दरकती हुई “खिलाफत” और उसके नतीजे: पश्चिमी नजरिया
Dr Alvite Singh Ningthoujam

2014 के उत्तरार्द्ध में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अमेरिका के नेतृत्व में जब अपना दाएश (आईएसआईएस) विरोधी संयुक्त सैन्य अभियान शुरू किया तभी से प्रत्येक प्रतिभागी देश और स्वयं दाएश पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा शुरू हो गई थी और अभी तक जारी है।

वर्ष के अंत में घटनाक्रम पर पश्चिमी नजरिया पेश करने वाला आकलन कहता है कि आतंकवादी संगठन ने 2014 से 2015 के मध्य तक जिन इलाकों पर कब्जा किया था, उनमें से कुछ पर उसका नियंत्रण खत्म होना शुरू हो गया है, लेकिन विभिन्न सुरक्षा संस्थान बेहद कट्टरपंथी मानसिकता और जंग का अनुभव लेकर अपने-अपने देशों को लौट रहे विदेशी लड़ाकों के बारे में गंभीर चिंता जता रहे हैं। वास्तव में फ्रांस और बेल्जियम से आईएसआईएस में अधिक संख्या में भर्ती किए गए लड़ाकों ने विदेश में अपने काम को को अंजाम देने की कुशलता दिखानी शुरू कर दी और उनकी योजनाएं कुछ अरसे बाद परवान चढ़ीं। धीरे-धीरे “अकेले हमला करने वालों” की सक्रियता और “देश में ही पनपे कट्टरपंथ” के बढ़ते मामलों ने समस्या को और विकराल बना दिया। हालांकि यह एकदम नई घटना नहीं थी, लेकिन अभूतपूर्व पैमाने पर उसके सिर उठाने से सामरिक विशेषज्ञ चिंता में पड़ गए।

पिछले कुछ समय में अमेरिका और यूरोपीय संघ के कुछ देशों में हुए आतंकी हमलों का इस संगठन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कुछ न कुछ लेना देना है। इससे कट्टरपंथ में जबरदस्त उभार का संकेत भी मिलता है, जो हिंसक चरमपंथ का अपरिहार्य कारक बनता जा रहा है। आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी के पीछे असली उद्देश्य और आईएसआईएस के साथ उनके प्रत्यक्ष संबंधों की अभी पड़ताल की जा रही है, लेकिन बर्लिन में इसी महीने की शुरुआत में हुए हमलों का महत्व समझने की जरूरत है।

मई 2014 में ब्रसेल्स में यहूदियों के संग्रहालय पर हमले, जो यूरोप में दाएश के इशारे पर हुआ पहला हमला था, के बाद से यह महाद्वीप कई अन्य हमलों का शिकार बन चुका है। उदाहरण के लिए नवंबर 2015 में पेरिस पर हुए हमले से पहली बार पता लगा कि दाएश अपनी आतंकी गतिविधियों का विदेश तक पहुंचाने में कामयाब रहा है और यह उसकी रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन का सबूत था। पहले सीरिया में काम कर चुके और समन्वित तरीके से काम कर रहे लड़ाकों के इस सुनियोजित खुले हमले से यह भी पता चला कि यह संगठन सही मौके पर दुनिया में किसी भी जगह दुश्मनों को निशाना बना सकता है। इसी प्रकार इस वर्ष मार्च में ब्रसेल्स में बम विस्फोटों ने ऐसे संगठन के रूप में दाएश का कद बढ़ा दिया, जो भौतिक और वैचारिक रूप से दूर-दूर तक अपने पांव पसार चुका है और जिसका नेटवर्क सीरिया और इराक में मौजूद नेतृत्व के साथ मजबूती से जुड़ा है। इन बड़े हमलों में संगठन के यूरोप में काम करने वाले लड़ाकों का सीधा हाथ रहा, लेकिन इसके साथ ही संगठन से प्रेरणा पाकर या उससे प्रभावित होकर अकेले हमला करने वालों के मामले भी बढ़ रहे हैं। लेकिन अकेले हमला करने वाले सभी लोग वास्तव में “अकेले” नहीं हैं क्योंकि उनमें से कुछ का या तो दाएश या अल कायदा समेत किसी अन्य संगठन के साथ कोई न कोई संबंध रहा है। ऐसे व्यक्तियों की गतिविधियां अमेरिका में पहले ही देखी गई हैं और इसी वर्ष जून में ऑरलैंडो में उमर मतीन द्वारा की गईं सामूहिक हत्या इन्हीं का उदाहरण हैं। हालांकि हत्यारे ने अपनी मौत से ठीक पहले ही दाएश के साथ अपने कथित संबंधों की कसम खाई थी, लेकिन उसके मामले ने जिहादी महत्वाकांक्षाओं से लेकर व्यक्तिगत एवं सामाजिक-राजनीतिक तकलीफों तक तमाम कारणों से युवाओं पर दाएश जैसे संगठनों की उग्रपंथी विचारधारा के प्रभाव का खुलासा कर दिया। इसके अलावा न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क और मिनेसोटा में सितंबर में हुई बम विस्फोट और छुरेबाजी की घटनाओं ने अमेरिका में इस बात पर बहुत संशय खड़ा कर दिया है कि अकेले हमले करने वाले ये लोग वास्तव में कौन हैं, उनका उद्देश्य क्या है और उनका दाएश या किसी अन्य विदेशी आतंकी संगठन से कोई रिश्ता है या नहीं। इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी प्रशासन अब ऑफलाइन/ऑनलाइन चरमपंथी शिक्षा के जरिये देश में ही उत्पन्न होने वाले उग्रवाद के पहलू को करीब से खंगाल रहा है और यह भी जांच रहा है कि कहीं उग्रवादी विचारधाराएं विदेश से तो देश में नहीं आ रही हैं।

इराक और सीरिया में अपने परंपरागत ठिकानों में इलाकों से कब्जा गंवाने के बाद दाएश जैसे संगठनों का ध्यान पश्चिमी प्रतिष्ठानों पर केंद्रित हो गया है। इन देशों में बचा हुआ नेतृत्व अपने लड़ाकों/समर्थकों/हमदर्दों से दुनिया भर में हमले करने के लिए कह रहा है। इसी वर्ष अगस्त में उत्तरी सीरिया में हवाई हमले में मारे गए दाएश के प्रवक्ता मोहम्मद अल अदनानी ने पहले कहा था, “अगर तुम अल्लाह को नहीं मानने वाले किसी अमेरिकी या यूरोपीय शख्स, खास तौर पर ‘घिनौने और नापाक’ फ्रांसीसी, ऑस्ट्रेलियाई या कनाडाई या इस्लामिक स्टेट के खिलाफ काम कर रहे गठबंधन में शामिल किसी भी मुल्क के बाशिंदे समेत किसी भी काफिर को कत्ल कर सकते हो तो अल्लाह पर यकीन करो और उसे किसी भी तरीके से खत्म कर दो।” यह कोरी बयानबाजी लग सकती है, लेकिन बाद के घटनाक्रम यह संकेत दे रहे हैं कि ऐसी अपीलों को मानने वालों की अब भी बड़ी तादाद है। अल अदनानी ने आगे कहा कि, “अमेरिका और यूरोप में अकेले किए गए हमले “हमारे लिए इराक और सीरिया में किए अपने सबसे बड़े हमलों से भी ज्यादा कीमती थे।” पेरिस में हमला करने वाले कई लोगों को कथित तौर पर सीधे अल अदनानी ने काम सौंपा था। यह सब इसलिए नहीं बताया जा रहा है कि पश्चिम में होने वाली हर घटना के लिए दाएश को जिम्मेदार बताया जाए बल्कि इसलिए बताया जा रहा है ताकि पता चले कि सोशल मीडिया के जरिये प्रचार का दाएश का तरीका कितना महत्व रखता है। अंग्रेजी भाषा की प्रचार पत्रिका दाबिक के 15वें अंक के एक हिस्से में यही बताया गया था कि दाएश “पश्चिम” से और “ईसाइयों” से नफरत क्यों करता है और छह बिंदुओं में समझाया गया था कि उसके लड़ाके “काफिरों” और “अल्लाह में यकीन नहीं करने वालों” से नफरत क्यों करते रहेंगे और उनके खिलाफ जंग क्यों जारी रखेंगे। इससे उस सुन्नी आतंकी संगठन के बेहद उग्र संप्रदायवादी रुख का संकेत मिलता है और फ्रांस में जुलाई में एक पादरी की हत्या कर उसने इसका सबूत भी दिया। इससे इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों के प्रति बढ़ती हिंसा की पुष्टि होती है। यह (समाज को अस्थिर करने की) बढ़ती हुई रणनीति है, जिसे यह संगठन और इसके कट्टर समर्थक विशेषकर यूरोप में अपनाना चाहते हैं।

पिछले कुछ महीनों में अमेरिका और यूरोप में सुरक्षा-खुफिया प्रतिष्ठान जिहादी संगठनों द्वारा संभावित खतरों की चेतावनी लगातार देते रहे हैं। इराक और सीरिया में गठबंधन के सैन्य अभियानों के कारण उनके खतरे की आशंका कई गुना बढ़ गई है। ये खतरे विशेषकर यूरोप में काम कर रहे आतंकी और कट्टरपंथी तत्वों दोनों से हैं। पिछले कुछ महीनों में जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस और अमेरिका से भी छोटे स्तर पर कई हमले होने की खबरें आई हैं। हालांकि दाएश इन हमलावरों को अपना “सिपाही” बताने में माहिर हो चुका है, लेकिन सभी हमले उसकी कारगुजारी नहीं थे। किंतु लोगों में आतंक के रास्ते पर चलने की बढ़ती प्रवृत्ति दाएश के लिए एकदम मुफीद है। यह विशेषकर यूरोप में सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बनने जा रहा है, जहां विदेश से लौटे लड़ाकों और घरेलू कट्टरपंथी लोगों, अपराधियों तथा प्रवासियों का घातक गठबंधन देखा जा रहा है।

चिंतित अधिकारी कुछ आतंकी योजनाओं को नाकाम करने में सफल रहे हैं, लेकिन बर्लिन में क्रिसमस की खरीदारी करने वालों पर हुआ हमला बताता है कि अलग-थलग पड़े ऐसे तत्वों के प्रयासों को पहचानना और विफल करना कितना मुश्किल है। अनीस आमरी नाम के ट्यूनीशियाई द्वारा किए गए इस हमले की प्रकृति दाएश की बदलती कार्यप्रणाली जैसी ही है, लेकिन उस संगठन का सीधा हाथ अभी साबित नहीं हुआ है। (स्थान तथा शिकार) को निशाना बनाने के लिए वाहन के इस्तेमाल की बात संगठन की नई अंग्रेजी पत्रिका रुमिया के पिछले दो अंकों में जमकर प्रकाशित किया गया है। पत्रिका ने जुलाई में फ्रांस के नीस शहर में हुए हमले (86 की जान लेने वाले) को “प्रमुख उदाहरण” बताया और इस बार की छुट्टियों में अमेरिका और यूरोप में ऐसे ही हमले होने की बात भी कही। इसके अलावा हाल ही में सीरिया से दाएश से जुड़ी खुफिया जानकारी मिली है और उसमें इन दोनों क्षेत्रों में “विदेशी अभियानों” तथा खतरों का जिक्र है।

रुमिया में लिखा हैः “हालांकि आधुनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा होने के कारण बहुत कम लोग समझते हैं कि मोटर गाड़ियां कितनी घातक और विनाशकारी होती हैं तथा पूर्वनियोजित तरीके से इस्तेमाल करने पर ये कितने लोगों की जान ले सकती हैं।” पत्रिका के पहले अंक में ‘अकेले काम करने वालों’ से और भी हमले करने की अपील की गई तथा उन छुरों का ब्योरा भी दिया गया, जिनका “जिहादी” इस्तेमाल कर सकते हैं तथा उनसे “शांत इलाकों में, समुद्र तट पर गलियों में और जंगलों में हमले तेज करने के लिए कहा गया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग शिकार बन सकें।” यह भी स्पष्ट है कि हाल के समय में प्रेरणा पाकर या निर्देश पाकर किए गए हमलों में इन तरीकों का इस्तेमाल बढ़ा है।

दाएश अपनी कामकाजी रणनीति और विचारधारा को प्रभावी रूप से बढ़ाने में सफल रहा है चाहे वह काम किसी के भी जरिये हुआ हो। इससे यह संगठन पश्चिम एशिया में कितना भी चोट खाता रहे, पश्चिमी दुनिया में इसकी प्रासंगिकता बनी ही रहेगी। इस संगठन से वास्तविक खतरा रहेगा क्योंकि इसमें पहचाने जाने में मुश्किल और अकेले काम करने वाले अनजाने लोग ही नहीं हैं बल्कि स्लीपर सेल का संगठित नेटवर्क भी है। बेल्जियम और फ्रांस में हुए हमलों के बाद पता चल चुका है कि अब ज्यादातर खतरे हमदर्दों और समर्थकों की ओर से हैं, जो ज्यादातर सोशल मीडिया के जरिये आ रही संगठन की अपीलों को सुन रहे हैं। दोनों तरह के लोग यूरोप में बड़ी तादाद में हैं, जबकि अमेरिका में हमदर्दों या प्रेरित लोगों की संख्या ज्यादा है और इसीलिए पश्चिम को लगता है कि दाएश तथा अल कायदा एवं जभात फतह अल शाम (पुराना नाम अल नुसरा फ्रंट) जैसे संगठन कुछ समय तक इन देशों के लिए बड़ा खतरा बने रहेंगे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में स्थित पश्चिमी ठिकानों को उनसे कम खतरा है। ऐसी परिस्थति में आतंकवाद विरोधी उपाय बहुत तीव्र, चुनौतीपूर्ण, कठिन तथा बड़े स्तर पर होंगे।


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)

Published Date: 10th January 2017, Image Source: https://encrypted-tbn1.gstatic.com

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