दक्षिण चीन सागर में अपने हित सुरक्षित रखने के लिए वियतनाम की लचीली विदेश एवं सुरक्षा नीतियां
Brig Vinod Anand, Senior Fellow, VIF

आसियान देशों के साथ ‘दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचरण संबंधी घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर करने के करीब 14 वर्ष बाद दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन का रुख लगातार सक्रियता भरा एवं अड़ियल होता जा गया है, हालांकि इस बीच उसने अक्टूबर 2003 में दक्षिण पूर्व एशिया में मैत्री तथा सहयोग की संधि पर भी हस्ताक्षर किए। 2005 के आसपास चीन ने वियतनाम तथा फिलीपींस जैसे देशों के साथ समुद्र के भीतर मौजूद संसाधनों के साझा विकास का विचार भी आगे बढ़ाया था। वास्तव में उसने दक्षिण चीन सागर में भूकंप संबंधी सर्वेक्षणों के लिए समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे।

किंतु चीन के रक्षा बजट में दो अंकों में वृद्धि होने, चीनी सेना (पीएलए) का तेजी से आधुनिकीकरण होने और चीन में नया नेतृत्व आने के कारण हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर में स्थिति वियतनाम के लिए ही नहीं अन्य पक्षों के लिए भी खासी चुनौतीपूर्ण हो गई है। अपने हितों की रक्षा के लिए हनोई अपनी ओर से बहुत संतुलित और समझबूझ भरी विदेश एवं सुरक्षा नीतियों पर चल रहा है।

वियतनाम कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (सीपीवी) की 12वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में इस वर्ष श्री न्गुयेन फू त्रोंग को एक बार फिर पार्टी का महासचिव चुन लिया गया। वैचारिक रूप से चीन के करीब माने जाने वाले त्रोंग ने अमेरिका के साथ वियतनाम के संपर्क और चीन से साथ बढ़ रहे रिश्तों के बीच संतुलन बनाए रखने में बेहद सतर्कता बरती है।

पिछले वर्ष जुलाई में महासचिव न्गुयेन फू त्रोंग अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के पहले शीर्ष नेता बन गए, जिससे संकेत मिला और अमेरिका और वियतनाम में राजनीतिक व्यवस्था की अलग-अलग प्रकृति होने के बावजूद दोनेां देशों के संबंध मजबूत हो रहे हैं। किंतु पिछले साल अप्रैल में उन्होंने पेइचिंग की यात्रा भी की थी ताकि दक्षिण चीन सागर मुद्दे के कारण बिगड़ रहे रिश्तों को सुधारा जा सके।

चीन द्वारा अपनी ताकत दिखाए जाने और दक्षिण चीन का सैन्यीकरण किए जाने के कारण वियतनाम के नेतृत्व को भी आसियान जैसे बहुपक्षीय संगठनों से सहायता मांगनी पड़ी और इस क्षेत्र के तथा क्षेत्र से बाहर के देशों के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्ते प्रगाढ़ करने पड़े। अमेरिका के अलावा वियतनाम भारत, जापान और आसियान के उन सदस्यों के साथ अपने राजनीतिक, सुरक्षा एवं रक्षा संबंधों को और मजबूत करता रहा है, जो सदस्य पेइचिंग की दबाने वाली नीतियों के शिकार हैं।

चीन के विस्तारवादी दावों को उसकी नौ बिंदुओं वाली रेखा (नाइन डैश लाइन) में दर्शाया गया है, जो वियतनाम, फिलीपींस, ब्रुनेई और मलेशिया के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में घुस जाती है। फिलीपींस तो चीन के साथ अपने विवाद को हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में ले गया है और जून में ही इसका निर्णय आने की संभावना है, लेकिन वियतनाम ज्यादा चौकन्ना रहा है। कुछ पक्षों ने उसे फिलीपींस का रास्ता ही अपनाने की सलाह दी है किंतु हनोई को पता है कि ऐसा काम करने से बचना अधिक दूरदर्शिता पूर्ण होगा क्योंकि पहले तो चीन मध्यस्थता अदालत का फैसला बिल्कुल नहीं मानेगा और दूसरी बात यह है कि इस तरह के कदम से द्विपक्षीय संबंध में और खटास ही आएगी। चीन संप्रभुता और क्षेत्र संबंधी विवाद को द्विपक्षीय बातचीत के जरिये सुलझाने पर ही जोर देता रहा है क्योंकि उसे पता है कि बहुपक्षीय मंच पर उसका नुकसान होगा।

किंतु इसका यह मतलब नहीं है कि वियतनाम ने बहुपक्षीय व्यवस्था या प्रणाली के जरिये अपने हितों पर जोर नहीं दिया है। 1995 में उसके आसियान में शामिल होने का एक कारण मिसचीफ रीफ भी था, जिस पर चीन ने 1994 में कब्जा कर लिया था। चीन को 2002 में दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचरण की संहिता संबंधी घोषणा पर राजी होने के लिए सहमत करने में आसियान समूह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस तरह वियतनाम के दृष्टिकोण से स्प्रैटली द्वीपों का मसला चीन और संबंधित देश के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा रहने के बजाय आसियान के सभी सदस्यों के चर्चा का विषय बन गया।

मई 2014 में चीन ने संभवत: म्‍यांमार में एक सप्‍ताह बाद होने वाली आसियान शिखर बैठक के दौरान आसियान में 2012 की कंबोडिया शिखर बैठक जैसे मतभेद पैदा करने के इरादे से पैरासेल्‍स में वियतनाम के दावे वाले क्षेत्रों में अपनी तेल निकालने वाली विशाल रिग एचएस 981 भेज दीं। लेकिन इस बार आसियान के सदस्‍य एकदम एकजुट रहे और एक तरह से वियतनाम के समर्थन में खड़े हो गए। आसियान ने विशुद्ध रूप से द्विपक्षीय विवाद में वियतनाम का समर्थन करते हुए संयुक्‍त बयान भी जारी किया। यह पहला मौका था, जब आसियान ने पैरासेल्‍स पर कोई रुख अपनाया।

वियतनामी नेतृत्‍व ने हाल के वर्षों में जपान के साथ भी अपना सामरिक और सुरक्षा सहयोग मजबूत किया है। वियतनाम कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के महासचिव श्री न्‍गुयेन फू त्रोंग ने सितंबर 2015 में जापान की यात्रा की। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने कहा कि ‘’यथास्थिति को बदलने तथा दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ाने के लगातार तथा एकतरफा कदमों, जिनमें बड़े पैमाने पर जमीन फिर प्राप्‍त करना एवं चौकियां बनाना भी शामिल है, पर हमारी चिंता साझा है।‘’ उन्‍होंने आर्थिक एवं सुरक्षा संबंध मजबूत करने के लिए वियतनाम को नए जहाज एवं ऋण देने के लिए सहमति जताई। जापान ने इस वर्ष टोक्‍यो में जी7 बैठक के लिए इंडो‍नेशिया तथा कुछ अन्‍य एशियाई देशों के नेताओं के साथ वियतनाम के प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया। जापान दक्षिण चीन सागर में नौवहन की आजादी तथा आचार संहिता के पालन का समर्थक रहा है। जी7 वक्‍तव्‍य में भी पूर्व तथा दक्षिण चीन सागरों में स्थिति तथा ‘विवादों के शांतिपूर्ण प्रबंधन एवं निपटारे के बुनियादी महत्‍व‘ के प्रति चिंता जताई गई।

इसी प्रकार सामरिक एवं सुरक्षा संबंधी मसलों पर भारत तथा वियतनाम के बीच सहयोग दोनों देशों के नेताओं द्वारा प्रदान की गई स्‍पष्‍ट राजनीतिक दिशा के आधार पर बढ़ रहा है। पिछले वर्ष ‘’विजन फॉर इंडो-वियतनाम डिफेंस रिलेशंस 2015-2020’’ पर हुए हस्‍ताक्षर ने दोनों देशों के बीच बढ़ रहे सामरिक सहयोग को और गति प्रदान की है। भारत ने दक्षिण चीन सागर में नौवहन की आजादी और आचार संहिता के पालन का समर्थन किया है। भारत ने वियतनाम के समुद्र त‍ट तथा उसके विशिष्‍ट आर्थिक क्षेत्र के भीतर उत्‍खनन के लिए दो तेल ब्‍लॉक भी लिए हैं, जिन पर चीन ने आपत्ति जताई है।

इसके अलावा इस वर्ष मई में पश्चिमी प्रशांत में संयुक्‍त नौसैनिक अभ्‍यास मालाबार 2016 में हिस्‍सा लेने के लिए जाते समय भारतीय नौसेना के जहाज दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरे और वियतनाम की केम रैन खाड़ी में बंदरगाह पर ही नहीं रुके बल्कि सुबिक खाड़ी (फिलीपींस) और पोर्ट केलैंग (मलेशिया) में भी पहुंचे। वास्‍तव में यह नौवहन की आजादी की अभिव्‍यक्ति थी। सामरिक सहयोग के मामले में भारत के अमेरिका तथा जापान के साथ त्रिपक्षीय संबंध हैं और अमेरिका तथा ऑस्‍ट्रेलिया के साथ भी त्रिपक्षीय संबंधों की हाल ही में घोषणा की गई है, इसलिए वियतनाम तथा उसकी जैसी ही चिंताओं वाली अन्‍य क्षेत्रीय ताकतों के साथ त्रिपक्षीय समझौता करने का भारत के लिए यह एकदम अनुकूल समय है।

कई दिशाओं वाली अपनी नीतियों के जरिये वियतनाम का नेतृत्‍व अभी तक अपने हितों की रक्षा के लिए अपने पड़ोस में बेहद नाजुक सामरिक संतुलन कायम रख पाया है। किंतु चीन की बढ़ती आक्रामकता वियतनामी नेतृत्‍व की राजनीतिक एवं सामरिक क्षमता का ही नहीं बल्कि विश्‍व व्‍यापार एवं सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण क्षेत्र में शांति बरकरार रखने के आसियान, अमेरिकी, भारतीय एवं अन्‍य क्षेत्रीय ताकतों के कूटनीतिक एवं रणनीतिक कौशल का भी इम्तिहान लेगा।


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 20th June 2016, Image Source: http://news.xinhuanet.com
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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