भारत के हालिया लक्षित हमलों (सर्जिकल स्ट्राइक) को कुछ लोग प्रतिकार तथा उड़ी हमलों का बदला लेना मानते हैं। इसमें कुछ सच तो है, लेकिन यही पूरा सच नहीं है। भारत ‘हजारों घावों’ के जरिये उसे तकलीफ देने की पाकिस्तान की रणनीति के कारण हो रही आतंकी कार्रवाई को ढाई दशक से झेल रहा है। इस अवधि के दौरान प्राथमिक तौर पर सुरक्षा बलों को निशाना बनाने वाली आतंकी घटनाओं के कारण कश्मीर घाटी तो सुलगती ही रही है, मुंबई और संसद हमलों समेत तमाम हमलों की शक्ल में भारत के दूसरे हिस्सों ने भी आतंक की तपिश झेली है।
पाकिस्तान भारत को घाव दे-देकर खत्म कर देने की अपनी रणनीति पर चलता आ रहा है और भारत ढंग की कोई रणनीति अपनाए बगैर उसे सहता आ रहा है। इसीलिए रावलपिंडी (इस्लामाबाद यानी सरकार की किसी भी पाकिस्तानी रणनीति में कोई हैसियत नहीं) के लिए उड़ी उन हजारों घावों में से एक होना था, जिनके बाद भारत कभी खत्म नहीं होने वाली बहसों, धमकियों में पड़ जाता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता, जिससे पाकिस्तान (वास्तव में पाकिस्तानी सेना) का कुछ बिगड़ता।
उड़ी के बाद भारत में जो हुआ, वह अप्रत्याशित था और इसीलिए उड़ी को पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के प्रति और बिना किसी हिचक के आतंकवाद को प्रायोजित करने की पाकिस्तान की नीति प्रति भारत की प्रतिक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन का बिंदु कहा जाना चाहिए। उड़ी हमलों में पाकिस्तान का हाथ होने के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध कराए जाने के बाद भी उन्हें मानने से उसके लगातार इनकार ने भारत के सामने सामरिक संयम की उस रणनीति को ताक पर रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा, जिस रणनीति को पाकिस्तान में कमजोरी तथा कठोर कार्रवाई करने में अक्षमता का संकेत माना जाता रहा है। कुल मिलाकर इसका नतीजा है भारत की पहले ही कार्रवाई तथा प्रतिकार करने की रणनीति। इस रणनीति के पीछे यह समझ है किः-
ऐसी समझ के साथ यह रणनीति राष्ट्रीय शक्ति के सभी माध्यमों को लेकर इनके समाधान की कोशिश करेगी और सेना इसमें एक विकल्प भर होगी। इसीलिए हालिया सर्जिकल स्ट्राइक को उड़ी का बदलना भर मानने से पूरी तस्वीर नजर नहीं आ रही है। सर्जिकल स्ट्राइक प्रत्यक्ष कार्रवाई है, जिसे हमने देखा और पाकिस्तान ने महसूस किया है, लेकिन वास्तव में यह पीएईआर रणनीति का अभिन्न हिस्सा है और इसीलिए सरकार के अन्य उपकरणों के साथ मिलकर काम करता है।
सरकार के भीतर से प्रायोजित तत्वों ने जिस दिन उड़ी हमले किए थे, भारत ने उसी दिन से भारत ने कूटनीतिक कदमों के जरिये अपनी पीएईआर रणनीति पर काम शुरू कर दिया था, जिसके तहत पाकिस्तान को अलग-थलग किया गया, दुनिया भर को यह जताया गया कि भारत को बराबर का जवाब देने का अधिकार है और पाकिस्तान को आतंकवादी देश कहना एकदम ठीक है। सही वक्त आने (डीजीएमओ को याद करें, जिन्होंने कहा था “हम जवाब देने का वक्त और जगह खुद चुनेंगे”) पर भारतीय सेना ने सही जगह पर सर्जिकल स्ट्राइक किए। ये जगह असल में आतंकवादियों के शिविर थे, जहां इकट्ठे आतंकवादी भारत में घुसपैठ का इंतजार कर रहे थे, जिसके बाद वे आतंकी हरकतों को अंजाम देते। इस तरह भारत की पीएईआर रणनीति दो संकेत देती है, पहला, पाकिस्तान से मिले हरेक घाव का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा और दूसरा, भारत एहतियातन पहले से ही कार्रवाई कर सकता है और करेगा। वह अगले घाव का इंतजार नहीं करेगा बल्कि चाकू चलने से पहले ही उसकी धार कुंद कर देगा!
पिछले एक पखवाड़े में जो भी हुआ है, उसे देखते हुए यह कहना ठीक होगा कि यह सोची समझी रणनीति है, जिसे मजबूत राजनीतिक समर्थन भी प्राप्त है। इसके अलावा सरकार के विभिन्न अंगों के बीच जबरदस्त तालमेल भी सुखदायी रहा है। भारत की पीएईआर रणनीति से भी ज्यादा झटका पाकिस्तान को इस बात से लगा कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने उसी जिम्मेदारी ली है और उन हमलों के बारे में पूरी दुनिया को बताया है (इतनी साफगोई से बताया है कि भारतीय डीजीएमओ ने पाकिस्तान के डीजीएमओ तक को हमलों के बारे में बताया)। पाकिस्तान को तो यही सही लगता कि भारत गुपचुप कार्रवाई के रूप में सर्जिकल स्ट्राइक करे ताकि आतंक को प्रायोजित करने की अपनी कार्रवाई को वह प्रत्यक्ष जवाब देने के झंझट के बगैर जारी रख पाता। ऐसा नहीं हुआ, इसलिए पाकिस्तान अब फंस गया है। फिलहाल तो वह पुराना राग ही अलाप रहा है कि सर्जिकल स्ट्राइक हुए ही नहीं (बिल्कुल वैसे ही, जैसे उसने कारगिल अभियान के बाद अपने ही जवानों की लाशें स्वीकार करने से इनकार कर दिया था)। वह तो सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भारतीय जवानों की मौत होने और उन्हें कैद दिए जाने की मनगढ़ंत कहानी भी सुना रहा है।
किंतु पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि देर-सबेर वह जवाब जरूर देगा। इसलिए भारत को जवाब में क्या करना चाहिए? इस पर विचार करने से पहले इस विश्वास को तिलांजलि देनी होगी कि भारत के सर्जिकल स्ट्राइक ने बात बढ़ा दी है। ऐसा मानना बेवकूफी है क्योंकि इसके पीछे यह धारणा काम करती है कि पाकिस्तान बेशक दूसरों की आड़ में आतंक फैलाता रहे, लेकिन भारत को बेहद नरम कूटनीतिक प्रतिक्रिया जैसे परिपक्व कदम ही उठाने चाहिए। क्यों? क्योंकि यदि भारत नियंत्रण रेखा के पार सैन्य कार्रवाई करेगा तो बात बढ़ जाएगी और पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर डालेगा, जिसका प्रदर्शन वह अभी तक करता आ रहा है। आशयः पाकिस्तान हजारों घाव देता रहे, भारत को चुपचाप सहते रहना चाहिए क्योंकि टकराव बढ़ा तो तोहमत उसी के मत्थे आएगी। पता है, उड़ी पर भारत की प्रतिक्रिया ने इस भ्रांति को भी हवा में उड़ा दिया है!!
पाकिस्तान जवाब में गुपचुप हमले करने की अपनी रणनीति जारी रखेगा और फिदायीन हमलों की कोशिश करेगा, जिनसे ज्यादा खलबली मचती है। वह नियंत्रण रेखा या अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी भी कर सकता है। उसके जवाब में भारत को पीएईआर की अपनी रणनीति पर टिके रहना होगा। ऐसा करने पर वह हरेक सरकारी उपकरण का इस्तेमाल कर सकता है। कूटनीतिक मोर्चे पर सबसे जरूरी यह है कि पाकिस्तान पर आतंकी देश की मुहर लगवा दी जाए और यह समझ लेना चाहिए कि यह लंबी प्रक्रिया है, जिसका नतीजा बहुत देर में सामने आएगा। इसके अलावा पूरी दुनिया और विशेषकर उन देशों, जिन्हें पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की चोट झेलनी पड़ रही हैं, के साथ मिलकर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का अभियान जारी रहना चाहिए। दोनों काम चल रहे हैं और इसका सेहरा सरकार के सिर बंधना चाहिए। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये कूटनीतिक कदम एहतियातन पहले ही कार्रवाई करने की भारत की रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें केवल सैन्य कार्रवाई शामिल नहीं है और इसे इसी तरह से देखा जाना चाहिए। इनके अलावा सिंधु जल संधि की समीक्षा और पाकिस्तान को जमानों से मिलती आ रही आर्थिक तरजीह बंद करने का प्रयास लगातार करना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान से उसकी भारत विरोधी नीतियों की कीमत तो वसूलनी ही चाहिए।
जहां तक सैन्य मोर्चे का सवाल है तो भारत के सैन्य विकल्पों में पूर्वनियोजित प्रतिक्रिया होनी ही चाहिए। सर्वविदित है कि नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी चौकियों की मदद के बगैर पाकिस्तान की ओर से आतंकवादियों की घुसपैठ हो ही नहीं सकती। इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि भारत में आतंकी कार्रवाई कर रहे आतंकवादियों को पाकिस्तान से नैतिक और भौतिक समर्थन मिलता है। इसीलिए उन्हें इस समर्थन या मदद की कीमत चुकाने पर मजबूर किया ही जाना चाहिए। घुसपैठ के किसी भी सफल या विफल प्रयास के बाद उसमें मदद करने वाली पाकिस्तानी चौकी को नेस्तनाबूद कर ही दिया जाना चाहिए ताकि वहां की सरकार को पर्याप्त संदेश मिल जाए। जहां तक फिदायीन हमलों की बात है तो सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर फिदायीन हमलों की कोशिशों को केवल और केवल पेशेवर तरीके से रोका जाना चाहिए (जैसा हाल ही में बारामूला में रक्षा शिविरों पर हुए नाकाम फिदायी हमले में साबित हुआ)। लेकिन पाकिस्तान में अपना दबदबा कायम रखने के लिए वहां की सेना जिस कदर बेकरार रहती है, उसे देखते हुए ऐसे हमले बार-बार होंगे और भारतीय सुरक्षा बलों को ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए।
इसके साथ ही घुसपैठ के प्रयास या फिदायीन हमले के बाद भारत को मनचाहे वक्त और जगह पर सर्जिकल स्ट्राइक का विकल्प भी खुला रखना चाहिए। ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक को एकबारगी विकल्प नहीं माना जा सकता क्योंकि तब यह संदेश जाएगा कि वे केवल दिखावा थे और उनके पीछे कोई कड़ी मंशा नहीं थी। ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक जारी रखे से घुसपैठ और फिदायीन हमलों पर लगाम जरूर लगेगी क्योंकि उनका प्रत्यक्ष खमियाजा फौरन चुकाना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि सैन्य क्षेत्र में कई तरह की कार्रवाई के विकल्प हैं, जिनमें उपरोक्त कार्रवाई सबसे नीचे के स्तर पर एकदम प्रत्यक्ष कार्रवाई है। अतः हर बार उनके लिए शीर्ष स्तर पर इजाजत लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए और उनका फैसला रक्षा बलों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। इसके अलावा कुछ तबके सोचते हैं कि ऐसे कदमों से पाकिस्तान की ओर से सीमित स्तर का युद्ध शुरू हो जाएगा, लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि पाकिस्तानी सेना कई झंझटों से घिरी है और ऐसा दुस्साहस करने की क्षमता उसके पास नहीं है। साथ ही हाल के वर्षों में पश्चिमी सीमा से अपनी कुछ सेना (जो आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के लिए थी) हटाकर पूर्वी सीमा पर तैनात करने के पाकिस्तान के कदम ने उसकी हालत और भी खराब कर दी है क्योंकि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को अब कमजोर पाकिस्तानी सेना पर हमले करने के बेहतर मौके मिल गए हैं। जम्मू-कश्मीर के बाहर संघर्ष विराम उल्लंघन की बात करें तो यह पाकिस्तान पर भारी पड़ेगा क्योंकि उसका वैसा ही जवाब तुरंत दिया जाएगा।
भारत जिम्मेदार ताकत है, जो अपनी जनता की भलाई के लिए अपने आर्थिक विकास में लगी है। यह मकसद पूरा करने के लिए उसे पड़ोस में शांति चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह पाकिस्तान की हजारों घाव देने की रणनीति को खामोशी से सहता रहेगा और कोई जवाब नहीं देगा।
टकराव न तो पाकिस्तान के हित में है और न ही भारत के, लेकिन अपने नागरिकों को जान गंवाते हुए देखने और तमाम नुकसान सहने के बाद भी टकराव रोकने की पूरी जिम्मेदारी भारत पर ही थोप देना किसी भी सूरत में ठीक नहीं है। सभी मौजूद विकल्प अपनाते हुए भारत को उस हरेक घाव का तुरंत और वाजिब जवाब देना चाहिए, जो पाकिस्तान उसे देने की कोशिश करता है। पाकिस्तान से उस हर घाव की कीमत वसूली जानी चाहिए, जो वह भारत को देने की कोशिश करता है। भारत की पीएईआर रणनीति बिल्कुल वही कर रही है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जब तक पाकिस्तान हजार घावों की अपनी रणनीति पर चलता रहेगा तब तक यह रणनीति भी जारी रहेगी।
आखिर में यह ध्यान रखा जाए कि भारत अपने हित में इस रणनीति पर चल तो रहा है, लेकिन हमें इसके बारे में न तो बड़ी-बड़ी बातें करनी चाहिए और न ही आग उगलनी चाहिए क्योंकि कथनी से ज्यादा असर करनी का होता है।
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