पाक आतंकियों के उरी हमले के बाद एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण हो गये हैं तथा पिछले करीब दो महीने से भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं। इन हालातों में भी भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केरल के कोजीकोड़ में अपने भाषण में पाक हुक्मरानों को उनके आंतरिक हालातों को बेहतर बनाने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि यदि पाक युद्ध ही लड़ना चाहता है तो उसे अपने देश में फैली गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा तथा फैले आतंकवाद से युद्ध लड़कर इनको मिटाकर अपने देश को अमन एवं विकास के मार्ग पर ले जाये और यही कमोवेश पूरा विश्व पाक में चाह रहा है। परन्तु ऐसा होता नहीं दिख रहा है। पाक विशेषज्ञों के अनुसार वहां पर सत्ता के तीन दावेदार हैं- पाक सेना, राजनैतिक दल तथा प्रजा। परन्तु जैसा सर्वविदित है पाक में 1947 से लेकर आज तक असल में सत्ता सेना के पास ही है। केवल दिखावे के लिए वहां पर प्रजातंत्र का ढांग किया जा रहा है। इस ढोंग की मुख्य वजह है संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रावधान तथा अंतर्राष्ट्रीय विरादरी का दबाव जो केवल प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली को ही मान्यता प्रदान करती है और इसके अलावा तानाशाही या फौजी शासन को ना तो संयुक्त राष्ट्र मान्यता प्रदान करता है और ना ही किसी प्रकार की आर्थिक या कूटनीतिक सहायता प्रदान करता है। इसके साथ साथ संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने सदस्य देशों को भी निर्देश दिए हुए हैं कि प्रजातांत्रिक प्रणाली के अलावा किसी और प्रणाली वाले देश से कोई संबंध ना रखे जायें और ना कोई सहायता उसे प्रदान की जाये।
दो राष्ट्रों के सिद्धांत पर पाक अस्तित्व में आया तथा इसके अस्तित्व में आते ही पाक सेना ने अक्टूबर 1947 में जम्मू कश्मीर राजा हरीसिंह द्वारा शासित राज्य था इसलिए राजा कवालियों के रूप में पाक सेना का मुकाबला नहीं कर सके। जिसके कारण पाक सेना उत्तरी कश्मीर पर कब्जा करते हुए श्रीनगर तक आ गयी, उसी समय राजा हरीसिंह ने भारत सरकार से सहायता मांगी तथा भारत में विलय का निर्णय भी लिया और इसके बाद भारतीय सेना ने पाक हमलावरों को खदेड़ा परन्तु इसी समय संयुक्त राष्ट्र संघ के युद्ध विराम के निर्णय के कारण कश्मीर राज्य के 6 जिलों पर पाकिस्तान का अभी भी कब्जा है जिसको अब पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर पुकारा जाता है। यहीं से भारत पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव की शुरूआत हो गयी। पाकिस्तानी सेना ने पाकिस्तानी जनता को जोर शोर से यह बताना शुरू कर दिया कि दोनों देशों का बंटवारा ठीक प्रकार से नहीं हुआ है तथा कश्मीर पर वास्तव में पाकिस्तान का हक है तथा भारत ने बड़े भाई की तरह नाजायज तरीके से इस पर अपना कब्जा किया हुआ है तथा कश्मीर की तरह ही एक दिन भारत पाक के और हिस्सों पर भी कब्जा कर लेगा तथा वहां की जनता की असली रक्षक केवल पाक सेना है। इस प्रकार पाक सेना ने पाकिस्तानी जनता पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली और जब जब भी प्रजातांत्रिक शासकों ने पाक सेना की इच्छा विरूद्ध निर्णय लेने की कोशिश की तब तब ही वहां पर सेना ने सत्ता स्वयं संभाल कर फौजी शासन लागू कर दिया और इसी कारण 70 साल की आजादी के बाद पाकिस्तान में पूरे 48 साल तक फौजी शासन रहा है और यदि प्रजातांत्रिक सरकारें रहीं भी तो वे फौजी जनरलों के हाथों की कठपुतली की तरह। इसका उदाहरण पूरे विश्व ने उस समय देखा जब कारगिल युद्ध के समय अपनी चीन यात्रा के समय जन0 मुशर्रफ पाक में अपने सेना प्रमुख को प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए दिशा निर्देश टेलीफोन पर देते हुए टेलीविजन पर देखा। इस सबसे यह साफ हो जाता है कि पाक सेना का पाकिस्तान में दबदबा कायम है तथा इसका फायदा सेना ने अपने आर्थिक हितों के लिए किया। पाक सेना की आर्थिक तथा व्यवयायिक गतिविधियों का पूरा विवरण वहां की एक प्रसिद्ध लेखिका डा0 आयश सिद्धिकी आगा ने अपनी किताब इनसाइड पाक मिलिट्री इकानॉमी में खुलासा किया है। उन्होंने लिखा है कि पाक सेना ने स्वयं शासन करते हुए तथा प्रजातांत्रिक सरकारों ने भी सत्ता में बने रहने के लिए सेना की मदद के लिए रिश्वत के तौर पर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में पब्लिक तथा प्राइवेट सैक्टर व्यापार का बड़ा हिस्सा सेना को सौंप दिया जिसका टर्नओवर 4 साल पहले तक 20 मिलियन ब्रिटिश पाऊंड ऑंका गया था। इसकी पुष्टि वहां की संसद में सैनिटर फरतुल्ला बाबर के प्रश्न के उत्तर में वहां के रक्षामंत्री ने की और बताया कि पाकिस्तानी सेना 50 अलग अलग प्रकार के औद्योगिक उपक्रम चला रही है। जो मुख्यतया चीनी मिलों, रसायनिक खाद, तेल, घरेलू उड्डयन, बैंकिग तथा रिएल एस्टेट प्रमुख हैं और इस सबका टर्नओवर 20 मिलियन पाऊंड है। जो पाकिस्तानी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा है। इन औद्योगिक तथा व्यवसायिक गतिविधियों को चलाने के लिए पाक सेना ने इसे सैनिकों की भलाई का दिखावा करने के लिए कुछ संस्थाओं का गठन 1960 से ही शुरू कर दिया। इनमें प्रमुख हैं फौज फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, शाहीन फाउंडेशन, वहरिया फाउंडेशन, नेशनल लाजिस्टिक सैल तथा फ्रंटीयर वर्कस नामों से किया। इन संस्थाओं को स्थापित करते समय पाक सरकार का धन लगाया गया। नैशनल लाजिस्टिक सैल का मुख्य व्यवसाय भारी सामान की ढुलाई है। इसके लिए इनके पास 2000 बड़े ट्रक हैं तथा इसमें 2442 सेवारत तथा 4136 सेवा निवृत्त पाक सेना के कर्मी काम करते हैं। इसी प्रकार फ्रन्टियर वर्कस पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण करती है। सेना की ये संस्थाएं पाक में रेस्टोरेंट, वैकरीज तथा गोस्त तथा रोजमर्रा की वस्तुओं के साथ बड़े क्षेत्रों जैसे बैंकिंग में शाहीन तथा अशकारी बैंकों के देशव्यापी नेटवर्क तथा दवा बनाने, रासायनिक खादों तथा तेल इत्यादि तक के बड़े उपक्रम चला रही है, जिन्हें भारत में पब्लिक सैक्टर में चलाकर इनका पूरा मुनाफा सरकार पब्लिक भलाई में खर्च करती है। जबकि पाकिस्तान में इन व्यापारिक गतिविधियों से अर्जित मुनाफा केवल सेना के सेवारत तथा सेवानिवृत कर्मियों की जेब में जाता है। इसके साथ पाक सेना अपने रूतबे का प्रयोग करके इन व्यापारिक गतिविधियों पर टैक्सों पर भारी छूट सरकार से लेती है। पिछले साल पाक सेना ने 6000 करोड़ रूपये की छूट इन पर प्राप्त की थी। पाकिस्तान में केवल एक तेल का कुंआ पोर्ट कासिम के नाम से कराची के पास समुद्र में है यह भी पाक सेना के पास ही है जबकि भारत में यह कार्य ओएनजीसी नाम की पब्लिक सैक्टर कम्पनी करती है। इसी प्रकार विद्युत उत्पादन तक में पाक का कबीर वाला पावर प्लांट पाक सेना ही चला रही है। इस प्रकार पाक सेना देश का ज्यादातर धन केवल स्वयं पर ही खर्च कर रही है। इसलिए पाकिस्तान में गरीबी, अशिक्षा तथा आधारभूत विकास ढांचे की भारी कमी है। अभी तक वहां के देहातों में सड़क, पीने के साफ पानी तथा स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है क्योंकि जो धन इन कार्यों पर खर्च होना चाहिए वह वहां की बाहुबली सेना के पास जा रहा है। आर्थिक स्वास्थ्य का पैमाना मुद्रा स्फीति की दर पाकिस्तान में अक्सर 12 प्रतिशत से 17 प्रतिशत तक रहती है। जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मानकों से काफी ऊपर है।
पाकिस्तानी सेना के इस प्रकार के व्यवहार के लिए जहां सेना स्वयं जिम्मेवार है उसको इस प्रकार का बनाने में पाकिस्तानी समाज भी उतना ही जिम्मेवार है। जहां पूरे विश्व में विकास हुआ तथा समाज के नैतिक मूल्यों में सकारात्मक बदलाव समय के अनुरूप आये वहीं पर पाकिस्तान आज भी 1947 में ही खड़ा है। इसका पूरा वर्णन वहां की एक लेखिक तहमीना ईरानी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक माई फ्यूडल लार्ड में किया है। इसमें उन्होंने लिखा है कि वहां पर अभी भी जमींदारी तथा जागीरदारी प्रथा चलती है। ज्यादातर पाकिस्तान की खेती योग्य जमीन पर केवल 246 जागीरदार परिवारों का मालिकाना हक है। अभी तक वहां पर भूमि सुधार या जमींदारी उन्मूलन जैसे कानूनों के बारे में कोई बात भी नहीं करता। अपने रूतबे को बनाये रखने के लिए ये जागीरदार सेना को उसकी पकड़ के कारण अपने साथ रखते हैं। इसलिए ये लोग बड़ चढ़ कर सेना की तरीफ तथा उनके आर्थिक तथा व्यापारिक क्रिया कलापों को और बढ़ावा देकर सेना को खुश रखते हैं। ये पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि ज्यादातर वहां के राजनीतिज्ञ तथा सेना के अधिकारी इन्हीं परिवारों के हैं। इस प्रकार अभी तक पाकिस्तान में सामंती व्यवस्था पूरी तरह से लागू है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ तथा दुनिया का सभ्य समाज इसको बुरा मानता है। परन्तु परोक्ष तथा घुमाफिरा कर यह पिछड़ेपन की निशानी अभी भी वहां पर है। ये सामंती प्रवृत्ति के लोग ही वहां की गरीब जनता को डराने, धमकाने के लिए इस्लामिक कट्टरपंथियों को बढ़ावा देते हैं। इसका पूरा ब्यौरा वहां के प्रसिद्ध राजनयिक हुसैन हुक्कानी ने अपनी पुस्तक वाई वी कैन नोट वी फै्रंड में किया है। इसमें उन्होंने आइएसआइ तथा आतंकवादियों के गठजोड़ के बारे में विस्तार से लिखा है। इस कारण पाक सेना तथा वहां के आतंकी संगठन भारत के साथ साथ पूरे विश्व के लिए खतरा बन गये हैं। विश्व की हर आतंकी घटना के पीछे इसलिए पाकिस्तानी आतंकियों का जरूर हाथ पाया जाता है।
अब यदि विश्व विरादरी सच्चे अर्थों में विश्व को आतंकवाद से मुक्त करना चाहती है तो पाकिस्तानी व्यवस्था को बदलने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए पाकिस्तान को संयुक्त्त राष्ट्र संघ तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को अपनी आर्थिक सहायता के साथ वहां पर भूमि सुधार तथा जमींदारी प्रथा की समाप्ति की शर्तें लगानी चाहिए। इसके अलावा वहां की सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि सेना द्वारा चलाये जानी वाली व्यापारिक गतिविधियों का राष्ट्रीयकरण करके उन्हें पब्लिक सैक्टर का हिस्सा बनाये, तथा बाकी व्यापारिक लेनदेन पर सफेद पेपर छापते हुए इनका हर साल आडिट कराकर पूरा टैक्स जनता की भलाई के लिए वसूले। इस प्रकार वहां की सेना अपनी काली करतूतों तथा आर्थिक स्वार्थ से दूर होगी और इस प्रकार जो धन सेना अपनी व्यापारिक गतिविधियों से कमाकर इन आतंकवादियों को पोषित करती थी वह भी नहीं होगा और इस प्रकार विश्व से आतंकवाद समाप्त हो सकेगा।
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