कारोबार में सुगमता की दिशा में ठोस पहल
Shiwanand Dwivedi

वर्ष 1956 की औद्योगिक नीति पर टिप्पणी करते हुए पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने कहा था, “1956 औद्योगिक नीति के प्रस्ताव के बावजूद सरकार ने वह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है, जो वैधानिक रूप से लोगों पर ही छोड़ी जा सकती थी।1” यह बात पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने तत्कालीन सरकार की औद्योगिक कार्यप्रणाली के सन्दर्भ कही था। वैसे तो यह कथन साठ साल पहले का है लेकिन आज पंडित दीन दयाल उपाध्याय की विचारधारा पर चलने वाला राजनीतिक दल देश की सत्ता में है तो निश्चित तौर पर आर्थिक विचारधारा के मामले में सरकार का मूल्यांकन अवश्य पंडित दीन दयाल के कथ्यों पर अवश्य किया जाएगा। अगर देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस की बात करते हैं। सही अर्थों में मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस का आशय, शासकीय कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप की जटिल प्रक्रियाओं को न्यूनतम करते हुए सुगमता की स्थिति को कायम करने, से है। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही कई स्तरों पर प्रयास किए गए हैं। नीति आयोग के माध्यम से ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस की प्रक्रियाओं को सरल बनाने और सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम को मजबूती से स्थापित करने की दिशा में सरकार पहले ही कदम बढ़ा चुकी है। इसके साथ-साथ सरकार ने असामयिक एवं अनावश्यक कानूनों को समाप्त करने की पहल शुरुआती दिनों से ही की है, जिसके फलस्वरूप लगभग एक हजार कानूनों को विधान पुस्तिका से हटाने का काम भी किया गया है। निवेश के लिहाज से अगर देखा जाए तो प्राथमिक तौर पर पूँजी निवेश एक जोखिम का काम माना जाता है, अर्थात जोखिम उठाने वाला पहला व्यक्ति निवेशक होता है। लाभ एवं व्यापार के विस्तार आदि के विषय बाद में आते है। ऐसे में किसी निवेशक को एक ऐसे काम के लिए आमंत्रित करना जिसमे पहले ही वो निवेश का जोखिम ले रहा हो, उसे सहज एवं सुविधाजनक माहौल की गारंटी तो कम से कम मिलनी चाहिए। अगर राज्य कारोबार की सुगमता अर्थात ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के मामले में निवेशकों को आकर्षित करने में कामयाब नहीं होता है, तो वह अप्रत्यक्ष तौर पर निवेशकों को निवेश के लिए प्रोत्साहित होकर विकास में भागीदार बनने से रोक रहा होता है। चूँकि नए उद्यमों के प्रति वर्तमान सरकार द्वारा स्टार्टअप एवं स्टैंडअप जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं लाई गयी हैं तो निश्चित तौर पर इनके लिए कारोबार का सुगम वातावरण उपलब्ध कराना भी सरकार की जिम्मेदारी है। भारत में वाह्य निवेशों के साथ-साथ ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के लिए आंतरिक रूप से भी तैयार होने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। चूँकि भारत का शासकीय ढांचा व्यवहारिक तौर पर संघात्मक प्रणाली जैसा है, लिहाजा आंतरिक स्तर पर व्यापार क्षेत्र में सुधार के लिए एवं निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस की जरूरत को स्वीकार किया गया। मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने गुजरात राज्य में निवेश को प्रतिस्पर्धी एवं पारदर्शी बनाने के लिए तमाम कदम उठाये जिसका परिणाम है कि विकास की रफ्तार में गुजरात अग्रणी रहा। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में सुधार के लिए व्यापक पहल की, जिसका परिणाम देखने को मिल रहा है। अब भारत के आंतरिक इकाइयों के बीच कारोबार की सुगमता को लेकर एक प्रतिस्पर्धा का वातावरण बनता दिख रहा है। मीडिया में आ रही खबरों का अनुमानित आकलन किया जाए तो भारत के राज्य आपसे में ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के मानदंडों पर प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं। ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के लिए समर्पित भारत सरकार की वेबसाईट2 के अनुसार भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (DIPP) एवं उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय द्वारा मेक इन इण्डिया के तहत कारोबार में सुगमता को लेकर सुधारों से जुड़े 98 बिन्दुओं पर एक कार्यशाला का आयोजन 29 दिसंबर 2014 को किया गया था। 1 जनवरी 2015 से जून-2015 तक के कार्यान्वयन के आधार पर सितम्बर 2015 में एक मूल्यांकन की रिपोर्ट जारी की गयी थी। इसके बाद अक्तूबर 2015 में डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन द्वारा अक्तूबर 2015 में राज्यों को 340 बिन्दुओं की एक व्यापार सुधार से जुडी कार्य योजना राज्यों को सौपी गयी। इनमे सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम, लायसेंस में जटिलता को खत्म करने जैसे सुझाव प्रमुख रूप से दिए गए हैं। इसके बाद भारत के राज्यों के बीच ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस यानी कारोबार में सुगमता के मूल्यांकन को जारी करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल भी जारी किया गया, जो यह आंकड़े जारी कर रहा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में शुरुआत से ही उठाए गये कदमों का परिणाम है कि आज भारत में आंतरिक रूप से राज्यों के बीच व्यापार, कारोबार को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्धा का माहौल तैयार करने में बड़ी सफलता मिली है। ताजा आंकड़ों के अनुसार कारोबार में सुगमता के मामले में भारत के शीर्ष दस राज्य क्रमश: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, उत्तराखंड ओडिसा और महाराष्ट्र हैं। बड़े राज्यों की बात करें तो बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तामिलनाडू, केरल जैसे राज्य अभी भी बेहतर स्थिति में नहीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो इसकी स्थिति रैंकिंग के मामले में सुधार की बजाय और खराब ही हो रही है। वर्ष 2015 में दिल्ली की रैंकिंग 15 पायदान पर थी जो 2016 में 19 हो गयी है। 2015 की तुलना में तेजी से सुधार करने वाले राज्यों में हरियाणा, तेलंगाना, उत्तराखंड जैसे राज्य अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश 2015 की तुलना में खराब स्थिति में है।

आंतरिक प्रतिस्पर्धा के अलावा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिस दिशा में वर्तमान सरकार ने ठोस पहल की है। व्यवसाय अथवा कारोबार में सुगमता में बाधक के कारणों में जाने पर ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि तमाम ऐसे असामयिक अथवा गैर-जरुरी क़ानून समाज के आर्थिक एवं सामजिक विकास में बाधक बन रहे होते हैं। उन कानूनों को समाप्त करके विकास की रफ्तार को गति दी जा सकती है। इसी दिशा में एक और मजबूत पहल वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा तीन दर्जन से ज्यादा प्राधिकरणों की संख्या को कम करने की भी की गयी है। केंद्र द्वारा गठित अंतर-मंत्रालयी समूह ने नीति आयोग की सिफारिशों के आधार पर विलय पर मुहर लगाते हुए तमाम प्राधिकरणों के दायरे को सिमित करने की मंशा भी जाहिर की है। इसमें कोई शक नहीं कि विवादों के निपटारे के लिए जो सरकारी प्राधिकरण गठित किए जाते हैं, कई बार वे खुद ही अनावश्यक विवाद की वजह बन जाते हैं और प्रगति में रुकावट का काम करते हैं। चूँकि इन प्राधिकरणों के फैसलों को अदालत में चुनौती देने के बाद कई बार अदालती प्रक्रियाओं में मामला लंबे समय तक खिंच जाता है और रुकावटें पैदा होती हैं। ऐसे प्राधिकरणों की संख्या लगभग तीन दर्जन है। कुछ प्राधिकरण ऐसे हैं जहाँ विवाद के मामले बहुत कम हैं तो कुछ ऐसे हैं जिनकी कोई जरूरत नहीं है। ऐसे में सरकार की कोशिश है कि इन प्राधिकरणों की संख्या को कम करने के लिए कुछ प्राधिकरणों का आपस में विलय कर दिया जाए एवं जो गैर-जरुरी हैं उन्हें समाप्त कर दिया जाए। दरअसल नौकरी विवाद, पर्यावरण एवं कर आदि संबंधी मामलों में प्राधिकरणों की वजह से कई बार समस्याएं भी पैदा होती हैं। मकानों का नक्शा पास कराने से लेकर व्यक्ति बुनियादी जरूरतों से जुड़े तमाम कार्यों के लिए भी इन प्राधिकरणों से दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में इन प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार की गुंजाइश पर्याप्त होती है जो अक्सर खबरों के माध्यम से आती रहती है। शहरी विकास प्राधिकरणों में तो भ्रष्टाचार के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। प्राधिकरणों का दबाव लोगों पर इतना रहता है कि कोई पेड़ अगर उनके घर पर गिरने की स्थिति में आ जाए तो भी उसे काटने के लिए वे प्राधिकरण की अनुमति लेने हेतु चक्कर काटते हैं। इसके लिए बाकायदे उन्हें भ्रष्टाचार के रास्तों से से भी गुजरना पड़ता है। जबकि व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो इसका कोई औचित्य नजर नहीं आता है। हालांकि इन कार्यों को पारदर्शी बनाने एवं आम लोगों के लिए सहज बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा प्राधिकरणों की कार्यवाई को ऑनलाइन करने की योजना पर काम किया जा रहा है।

दरअसल कारोबार में सुगमता के लिहाज से जब हम मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस की बात करते हैं तो इसका सीधा आशय यह होता है कि सरकार द्वारा सामजिक क्षेत्रों में अतिशय शासकीय हस्तक्षेप को कम किया जाए एवं सरकारी प्रणालियों की बजाय व्याहारिक प्रणालियों को ज्यादा तरजीह दिया जाए। शासन का दायित्व यह कतई नहीं है कि वह व्यापार करे अथवा व्यापार पर दारोगा बनकर निगरानी करे। शासन का दायित्व यह है कि वह समाज में आर्थिक एवं सामाजिक विकास की दिशा में न्यायप्रिय एवं सुरक्षित व्यवस्था के प्रति आश्वस्त करे। कहीं न कहीं वर्तमान की सरकार आंशिक रूप से धीरे-धीरे उसी मॉडल की तरफ बढती नजर आ रही है, जिसमे सुगमता की राह में रोड़े अटकाने वाले प्रावधानों को समाप्त करके विकास की गति को तेज किया जाए। हालांकि यह शुरुआत है इस दिशा में अभी और ठोस उपाय किए जाने की जरूरत है जिससे पारदर्शिता के साथ-साथ विकास को गति मिल सके। वर्तमान में सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों से इस बात का पुख्ता संकेत मिलता है कि वर्तमान सरकार कारोबार क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, विकास एवं सबको अवसर उपलब्ध कराने को लेकर गंभीर है।

लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी शोध अधिष्ठान में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम के संपादक हैं।

स्रोत:

1. ऑर्गेनाइजर के 19 सितंबर 1958 के अंक में

2. (http://eodb।dipp।gov।in/AboutUs।aspx)


Published Date: 17th February 2017, Image Source: http://www.Amazon.in

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
6 + 0 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us