दिसम्बर 2012 में एक युवती के साथ हुए दर्दनाक सामूहिक बलात्कार हिंसा तथा युवती की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था। दिल्ली में इस कांड के विरोध में जबरदस्त धरने प्रदर्शन किए गये तथा इसी प्रकार की सहानुभूति पूरे देश में देखी गयी थी। इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति तथा देश में महिलाओं के विरूद्ध होने वाले तरह तरह के अपराधों को रोकने के लिए केन्द्रीय सरकार ने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया तथा आयोग को कानून में बदलाव के लिए इस प्रकार सुझाव देने के लिए कहा गया जिसमें महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों पर लगाम लगायी जा सके। इस आयोग ने कम से कम समय में विषय की गम्भीरता को देखते हुए अपनी रिर्पोट सरकार को सौंपी तथा इस रिर्पोट के आधार पर महिला अपराधों से सबंधित कानूनों में बदलाव तथा कुछ नये कानून जोडे़ गये तथा कोशिश की गयी कि महिलाओं के विरूद्ध होने वाले हर प्रकार की परिस्थितियों, स्थानों तथा हर प्रकार के अपराधों को भली भांति रोका जा सके।
परन्तु सरकार के इस प्रयास में आशातीत सफलता नहीं मिल सकी है। जैसे कि अभी अभी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ग्रेटर नोएडा में देखने में आया। यहां पर एक दम्पत्ति अपने गुर्गों की मदद से दूर-दराज पूर्वांचल से भोली भाली नाबालिग लड़कियों को तरह तरह के प्रलोभन देकर लाते थे तथा उन्हें मोटी रकम में सैक्स तथा देह व्यापार के लिए बेच देते थे । पुलिस के अनुसार पिछले तीन सालों में इस गैंग ने करीब 50 लड़कियों को इस प्रकार बेचा है। इसके अलावा कर्नाटक के बैगलूरू में नये साल के जश्न में बड़े स्तर पर महिलाओं के साथ सामूहिक छेड़छाड़ की खबरें मीडिया में छायी रहीं। कुछ समय पहले दिल्ली की एक कालोनी में युवती पूरी कालोनी में मदद के लिए गुहार लगाती दौड़ती रही परन्तु किसी ने उसकी सहायता नहीं की और आखिर में दरिन्दों ने उसकी हत्या कर दी। इसी समय उ0प्र0 के बुलन्दशहर में राजमार्ग पर एक चलती कार को जबदस्ती रूकवाकर उसमें यात्रा कर रही एक माॅं बेटी के साथ बलात्कारियों ने सामूहिक बलात्कार किया तथा इसमें सबसे घृणित था कि एक मां के सामने उसकी बेटी के साथ बलात्कार होना। अभी अभी पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह माना है कि हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के समय वहां के मुरथल में महिलाओं से दुव्र्यवहार तथा बलात्कार किया गया और इसलिए न्यायालय ने हरियाणा पुलिस को इसके साक्ष्य जुटाकर अपराधियों के विरूद्ध मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। हरियाणा के इस कांड की गूंज विदेशों तक में सुनायी दी है क्योंकि इस कांड में ज्यादातर पीड़ित महिलाएं प्रवासी भारतीय थीं जो पंजाब तथा हरियाणा में छुट्टी बिताकर दिल्ली हवाई हड्डे विमान पकड़ने के लिए जा रही थी। इस घटना के बारे में मीडिया में ऐसी दुखद तथा ह्दय विदारक बातें भी आयीं कि इन प्रवासियों ने इस प्रकार का माहौल देखकर दोबारा कभी स्वदेश न आने की कसमें भी खायीं थीं। उ0प्र0 के चर्चित मुजफ्फरनगर दंगों के लिए गठित आयोग के समय दंगों के प्रत्यक्षदर्शियों ने शपथ पत्र पर अपने बयानों में कहा है कि मुजफ्फरनगर दंगे का मुख्य कारण एक युवती से बारबार छेड़छाड़ तथा अपराधियों के विरूद्ध पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न करना। इस छेड़छाड़ की घटना से पहले उसके पड़ौसी जिले शामली में क्रमवार एक समुदाय की तीन युवतियों के साथ बलात्कार तथा सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुईं और इसकी भी पुष्टि इसी आयोग के समक्ष गवाहों ने शपथ पत्र पर की थी। परन्तु राजनैतिक कारणों से यहां पर भी राज्य पुलिस निष्क्रिय रही और इस प्रकार महिलाओं के विरूद्ध हो रहे अपराधों के फलस्वरूप ही इतने बड़े दंगे फैले। ज्यादातर देखने में आया है कि पिछले 5 सालों में उ0प्र0 में हुए करीब 150 दंगों के मूल में ज्यादातर एक सम्प्रदाय के लोगों द्वारा दूसरे समुदाय की महिला से की जाने वाली छेड़खानी हो रही है। इस सबके साथ देश के विभिन्न हिस्सों से महिलाओं के विरूद्ध अपराधों की संख्या में नये कानून बनने के बाद भी गिरावट के स्थान पर बढौतरी ही देखने में आयी है और आंकड़ों के अनुसार हर 2 मिनट बाद देश में एक महिला के साथ बलात्कार होता है और बलात्कारों का आंकड़ा पूरे देश के लिए प्रत्येक वर्ष करीब 25000 महिलाएं हैं और यह तो प्रकाश में आये आकड़े हैं इसमें कहीं ज्यादा इस प्रकार के अपराध देहातों एवं छोटे शहरों में समाज की लाजशर्म के कारण रिर्पोट ही नहीं होते हैं।
निर्भया कांड पर पूरे देश का आक्रोश तथा भावनाओं को देखते हुए 2013 में केन्द्रीय बजट में निर्भया के नाम से 100 करोड़ का प्रावधान किया गया था। इस धन से पूरे देश में महिलाओं के सुरक्षा के उपाय इस प्रकार किये जाने थे कि वे किसी स्थान पर असुरक्षित महसूस ना करें। इसके अलावा पूरे देश में 600 केन्द्र खोले जाने का भी प्रावधान है। इन केन्द्रों पर एक ही स्थान पर पीड़ित महिला को चिकित्सा, कानूनी सहायता तथा मनोवैाानिक परामर्श उपलब्ध हो सके। इस प्रकार देश के हर जिले में एक ऐसा स्थान बने जहां दुखी तथा पीड़ित महिला उसके साथ हुए अपराध से उबर कर दोबारा अपना जीवन शुरू कर सके। 2013 से लेकर 2016 तक हर वर्ष इसमें केन्द्रीय बजट से 100 करोड़ जमा होकर यह धन 3000 करोड़ हो गया है परन्तु शासन तंत्र की कमी के कारण इस धन का उपयोग अभी तक महिलाओं के कल्याण के लिए नहीं हो सका है। इस प्रकार देखने में आता है कि ना तो नये कानून से महिलाओं के विरूद्ध अपराधों में कमी आयी और ना ही शासनतंत्र ने उनके कल्याण की धनराशि उनके कल्याण पर खर्च की और इस प्रकार अभी भी पीड़िताओं को समाजसेवी तथा एनजीओ से ही थोड़ी बहुत सहायता मिलती है जो उनके दुखों को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
आखिरकार उपरोक्त हालात यह सोचने पर बाध्य करते हैं कि महिलाओं के विरूद्ध अपराधों पर लगाम क्यों नहीं लग रही है। तो इसका उत्तर काफी हर तक मुजफ्फर नगर दंगों पर बनी जांच कमेटी की रिर्पोट तथा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय से मिलता है। मुजफ्फर नगर तथा शामली में महिलाओं के विरूद्ध अपराध होते रहे परन्तु प्रशासन तथा पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही। इसी प्रकार हरियाणा पुलिस जाट आंदोलन के समय हुए सामूहिक बलात्कारों को दबाती रही जबतक न्यायालय ने इस पर आदेश पारित नहीं किये। इसीलिए वर्मा आयोग ने अपने सुझावों में पुलिस प्रशासनिक तथा न्याययिक सुधारों के बारे में सुझाया है। पुलिस के राजनैतिक तथा भृष्टाचार इत्यादि कारणों के अलावा हमारी न्याययिक व्यवस्था समयानुसार अपने आपको ना बदल पाने के कारण शीघ्र तथा तकनीकी कारणों से अपराधों की गम्भीरता के अनुरूप सजा देने में अपने आपको असहाय पा रही है। देश के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश टी0एस0 ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से इसके बारे में अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। इसके अलावा इन अपराधों को महानगरों तथा देहातों में अलग अलग रूप में देखा जाना चाहिए। देश में बढ़ते औद्योगिकरण के कारण जनसंख्या अपने स्थानों से पलायन करके महानगरों में आ रही है जहां पर वे नये समाज का हिस्सा जल्दी नहीं बन पाते इस प्रकार वे वर्जनाविहीन तथा गुमनाम जिन्दगी जीते हैं और दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कारों में इसी प्रकार के अपराधी पाये गये थे। चाहे वह 80 के दशक में हुए चैपड़ा बच्चों के साथ रंगाविल्ला हों या निर्भया के अपराधी, और इसी प्रकार अन्य महानगरों मे लिप्त पाये जाते हैं। उधर देहातों में गरीबी, आपसी दुश्मनी तथा साम्प्रदायिक कारणों से महिलाओं के विरूद्ध अपराध किये जाते हैं। इन हालातों को देखते हुए अब समय आ गया है जब भारत को विकसित देशों की सूची में शामिल होने के लिए महिलाओं को और अधिक विश्वासपूर्ण सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसलिए शीघ्र निर्भया फंड द्वारा देश के हर जिले में महिला कल्याण केन्द्र खोले जाने चाहिए तथा इसके अलावा पुलिस, प्रशासन तथा न्याय व्यवस्था में इस प्रकार सुधार हों कि देश में भयविहीन वातावरण का निर्माण हो तथा अपराधी किसी प्रकार भी अपराध करने की सोच भी ना सके।
संदर्भ-
1. वर्मा आयोग रिपोर्ट
2. मुजफ्फरनगर दंगा जांच रिपोर्ट
3. पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देश
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