सातवां शियांगशान फोरम
Lt General R K Sawhney, PVSM, AVSM, Centre Head & Senior Fellow, National Security and Strategic Studies & Internal Security Studies, VIF

अनौपचारिक बातचीत का दौर

सातवां ‘शियांगशान’ (शाब्दिक अर्थ है ‘खुशबू भरी पहाड़ियां’) सम्मेलन पेइचिंग के निकट शियांगशांग के हैदियान जिले में 10 से 12 अक्टूबर 2016 को आयोजित हुआ। शियांगशान फोरम को चाइना अकेडमी ऑफ मिलिटरी साइंस (सीएएमएस) और चाइना इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्ट्रैटेजिक स्टडीज (सीआईएसएस) ने सह प्रायोजित किया था। शियांगशान फोरम का गठन सीएएमएस ने 2006 में किया था। इसके शुरुआती चार सम्मेलनों का मकसद अंतरराष्ट्रीय रक्षाकर्मियों तथा शिक्षाविदों के बीच संवाद का अनौपचारिक (ट्रैक-2) मंच मुहैया कराना था, जो दो वर्ष के अंतराल पर आयोजित किया जाता था। एशिया-प्रशांत के बदलते सुरक्षा वातावरण की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए इस द्विवार्षिक सम्मेलन को अब एशिया में सुरक्षा तथा रक्षा के ‘ट्रैक-1.5’ उच्चस्तरीय संवाद मंच में तब्दील कर दिया गया है और 2014 में हुए पांचवें शियांगशान फोरम के बाद से इसे हर वर्ष आयोजित किया जाता है।

व्यापक मान्यता यही है कि 2002 में ब्रिटिश विचार समूह ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज’ और सिंगापुर सरकार द्वारा आरंभ की गई शांगरी-ला वार्ता को टक्कर देने के लिए शियांगशान फोरम का गठन किया गया है। शांगरी-ला वार्ता को नाम भी उस शांगरी-ला होटल से मिला है, जहां बैठक आयोजित होती है।

सातवें शियांगशान फोरम में 60 से अधिक देशों और संगठनों से लगभग 600 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था, जिनमें यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण प्रशांत के देशों का प्रतिनिधित्व पहले से बढ़ा था।

फोरम का आरंभ सीआईआईएसएस के चेयरमैन एडमिरल सुन चियांग्वो तथा फोरम के को-चेयरमैन एवं सीएएमएस के चेयरमैन जनरल चाइ यिंग तिंग द्वारा दिए गए स्वागत रात्रिभोज से हुआ। इस रात्रिभोज के दौरान उपस्थित प्रतिनिधियों के सामने मलेशिया के सेना प्रमुख जनरल तान स्री दातो स्री (डॉ.) हीजुल्किफली बिन मोहम्मद जिन का भाषण हुआ।

सतवें शियांगशान फोरम का मुख्य विषय “सुरक्षा पर वार्ता एवं सहयोग के जरिये नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का निर्माण” था। इस विषय पर आधारित बातचीत के बिंदुओं में एशिया-प्रशांत में नई सुरक्षा चुनौतियों को सहयोग के द्वारा जवाब देना, वैश्विक प्रशासन में सेनाओं की भूमिका, समुद्री सुरक्षा सहयोग तथा अंतरराष्ट्रीय आतंकी खतरे एवं उनके तोड़ के उपाय शामिल थे। बातचीत के अन्य विषयों में प्रमुख शक्तियों के संबंध तथा वैश्विक सामरिक स्थिति, आतंकवाद में हालिया घटनाक्रम तथा सहयोग के रचनात्मक तरीके एवं समुद्री संकट प्रबंधन तथा क्षेत्रीय सहयोग शामिल थे।

यह बात सर्वविदित है कि इस वर्ष का शियांगशान फोरम उससे पिछले पखवाड़े में हुई घटनाओं के साये तले आयोजित किया गया। ये घटनाएं दक्षिण चीन सागर से संबंधित दावों के पर आए एक फैसले के कारण चीन तथा सिंगापुर के बीच हुए विवाद और अमेरिकी युद्धरोधी प्रक्षेपास्त्र प्रणाली को अपनी जमीन पर लगाने देने के दक्षिण कोरिया के फैसले से जुड़ी थीं। इसलिए इन मुद्दों को फोरम में उठाए जाने की अपेक्षा भी पहले से ही थी।

अपेक्षा के अनुरूप ही सिंगापुर के वरिष्ठ रक्षा राज्य मंत्री श्री ओंग ये कुंग ने शियांगशान फोरम के पहले पूर्ण सत्र में अपने भाषण में कहा कि वैश्विक व्यवस्था के आवश्यक है कि खुला तथा समावेशी बना जाए और नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था अपनाई जाए। उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में दक्षिण कोरिया में ठाड प्रक्षेपास्त्र रक्षा प्रणाली लगाने के अमेरिका और दक्षिण कोरिया के फैसले पर चीन ने चिंता जाहिर की तो भी कोई अचंभा नहीं हुआ। उसके रुख का रूस सरकार ने भी भरपूर समर्थन किया, जो रूस के उप रक्षा मंत्री अनातोली अंतोनोव के भाषण से स्पष्ट था, जिसमें उन्होंने दक्षिण कोरिया के कथित निर्णय पर खरी-खोटी सुनाईं।

फोरम में बातचीत से यह भी स्पष्ट हुआ कि दक्षिण चीन सागर का विवाद कई देशों के लिए बड़ी चिंता बना हुआ है। यह चिंता न्यूजीलैंड के रक्षा मंत्री गेरी ब्राउनली ने भी जताई, जब उन्होंने कहा, “... हम ऐसी हरकतों का विरोध करते हैं, जिनसे शांति खतरे में पड़ती है और भरोसा टूटता है और हम चाहते हैं कि सभी पक्ष उन तनावों को दूर करने के लिए सक्रिय कदम उठाएं... छोटा समुद्री व्यापारिक देश होने के नाते न्यूजीलैंड के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषकर समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र की संधि बहुत महत्वपूर्ण है। हम मध्यस्थता की प्रक्रिया के समर्थक हैं और विश्वास करते हैं कि देशों को अंतरराष्ट्रीय समाधान तलाशने का अधिकार है... विवादित क्षेत्रों में भूमि पर पुनः कब्जा करना और निर्माण कार्य करना तथा सैन्य तैनाती करना तनाव बढ़ने का प्रमुख कारण रहा है।”

इसके बाद चीन ने न्यूजीलैंड की टिप्पणियों की गंभीरता कम करने की कोशिश करता रहा और चीनी संसद की विदेशी मामलों की समिति की अध्यक्ष फू यिंग ने श्रोताओं से कहा, “हमें उम्मीद है कि जिन देशों का विवादों से संबंध नहीं है, वे विवादों के आपसी समाधान में जुटे देशों का सम्मान करेंगे। मेरे खयाल से यह स्पष्ट हो चुका है कि जिनका संबंध नहीं है, उनके दखल से मतभेद और भी पेचीदा हो जाते हैं और कई बार तो उनका दखल तनाव को बढ़ा ही देता है।”

दक्षिण चीन सागर के विवाद के अलावा इस बार के शियांगशान फोरम में चीन के रक्षा मंत्री चांग वांगकुआन ने एशिया के विवादित मुद्दों में अमेरिका की हालिया सक्रियता की परोक्ष आलोचना करते हुए यह भी कहा, “... कुछ देश पूरी तरह से सैन्य श्रेष्ठता चाहते हैं, अपने सैन्य संबंधों को लगातार मजबूत करते रहना चाहते हैं और दूसरे देशों की सुरक्षा को दांव पर लगाकर अपनी सुरक्षा को पूरी तरह चाकचौबंद करना चाहते हैं।” रक्षा मंत्री राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में एशिया को अपना केंद्र बनाने, इस क्षेत्र में सैन्य तथा आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने और इस प्रकार एशियाई महाशक्ति की बढ़ती ताकत पर अंकुश लगाने के अमेरिका के प्रयासों की ओर ध्यान आकर्षित करना चाह रहे थे।

चीन के तमाम प्रयासों के बावजूद यह बात किसी से छिपी नहीं रही कि मध्यस्थता प्रक्रिया का फैसला मानने से चीन का इनकार स्पष्ट रूप से बताता है कि चीन नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था का हिमायती नहीं है।

नया क्षेत्रीय सुरक्षा प्रारूप तैयार करने की चीन की इच्छा इस फोरम की विशिष्ट बात रही। यह इच्छा चीनी विदेश मंत्रालय के उप मंत्री श्री लियू झेनमिन के भाषण से स्पष्ट हो गई, जब उन्होंने “एशिया-प्रशांत सुरक्षा ढांचा तैयार करने” की अपील की। इस प्रकार का ढांचा तैयार करने की चीन की इच्छा नई नहीं है और स्वयं राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी विभिन्न मंचों पर इसका जिक्र कर चुके हैं। किंतु शियांगशान फोरम पर विशेष रूप से इस ढांचे का जिक्र कर अब चीन ने अपने ही नियम और शर्तों पर इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय विचार विमर्श आरंभ करा दिया है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन द्वारा प्रस्तावित ऐसे क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे की शक्ल कैसी होगी।

ले. जनरल रवि साहनी, वीआईएफ की बात

सातवें शियांगशान फोरम में विचार-विमर्श का एक महत्वपूर्ण विषय “प्रमुख शक्तियों के संबंध तथा वैश्विक सामरिक क्रम” था। अन्य वक्ताओं के अलावा इस विषय पर ले. जनरल रवि साहनी ने भी विचार व्यक्त किए, जो इस वर्ष के शियांगशान फोरम में विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अपने भाषण के दौरान जनरल साहनी ने कहा कि प्रमुख अथवा वैश्विक शक्तियों के बारे में हमारी समझ पुरानी पड़ गई है और इसे नए सिरे से देखने की जरूरत है। इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश ही अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में प्रभावशाली रहे हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से जुड़े मामलों का निपटारा करने की उनकी क्षमता सीमित है। इसके साथ ही उन्होंने इस तरफ भी ध्यान आकर्षित किया कि नए प्रकार की समसामयिक सुरक्षा चुनौतियां उभरी हैं और एकीकृत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नई प्रकार की प्रतिक्रिया ही ऐसी चुनौतियों से निपट सकती है।

जनरल साहनी ने आगे कहा कि प्रमुख शक्तियों के लिए अपना प्रभाव आजमाने को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद है, लेकिन वह विश्व में शक्ति के वितरण का प्रतिनिधित्व नहीं करती है और इसीलिए इसमें सुधार तथा विस्तार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक सुरक्षा के प्रति समावेशी रुख अपनाना होगा। इसके लिए भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील को जिम्मेदारी भरी शक्तियां मानना सही होगा, जो वैश्विक शांति एवं सुरक्षा में समुचित योगदान कर सकते हैं। इसकी स्वाभाविक परिणति यह होगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए इन देशों के नामों पर विचार किया जाए। उन्होंने अपनी बात यह कहते हुए समाप्त की कि आज की विश्व व्यवस्था बहुध्रुवीय है और इसे केवल दो विश्व शक्तियों का साम्राज्य बनाने की कोशिश समझदारी की बात नहीं होगी।


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 4th November 2016, Image Source: http://www.vifindia.org

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