टूटा सामरिक गतिरोध का सिलसिला
General NC Vij, PVSM, UYSM, AVSM

सबसे पहले मोदी सरकार को इस बात के लिए बधाई दी जानी चाहिए कि उसने पाकिस्तान को एकदम सटीक तथा दोटूक संदेश दिया है कि ‘उसकी सरकार पर नियंत्रण रखने वाले तत्व’ अपने पालतू ‘जिहादियों’ के जरिये आतंकवाद की जो कार्रवाई कराते हैं, उन्हें अब किसी असहाय की तरह चुपचाप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। करीब एक दशक तक दुविधा में रहने के बाद, जब राजनीतिक ‘इच्छाशक्ति’ बेहद पेशेवर सैन्य संस्था की मौजूदगी के बावजूद ‘टकराव बढ़ने’ के बेजा डर से दबी हुई थी, वर्तमान सरकार ने जब सीधा जवाब देने का फैसला किया तो आखिरकार यह संदेश पहुंच ही गया। वास्तव में सबसे ज्यादा सराहना की बात यह है कि इस जवाब की घरेलू, कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकदम सटीक तैयारी की गई थी।

भारत के सैन्य बलों ने नियंत्रण रेखा पर बेहद कुशल तरीके से कार्रवाई कर एक बार फिर साबित कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में उनकी पेशेवर दक्षता लाजवाब है। इस साहसिक कार्रवाई से यह भी पता चलता है कि पाकिस्तान जैसे ढीठ और शत्रुता भरे पड़ोसी के जन्मजात वैरभाव के जवाब में शांति कायम करने के भारत के अनवरत चलने वाले प्रयासों के साथ दूसरे रास्ते भी अपनाए जा सकते हैं।

कश्मीर घाटी में करीब तीन महीने से विवाद हो रहा है। हालांकि सुरक्षा बलों की लगातार कोशिशों के बाद स्थिति कुछ सुधरी है; लेकिन जैसा कि पता चला है, अलगाववादी तत्वों द्वारा सीधे-सादे कश्मीरी युवाओं को लगातार भड़काए जाने तथा लुभाए जाने के कारण शांति और स्थिरता अभी तक कायम नहीं हो पाई है। इससे पहले वर्तमान अशांति का छोटा मगर इतना ही खराब रूप घाटी में 2010 में भी देखने को मिला था। बहरहाल इस समय कश्मीर घाटी के अलगाववादी पाकिस्तानी दूतावास के साथ खुलेआम गलबहियां करते दिख रहे हैं, कुछ इस्लामिक देशों के आगे गुहार लगा रहे हैं और पाकिस्तान में मौजूद तथा वहाबियों से रकम पाने वाले कट्टरपंथी गुटों की बात मानते आ रहे हैं। भारत विरोधी गतिविधियों से फायदा हासिल करने वाले हुर्रियत, वहाबी गुटों, विद्रोही ‘बुद्धिजीवियों’ तथा ‘मीडिया सरगनाओं’ की इस राष्ट्रविरोधी जमात ने भारतीय राष्ट्रीयता को भीतर से ही खोखला और खत्म करने का ठेका ले लिया है। इसी समय और इस जमात के घृणा भरे दुष्प्रचार के बिल्कुल साथ-साथ पाकिस्तान की जमीन से एक के बाद एक आतंकी हमले होते जा रहे हैं, जिनका निशाना भारत-पाक सीमा, नियंत्रण रेखा और भारत की जमीन पर भी मौजूद संवेदनशील इलाके हैं। कूटनीतिक स्तर पर गलत सूचना देने का अभियान भी जोड़ लिया जाए तो ये सब ऐसी स्थिति पैदा करने की कोशिश की ओर इशारा करते हैं, जिसमें भारत पर भारी दबाव हो जाएगा और वह समझौता करने के लिए मजबूर हो जाएगा।

राष्ट्र के लिए गंभीर खतरों को भारत का जवाब अभी तक संयम भरा रहा है। अभी तक वह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी गुटों की ‘कायराना’ हरकतों की निंदा करता रहा है और भविष्य में ऐसे हमले ‘बर्दाश्त नहीं करने’ की चेतावनियां देता रहा है और में बचाव के उपायों में मुस्तैदी दिखाता रहा है। लेकिन कट्टर आंतकी गुटों और उन्हें आश्रय देने वाले यानी पाकिस्तानी सरकार ने इस संयम केा गंभीरता से नहीं लिया है। पाकिस्तान सीधे आतंकी हमले भले न करे, लेकिन उनमें मदद तो करता ही है और उसकी इसी नीति पर अंकुश लगाने के भारत के कूटनीतिक प्रयासों का भी कोई नतीजा नहीं हुआ। हां, उन प्रयासों के जवाब में वैश्विक ठेकेदार तब तक जुमलेबाजी करते रहे, जब तक खतरा सीधे उनके घर में नहीं आ गया। यूं भी कूटनीति तब तक कमजोर ही है, जब तक उसे सैन्य दृढ़ता की ताकत न मिले, खास तौर पर वहां, जहां ताकत की भाषा ही समझी जाती है।

दूसरे खेमे के सामने भी कुछ विवशता है। सत्ता अपने हाथ में रखने के चक्कर में पिछले कई दशकों से अपनी जनता को झूठी पट्टी पढ़ाने और उनके भीतर भारत-विरोधी भावना भरने के बाद अब पाकिस्तान के हुक्मरानों के पास ‘कश्मीर के अपने बेतुके सपने’ से पीछा छुड़ाने का कोई रास्ता नहीं बचा है, इसीलिए उसे ही पाकिस्तान की राष्ट्रीयता की बुनियाद बना दिया गया है। 1947 और 1965 में जंग के जरिये अपना मकसद पूरा करने में नाकाम रहने के बाद उन्होंने आतंकी गुटों को पालना शुरू कर दिया, जिन्होंने बाद में यह मान लिया कि पाकिस्तान सरकार और सही मायनों में सेना से भारत पर आतंकी हमले करने के साधन और तरीके हासिल करना उनका अधिकार है। इस बीच सभ्य समाज लगातार फैलते इस उत्पात के खतरों को भांप गया और उसने ‘आतंकी गुटों’, ‘अकेले हमला करने वालों (लोन वुल्फ)’ तथा ‘परमाणु जिहाद’ के प्रति आशंका जतानी शुरू कर दी है, जो पाकिस्तान की धरती से उस पर मार कर सकते हैं। लेकिन पगलाए हुए ‘अलोकतांत्रिक तत्वों’ को केवल उपदेश देकर सभ्यता के नियमों का उल्लंघन करने से रोकना बहुत मुश्किल है।

अभी तक पाकिस्तान द्वारा तैयार किए गए विस्तृत आतंकी ढांचे के खिलाफ किसी न किसी प्रकार की सैन्य प्रतिक्रिया का विकल्प अपनाने की भारत की बात को पाकिस्तान की परमाणु हमले की ‘धमकी’ के नाम पर दबा दिया जाता था। अस्थिरता को बढ़ावा नहीं देने के मकसद से भारत ने ‘सामरिक संयम’ बरता और पाकिस्तान के द्वेषपूर्ण अभियान का जवाब देने के कई कूटनीतिक तथा नरमी भरे तरीके अपनाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए मामला साफ हो गया थाः भारत की राष्ट्रीय अखंडता को बाहर और भीतर से नुकसान पहुंचाने की पाकिस्तान की सुनियोजित, चरणबद्ध और लगातार बढ़ने वाली योजना पूरी तरह काम करती रहेगी, लेकिन भारत सैन्य शक्ति के वैध इस्तेमाल के जरिये जवाब देने से भी बचता रहेगा। भारत का सामरिक गतिरोध एकदम अडिग था, वास्तव में 2008 से ही ऐसा था, जब मुंबई हमलों के बाद भारत ने परोक्ष प्रतिक्रिया देने का फैसला किया था। यह साफ होता जा रहा था कि कूटनीतिक प्रयासों को द्विपक्षीय प्रतिबंधों और सेना के सुविचारित इस्तेमाल के जरिये सहारा देने वाली राजनीतिक इच्छाशक्ति ही ऐसे ढीढ रवैये वालों को होश में ला पाएगी। आतंकी शिविरों के खिलाफ हालिया ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ या लक्षित हमले गतिरोध को खत्म करने वाला और पाकिस्तान को संदेश देने वाला ऐसा ही कदम था। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक जैसी चेतावनी से पाकिस्तान के कानों पर जूं शायद ही रेंगेगी। उसकी सेना पहले ही ‘बदला लेने और जन्नत हासिल करने’ की फिराक में होगी, चाहे वह हरकत कितनी ही बेवकूफी भरी निकले। इसीलिाए राजनीतिक ‘इच्छाशक्ति’ और गौरव हासिल कर चुकी भारतीय सरकार के लिए ऐसे सभी उपाय जारी रखना ही उचित होगा, जिनसे पाकिस्तान में गैर-जवाबदेह और अहंकारी सरकार पर नकेल पड़ी रहे। इसके अलावा राज्य के भीतर और बाहर, सीमा के किनारे और देश के अंदरूनी हिस्सों में आतंकवादी हमलों के प्रति पूरी तरह सतर्क रहना भी उतना ही जरूरी है।

कट्टरपंथ और घृणा के चंगुल में फंसा पाकिस्तान कभी भी भारत को शांति एवं स्थिरता के माहौल में आगे नहीं बढ़ने देगा - यह बात समझने के लिए सात दशक बहुत अधिक होते हैं। समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर राज्य के बाकी हिस्सों - बाल्टिस्तान, गिलगित - को दोबारा हासिल करने के मसले पर भी विचार होना चाहिए और उसे अमली जामा पहनाने के लिए लगातार काम किया जाना चाहिए। इसके अलावा पश्चिमी नदियों का जो पानी अभी तक पाकिस्तान में जाने दिया जा रहा था, उसमें से भारत का उचित हिस्सा प्राप्त करने के लिए ठोस दीर्घकालिक उपाय अपनाने की जरूरत है।

भारत द्वारा सैन्य विकल्प के न्यूनतम और परिपक्वता भरे इस्तेमाल की दुनिया भर में कई तरीकों से सराहना की गई है। पाकिस्तान में होने वाली दक्षेस बैठक का सभी देशों द्वारा एक तरह से बहिष्कार किया जाना बताता है कि पाकिस्तान अपनाई जा रही आतंकवाद की नीति को खारिज कर दिया गया है। लेकिन अतीत में देखा जा चुका है कि वैश्विक खिलाड़ी आम तौर पर किनारे बैठकर देखते रहते हैं ओर दोनों पक्षों से अपना फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। इसीलिए बेहतर यही है कि स्वयं को मिले कूटनीतिक समर्थन का स्वागत करने के साथ-साथ भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा अपने आप और हरमुमकिन तरीके से करने की कोशिश करे। इस सिलसिले में कथित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से पाकिस्तान का साफ इनकार उसके झूठ की ओर इशारा करता है। पाकिस्तान निश्चित रूप से नियंत्रण रेखा, अंतरराष्ट्रीय सीमा और देश के अंदरूनी हिस्सों पर कार्रवाई तो करेगा।

हमें सतर्क और चाक-चौबंद रहना होगा।

(लेखक पूर्व सेनाध्यक्ष और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संस्थापक वाइस चेयरमैन हैं। वह विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक हैं।)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 17th October 2016, Image Source: http://defence.pk
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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