हाल ही में कतर के तीन बहुत शक्तिशाली पड़ोसियों ने गैस के प्राचुर्य वाले इस देश के साथ संबंध तोड़ने का फैसला किया। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन और मिस्र ने कतर के साथ सभी प्रकार के - समुद्री, भूमि, हवाई, राजनयिक - संबंध तोड़ने का ऐलान किया। इसका अर्थ कतर में तैनात राजनयिकों को वापस बुलाना ही नहीं है बल्कि भूमि, हवा और समुद्र के जरिये व्यापार भी बंद कर देना है। इसमें कतर में पंजीकृत उड़ानों को इन देशों के ऊपर से गुजरने से रोकना भी शामिल है। किंतु इससे कतर को अन्य देशों के साथ व्यापार करने से नहीं रोका जा सकता।
इसके बाद क्षेत्र में अन्य देश जैसे यमन भी मालदीव, मॉरीशस और मॉरिटानिया के साथ इस गुट में शामिल हो गए। जॉर्डन ने भी दोहा से काम करने वाले टीवी चैनल अल जजीरा का लाइसेंस वापस लेकर अपना राजनयिक प्रतिनिधित्व कम कर दिया; और अल बैदा, लीबिया में में पूर्वी सरकार ने भी अपने क्षेत्रीय सहयोगियों की तर्ज पर कतर से संबंध तोड़ लिए। कतर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अह-थानी का दावा है कि यह कदम कतर की स्वतंत्र विदेश नीति को दबाने का प्रयास है।
संकट के कारण
दरार की खबर पहली बार 5 जून, 2017 को आई थी। सऊदी एजेंसी ने प्रेस विज्ञप्ति के जरिये बयान जारी कर कतर पर रियाद समझौते के मुताबिक आतंकी गुटों और गतिविधियों के खिलाफ खड़े होने के लिए खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के झंडे तले किए गए समझौते और वायदे से मुकरने का आरोप लगाया। कतर और जीसीसी के अन्य देशों के बीच तनाव के तीन कारण हैं - मुस्लिम ब्रदरहुड को कतर का समर्थन, हमास और ईरान के साथ उसकी निकटता।
मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ कतर के रिश्ते मिस्र तथा जीसीसी के सदस्यों के साथ विवाद का सबब रहे हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी अरब और यूएई ने आतंकी संगठन करार दिया है। 2014 में सऊदी अरब, बहरीन और यूएई ने कतर के साथ राजनयिक रिश्ते खत्म कर दिए थे। उसकी वजह मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ कतर के रिश्ते और कुछ अन्य आंदोलन एवं समूह थे, जो जीसीसी में अशांति पैदा कर रहे थे। दलील दी गई थी कि ये समूह ऐसे तरीके और नीतियां अपना रहे हैं, जो जीसीसी के तरीकों और नीतियों से विपरीत हैं। कतर पर नवंबर, 2013 में किए गए रियाद वक्तव्य का पालन नहीं करने का भी आरोप लगा। किंतु कुवैत की मध्यस्थता के बाद जीसीसी के साझेदारों ने ऐलान कर दिया कि एकता अधिक महत्वपूर्ण है। जवाब में कतर सरकार ने ब्रदरहुड के नेताओं से देश छोड़ने को कहा क्योंकि जीसीसी के सदस्य देशों से दबाव बढ़ने लगा था। किंतु सर्वविदित है कि इसका मतलब कि कतर और मुस्लिम ब्रदरहुड के बीच संबंध तोड़ना कभी नहीं था।
ईरान के साथ कतर के रिश्ते उसके चिर प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब को लंबे समय से परेशान करते रहे हैं। ईरान के साथ सऊदी अरब की समस्या को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है - पहला, संप्रदायों की प्रतिद्वंद्विता; और दूसरा, उसकी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं। दोनों की जड़ इतिहास में है। सऊदी अरब ने क्षेत्र में कुख्यात होने के कारण ईरान की आलोचना की है। सीरिया, यमन, बहरीन, लेबनान और इराक में दोनों एक-दूसरे से भिड़ते रहे हैं तथा इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस), आतंकवाद को वित्तीय मदद देने तथा उसे प्रायोजित करने, हज राजनीति, दखलअंदाजी भरे नजरिये जैसे क्षेत्रीय मसलों पर भी उनमें टकराव होता है। सऊदी अरब ने कतर पर आरोप लगाया है कि वह उसके पूर्वी हिस्से कातिफ और बहरीन के शिया बहुल प्रांतों में ईरान के समर्थन वाले आतंकवादियों को मदद कर रहा है। किंतु कतर ने इन दावों को सिरे से नकार दिया है।
हमास के साथ कतर के रिश्ते भी जीसीसी में उसके साझेदारों को अरसे से परेशान करते आए हैं। अक्टूबर, 2012 में कतर के अमीर ने हमास के शासन वाली गाजा पट्टी की यात्रा की थी। यात्रा के दौरान कतर सरकार ने हमास को तेल आपूर्ति के साथ ही 40 करोड़ डॉलर की मदद देने का वायदा भी किया था। उसी वर्ष हमास ने अपना मुख्यालय उस समय सीरिया से हटाकर दोहा में स्थापित कर दिया, जब वह विद्रोही गुटों को कथित रूप से प्रशिक्षण देता पाया गया। सीरिया में संकट आरंभ होने के बाद ईरान के साथ हमास के रिश्ते बिगड़ने शुरू हो गए तो कतर यह कमी पूरी करने पहुंच गया। 2014 के राजनयिक विवाद के बाद 2015 में कतर के तत्कालीन विदेश मंत्री डॉ. खालिद बिन मोहम्मद अल अतिया ने इस बात की पुष्टि की कि हमास का नेता खालिद मशाल “प्यारे मेहमान” की हैसियत से कतर में रह रहा है।
ट्रंप का रियाद दौरा
कतर के साथ संबंध तोड़ने के फैसले का ऐलान होने से पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने अरब इस्लामिक अमेरिकन सम्मेलन को संबोधित करने के लिए 20 मई, 2017 को रियाद का दौरा किया था। टिप्पणीकारों ने उनके भाषण को इस राजनयिक प्रतिबंध से पहले की तैयारी माना। यात्रा के दौरान उन्होंने अल कायदा और हमास के साथ हिज्बुल्ला को भी आतंकवादी संगठन माना और ईरान सरकार को आतंकवादी एवं लड़ाकू गुटों के लिए सुरक्षित स्थान, वित्तीय सहयोग और सामाजिक दर्जा मुहैया कराने वाला माना, जिससे भर्ती करना आसान हो जाता है। उन्होंने ईरान को “सांप्रदायिक टकराव और आतंकवाद भड़काने वाला देश” बताते हुए वहां मौजूद नेताओं से उसे भी अलग-थलग कर देने का अनुरोध किया। सऊदी अरब साम्राज्य और अमेरिका द्वारा जारी संयुक्त बयान में ईरान को क्षेत्र की सुरक्षा एवं स्थिरता के लिए खतरा माना गया और ऐसा देश माना गया, जो गुटों के बीच विद्वेष भड़काता है और आतंकवाद तथा सशस्त्र छद्म लड़ाकों का सहयोग करता है।
किंतु रियाद सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल-थानी से मुलाकात की और कतर के साथ अपनी दोस्ती का जिक्र करते हुए कहा कि कतर के सैन्य उपकरणों की खरीद पर चर्चा की जाएगी। अपने वायदे पर कायम रहते हुए अमेरिका और कतर ने 14 जून, 2017 एफ-15 लड़ाकू जेट की खरीद का रक्षा समझौता किया, जिसकी आरंभिक लागत 12 अरब डॉलर है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना भी कतर में ही है। इसलिए प्रतिबंध की घोषणा होने के बाद विदेश विभाग की प्रवक्ता हीथर नॉर्ट ने कहा कि कतर में अमेरिका के कामकाज पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इसी तरह क्षेत्र में आतंकवाद को वित्तीय मदद देने की बात करें तोे अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा आतंकवाद के विषय में 2015 में प्रकाशित देशों की रिपोर्ट में कतर के भीतर मौजूद संस्थाओं एवं व्यक्तियों को अल कायदा के क्षेत्रीय सहयोगियों जैसे अल नुसरा फ्रंट को वित्तीय मदद देने वाला बताया गया। किंतु सऊदी अरब के बारे में भी ऐसा ही कहा गया। दिलचस्प है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने इस कदम का समर्थन किया, लेकिन पेंटागन जीसीसी के सदस्य देशों से एकता बनाए रखने का अनुरोध किया और मध्यस्थता का प्रस्ताव भी रखा। ट्रंप ने बेशक आरंभ में समर्थन किया, लेकिन रक्षा समझौता और अमेरिकी ठिकानों का बने रहना बताता है कि कतर अमेरिकी खेमे का हिस्सा बना हुआ है।
प्रतिबंध के परिणाम
हाल में एक बयान में कतर के विदेश मंत्री के वरिष्ठ आतंकवाद निरोधक सलाहार मुतलक अल-कहतनी ने कहा कि कतर ने अतीत में कभी आतंकवाद का समर्थन नहीं किया है और न ही भविष्य में कभी करेगा। उन्होंने खाड़ी देशों पर दादागीरी दिखाने और कतर को स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने की सजा देने का आरोप लगाया। किंतु उन्होंने कहा कि कतर इन हरकतों से नहीं दबेगा।
यह दलील दी जाती रही है कि हालिया प्रतिबंध से कतर के खाद्य आयात पर बहुत असर पड़ेगा। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2015 में कतर ने जिन देशों से खाद्य उत्पादों का आयात किया था, उनमें यूएई, सऊदी अरब, जर्मनी, अमेरिका और फ्रांस सबसे ऊपर थे। किंतु उसके कुल वैश्विक खाद्य उत्पाद आयात में यूएई और सऊदी अरब की हिस्सेदारी क्रमशः 15 और 14 प्रतिशत है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार कतर के कुल आयात (सभी उत्पादों) में यूएई और सऊदी अरब का छठा और सातवां स्थान है।1 इसलिए हालिया प्रतिबंध के कारण कतर के सामने गंभीर खाद्य संकट खड़ होने का दावा बढ़ा-चढ़ाकर कहना माना जाएगा।
कतर के सामने आसन्न खाद्य संकट को दूर करने के लिए ईरान और तुर्की जैसी अन्य क्षेत्रीय ताकतों के आने के बाद भी भूमि तथा हवाई संपर्क खत्म करने के फैसले का असर कम करना नामुमकिन चाहे नहीं हो, लेकिन कतर के लिए यह आर्थिक रूप से महंगा जरूर पड़ेगा। यूएई के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के अनुसारयूएई, सऊदी अरब और रियाद के हवाई क्षेत्र से केवल उन्हीं विमानों के गुजरने या उतरने पर प्रतिबंध लगा है, जो कतर में पंजीकृत हैं और कतर की विमानन कंपनियों के हैं। ईरान के लिए समुद्र के रास्ते कतर पहुंचना आसान हो सकता है, लेकिन तुर्की भौगोलिक रूप से अधिक दूर है और भूमि तथा समुद्र के जरिये सीधे नहीं जुड़ा है। इससे पता चलता है कि हवाई मार्ग में बदलाव के कारण कतर को यातायात पर अधिक खर्च करना पड़ सकता है। इसके अलावा उड़ानों पर प्रतिबंध के कारण कतर अपनी सरकारी कंपनी कतर एयरवेज का अच्छा-खासा कारोबार जरूर गंवा देगा। एमिरेट्स (दुबई) और एतिहाद (अबूधाबी) को कतर के लिए सेवाएं बंद करने का फरमान सुना दिया गया है। पिछले कुछ वर्षों में कतर यात्रियों के लिए यात्रा के बीच में ठहरने का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव बनकर उभरा है और सभी महाद्वीपों के प्रमुख ठिकानों में आराम भरी अंतरराष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करने के मामले में उसने अलग मुकाम हासिल कर लिया है।
कतर के पांच प्रमुख बैंकों में से सबसे बड़े कतरी नेशनल बैंक (क्यूएनबी) में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी के जरिये सरकार के पास है। उसने क्षेत्र में मिस्र, यूएई, इराक, ट्यूनीशिया, सीरिया में हिस्सेदारी ली है। 2022 का फीफा विश्व कप कतर में होना है, जिसे देखते हुए कतर के बैंकों ने पहले ही बहुत उधार दे दिया है। चूंकि कतर की ज्यादातर घरेलू बैंकिंग विदेशी रकम के ही भरोसे है, इसलिए क्षेत्रीय सहयोगियों से नकदी हासिल करना उसके लिए चुनौती होगी। किंतु क्षेत्र में शाखाओं वाले किसी भी कतरी बैंक को उन देशों की शाखाओं में कामकाज रोकने के निर्देश अभी तक नहीं मिले हैं।
कतर द्रवीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसलिए राजनयिक संकट के बाद उसकी गैस आपूर्ति सबसे बड़ी चिंता हैं। कतर के अधिकतर भंडार ईरान की सीमा से लगे उत्तरी क्षेत्र में हैं। विश्व बैंक के अनुसार 2015 में कतर ने दुनिया भर में 50,522,86.42 करोड़ डॉलर का एलएनजी निर्यात किया था। उसके पांच शीर्ष व्यापारिक साझेदार जापान, कोरिया, भारत, चीन और यूएई हैं। कतर के विदेश मंत्री ने अपने एक बयान में आश्वस्त किया कि यूएई के साथ हुए एलएनजी समझौते का पालन किया जाएगा। कतर हमेशा से अपनी ज्यादातर एनलएनजी दीर्घकालिक बिक्री एवं खरीद समझौतों के जरिये बेचता आया है, जिसमें उसके साझेदारों को लंबे समय तक अबाध आपूर्ति के लिए कुछ अधिक कीमत चुकानी पड़ती है और कतर को फायदा होता है। ये समझौते 2020 से 2025 तक चलने हैं। कतर ने 2016 में यूएई की डॉल्फिन एनर्जी के साथ भी एक दीर्घावधि समझौता किया और शारजाह इलेक्ट्रिसिटी एंड वाटर अथॉरिटी और रास अल खमैया के लिए अतिरिक्त एलएनजी भी निश्चित है। इसलिए कतर के क्षेत्रीय अथवा वैश्विक साझेदारों को होने वाली आपूर्ति अथवा कीमत पर इस संकट का असर पड़ने की आशंका नहीं के बराबर है।
देश | आबादी | Percentage |
---|---|---|
1.भारत | 545,000 | 23.58 |
2.नेपाल | 400,000 | 17.3 |
3.कतर | 278,000 | 12.03 |
4.फिलीपींस | 200,000 | 8.65 |
5.मिस | 180,000 | 7.78 |
फिर भी कतर में विदेशी नागरिकों की उपस्थिति चिंता का एक अन्य कारण है। वहां कर्मचारियों में विदेशियों की संख्या बहुत अधिक है। गल्फ लेबर मार्केट्स एंड माइग्रेशन (जीएलएमएमसी) द्वारा संकलित आंकड़ों में अनुमान लगाया गया है कि 2013 में कुल 1,543,265 कामगारों में 1,450,703 वहां के नागरिक नहीं थे। उनमें से 1,448,007 रोजगारयाफ्ता थे और उनका आंकड़ा कतर की कुल रोजगारप्राप्त जनसंख्या का 94.1 प्रतिशत था। नीचे की तालिका 2014 में कतर में रहने वाले विदेशी निवेशों की अनुमानित संख्या बताती है।
कतर में जिन पांच देशों के सबसे अधिक नागरिक हैं, उनमें मिस्र का पांचवां स्थान है। किंतु मिस्र की संवाद समिति अल अहराम के मुताबिक फिलहाल कतर में मौजूद मिस्र के करीब 3 लाख लोगों को अभी तक किसी तरह का निर्देश नहीं मिला है। कतर में मिस्र समुदाय के प्रवक्ता मोहम्मद अल-इराकी ने भी कहा है कि कतर में रह रहे मिस्रवासियों के कामकाज पर अभी तक संकट का कोई असर नहीं पड़ा है। किंतु फिलीपींस के श्रम प्रमुख सिल्वेस्त्रे बेलो ने और नागरिकों के कतर जाने पर रोक लगाने का निर्देश दिया है क्योंकि वहां प्रभाव पड़ने तथा खाद्य सुरक्षा की समस्या पैदा होने का डर है। लेकिन कतर में रहने वालों की वापसी की कोई योजना नहीं है।
भारत पर प्रभाव
कतर में रहने वाले विदेशी प्रवासियों में भारतीय प्रवासियों का सबसे बड़ा हिस्सा है। कतर से भारत में लगभग 75 लाख टन वार्षिक एलएनजी आयात होने का अनुमान है। यह दुनिया भर से भारत में होने वाले एलएनजी आयात का 65 प्रतिशत और कतर से दुनिया भर में होने वाले निर्यात का 15 प्रतिशत है। 2014 में भारत की गैस कंपनी पेट्रोनेट ने कतर के साथ 25 वर्ष के लिए करार किया था, जिसके तहत आपूर्ति 2010 में आरंभ हुई। 2014 में भारत ने रास गैस, कतर से 80 लाख टन एलएनजी भी खरीदी। इससे भारत कतर के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में शामिल हो जाता है। एलएनजी के अलावा कतर से भारत एथिलीन, प्रोपाइलीन, अमोनिया, यूरिया और पॉलिएथिलीन का आयात भी करता है। संबंध खत्म करने के निर्णय की घोषणा होने के फौरन बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बयान दिया कि यह जीसीसी का आंतरिक मामला है और भारत को जीसीसी के आंतरिक मामलों में दखल देने की आवश्यकता नहीं है। किंतु भारत कतर में मौजूद कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। इसलिए ऐसी कोई संभावना नहीं है कि गैस आपूर्ति और प्रवासी भारतीयों के मामले में भारत को इस निर्णय का कोई परिणाम फौरन झेलना पड़ेगा। इसके अलावा जीसीसी के अन्य सदस्य देशों से भी भारत के दोस्ताना संबंध हैं।
निष्कर्ष
यद्यपि इस संकट को कतर के साथ जीसीसी के पुराने विवाद का नतीजा माना जा सकता है, लेकिन कतर के चुप बैठने की कोई संभावना नहीं है। कतर के खिलाफ लगाए गए राजनीतिक आरोप नए नहीं हैं। चूंकि जीसीसी के सदस्य देशों को 2014 में भी इनके वांछित नतीजे नहीं मिले थे, इसलिए इस बार भी इनके कारगर रहने की संभावना बहुत कम है। इसके अलावा प्रतिबंध के जवाब में कतर के रुख और प्रतिक्रिया से लगता है कि वह दबाव में बात मानने के बजाय बदलाव के लिए तैयार है। इतना ही नहीं, सऊदी अरब में नेतृत्व परिवर्तन होने और 31 वर्ष के मोहम्मद बिन सलमान को अगला युवराज बनाए जाने के बाद दोस्ती की संभावना और भी कम है।
किंतु इस संकट से जीसीसी के भीतर दरार पड़ सकती है क्योंकि सऊदी अरब की कार्रवाई के बावजूद कतर अभी तक बातचीत को तैयार नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, इससे संस्था के तौर पर जीसीसी कमजोर भी हो सकती है। इसका अर्थ है कि ईरान विरोधी मोर्चा कमजोर हो जाएगा, जो अमेरिका और सऊदी अरब दोनों के लिए नुकसानदेह रहेगा। इससे ईरान और तुर्की को भी फारस की खाड़ी में दाखिल होने का मौका मिल जाएगा, जिसका दोनों ने अभी तक प्रतिरोध किया है और जो अब स्पष्ट दिख रहा है।
प्रतिबंध का आर्थिक प्रभाव फीफा की तैयारियों पर पड़ सकता है क्योंकि नकदी की कमी हो जाएगी। किंतु क्षेत्र में मित्र देशों के साथ कतर के रिश्तों को देखते हुए इस संकट का समाधान ढूंढने या इसके अनुकूल खुद को ढालने में उसे बहुत समय नहीं लगना चाहिए। कुछ समय के लिए इसका प्रभाव कतर के नेशनल विजन पर भी पड़ेगा। किंतु यदि संकट लंबा खिंचता है तो कतर के दीर्घावधि गैस करार समाप्त होने के बाद संकट के प्रभाव स्पष्ट होने लगेंगे।
संदर्भ
1. चीन, 2. उत्तर अमेरिका, 3. अमेरिका, 4. जर्मनी, 5. जापान, 6. ब्रिटेन, 7. इटली, 8. सऊदी अरब
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