डोकलम पठार पर भारतीय और चीनी सेना के बीच जारी टकराव के दौरान 16 जून से 1 अगस्त, 2017 के बीच चीन के प्रचार संबंधी प्रयासों और उसके सरकारी मीडिया की खबरों का विशलेषण करने पर कुछ रोचक बातें पता चलती हैं।
मुख्य बातें हैं: (अ) भारत-चीन संबंधों को इससे होने वाले दीर्घकालिक नुकसान की इसे बहुत कम चिंता है; (आ) चीन के भारत-विरोधी आक्रामक प्रचार से दोनों देशों के बीच बचा-खुचा विश्वास भी खत्म हो गया; (इ) पेइचिंग ने डोकलम को लगातार चीनी क्षेत्र बताकर और भारत पर चीन में “घुसपैठ” करने तथा वहां “सर्जिकल स्ट्राइक” करने का आरोप लगाकर बातचीत की बहुत कम गुंजाइश छोड़ने का फैसला सोचसमझकर लिया; और (ई) पिछले हफ्ते में चीन के रुख में सख्ती आने के संकेत मिले हैं। भारतीय प्रतिष्ठान भविष्य में चीन के साथ संबंधों पर आगे बढ़ते समय संभवतः इन बातों को ध्यान में रखेगा।
ध्यान देने वाली बात है कि टकराव 16 जून, 2017 को आरंभ हुआ था, लेकिन चीन ने 26 जून को यानी टकराव आरंभ होने के लगभग 10 दिन बाद इस घटना पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया व्यक्त की और विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने संवाददाता सम्मेलन में बयान जारी किया। इसी बीच सीमा पर सैन्य अधिकारियों की दो बैठकें (फ्लैग मीटिंग) तनाव समाप्त करने में नाकाम रहीं, जिनमें से एक 20 जून को हुई थी। इस अवधि में चीन ने भारत से आमना-सामना करने से पहले अपने विकल्प तोल लिए होंगे। इसमें कोई शक नहीं कि भारत और चीन के गंभीर रूप से बिगड़े रिश्ते और अप्रैल, 2017 में ‘वन बेल्ट, वन रोड’ फोरम में हिस्सा लेने से भारत का इनकार इसकी वजह रहा होगा और चीन के प्रचार तंत्र द्वारा बाद में जारी की गई ‘चेतावनियों’ और ‘धमकियों’ ने इसकी पुष्टि की।
हालांकि यथार्थ में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की पश्चिमी थिएटर कमान के जिन कमांडरों ने सड़क निर्माण की गतिविधियों की योजना बनाई थी और उसे मंजूरी दी थी, वे साफ तौर पर बेखबर थे और तैयार भी नहीं थे। उन्हें भारत की ठोस और सख्त प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी। भारत और चीन के पहले से ही खराब रिश्तों, चीन को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश का विरोध नहीं करने के लिए मनाने की भारत सरकार की इच्छा, भारत की पिछली प्रतिक्रियाएं आदि देखते हुए उन्हें अपेक्षा रही होगी कि भारत भूटान सरकार को राजनयिक विरोध जताने के लिए मनाएगा और बहुत हुआ तो खुद भी विरोध जता देगा। चीन के प्रचार से यह स्पष्ट है कि सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने से पहले के 10 दिनों में केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) और पार्टी के उच्चाधिकारियों की कई बैठकें यह तय करने के लिए हुई होंगी कि चीन को अगला कदम क्या उठाना चाहिए। इन चर्चाओं में बिगड़े हुए रिश्तों और चीनी सेना के विचारों पर अधिक जोर रहा होगा। भारतीय सेना के हाथों झटका खाने के बाद पीएलए की पश्चिमी थिएटर कमान के वरिष्ठ अधिकारियों के मन में टीस होगी और वे अपनी टूटी-फूटी प्रतिष्ठा दोबारा बहाल करना चाहेंगे। खास तौर पर पश्चिमी थिएटर कमान और शिगात्से मिलिटरी डिविजन के कमांडर अपनी सैन्य प्रतिष्ठा फिर हासिल करना चाहेंगे क्योंकि दोनों के अधिकारियों का रिकॉर्ड बहुत उम्दा है और उन्हें जल्द प्रोन्नति दी जानी हैं।
चीनी मीडिया द्वारा तीखी भारत-विरोधी आलोचना और विदेश मंत्रालय के संयमित लेकिन ढेर सारे बयानों के उलट भारत ने शांतिपूर्ण विश्वास दिखाया है और प्रतिक्रिया से बचा रहा है, जिससे लगता है कि वह मामला बढ़ाना नहीं चाहता। भूटान के विदेश मंत्रालय ने 29 जून को घटना पर बयान जारी किया और उसी प्रकार भारत के विदेश मंत्रालय ने 30 जून, 2017 को इकलौता बयान दिया। सार्वजनिक प्रतिक्रिया देकर और लगातार यह कहकर कि भारत ने “चीन” पर चढ़ाई की है, चीन सरकार ने अपने प्रचार तंत्र तथा विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं की टिप्पणियों का उपयोग डोकलम पठार पर चीन तथा भूटान के विवाद को पृष्ठभूमि में धकेलने के लिए किया है और उसके बजाय वह इस बात पर जोर दे रही है कि डोकलम चीन का क्षेत्र है। उसने भारत पर यह आरोप लगाकर इस बात की पुष्टि भी की है कि उसने चीन पर “आक्रमण” और “सर्जिकल स्ट्राइक” किया है तथा विरोध जताते हुए कहा है कि चीन पाकिस्तान या म्यांमार नहीं है। वह लगातार कहती रही है कि पहले भारतीय जवानों को “बिना शर्त” पीछे लौट जाना चाहिए। डोकलम पठार में इस क्षेत्र पर अपने दावे के समर्थन में मामला तैयार करने का चीन का प्रयास उसके तीन ‘हथियारों’ (प्रचार, कानूनी एवं मनोवैज्ञानिक) का ही हिस्सा है। चीन ने भारतीय राजनीतिक वर्ग को विभाजित करने का प्रयास भी किया। भारत में चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने एकाएक विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की, जिनमें कांग्रेस के राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई तथा उनके पुत्र गौरव शामिल थे। उन्होंने पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और एक अन्य पूर्व भारतीय विदेश सचिव से भी भेंट की। लुओ झाओहुई की पत्नी और दिल्ली में चीनी दूतावार में सलाहकार डॉ. चियांग यिली ने इन प्रयासों में योगदान किया और भूटान जाकर राजघराने से मुलाकात की, जिसमें राजमाता भी शामिल थीं। इस बीच दिल्ली में रहने वाले चीनी राजनयिकों ने अपने वार्ताकारों से मुलाकात की और चीन के विचारों का प्रसार किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की चीनी राजदूत के साथ मुलाकात की खबर चीनी दूतावास द्वारा अपनी वेबसाइट पर लगाया जाना भी इस संबंध में महत्वपूर्ण है। जब इस पोस्ट पर ध्यान गया और उम्मीद के मुताबिक इस पर राजनीतिक बहस शुरू हो गई तो झटपट उसे हटा दिया गया। मुलाकात की खबर दूतावास की वेबसाइट पर डाले जाने के पीछे के उद्देश्य संदिग्ध है और चीनी राजदूत का इस समय दार्जिलिंग जाना भी संदिग्ध है।
चीन-समर्थक ‘बुद्धिजीवी’, पत्रकार और स्तंभकार सक्रिय होते दिखे और चीन के सामने अड़ने और भारतीय सेना को डोकलम पठार के रास्ते सड़क बनाने से चीनी सेना को रोकने का निर्देश देने के मामले में उनमें से कई ने सरकार की समझदारी पर संशय व्यक्त किया है। चीन ने 1890 की जिस संधि का जिक्र किया था, उसकी भारत द्वारा की गई व्याख्या पर संदेह जताया गया और यह भी पूछा गया कि चीन द्वारा ग्येमोचेन तक सड़क बनाए जाने से क्या भारत की सुरक्षा वाकई खतरे में पड़ जाएगी। चीनियों का सामना करने की भारतीय सेना की तैयारी पर भी चिंता जताई गई है। 26 जून, 2017 और 1 अगस्त, 2017 के बीच ही अंग्रेजी भाषा के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में डोकलम तनाव पर 36 लेख दिख गए। चीनी सैन्य बल में बंटने वाले अखबार पीएलए डेली ने अंग्रेजी में छह लेख प्रकाशित किए। इसके अलावा अंग्रेजी भाषा के सरकारी अखबार चाइना डेली में 33 लेख थे। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के आधिकारिक मुखपत्र पीपुल्स डेली में अंग्रेजी के 21 लेख आए और आधिकारिक संवाद समिति शिन्हुआ ने अंग्रेजी में छह समाचार दिए। डोकलम पठार के तनाव के बारे में जनमत तैयार किए जाने का संकेत इस बात से मिल रहा था कि चीनी भाषा के अखबारों में डोकलम मसले पर और भी अधिक लेख आए थे। पीपुल्स डेली के चीनी भाषा के संस्करण ने 49 लेख छापे, पीएलए डेली के चीनी भाषा के संस्करण में 31 लेख प्रकाशित हुए और हॉन्गकॉन्ग से छपने वाले चीन के अखबार वेन वेई बो में 30 और ता कुंग पाओ में 20 लेख प्रकाशित हुए थे। आधिकारिक संवाद समिति शिन्हुआ ने चीनी भाषा में केवल दो समाचार दिए।
बहरहाल लेखों के लहजे और सामग्री में बहुत अंतर था; ग्लोबल टाइम्स ने भारत को गंभीर परिणामों की धमकी देने वाले भड़काऊ लेख सबसे ज्यादा लिखे। ग्लोबल टाइम्स को अधिक अहमियत नहीं देने वाली टिप्पणियों के बावजूद यह याद रखना चाहिए कि ग्लोबल टाइम्स सीसीपी के मुखपत्र पीपुल्स डेली के ही अधीन है और पीपुल्स डेली का पूर्व उप मुख्य संपादक ही इसका मुख्य संपादक है। सीसीपी के केंद्रीय समिति का प्रचार विभाग दूसरे सरकारी चीनी मीडिया की ही तरह ग्लोबल टाइम्स की भी पड़ताल करता है और ‘सलाह’ देता है। ग्लोबल टाइम्स में आने वाले लेख सीसीपी के प्रचार विभाग से उच्चस्तरीय मंजूरी मिले बगैर प्रकाशित नहीं हो सकते थे। ग्लोबल टाइम्स को पसंदीदा प्रचार माध्यम बनाने के पीछे एक वजह यह है कि भारतीय पत्रकार चीनी भाषा बोलना नहीं जानते, इसलिए वे ग्लोबल टाइम्स में छपने वाली खबरों को अपने यहां छाप देंगे और भारतीय जनता तक बात पहुंचा देंगे। अहम बात है कि नई दिल्ली में रहने वाले चीनी राजनयिकों ने विचार समूहों अथवा नई दिल्ली के अन्य मंचों से बातचीत में उन्हीं दलीलों का इस्तेमाल किया, जिन्हें एक या दो दिन बाद ग्लोबल टाइम्स ने दोहरा दिया!
चिंता की बात यह है कि ग्लोबल टाइम्स में छपी धमकियों और चेतावनियों का किसी भी चीनी अधिकारी ने अभी तक खंडन नहीं किया है। जुलाई के अंत तक सरकारी ग्लोबल टाइम्स लगभग 20 लेख प्रकाशित कर चुका था। भारत को 1962 का युद्ध दोहराए जाने की धमकी देने और 12 जुलाई, 2017 को पीपुल्स डेली के 1962 के संस्करण का चित्र उसी की वेबसाइट पर लगाने तथा लोकप्रिय चीनी साइटों वेइबो तथा वीचैट पर प्रसारित करने के साथ-साथ प्रत्येक लेख में भारत को संवेदनशील मसलों पर चिढ़ाने की कोशिश की गई है और सबके पीछे कोई न कोई कारण है। सिक्किम को भारत के अंग के तौर पर दी गई मान्यता वापस लेने की चीन की मंशा संबंधी धमकी, जिसे नई दिल्ली में चीनी राजनयिक ने दोहराया, 2008 में चीन के दौरे पर गए भारतीय विदेश मंत्री के सामने चीनी उप विदेश मंत्री की उस टिप्पणी की याद दिलाती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सिक्किम का मामला अभी सुलझा नहीं है। 1979 में देंग श्याओपिंग द्वारा माओ की “क्रांति के निर्यात” की नीति को पलटे जाने के बाद पूर्वोत्तर में उग्रवाद को बढ़ावा देने की चेतावनी मिल रही हैं, जिन्हें पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों द्वारा चीन से हथियार खरीदे जाने और चीनी खुफिया एजेंसियों के इन गुटों के साथ गोपनीय रिश्ते होने की खबरें सही साबित करती हैं। यह चेतावनी प्रस्तावित बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (बीसीआईएम) गलियारे पर असर डाल सकती है। चीन का कोलकाता में वाणिज्य दूतावास भी है, जबकि उसने भारत को ल्हासा में वाणिज्य दूतावास फिर खोलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। पाकिस्तान के कहने पर कश्मीर में चीनी आक्रमण की संभावना का जिक्र करने और उसे भूटान के समर्थन में डोकलम में भारत की कार्रवाई के समान बताने वाले लेख से स्पष्ट हो जाता है कि चीन के कश्मीरी अलगाववादियों के साथ रिश्ते हैं और चीन तथा पाकिस्तान के बीच सांठगांठ बढ़ रही है तथा चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में चीन की सैन्य उपस्थिति की बात भी इससे स्प्ष्ट हो जाती है। इन लेखों तथा चीनी प्रवक्ताओं के बयानों से पता चलता है कि सीसीपी के शीर्ष अधिकारी भारत के बारे में क्या सोचते हैं।
ग्लोबल टाइम्स विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समेत भारतीय हस्तियों पर ‘निजी हमले’ करने से भी नहीं चूका है। 21 जुलाई को उसने उन्हें “झूठी” कहा। एक अन्य लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया गया और “हिंदू राष्ट्रवाद के उभार” को भारत तथा चीन के बीच युद्ध की नौबत आने का एक कारण बताया गया। ग्लोबल टाइम्स ने कहा, “सीमा पर युद्ध के बाद से ही भारत में चीन से बदला लेने का राष्ट्रवादी जोश भर गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव ने देश की राष्ट्रवादी भावना को और भड़का दिया है। मोदी ने बढ़ते हुए हिंदू राष्ट्रवाद का फायदा सत्ता में आने के लिए उठाया... इस बार सीमा विवाद में चीन को निशाने पर लिया गया है, जिससे भारत के धार्मिक राष्ट्रवादियों की फरमाइश पूरी हो रही है।” बाद में एक अन्य लेख में अजित डोभाल को इस घटना की योजना बनाने वाला “मुख्य षड्यंत्रकारी” बताया गया और कहा गया कि उनके दौरे से “पेइचिंग पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”
ध्यान देने की बात है कि चीनी मीडिया में आ रहे लेख लगातार कह रहे हैं कि ‘बातचीत तभी होगी, जब भारत डोकलम से हट जाएगा’ और चीन इस रुख से पीछे नहीं हटेगा और “टकराव जितना लंबा खिंचेगा, भारत उतने ही घाटे में रहेगा।” उन्होंने यह घोषणा भी कर दी है कि “क्षेत्र विवाद पर चीन किसी तरह की ढिलाई नहीं बरतेगा और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में वह किसी के सामने झुकेगा।” चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी ऐसे ही बयान दिए हैं। ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ बैठक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के चीन रवाना होने से ठीक पहले 25 जुलाई को चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने चीन की मांगों में और इजाफा कर दिया तथा डोकलम में टकराव का दोष भारत पर मढ़ने वाले सबसे वरिष्ठ चीनी अधिकारी बन गए। साथ ही उन्होंने भारत से “सीमा पर सेनाएं हटाने” के लिए भी कहा। चीनी विदेश मंत्रालय ने चीनी भाषा में जारी धूर्तता भरे बयान में बताया कि वांग यी ने थाईलैंड में संवाददाताओं से कहा है कि “समस्या एकदम सीधी है” और “भारतीय अधिकारी भी सार्वजनिक तौर पर कहते हैं कि चीनी जवानों ने भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया है। दूसरे शब्दों में भारतीय पक्ष चीनी क्षेत्र में घुसपैठ की बात स्वीकार करता है।”
कुछ लेखों में यह सवाल उठाया गया कि चीनी सामान का बहिष्कार समझदारी भरा कैसे होगा। इस संदर्भ में एक लेख में व्यापार की “खुली नीति” पर चलने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की सराहना की गई। लेकिन यांग चिएची के साथ डोभाल की द्विपक्षीय बैठक के फौरन बाद शिन्हुआ पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में कुछ नरमी बरती गई। उसमें कहा गया “प्रतिद्वंद्वी होने के बजाय भारत और चीन में काफी कुछ एक जैसा है, एक जैसे हित हैं और एक जैसी आकांक्षाएं हैं। विकासशील देश के रूप में दोनों को जलवायु परिवर्तन, संरक्षणवाद और अमेरिका के वित्तीय विशेषाधिकारों से लड़ने जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर एक साथ काम करने की जरूरत है। आशा है कि बुद्धिमत्ता के साथ दोनों देश एक जैसी संपन्नता प्राप्त करेंगे। उनके पास साथ रहने और एशिया तथा दुनिया में आगे बढ़ने की बहुत गुंजाइश है। चीन और भारत को संवाद बढ़ाने और दोनों के बीच भरोसा बढ़ाने की जरूरत है, जिसके लिए उन्हें पहले समझना होगा कि दोनों जन्मजात प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं और एक दूसरे के प्रति वैरभाव रखना खतरनाक है।” चीन के सरकारी मीडिया पर प्रकाशित किसी लेख में पहली बार शांति का स्वर इस्तेमाल किया गया और भारत को पहले हटने के लिए नहीं कहा गया।
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की वेबसाइट या उसके द्वारा संभाली जा रही वेबसाइट पर आने वाली पोस्ट और ब्लॉग भी दिलचस्प हैं। हालांकि सैन्य सोशल मीडिया पर डोकलम टकराव अधिक नजर नहीं आता, लेकिन इस विषय पर पोस्ट और ब्लॉग एकदम सख्ती भरे और दोटूक हैं। उनमें से कुछ पर ध्यान जाता है और उनसे पता चलता है कि सेना का एक वर्ग क्या सोच रहा है। सेवारत और ‘जानकारी रखने वाले’ एक सैन्य अधिकारी द्वारा लिखी गई कम से कम एक पोस्ट में कहा गया कि सैन्य टकराव के लिहाज से अगस्त का महीना अहम होगा क्योंकि उसके बाद मौसम बहुत प्रतिकूल हो जाएगा। एक अन्य सैन्य ‘विशेषज्ञ’ ने कहा कि चीन के लिए भारत पर हमला करने का सबसे अच्छा समय अगस्त है और दलील दी कि “सितंबर से युद्धस्थल पर मौसम बदल जाएगा और सैनिकों के लिए इतनी ऊंचाई पर रहने और लड़ने के योग्य नहीं होगा।” उसने कहा कि यदि दोनों देश सितंबर तक स्थिति को और बिगड़ने तथा भड़कने से रोक लेते हैं तो सशस्त्र संघर्ष की संभावना बहुत कम हो जाएगी क्योंकि दोनों देशों केा सितंबर में अपने जवान हटाने पड़ेंगे।
इन सैन्य साइटों पर दूसरी पोस्टों में बताया गया है कि “भारत को सबक सिखाना” चीन के लिए कितना फायदेमंद रहेगा और कहा गया है कि चीन को इस बार अतीत जैसी गलती नहीं करनी चाहिए और पूरे “दक्षिणी तिब्बत” या अरुणाचल प्रदेश को “दोबारा हासिल” कर लेना चाहिए। एक में सलाह दी गई है कि चीन को भारत में जाने वाली नदियों का पानी रोक लेना चाहिए और सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर प्रस्तावित बांध बनाने का काम तेज कर देना चाहिए। किसी भी पोस्ट या ब्लॉग में टकराव के बारे में ऐसे किसी बयान का जिक्र नहीं किया गया, जो संभवतः सेना के उच्च कमांडरों अथवा सीएमसी के चेयरमैन शी चिनफिंग ने दिया हो। लेकिन सेना के सोशल मीडिया पर कुछ पोस्टों में भारत के साथ शत्रुता खत्म होने की संभावना पर चिंता जताई गई है। कुछ ने कहा कि चीनी सेना पूरी तरह तैयार नहीं है और ऐसा कदम उठाने के लिए उसके पास पूरे संसाधन नहीं हैं; दूसरों ने कहा कि मतभेदों को राजनयिक माध्यमों से सुलझाया जाना चाहिए।
सेवानिवृत्त मेजर जनरल याओ युनझू की 30 जुलाई की टिप्पणियों के बाद पीएलए का घोषित रुख कड़ा हो गया। याओ चीन-अमेरिका रक्षा संबंधों पर पीएलए की प्रतिष्ठित एकेडमी ऑफ मिलिटरी साइंस सेंटर की मानद निदेशक हैं और उनके बयान आम तौर पर चीन के आधिकारिक ‘रुख’ के अनुरूप ही होते हैं। टकराव को “अप्रत्याशित” बताते हुए उन्होंने कहा कि चीन इसके कारण ठोस संकल्प ले सकता है और दावा किया कि सीसीपी और पीएलए पर “आक्रमण” के खिलाफ मजबूत कार्रवाई करने का “भारी दबाव” है। याओ युनझू के हवाले से कहा गया कि “चीन और भारत के बीच युद्ध की संभावना नहीं है, लेकिन निर्भर इस बात पर करता है कि आपके हिसाब से युद्ध की परिभाषा क्या है। अगर आक्रमण के खिलाफ बेहद छोटा, मामूली स्तर का सैन्य अभियान युद्ध है तो यह संभव है। इसलिए हम बेहद विशेष सैन्य अभियान के मसलों पर बात कर रहे हैं। मैं कहना चाहती हूं कि डोकलम (दोंगलांग) मामले में भारतीयों ने चीनी क्षेत्र में घुसपैठ की है, अतिक्रमण किया है। इसे ठीक किया जाना चाहिए। मैं इसी बात पर जोर दे रही हूं।” उन्होंने कहा कि “अतिक्रमण” को “सहन नहीं” किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि कि वह “सीमित अथवा असीमित युद्ध अथवा सैन्य अभियानों के बारे में संदर्भ के बगैर कुछ भी नहीं कहेंगी। संदर्भ यह है कि चीन अथवा चीनी क्षेत्र में घुसपैठ करने वाला और वहीं ठहरने पर भारत या किसी भी अन्य देश से हरसंभव तरीके से निपटा जाएगा क्योंकि हम चीन के क्षेत्र पर हमले और कब्जे को स्वीकार नहीं कर सकते।” उन्होंने कहा, “सीधी बात करते हैं। हम सीमा के बारे में सामान्य बात नहीं कर रहे बल्कि डोकलम (दोंगलांग) की घटना के बारे में बात कर रहे हैं। सीमा पर हमारे पास (विवाद निपटाने के) दूसरे तरीके हैं। हमें हर मामले को अलग करके देखना चाहिए। लेकिन डोकलम अनूठा मामला है, यहां सीमा रेखा निश्चित है, क्षेत्र पर कोई विवाद नहीं है। मैं सर्जिकल स्ट्राइक या मिसाइल स्ट्राइक या किसी और की बात नहीं करूंगी। मैं किसी का नाम नहीं लूंगी... लेकिन किसी भी तरीके से... इसे ठीक करना होगा... आप पर हमला हुआ है, आपको इसे मात देनी होगी।” उन्होंने आगे कहा, “हम अधिक मजबूत हैं। चीनी सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक मजबूत है... विमानों, युद्धपोतों, हथियारों, टैंकों की संख्या के मामले में ही नहीं हैं, हमारे पास अधिक मजबूत रक्षा उद्योग आधार भी है।”
डोकलम में तनाव के दौरान (26 जून से 1 अगस्त, 2017) भारत के खिलाफ चीन का प्रचार विशेष तौर पर अहम लगता है। पिछले 3 या 4 दशकों में ऐसी सार्वज्निक चेतावनी नहीं देखी गई है और इससे भारत-चीन संबंधों में तनाव का स्तर स्पष्ट पता चल जाता है। पीएलए की वेबसाइटों पर पोस्ट हुई टिप्पणियों में संप्रभुता और क्षेत्र को बचाने का संकल्प जताया गया है। चीन के आक्रामक प्रचार में निश्चित रूप से उच्च स्तर का मनोवैज्ञानिक युद्ध छिपा हुआ है, लेकिन खुद को बड़ी विश्व शक्ति बताने वाला चीन नहीं चाहेगा कि इस छवि पर आंच आए। नवंबर 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद से शी चिनफिंग ने भी पार्टी की ताकत तथा अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए विचारधारा तथा राष्ट्रवाद का इस्तेमाल किया है। पार्टी का अहम सम्मेलन (पार्टी कांग्रेस) दो महीने में होना है, इसलिए वह कमजोर दिखने का खतरा मोल नहीं ले सकते। किंतु अमेरिका तथा उत्तर कोरिया के बीच हाल में पैदा हुए तनाव समेत अन्य तथ्य चीन सरकार को भारत के खिलाफ कार्रवाई टालने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
(लेखक भारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय में अतिरिक्त सचिव रह चुके हैं और सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी के अध्यक्ष हैं।)
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