पीस टीवी प्रसारण पर शिकंजा
जाकिर नाईक, मुंबई आधारित एक टेलीविजन उद्घोषक है। जाकिर नाइक का नाम हाल ही में सुर्खियों में रहा है, क्योंकि 2 जुलाई, 2016 को ढ़ाका के होले आर्टिसन बेकरी पर हुए आतंकी हमले में शामिल बांग्लादेशी युवाओं में से एक ने यह कबूल किया कि वह जाकिर नाइक के कट्टरपंथी भाषणों और व्याख्यान से प्रभावित था। उसके कुछ दिनों बाद ही 7 जुलाई को ढ़ाका के समीप ईद की नमाज के दौरान हमले की कोशिश के सिलसिले में पकड़े गए दूसरे युवक ने भी इसी तरह का बयान दिया। नाइक का नाम भारत में भी मुस्लिम युवाओं को कट्टर बनाने के मामले में सामने आया है।
जाहिर है, इसके बाद उसपर कार्रवाई की मांग के बीच नाइक, गहन मीडिया जांच के दायरे में आ गया था। जहां, बांग्लादेशी अधिकारी उसके पीस टीवी प्रसारण पर शिकंजा कसने की जल्दबाजी में थे, वहीं भारतीय प्रतिक्रिया में उसकी गतिविधियों, वैश्विक संपर्क, में उसके भाषणों की गहराई से परीक्षण और उसके अपने स्रोतों की विस्तृत जांच शुरू करने का और अधिक सतर्क मार्ग चुना गया। अखबार की रिपोटों (टाइम्स आफ इंडिया, 11 अगस्त, 2016) के मुताबिक नाइक और उसके परिवार पर कुछ खाड़ी देशों, विशेष कर सऊदी अरब से पिछले तीन वर्षों के दौरान साठ करोड़ रुपए से अधिक प्राप्त करने का आरोप लगाया गया है। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि फ्रांस में हाल ही में हुए आतंकी हमलों के बाद वहां के अधिकारियों ने अपनी जांच में उजागर किया कि वहां के सलाफी प्रेरित मस्जिदों/इस्लामी संस्थाओं के लिए सऊदी अरब से भारी मात्रा में धन भेजा गया है जिससे उपदेश के नाम पर कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, (टाइम्स आफ इंडिया, 10 अगस्त, 2016), अपनी जांच के निष्कर्ष पर पहुंचकर मुंबई पुलिस ने पाया कि प्रारंभिक निष्कर्षों के तहत जाकिर नाइक और उसके इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन को गैर कानूनी गतिविधियों और उसके नफरत पैदा करने वाले भाषणों के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। उसका उपदेश महिला विरोधी, शिया विरोधी और अहमदी विरोधी निर्देशों पर आधारित है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जिन्हें 71 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपी गई है, ने कहा है कि रिपोर्ट में कई नए तथ्य निकलकर प्रकाश में आए हैं और सरकार गृह मंत्रालय और कानून विभाग के साथ विचार-विमर्श करके ‘हर संभव कड़ी कार्रवाई’ करेगी।
तो जाकिर नाइक है कौन? अक्टूबर 1965 में मुंबई में जन्मे, जाकिर नाइक ने मुंबई विश्वविद्यालय से चिकित्सा की डिग्री (एमबीबीएस) प्राप्त की। वह एक दक्षिण अफ्रीकी इस्लामी उपदेशक अहमद दीदत के प्रभाव में आ गया और दावा1 के क्षेत्र में कार्य करना शुरू कर दिया। आगे चलकर 1991 में मुंबई में उसने ‘इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ)’ नाम से अपनी संस्था बनाई। इसका उपयोग उसने इस्लामी प्रचार करने और न केवल एशिया बल्कि यूरोप, मध्य पूर्व और ब्रिटेन के विशाल मुस्लिम आबादी को कट्टरता सीखाने के दोहरे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किया।
आतंकवादियों के हाव भाव से पता लगा है कि वे नाइक के इस्लामी उपदेश जिसमें वह बेहद रूढ़िवादी और मानसिकता को अत्यधिक संकीर्ण करने वाले अपने कट्टरपंथी ब्रांड वहाबी/सलाफी को बढ़ावा देता है, से प्रोत्साहित हैं। उनका सुन्नी इस्लाम जो विश्वास की कथित परंपराओं की वापसी की वकालत करता है, के भीतर एक अति रूढ़िवादी आंदोलन है। नाइक का दावा है कि वह अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी मुस्लिम की तरह ही इस्लामी मानसिकता में ढ़ाल सकता है। यह धर्मसंघ किसी प्रकार की आत्म-आलोचना, पारदर्शिता के लिए खुला नहीं है और किसी भी अन्य सभ्यता या संस्कृति में प्रस्तुतीकरण को स्वीकार नहीं करता है। एक पथिक विचारधारा के तौर पर सलाफी-वहाबी जिहादवाद एक शक्तिशाली सामाजिक आंदोलन के रूप में विकसित हुआ है जिसमें विचारों, नेताओं, दुनिया भर में समर्थकों, नियोक्ताओं और प्रचारकों जो वैचारिक और धार्मिक जीविका के साथ सदस्य उपलब्ध कराते हैं आदि की लंबी फेहरिस्त है। नाइक अंतिम दो श्रेणियों में आता है और वह तालिबान और अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों की विचारधारा से मेल खाने वाली वहाबी की इस कट्टर विचारधारा का समर्थक है। आईएसआईएस/आईएसआईएल प्रतिस्पर्धा में और प्रधानता की चाहत में इन विचारों के पहले के स्वरूपों से और अधिक कट्टर संस्करण है। इसके अलावा अपनी बढ़ती लोकप्रियता और जाहिर तौर पर बढ़ रही वित्तीय सहायता से प्रोत्साहित होकर जाकिर नाइक और उसके आईआरएफ ने 2006 में दुबई से निःशुल्क एयर सैटेलाइट के जरिये दुनिया भर में 24x7 प्रसारण के लिए विवादास्पद ‘पीस टीवी’ की शुरुआत की।
आरंभ में प्रसारण अंग्रेजी में होता था लेकिन आगे चलकर 2009 में पीस टीवी उर्दू और फिर 2011 में पीस टीवी बांग्ला की शुरुआत हुई।2 भाषा का चुनाव दक्षिण एशिया के सर्वाधिक मुस्लिमों (लगभग 550 मिलियन) तक पहुंचने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया। ये प्रसारण दुनिया के लगभग 200 देशों में फैला है और आईआरएफ समर्थक इसके दर्शकों की संख्या 100 मिलियन तक होने का दावा करते हैं। इसके अलावा फेसबुक पर नाइक के 14 मिलियन फालोअर हैं। इसके प्रसारण की विवादास्पद प्रकृति और उत्तेजक सामग्री को देखते हुए, पीस टीवी ब्रिटेन में विस्तृत जांच के दायरे में आया था। अमेरिका में इसे केवल सीमित पहुंच प्रदान की गई थी। ढाका में पिछले महीने हुए आतंकवादी हमले और भारत में मौजूदा जांच के मद्देनजर भारत और बांग्लादेश में पीसी टीवी के प्रसारण को प्रतिबंधित/निलंबित कर दिया गया है।
जाकिर नाइक के अनुयायियों में अफगान मूल के अमेरिकी नजीबुल्लाह जाजी जिसे कथित तौर पर न्यूयॉर्क सबवे को बम से उड़ाने की साजिश रचने के आरोप में 2009 में गिरफ्तार किया गया था, के तरह आत्मघाती हमलावर; काफिल अहमद जिसने 2007 में ग्लासगो हवाई अड्डे को उड़ाया था; लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा एक साजिशकर्ता राहिल शेख, जिसे 2006 में मुंबई में ट्रेन बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार किया गया; औरंगाबाद हथियार बरामदगी मामले में मास्टरमाइंड रहे फिरोज देशमुख; 2016 के ढाका बेकरी कांड का संदिग्ध रोहन इम्तियाज; हाल ही में (29 जून 2016 को) हैदराबाद मॉड्यूल से गिरफ्तार इब्राहिम याजदानी;3 और उसी माडल्यूल का एक अन्य सदस्य और 12 जुलाई, 2016 को गिरफ्तार उसका स्वघोषित प्रमुख नैमाथुल्ला हुसैनी, आदि शामिल हैं। उसी प्रकार सीरिया पहुंचने के लिए भारत से चोरी छिपे भागे मुंबई (मालवानी) में आईएस माड्यूल से संबंधित अयाज सुल्तान भी जाकिर नाइक के नफरत वाले भाषणों से कट्टर बना था। 20 जनवरी, 2016 को आईआरएफ के एक सदस्य को केरल में हाल ही में लापता हुए 21 संदिग्धों में से एक को कथित तौर पर कट्टर बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। देसी जिहादी नाइक के उग्र भाषणों से बहुत ज्यादा प्रेरित हैं। वे इस्लाम को दुनिया के सबसे बड़े धर्म के रूप में प्रस्तुत करते हैं। जिहादियों का लक्ष्य आतंक का प्रसार और धर्मनिरपेक्षता का पतन करना है। नाइक के भाषणों से उन्हें इस अव्यक्त उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। जो लोग इस्लाम को मानने वाले नहीं हैं उनके विरुद्ध नाइक ने बहुत व्यवस्थित तरीके से दुनिया भर के मुस्लिमों में नफरत और पूर्वाग्रहों को बढ़ावा दिया है।
इससे पहले, पारंपरिक मौलवियों ने केवल अनपढ़ और कमजोर वर्ग को ही प्रभावित किया। आज, नाइक जैसे प्रचारक शिक्षितों संपन्न मुस्लिमों को भी प्रभावित कर रहे हैं। कुरान, बाइबिल, यहूदी वसीयतनामा और गीता से उदाहरण देने की उसकी अद्भुत क्षमता, उसके संदेश पर विश्वास करने का भ्रमजाल बुनते हैं। नाइक ‘‘अन्य धर्म की तुलना में इस्लाम की प्रधानता स्थापित करने में’’ सफल रहा है। नाइक एक प्रतिकृति स्मृति से युक्त उपदेशक है। उसके भाषण ने मुस्लिम दुनिया को भी नाराज कर दिया है। इस्लाम की उसकी व्याख्या में शिया और इस्लाम के अहमदी संप्रदायों का उल्लेख बहुत झूंझलाहट उत्पन्न करने वाला होता है। उसके आलोचक मुसलमानों की बरेलवी संप्रदाय में भी मौजूद हैं जिन्हें नाइक के ‘इस्लाम के कड़े दृष्टि’ में विरोध झेलना पड़ता है। भारत की धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी इस्लामी केंद्र दारुल उलूम देवबंद ने इस मौलवी के खिलाफ एक औपचारिक फतवा जारी करते हुए कहा था कि वह एक ‘‘गैर मुकल्लीद’’ है या उसकी जानकारी सतही है। शिक्षित मुसलमान भी उसका विरोध करते हैं। उनका मत है कि नाइक के विचारों में एक इस्लामी उपद्रवी गुट का प्रतिनिधित्व होता है जिसे वहाबी कहते हैं। यह विचार सऊदी अरब से फैला है।
पिछले कुछ वर्षों में कथित तौर पर सउदी पेट्रो डॉलर का इस्तेमाल जाकिर नाइक जैसे प्रचारकों को पैदा करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए किया गया है। शिक्षित मुस्लिम वहाबी4 को मुस्लिम समाज में एक कैंसर की तरह मानते हैं। यह विचार काफी जोर-शोर से अखिल भारतीय उलेमा काउंसिल के महासचिव ने रखा है, जो नाइक न तो एक ‘‘आलिम (विद्वान)’’ और न ही एक मुफ्ती (जो फतवा जारी करता है) मानते हैं। मौलाना महमूद दरियाबादी का मत है कि नाइक इस्लाम को मानने के लिए स्वतंत्र हो सकता है लेकिन उसे सार्वजनिक मंच5 से फतवा जारी करने से बचना चाहिए।
प्रख्यात समाजशास्त्री इम्तियाज अहमद का विचार है कि नाइक कड़े सालाफी इस्लाम का सार्वजनिक चेहरा बन चुका है जो कि भारत में माने जाने वाले समावेशी, सहिष्णु इस्लाम का दुश्मन है। 2015 में, नाइक के वहाबी प्रचार सावधान होकर उसके खिलाफ सुन्नी और शिया संगठनों ने एकजुट होकर नई दिल्ली में सूफी ‘‘द वॉयस ऑफ इंडिया’’ (सुवोई-सदा-ए-सुफिया-ए-हिंद) नाम से एक समूह का गठन किया। एक सुन्नी सूफी सैयद बाबर ने विभिन्न धर्मों के बारे में नाइक की अपमानजनक टिप्पणी जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता था, के खिलाफ दो न्यायिक शिकायत दर्ज की। उसने इस उपदेशक का संबंध जमात-उद-दावा (जेयूडी) जो कि लश्कर-ए-तैयबा के लिए धन इकट्ठा करता है, से पर्याप्त संबंध होने का आरोप लगाया और मुस्लिम जनता के बीच एकांतिकता फैलाने के लिए उसकी निंदा की। एक सुन्नी मुस्लिम संगठन रजा अकादमी के सदस्यों ने जाकिर नाइक के कार्यक्रमों रोक लगाने की मांग की। दारुल उलूम हनीफा रिजवीया कोलाबा के मौलाना अशरफ रजा ने भी नाइक के खिलाफ फतवा जारी किया था। इससे आगे वह नाइक के उस धन स्रोत के बारे में जानना चाहते थे, जिसकी मदद से वह वैश्विक मंच से मुस्लिमों को कट्टर बनाने की मुहिम चलाता है।
खतरनाक भाषणों की छानबीन
मुंबई पुलिस के साथ-साथ भारतीय खुफिया एजेंसियां नाइक द्वारा दिए गए भाषणों की छानबीन कर रही हैं। खतरनाक गुट (आईएसआईएस) का बिना महिमा मंडन किए संबंधित अधिकारियों और नागरिक समाज को इस बात से सावधान हो जाना चाहिए कि आईएसआईएस के रडार पर भारत की स्थिति बहुत संवेदनशील है। नाइक द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानः नाइक ने सुनियोजित रूप से इनका इस्तेमाल ध्यान आकृष्ट करने और उसके माध्यम से धन प्राप्त करने के लिए किया है: -
मुस्लिम युवाओं की अकट्टरता पर नाइक की चुप्पी गगनभेदी है। इस्लाम में महिलाओं के लिए समानता और अन्य धर्मों के लिए सम्मान का मुद्दा भी उससे अछूता है। नाइक ने इस्लाम की ओर से अन्य धर्मों को सम्मान दिए जाने के बारे में लोगों को परिचित कराने की जरूरत पर कभी भी नहीं सोचा। यह आरोप लगाया जाता है कि आईआरएफ ने जो धन प्राप्त किया है उसे उसने राजनीतिक गतिविधियों और युवाओं को आतंकवाद के कृत्यों के प्रति लुभाने के लिए खर्च किया है।
नाइक और उसके इस्लामी यात्राएं
पिछले 20 वर्षों में, नाइक ने भारत में असंख्य आख्यानों के अलावा अमेरिका, कनाडा, यूरोप, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, कतर, बहरीन, ओमान, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना, नाइजीरिया, घाना और अन्य अफ्रीकी देशों के मेजबानों, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और वेस्टइंडीज में 2000 से 4000 सार्वजनिक वार्ता (अलहमदुलिया) कर चुका है।7
2010 में, मालदीव के इस्लामी मंत्रालय ने यह दावा किया कि इस द्वीप में डा. जाकिर नाइक का सार्वजनिक भाषण अब तक का सबसे बड़ा आयोजन था। इस्लाम पर नाइक की कार्यों की सराहना करते हुए दो पवित्र मस्जिदों के अभिरक्षक, सऊदी अरब राजशाही के राजा सलमान ने 2015 की बहुत ही प्रतिष्ठित ‘रजा फैसल अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार’ से उसे सम्मानित किया। पुरस्कार राशि तुरंत पीस टीवी नेटवर्क के वक्फ को दान कर दिया गया। इसी तरह, मलेशिया और दुबई की सरकारों ने भी उसे इस्लाम की सेवाओं के लिए सम्मानित किया है।
सम्मान वर्ष | सम्मान या पुरस्कार का नाम | सम्मानित करने वाल संगठन या सरकार |
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2013 | स्वैच्छिक कार्यों के लिए शारजाह पुरस्कार 2013[114] | सुल्तान बिन मोहम्मद अल-कासिमी, शारजाह के शाही युवराज और उप शासक |
2014 | गाम्बिया गणराज्य के राष्ट्रीय आदेश के कमांडर का प्रतीक चिन्ह[115] | याहया जमेश गांबिया के राष्ट्रपति |
2014 | '‘डाक्टर आफ ह्यूमैन लेटर्स’ (आनोरिस कासा) [116] | गांबिया विश्वविद्यालय |
17वीं दुबई अंतरराष्ट्रीय पवित्र कुरान पुरस्कार ने जुलाई 2013 में, नाइक को वर्ष के इस्लामी व्यक्तित्व के रूप में नामित करने की घोषणा की। 5 नवंबर, 2013 को इस्लामिक डेवलपमेंट मलेशिया विभाग ने नाइक को माल हिजरा डिस्टिंगुइश्ड पर्सनालिटी अवार्ड से सम्मानित किया।
भारत में भी नाइक, पहले सकारात्मक संदर्भ के लिए उभरा था। 31 दिसंबर, 2010 को प्रकाशित संडे एक्सप्रेस में उसे 100 सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची में 89वां स्थान दिया गया था। लोकप्रिय राष्ट्रीय दैनिक द इंडियन एक्सप्रेस, के प्रभावी मीडिया टिप्पणीकार ने नाइक को ‘‘भारत में शायद सबसे प्रभावशाली सलाफी विचारक’’ के रूप में बताया था। 2009 में नाइक को सम्मानजनक उल्लेख के तहत द 500 मास्ट इनफ्लुएंशिएल मुस्लिम्स पुस्तक में भी सूचीबद्ध किया गया था।
ब्रिटेन, जहां काफी मात्रा में दक्षिण एशियाई मुस्लिम आबादी मौजूद है, ने चौकसी बरतते हुए 2010 में ब्रिटेन में नाइक के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। उसके बाद जब वह इस्लामी पुनरुद्धार कार्यक्रम के लिए कनाडा जाना चाहता था, तब कनाडा ने अपने यहां उसके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। बांग्लादेश भी इस सूची में शामिल हो गया जब उसने नाइक (और उसकी पीस टीवी) को उसके भड़काऊ भाषण के चलते जिससे हाल का ढ़ाका हमला प्रेरित था, अपने यहां प्रवेश निषिद्ध कर दिया।
जब ढाका हमले के बाद नाइक पर दबाव बढने लगा तब वह दक्षिण अफ्रीका में था। अपने ऊपर कानूनी कार्रवाई किए जाने की आशंका में वह भारत लौटने के अपने पूर्व कार्यक्रम को बदलकर सऊदी अरब चला गया। हालांकि, नाइक के मीडिया सलाहकार ने उसका पक्ष रखते हुए कहा कि विदेश में रुकने का उनका निर्णय पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के तहत लिया गया है न कि आसन्न गिरफ्तारी के भय से। अगर नाइक स्पष्ट और आश्वस्त है कि उसके भाषण और एजेंडे कट्टरपंथी नहीं हैं, तो उसे भारत आकर परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।
जांच का आदेश
इस बीच, भारत सरकार ने नाइक के आईआरएफ के वित्त पोषण की जांच का आदेश दिया। रिपोर्ट के अनुसार, विधि मंत्रालय इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) और उसके एजुकेशनल ट्रस्ट पर एक संभावित प्रतिबंध की संभावनाओं की जांच कर रही थी। यदि प्रतिबंध लगता है तो, यहां तक कि आईआरएफ को भी गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत ‘गैर कानूनी’ घोषित किया जा सकता है। खुफिया एजेंसियों और महाराष्ट्र सरकार द्वारा जांच का दूसरा पहलू यह है कि क्या केरल से लापता व्यक्तियों के जबरन रूपांतरण में आईआरएफ और इससे संबंधित संगठन की कोई संलिप्तता रही है।8
इस्लामी प्रचार करने और कट्टरता फैलाने के मिशन में लगा जाकिर नाइक कोई अकेला भेड़िया नहीं है। उसकी सहायता के लिए खाड़ी देशों से उसके अनुयायी धन सहित विभिन्न प्रकार की सहायता के लिए विशेष समर्थन का दावा करते हैं। बाकी काम जाकिर नाइक के नफरत फैलाने वाले भाषण कर देते हैं। उसके गुर्गे भर्ती किए गए लोगों के बीच बढ़चढ़ कर वीडियो साझा करते हैं, जिससे कि कट्टरता की प्रक्रिया प्रारंभिक चरण में ही शुरू हो जाए। वह इस्लाम की गलत व्याख्या कर ‘गौरवशाली इस्लामी कट्टरता’ की लहर पर सवारी कर रहा है। आईआरएफ की वेबसाइट और मझगांव में नाइक की इस्लामी इंटरनेशनल स्कूल के सावधानीपूर्वक निरीक्षण से स्पष्ट रूप से पता चल जाएगा कि किस प्रकार से वह जिहादवाद के बीज बो रहा है और भारत तथा विश्व भर में कट्टरता को बढ़ावा दे रहा है। यहां समृद्ध पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के मस्तिष्क में जिहादी भावना भरी जा रही है।
मुस्लिम युवाओं पर उसका प्रभाव दिनोंदिन चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। हाल की रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि विदेशों से मिलने वाले धन से नाइक और उसके आईआरएफ ने 800 लोगों को धन का लालच देकर अवैध रूप से उनका धर्म परिवर्तन करा दिया। आईआरएफ का एक प्रतिनिधि अधिकारी, कल्याण से एक कार्यकर्ता की मदद से कथित तौर पर इस तरह के रूपांतरण और शादियां करवाने में शामिल था।
नाइक के चरम इस्लामी विचारधारा और उसके रूढ़िवादी विचार उसे बहुत द्रोही और अनम्य विचारक बनाते हैं। द लाजिकल इंडियन के संपादक और स्तंभकार सुधनवा डी. शेट्टी ने हफिंगटन पोस्ट में ‘‘व्हाय डैंजरस आइडियोलाग्स लाइक जाकिर नाइक डेजर्व आवर लाउडेस्ट कंडेमनेशन’’ शीर्षक से एक आलेख लिखा जिसमें वह लिखती हैं कि जाकिर नाइक एक गुण्डे की तरह व्यवहार करते हुए गलत जानकारी और सांप्रदायिकता का प्रसार करता है और अंध धार्मिकता में आकर सभी गलत जानकारियों को प्रस्तुत करता है।
वह लोगों को बहकाने में माहिर है और सिलसिलेवार तरीके से झूठ बोलता है। नाइक द्वारा अपने भाषणों में धार्मिक ग्रंथों से चीजों को संदर्भित करने और सुनने वालों लोगों के अपने अल्पज्ञान के कारण उन लोगों के बीच नाइक की लोकप्रियता है।... वह कुरान और यहां तक कि अन्य धर्म ग्रंथों में बताई गई बातों की जानकारी के लिए जाना जाता है, अक्सर वह अपनी यादाश्त से पवित्र आयतों का उच्चारण करता है। लेकिन तर्कसंगत बातें करने के लिए केवल धार्मिक ज्ञान से काम नहीं चलता है। इसके लिए निष्पक्ष सबूत और बहुत-से तर्क की आवश्यकता होती है। नाइक के बारे में कोई भी तटस्थ पर्यवेक्षक आसानी से निष्कर्ष निकाल सकता है कि नाइक में इन दोनों चीजों की कमी है।’खुफिया एजेंसियों ने हमेशा ही उसके बारे में सावधान किया लेकिन अफसोसजनक बात है कि सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
नाइक के छुपे एजेंडे की मुखालफत करने के लिए तथा उसके जैसे प्रचारकों के विरोध के लिए मुस्लिम समुदाय की ओर से परस्पर और संचयी कार्रवाई किए जाने की अभूतपूर्व जरूरत है। सबसे विकट चुनौती यह है कि अब कट्टरता पर अशिक्षित और आर्थिक रूप से वंचितों का एकाधिकार नहीं रह गया है। अधिक से अधिक शिक्षित और संपन्न युवा जिहादी संगठन के प्रति अपनी निष्ठा दिखा रहे हैं और आईएसआईएस के आकर्षक प्रलोभन के सामने घुटने टेक रहे हैं। नाइक के सिद्धांतवादी उद्घोषणा विद्वेष और इस्लामोफोबिया की अवधारणाओं को आधार देती है। चूंकि यह लड़ाई एक उपदेशक के खिलाफ ही नहीं बल्कि हिंसा और फूट से युक्त एक विचारधारा के भी खिलाफ है, अतः आगे जाकिर नाइक जैसे प्रचारकों से निपटने और उन्हें रोकने की जबरदस्त चुनौतियां हैं। फस्र्टपोस्ट में, संवाददाता श्रीमाय तालुकदार ने लिखा है, ‘‘बहलाने वाली बातें, इस टेलीजिन उद्घोषक की प्रतिगामी और समस्या उत्पन्न करने वाली शिक्षा, अच्छी तरह से विच्छेदित और घिसी पिटी चर्चा, हमारे अस्तित्व के बहुलतावादी सांस्कृतिक घटक पर चोट करती है और निर्जन तथा आधुनिक दुनिया के साथ असंगत इस्लाम के संस्करण को बढ़ावा देती है’’।‘‘जाकिर नाइक न तो एक नई घटना है और न ही यह इस्लाम के लिए कुछ नया है। मेरा यह भी मानना नहीं है कि भविष्य में भारत या विश्व के दूसरे हिस्सों में जाकिर नाइक जैसी महत्वाकांक्षा दुबारा उत्पन्न नहीं होगी। सभ्यता के अतीत ने कट्टर धार्मिक विचारों के फैलाव के चलते लगातार घोर हिंसा से भरे संघर्ष और असहिष्णुता के लंबे दौर देखे हैं।
लेकिन इन सबके बावजूद, चूंकि हम धार्मिक कट्टरता के अभिशाप से प्रभावी और व्यापक ढ़ंग से जूझ रहे हैं अतः एक समाज और एक राष्ट्र के तौर पर यह अब भी हमारे अस्तित्व पर संकट है। यह केवल बांग्लादेश या भारत की ही बात नहीं है। कट्टरता की बुराई पहले ही बहुत ज्यादा फैल चुकी है। साइबर संपर्क, सोशल मीडिया के बढ़ते दखल, धन की आसान उपलब्धता, पल भर में वैश्विक संपर्क इस बुराई के प्रसार में उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहे हैं। आय दिन हो रही आतंकी घटनाएं उसके वैश्विक प्रसार के गवाह बन रहे हैं।
चुनौती
इस चुनौती के विरुद्ध दुनिया भर की सरकारों और समाज को एकजुट होना चाहिए और अब एक साथ इस संकट से निपटने के लिए आगे बढ़ें। आतंक के खिलाफ वैश्विक तथाकथित युद्ध से काम नहीं चलने वाला है। ‘कट्टरता के खिलाफ वैश्विक युद्ध’ के इस नए प्रयास में एक और विफलता हम बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। हमारा प्रयास मुद्दों, व्यक्त्यिों, संस्थाओं, नेटवर्क, तरीके और साधन, लोगों के आंदोलन, विचारों, धन, स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं इत्यादि की पहचान आदि से शुरू होकर हमारा ध्यान समस्या के सभी पहलुओं पर होना चाहिए।
बांग्लादेश में सरकार, सामाजिक व शैक्षणिक संस्थाओं, व्यक्तियों और खासकर धार्मिक गुरुओं, लेखकों, विद्वानों और उपदेशकों द्वारा एक सहकारी उद्यम के रूप में कुशलतापूर्वक चलाए जा रहे कट्टरता के विरुद्ध सुधार कार्यक्रम की तर्ज पर ही प्रभावी सुधार कार्यक्रम विशेष तौर पर तैयार किए जाने की जरूरत है। निस्संदेह मीडिया और राजनीतिक दलों को कट्टरता को रोकने के प्रयास को विकसित करने और उसे चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।’’
संदर्भ
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