करीब साल भर के अंदर ही, 2014 में विश्व की सबसे धनी आंतकी संगठन माना जाने वाला दाएश, मार्च 2016 में अपने ऑपरेशन जारी रखने में आर्थिक रूप से संघर्ष करता हुआ संगठन बन गया है। 2015 के मध्य में सीरिया तथा इराक में इसके नियंत्रित क्षेत्रो में इसकी मासिक आय अनुमानित 80 मिलियन डॉलर से इस मार्च में 56 मिलियन डॉलर पर पहुँच गयी। इसका मुख्य कारण अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेनाओं द्वारा हवाई हमले तथा रूस और उसके सहयोगियों द्वारा कई तेल के मैदान नष्ट कर देना है। इधर ही इन हवाई हमलों में इस संगठन की नकदी जमा राशि का करीब 800 अमेरिकी डॉलर नष्ट कर दिया गया। परिणाम स्वरूप संगठन को अपनी आतंकी गतिविधियों को जारी रखने में आर्थिक समस्या का सीधे तौर पर सामना करना पड़ रहा है।
मुख्यतः तेल-व्यापर भी कठिन होता जा रहा है जबसे कब्ज़ा किये गए कुछ क्षेत्रों में से मुख्य सामरिक महत्व के शहर (इराक और सीरिया) नियंत्रण से छूट गए हैं क्योंकि यही क्षेत्र अवैध व्यापार, स्मगलिंग और लड़ाकों की आवाजाही (खासकर तुर्की सीमा से सटे क्षेत्रों में) के लिए मार्ग के रूप में प्रयोग में लाये जाते थे। पहले, तेल का बड़ा हिस्सा इराक में तथा दाएश नियंत्रित उत्तरी सीरिया के विद्रोही नियंत्रित क्षेत्रों में में बेचा जाता था।1
सीमा पार, तुर्की मुख्य क्रेता के रूप में चिन्हित था। हवाई हमलों में संगठन के तेल व्यापार का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया है।2 इस समयावधि में उत्पादन क्षमता भी 33000 बैरल प्रति दिन से गिरकर 21000 बैरल प्रति दिन हो गयी।3
तेल व्यापार में गिरावट के कारण अब दाएश धीरे धीरे जनता, खासकर गैर-मुसलमानों (ईसाईयों) से जजिया कर के रूप में से अवैध करों की उगाही करने की तरफ मुड़ रहा है। पवित्र कुरान से सम्बंधित प्रश्नों के सही उत्तर नहीं देने और शरिया का उल्लंघन करते हुए पाये जाने पर जुर्माने के रूप में धन की उगाही की जा रही है।4 अवैध वसूली, अपहरण, हथियारों की तस्करी, ड्रग्स तथा निजी फंडिंग इस संगठन की आमदनी के मुख्य स्रोत बन गये हैं। यह संगठन लोगों की आमदनी पर भारी टैक्स थोपता है और मूल सुविधाओं जैसे पानी, बिजली, मोबाइल नेटवर्क के प्रयोग पर शुल्क लेता है।
बढ़ती हुई समस्याओं के साथ यह संगठन अपने नियंत्रित क्षेत्रों को कब्ज़े में रखने के लिए पूरी क्षमता लगा देगा ताकि उन क्षेत्रों के तेल-मैदानों का दोहन कर सके और साथ ही अवैध वसूली जारी रख सके साथ-साथ विदेशी लड़ाकुओं को प्रशिक्षित भी करता रहे।
एक ईराकी मिलिट्री नीतिकार चेतावनी देते हैं कि वर्तमान आर्थिक गिरावट को खलीफा राज़ के अंत की शुरुवात न समझा जाए क्योंकि अभी भी इस संगठन के पास 60% सीरिया तथा 5% इराकी तेल का हिस्सा है।5
ये आंकड़े इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि लगातार हमलों के बाद भी संगठन मजबूती से खड़ा है। इस संगठन के खिलाफ लड़ रही ताकतों के लिए सभी कमाई के स्रोत नष्ट करना तथा नियंत्रित क्षेत्रों को फिर से अधिकार में लेना मुख्य चुनौतियाँ हैं।
लड़ाकुओं की भर्ती से जुड़ा संकट
संगठन ने सीरिया तथा इराक में अपने लड़ाकों की तनख्वाह 50% घटा दी है जिससे एक और समस्या उत्पन्न हुई है। यह स्पष्ट नहीं है कि इन लड़ाकुओं को कितना धन प्रतिमाह संगठन के अच्छे समय में दिया जाता था। अब इनकी मासिक आमदनी सीरियन योद्धाओं के लिए 200 डॉलर तथा विदेशी योद्धाओं के लिए 400 डॉलर हो गयी है।6 विदेशी योद्धाओं को अपनी सहूलियत की जिंदगी छोड़कर आने के कारण ज्यादा धन दिया जाता है, इससे स्थानीय आईएसआईएस लड़ाकुओं में खीज और गुस्से का भाव है।7 इस बढ़ी वैमनस्यता के कारण योद्धाओं के कैडर में तालमेल की कमी हुई है। स्थानीय लड़ाकू बाहरी लड़ाकुओं को स्थानीय कबीलाई नियम, संस्कृति नहीं मानने तथा नियंत्रित क्षेत्रों के हाथ से निकल जाने का दोषी मानते हैं।8 ये पूर्वाग्रह इसलिए भी सटीक बैठते है क्योंकि भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ्रीका से गए लोगों को अरब तथा पश्चिमी लड़ाकुओं से हीन माना जाता है।9
और यह भी माना जाता है कि इस स्थिति के लिए बाहरी लड़ाकुओं का स्थानीय लड़ाकुओ पर धौंस दिखाना भी है। इन सभी मुद्दों को समग्रता में देखें तो पता चलता है की संगठन में अंदरुनी अराजकता बढ़ रही है।
इसी वजह से स्थानीय तथा बाहरी योद्धाओं में दरार बढ़ रही है जिसका असर भर्ती पर भी पड़ रहा है। पहले की 1500-2000 प्रतिमाह भर्ती से अब यह आंकड़ा 200-500 भर्ती प्रतिमाह पर पहुँच गया है।10 ये स्थिति उस संगठन के लिए एक बड़ा झटका जो पहले पूरी दुनिया से भर्ती करने के दावे करती थी।
सीरिया और इराक में बढ़ती चुनौतियों के कारण दाएश पर अब यह दबाव है कि नए क्षेत्र कब्ज़ा किये जायें और नयी रणनीतियाँ बनाई जाएँ। उत्तरी अफ्रीका, यूरोप, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और दक्षिणपूर्व एशिया में इसकी बढ़ी हुई गतिविधियाँ इसका प्रमाण है। माना जा रहा की बाहरी लड़ाके अब नयी जगहों पर जायेंगे जहाँ संगठन पैर जमा रहा है। ब्रुसेल्स तथा पेरिस में हुए हमले सीरिया में प्रशिक्षित लड़ाकुओं द्वारा अंजाम दिए गये थे। आशंका है कि यूरोप के अन्य हिस्सों में ऐसे और हमले हो सकते हैं।
इसका एक कारण यह भी है कि इन देशों में पहले से ही ऐसा इस्लामिक नेटवर्क है जो हमलों में स्थानीय सहायता दे सकता है। अपनी क्षमता और आर्थिक सम्पन्नता के कारण पेरिस/ब्रुसेल्स जैसे हमले बहुत मुश्किल काम नहीं हैं। एक अमेरिकी आतंकी-वित्तीय एनालिस्ट के अनुसार ब्रुसेल्स हमले की कुल लागत 10 से 15 हज़ार अमेरिकी डॉलर थी जोकि बहुत कम थी।11 हमला करने का आदेश सीरिया से ना भी मिले तो भी स्थानीय संगठन या दाएश के समर्थक संगठन हमला कर सकते हैं। इस बढ़ते कट्टरपन के कारण जिहादी तत्व बचे रहेंगे यह सुन्नी संगठन रहे या न रहे।
निष्कर्ष
सीरिया में दाएश के अंदर यह संकट तब उत्पन्न हुआ है जब यह संगठन बाकी दुनिया में अपने पैर पसार रहा है। अभी आवश्यकता यह है की इस संस्था की वित्तीय सहायता, इनका नेटवर्क खत्म करने की मुहिम को बढ़ाया जाए और मुख्यतः बढ़ते कट्टरपन और भर्तियो को जड़ से खत्म कर दिया जाए। उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि एक इस्लामिक राज्य बनाने की मूर्खतापूर्ण सोच को ही नष्ट कर दिया जाए। ये कार्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा किये जाने वाले रोकथाम के अलावा है। यह मान्यता मूर्खतापूर्ण है की केवल क्षेत्रीय कब्ज़े और वित्तीय रूप से कमजोर करने से दाएश का अंत हो जायेगा।
Endnotes:
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