बजट तो पूरे देश के लिए होता है, लेकिन टीएनए ने तमिलों के लिए अलग बजट की मांग कर डाली है।
राष्ट्रीय विपक्षी दल होने के कारण अपेक्षा थी कि टीएनए तमिल नागरिकों समेत सभी श्रीलंकाई नागरिकों के हितों की बात कहेगा। बजट की लगभग प्रत्येक आलोचना में तमिलों की बात करने से टीएनए के सामने ‘राष्ट्रीय विपक्षी दल’ के रूप में जनता की विश्वसनीयता खोने का खतरा था, जिससे ‘एकमात्र सिंहली विपक्ष’ होने का जॉइंट अपोजिशन का दावा सही साबित हो जाता। इसीलिए टीएनए कितनी भी तर्कसंगत और उचित आलोचना सामने रखे, उसे क्षेत्रीय भावनाएं भड़काने का एक और प्रयास ही माना जाएगा। सुमंतिरन ने तर्क दिया कि ‘हमारे लोगों’ की आजीविका के प्रमुख साधन कृषि, मछलीपालन और पशुपालन को नजरअंदाज किया गया है। यह तर्क अधिक प्रभाव डाल सकता था अगर उन्होंने ‘केवल अपने लोगों’ के बजाय सभी श्रीलंकाई नागरिकों की बात कही होती। चूंकि कृषि श्रीलंका की अधिकतर श्रमशक्ति के लिए रोजगार और आजीविका का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है और मछलीपालन सभी जातीय समुदायों के श्रीलंकाई नागरिकों को रोजगार के लगभग 540,000 प्रत्यक्ष और परोक्ष मौके मुहैया कराता है, इसलिए इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए बजटीय आवंटन में किसी भी प्रकार की कमी से सभी श्रीलंकाई नागरिक समान रूप से प्रभावित होंगे। इसलिए इस मुद्दे पर सभी श्रीलंकाई नागरिकों की बात कहते हुए वस्तुनिष्ठ और तार्किक आलोचना ही होनी चाहिए थी।
विश्लेषकों का कहना है कि कि 8 जनवरी, 2015 की ‘मौन क्रांति’ को लगभग दो वर्ष और संसदीय चुनावों को लगभग एक वर्ष बीतने के बाद अब समय आ गया है कि टीएनए राष्ट्रीय विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका, प्रासंगिकता एवं जिम्मेदारियों पर विचार करे। टीएनए मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था की जो खराब तस्वीर वह पेश कर रहा है, उस पर तमिल समुदाय शायद विश्वास कर ले, लेकिन केंद्र सरकार के लिए बाधाएं बढ़ाकर टीएनए तमिल हितों को नुकसान ही पहुंचा रहा है। वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था न्याय तथा समाधान के वायदे पर चलते हुए पिछली व्यवस्था की अपेक्षा अधिक प्रतिबद्ध और कर्तव्यनिष्ठ है। यदि विपक्ष केंद्र सरकार को अपने खिलाफ कर लेता है तो उसके पास कौन से विकल्प रह जाएंगे? इसका अर्थ यह नहीं है कि सरकार के कहे रास्ते पर ही चला जाए, लेकिन आत्मावलोकन किए बगैर अनावश्यक आलोचना करते रहने से सत्तारूढ़ गठबंधन कमजोर हो सकता है।
यह भी कहा गया है कि लगातार तीन वर्ष से उत्तरी प्रांत परिषद में टीएनए सरकार ने पहले से आवंटित धन का पूरी तरह उपयोग नहीं किया है और 2015 के लिए आवंटित धन का 38 प्रतिशत भाग अक्टूबर तक इस्तेमाल नहीं हो पाया था। ईलम पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (ईपीडीपी) के इस दावे का टीएनए नेतृत्व ने न तो खंडन किया है और न ही धन के कम उपयोग का कारण उसने बताया है। इस प्रकार केंद्र सरकार पर जनता की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज करने के आरोप को धृष्टता बताया जा रहा है क्योंकि पर्याप्त धन होने के बावजूद लोगों को सामाजिक बुनियादी ढांचा नहीं मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी से टीएनए बच नहीं सकता। टीएनए के ये आरोप भी साबित नहीं होते कि जाफ्ना में 67 लाख डॉलर की प्रस्तावित इमारत परियोजना और वावुनिया में मुक्त व्यापार क्षेत्र से बड़े कारोबारों को प्रोत्साहन मिलेगा और स्थानीय जनता की जरूरतें पूरी नहीं होंगी क्योंकि स्थानीय लोगों की जरूरतें पूरी करना जितनी केंद्र की जिम्मेदारी है उतनी ही प्रांतीय परिषद की भी है। आलोचना कुछ हद तक सही होने के बाद भी टीएनए की केंद्र से मांग और प्रांतीय परिषद की अकर्मण्यता के बीच स्पष्ट विरोधाभास होने से उसके द्वारा की गई बजट की आलोचना खोखली बयानबाजी लगती है।
टीएनए के अंदरूनी मामलों के संदर्भ में एन सत्य मूर्ति ने एकदम सही कहा है कि ‘टीएनए समूचे तमिल राज्यतंत्र तथा समाज को एकजुट बनाए बगैर बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध राज्य व्यवस्था से तमिलों की राजनीतिक समानता एवं न्याय के लिए एकजुट होने को नहीं कह सकता।’ तमिल अलायंस में शामिल चारों राजनीतिक दल कई मसलों पर एकमत नहीं हैं और आर संपनस्थान तथा सी वी विघ्नेश्वरन के बीच बढ़ती खाई बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी है। तमिलों की इकलौती आवाज बनने में टीएनए की नाकामी ने और जाफ्ना के प्रभुत्व वाले उत्तरी राजनीतिक संभ्रांतों द्वारा तमिलों के कल्याण के विषय पर कब्जा किए जाने की कोशिश ने तमिलों का इकलौता पक्षधर होने के टीएनए के दावे पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
बजट में टीएनए ने समाधान प्रक्रिया के लिए 18 करोड़ रुपये का ‘एकदम अपर्याप्त’ आवंटन होने पर आपत्ति जताई है। किंतु ध्यान रहे कि केवल बजटीय आवंटन को समाधान की प्रगति मापने का पैमाना नहीं बनाया जा सकता। समाधान अमूर्त और गैर मशीनी प्रक्रिया है, जिसकी सफलता की मात्रा निर्धारित नहीं की जा सकती। ढांचागत कमियों को दुरुस्त करने के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और सत्य स्थापित करने तथा न्याय सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, जो बजटीय आवंटन से इतर होती है। सिरिसेना-विक्रमसिंघे सरकार अपने काम में सुस्त हो सकती है, लेकिन इस बात पर ज्यादातर लोग सहमत हैं कि सरकार के घोर आलोचक भी समाधान के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं उठा सकते। ऐसी स्थिति में सभी उदार ताकतों का यह नैतिक कर्तव्य है कि वे ऐसा माहौल तैयार करने का प्रयास करें, जिसमें अलगाव, डर लगने और पहचान के संकट को बढ़ावा देने वाले विचारों पर करारी चोट हो सके।
एम ए सुमंतिरन ने कहा कि ‘हम सामाजिक असमानताओं के फलस्वरूप एक और सामाजिक क्रांति को नहीं झेल सकते’ किंतु उनके आलोचक यह पूछते हुए इसका विरोध करते हैं कि क्या श्रीलंका सामुदायिक वैमनस्य के कारण एक और विद्रोह होने दे सकता है? सभी राजनीतिक दल अच्छी तरह जानते हैं कि लंकाई अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत और आईएमएफ की शर्तों के मुताबिक खजाने को तुरंत मजबूत करने की जरूरत के कारण यह बजट जबरदस्त दबाव के बीच तैयार किया गया है। इसीलिए अगर टीएनए समेत सभी राजनीतिक दल थोड़ा संयम बरतें, अपनी समस्याओं से निपटें, जनादेश का पालन करें और अपनी गतिविधियों को उसी के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह खराब बात नहीं होगी। राष्ट्र के विकास के लिए इस समय केंद्र सरकार की अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए और उसकी कमियों की रचनात्मक आलोचना करते हुए उसके हाथ मजबूत करने की जरूरत है। यदि टीएनए परिपक्व राष्ट्रीय विपक्ष के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय सहभागिता करते हुए सभी श्रीलंकाई नागरिकों के कष्टों को प्रभावी स्वर प्रदान करेगा तो समाज के सभी वर्ग उसका स्वागत करेंगे।
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